Monday, 4 November 2024

गाँव के सुरहुती तिहार...*

 *गाँव के सुरहुती तिहार...*


हमर छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक रूप से अब्बड़ समृद्ध हवय। इहाँ किसिम-किसिम के तिहार मनात रथन। तिहार हमर संस्कृति ल मजबूत करत पुरखा मन के संजोय परंपरा ल पोठ करे के बुता करथे। तिहार ह मन म नवा उमंग,खुसी,समरसता, सहयोग के भावना ल भरथे। जेकर ले सब मनखे मन एक-दूसर ले परस्पर सहयोग अउ परेम के डोरी ले बंधाये रथे।


अइसने एक ठन तिहार के हमर छत्तीसगढ़ म अब्बड़ महत्ता हवय, जेला सुरहुती तिहार कहे जाथे। सुरहुती तिहार मने लछमी माता के पूजन-वंदन अउ शिव-पार्वती के बिहाव के रूप म ये तिहार ल मनाये जाथे। ग्रामीण अंचल म ये तिहार ल बड़ जोर शोर ले मनाथे। शाम के लछमी,गणेश, कुबेर जी के पूजा के संग गोधन गाय, बैला के घलो पूजा बड़े भाव ले करे जाथे। ओकर बाद शिव-पार्वती के बिहाव के तैयारी होथे।


सुरहुती के एक दिन नहिते तीन दिन पहिली गौरी-गौरा ल जगाये के पुरखा मन के चलागर हवे। गांव के बैगा अउ सियान मन गांव के बीच म स्थापित गौरी-गौरा चंवरा म हुम-धूप देके आव्हान करत जगाथे। 


सुरहुती के दिन बिहिनिया ले बैगा अउ सियान मन कुंवारी-कुंवारा टुरी-टुरा मन ल संग लेके तरिया पार के माटी ल लाथे। जेंकर घर गौरी-गौरा के बिहाव करे जाथे उँकर घर माटी ल लाके भिजो के रख देथे। बिहाव घर वाले मन अपन बेटी-बेटा के बिहाव सरी बिहिनिया ले जोरा करत आनंद ले भरे रथे। रेडियो संग पाल-पंडाल,बाजा-गाजा के जोरा घलो करे रथे।


संझाकुन जेवन के पीछू बिहाव घर म सबो गाँव के मन जेला-जेला गौरी-गौरा ल समराये के काम सौपे रथे, ओमन आके गौरी-गौरा ल बड़े-बड़े पीढिहा म प्रतीक रूप म तैयार करथे। गौरी के रूप म माटी के गौरी माई के सबो सिंगार करत पालकी अउ गौरा के रूप म शिवजी के रूप के संग बाजा-गाजा बारात के रूप तैयार करे जाथे। नंगत के फूल-फुलवारी ले सजाथे,जेमे सिलयारी फूल, मेमरी फूल, गोंदाफूल, धान के बाली, अलग-अलग रंग के चाउर ल लगाके बड़ सुघ्घर ढंग ले सजाये जाथे। दुनो म चार-चार ठन खम्बा म ऊपर म दिया घलो रख के जलाथे। जेकर ले गौरी-गौरा ह रिगबिग ले अँजोर करत दिखत रथे।


गाँव के जम्मो कुंवारी नोनी मन सुरहुती तिहार के दिन करसा घलो बोहथे। गाँव के सबो घर ले करसा निकलथे। जेकर घर नोनी नइ रहय ओमन घलो अपन परिवार के कोई नोनी ल बला के करसा बोहाथे। करसा अपन घर निकलना अउ नोनी मन के करसा बोहाना अब्बड़ शुभ माने जाथे।


गौरी-गौरा तैयार होय के पीछू जम्मो गाँव म कोतवाल के संग बजनिया मन गाँव के करसा ल निकाले के शुरुवात करथे। नोनी मन के करसा बड़ सुंदर ढंग ले सजे रथे जेला सजाये के जुम्मेदारी भाई मन के रथे। अलग-अलग रंग अउ चुना म सजे करसा धान के सोनहा बाली म चारो डहन ले छाये घाते सुघ्घर लगथे। करसा म फरा रोटी डारे के घलो चलन हवय। बाजा बाजत गली म जावत रथे अउ करसा वाले नोनी मन अपन करसा के ऊपर म दिया बार के निकलथे अउ बजनिया मन के संग बिहाव घर म सकलाथे।


बिहाव ठउर म सबो करसा अउ गाँव के मन सकला जाए के पीछू शिव-पार्वती के बिहाव के नेंग बैगा अउ सियान मन शुरू करथे। सबो गांव वाले के उपस्थित म बिहाव के सबो नेंग करत टिकान टिकट अउ मउर सौपत घर वाले मन बिदा करथे। बाजा-गाजा घलो नंगत बाजत रथे जेकर ले आनंद आवत रथे। गौरी-गौरा ल कुंवारी टुरी नहिते कुंवारा टुरा मन ल बोहा के निकालथे। बिहाव घर ले घर के सियान चाउर सितत गौरी-गौरा चंवरा म लेजथे,संग म करसा वाले मन घलो गौरी-गौरा के पीछू-पीछू  जावत सबो करसा के दिया मन रात के अंधयारी म रिगबिग-रिगबिग बरत बड़ मनभावन लगथे। अईसे लगथे आज के बाद अंधयारी के नामो निशान नई रहय।


गौरी-गौरा चंवरा म पहुँच के सात भांवर घूमे के पीछू गौरी-गौरा ल स्थान म बैठाए के बाद दाई-माई मन गौरी-गौरा के अब्बड़ गीत गाथे। एक पतरी रैनी भैनी, जोहर-जोहर मोर ठाकुर देवता, ईसर राजा के चले हे बराते, गौरी जागय मोर गौरा जागय, सिन्दूरी के फाटत गौरी हो, जे अब्बड़ सुघ्घर लागथे। मनमाड़े गीत गाये के बाद गौरी-गौरा,बाजा बजईया,ठाकुर देवता सब ल सुताये के बाद सब झन अपन-अपन घर चल देते। पीछू लइका मन करसा के फरा रोटी ल निकाल के खावत अपन मनमौजी बाल सुलभ बेवहार ले आनंद देवत रथे। गौरी-गौरा चंवरा म  बैगा अउ कोतवाल रात भर गौरी-गौरा के रखवारी करत आगी बार के बैठे रथे।


बिहिनिया ले गौरी-गौरा ल विसर्जन करे के तैयारी करथे। करसा बोहईया नोनी मन बिहने ले अपन करसा ल लाये बर सेर चाउर लेके जाथे, जेहर रात भर रखवारी करइया मन के होथे। नवा फसल के खुसी म कुछ अंश दान के महता ये तिहार म घलो दिख जाथे। फेर बाजा बजईया, बैगा, कोतवाल, सियान मन गौरी-गौरा ल गाँव के तरिया म लेज के विसर्जन करत गाँव के सुख-समृद्धि बर आशीष माँगथे।


गाँव म सुरहुती तिहार गौरी-गौरा जगाये के दिन ल विसर्जन तक सउहत बिहाव के सही लगत रथे। गांव भर के मनखे मन के सहयोग, समरसता, परेम भाव के भरे ये तिहार एक दूसर ल जोड़े के बुता करथें। पुरखा मन के समे ले चलत आवत शिव-पार्वती के बिहाव सुरहुती तिहार अब्बड़ निक लागथे।


               हेमलाल सहारे

      मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

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