Monday, 11 November 2024

माहौल बदल गे

 (लघुकथा)


माहौल बदल गे

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गाँव मा असो देवारी के बनेच उछाह हे।

गोवर्धन पूजा तो बने-बने निपट गे।सब झन ये साल मातर तिहार मनाये के जोखा मढ़ाये हें।सियान मन देंवता-धामी ला मनावत हें के काली के मातर हा घलो अइसनहे हली-भली निपट जतिस।पाछू तीन बछर पहिली दइहान मा डाँड खुँदवाये के बेरा दरुहा मन के सेती जमके मार-पीट होये के कारण मातर नइ जागे रहिस --तब ले मातर बंद हे।एहू साल वइसना झन होवय के चिंता हा सियान मन ला खावत हे।तेकर सेती एक पइत अउ सावचेती खातिर कोतवाल सो हाँका परवाके डाँड़ खुँदवाये बर दइहान जाये के पहिली सब गुड़ी मा सकलायें हें।

गाँव के सबले बुजुर्ग सियान हा सरपंच ला पूछिस-- "कस गा सरपंच बेटा मातर मा कोनो बिघन बाधा तो नइ आही ना?"

वाह--मोर राहत ले तैं निस्फिक्कर रा कका।कुछु नइ होवय।" सरपंच कहिस।

"अरे देख रे भइया--तहीं हा तिहार-बार के सब टूरा-टनका मन ला कसके दारू पियाथच तहाँ ले उही मन झगरा मता डरथें।"- एक झन अउ सियान कहिच।

तैं फालतू बात झन कर डोकरा काहत सरपंच तनतना के खड़ा होगे।

"अरे सहींच ला  तो काहत हे-- का गलत बोलत हे।सरी गाँव मा दारू तहीं बेंचवाथस-- गली-गली मा ताश खेलवाथस-- गुंडा पाल के तहीं रखे हस।तोर सरपंची मा सरी करम होये ला धर ले हे।" मनमाड़े चिल्लावत दू चार झन जवान मन खड़ा होगें।

अतका ला देखके सरपंच हा खवा-पिया के बइठारे अपन आदमी मन ला अँखियाइच तहाँ ले वोमन खड़ा होके हाँव - हाँव करे ला धर लिन।

सियान मन ले देके शांत कराके,समझा बुझाके सब झन ला बइठारे पाये रहिन वोतके बेर रमेश अउ सोनू हा औखर-औखर गारी देवत अइन अउ -- कहाँ हे बिसरू हा--कहाँ हे बिसरू हा--वो ला काली संझा के खोजत हन--इहाँ आके लुकाये बइठे हे-- कहिके चिल्लाये ला धर लिन।वो मन ला देखके बिसरू हा टूप ले उठिच अउ गली कोती भागे ला धरलिच।

ये मन तो देखते राहयँ ।दँउड़के गेइन अउ पकड़ के कुचरे ला धरलिन। दस -बिस झन जाके छोंड़ाइन नहीं ते एको झन के हत्या हो जतिस। तीनों झन ला पकड़ के बइठका मा लाके पूछिन-- का होगे तेमा?

सोनू हा बिफरत कहिस--येला काली दू ठन बाटल लाये बर दू हजार अउ लनौनी चार सौ उपराहा रुपिया देये रहेन--न तो बाटल ला लाइच न तो पइसा वापिस करिच--- गायब होगे।हमर पूरा तिहार ला फीका करदिच।गोवर्धन पूजा फीका गै।मातर ला तको सुक्खा मनाये ला परही।

अतका कहिस तहाँ ले फेर बिसरू ला गबेड़े ला धर लिस। हो हल्ला मचगे।

देखते देखत माहौल बदलगे।सियान मन अइसना नइ होना चाही काहत घर कोती रेंगदिन।बइठका उसलगे।असो तको मातर हा मनाये के पहिली झगरा मा तर होगे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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