Monday, 11 November 2024

बाल कहनी +-* *उतलंगिया लइका*

 *-+ बाल कहनी +-*


*उतलंगिया लइका*


      *लल्ला बिकट बेलबेलहा अउ उतलंगिया लइका ताय। जेन ल दूसर परानी जीव-जंतु मन ल सताय मा बड़ मजा आथे। अपन मनेच के करनहा ककरो बरजे मा मानय घलो नहीं ।  तेकर सेती लल्ला ल दाई-ददा ले गारी-मार घलो परय, तभो अप्पत के अप्पत। अही अतलंग के सेती वोकर घर वाले मन बिकट हलाकान रहय।*

         *एक दिन के बात आय।  लल्ला ॲंगना मा खेलत रहय। खेलते-खेलत ओकर नजर औचकहा खोंधरा मा घुसरत बाव्हन चिरई के उपर परगिस। वो चिरई के खोंधरा छानी के परवा मा रहय। जेन हा  चारा लान-लान अपन पिला ल खवात रहय। लल्ला के शैतानी दिमाग मा तुरते वो बाव्हन चिरई ल पकड़े के उदीम आ गे। झट्टे खेलई ल छोड़ के  कुर्सी ल रखिस अउ चुपेकन चघ के खोंधरा के भुलका ल छपक दिस। चिरई बिचारी घेरा गिस, तहाॅं  पकड़ लिस।*

        *लल्ला ह बाव्हन चिरई के गोड़ ल डोरी मा बॉंध दिस।  एति बर चिरई के नर जोड़ी ह अपन जोड़ी बर बिकट चेर्रावत  कभू ए परवा ले वो परवा त कभू पेड़ मा होवय। संग मा आने चिरई मन घलो। ए देख के लल्ला के मन मा दया समा गय। अउ गुलाल ल घोर के बाव्हन चिरई ल  रंगा के छोर दिस। छुटते छॉंड़ बाव्हन चिरई ह अपन जोड़ीदार मेर गिस त ओकर आने बरन ल देख के भाग गिस। अउ दूसर चिरई मन डहर जाय त वहू मन चॉंव-चॉंव करत अंते-तंते भागय। अपन खोंधरा तीर जाय त पिलवा मन डर्रा के चेर्-चेर् चेर्रावय।*

      *वाव्हन चिरई चेर्-चेर् नरियावत गजब कोशिश करिस अपन परवार संग सॅंघरे के, फेर सब आहिआद होगे। अइसे होगय के  चिरई बिचारी अपन  परिवार अउ समाज ले अलग-थलग होके अकेल्ला परगे।  हार मान के चिरई बिचारी  रूख मा जा के चुपे कन बइठगे।*

      *लल्ला ए सब घटना ल देखत रहय। महतारी चिरई के बहिष्कार होय जइसे हालत अउ जेखर सेती भूख मा पिलवा मन के एकसॅंस्सु नरियई, लल्ला के हिरदे ल कचोटे लगिस। फेर करय त करय का? चिरई हाथ ले निकलगे रहय। अब कहॉं पकड़ाही जेन रंग ल धो देतिस। लल्ला अपन कारस्तानी के सेती बिकट पछताय लगिस। मॅंय तो हॅंसी-ठठ्ठा समझके  का रंगा पारेंव, ए तो वाव्हन चिरई बर जी के जंजाल होगे। अउ घेरी-बेरी भगवान ले अरजी करन लगिस। ....हे भगवान कइसनों करके ए बाव्हन चिरई अपन परिवार संग मिल जाय।*

      *देखते-देखत दिन पहाके मुॅंधियार घलो हो गे। लल्ला के मन छटपटात रहय। वोला चैन नइ परत रहय। घेरी-बेरी उठ-उठ के खोंधरा डहर ल देखय। फेर हालत जस के तस रहय। अइसे-तइसे बिकट रात होगे अउ  अपन चिंता ल धरे लल्ला के नींद तको परगे।*

         *बिहनिया जब लल्ला के नींद उचटिस, सोज्झे ॲंगना डहर निकलिस त रगबग ले रउनिया अउ भिंया भिंजे! पानी गिरे रहय। अउ बाव्हन चिरई मन दूनो जॉंवर-जोंड़ी  गुलमोहर के डार मा सॅंघरा बइठे फुदरात रहय।  ए देख के लल्ला के हताश मन गदगद होगय। दुख के ॲंधियारी ल मेटत सुरुज ह खुशी के उजास बगराय रहय। लल्ला ल अइसे लगिस के वोकर अबोध मन ले करे पछतावा अउ अरजी ल भगवान सुनलिस हे।*


*देवचरण ध्रुव*

कबीरधाम

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