Saturday, 23 November 2024

ज्योति के सवाल

 ज्योति के सवाल


ज्योति के उमर अभी पाँच साल ही हे, बड़ चंचल हे। सवाल करे मा अव्वल हे। जब सवाल शुरू करथे, तब रुके के नाँव घलो नइ लेवय। एक के बाद दूसरा सवाल करना ओकर स्वभाव मा हे। पापा, बेर बूड़तीच कोती काबर बूड़थे, उत्ती कोती काबर नइ बूड़े? चिरई के दुवेच ठन गोड़ काबर होथे? अइसने कई अटपटा सवाल करथे कि सुनके बड़े-बड़े मन घलो निरुत्तर हो जथे।  

         गर्मी के दिन रात के समय दुवारी मा अपन पापा भोला के संग खटिया मा ढलगे रहय। अगास मा ज्योति के नजर चंदैनी मा परिस का सवाल के झड़ी लगा दिस। 'पापा, ये चंदैनी काबर चमकथे?' भोला बोलिस- बेटी चंदैनी, सुरुज के अंजोर परे के कारण चमकथे। सुरुज, का सुरुज? ज्योति फेर सवाल करिस। अरे बेटी, सुरुज माने बेर। भोला बोलिस। ज्योति- ऐं.... बेर ल सुरुज कहिथे? भोला- हाँ, बेर ल सुरुज कहिथे। ज्योति- अउ चंदा ल का कहिथे त पापा? चंदा ल चंदा कहिथे। भोला बोलिस। चंदा ल चंदा कहिथे, तब बेर ल काबर बेर नइ कहे पापा? खुशी फेर सवाल करिस। बेर ल बेर भी बोल सकत हन, सुरुज भी। भोला बोलिस। सुरुज रात में काबर नइ दिखे पापा? ज्योति फेर सवाल करिस।भोला कम पढ़े-लिखे मनखे का जवाब देतिस। बोलिस- तोर आंगनवाड़ी के मेडम ल पूछबे वो बताही। त ते काबर नइ बतास पापा? ज्योति बोलिस। अरेsss ते बहुत सवाल करथस। चल गिनती बोल के बता। भोला बोलिस। नही, में पूछेंव तेन ल ते काबर नइ बताए। जा महूँ गिनती नइ सुनाव। ज्योति केहे लगिस। अउ खटिया ले उठ के अपन दादी कर जा के ओकर गोदी मा लिपटगे।

            भोला के पड़ोसी सालिक एक दिन भोला ल हूँत करात भोला के घर आइस। कहाँ भोला, सालिक चिल्लाइस। ज्योति ल देख के पूछिस- भोला कहाँ हे ज्योति? ज्योति किहिस- बखरी मा मुनगा टोरत हे। सालिक किहिस- अरे, बने भोगा गेहे का ज्योति, जा तो मोरो बर टोरवा। हाँ भोगा गेहे न। फेर मुनगा लम्बा-लम्बा काबर फरथे बबा? छोटे-छोटे काबर नइ फरे? ज्योति के सवाल शुरू होगे। सालिक सवाल सुन के लस परगे। का जवाब देतिस। अइसन सवाल के जवाब तो कालेज वाले मन घलो  नइ दे पाये, तब पाँचवी पढ़े सालिक का जवाब देतिस। बोल दिस कि लम्बा फरथे तेकरे सेती वोला बेंदरा नइ खाये। त मनखे मन काबर खाथे। ज्योति फेर सवाल करिस।

उही बेरा मा भोला मुनगा धर के आगे अउ ज्योति ल सवाल करत देख के बोलिस- ज्योति जा तो तँय खेल सवाल मत कर। अउ सुना कका कइसे आना होइस? भोला, सालिक ल पूछिस। सालिक बोलिस- बस, तोर नोनी के सवाल के जवाब दे बर आये रेहेंव। अउ दुनों ख़लखला के हाँसे लागिन। बड़ चंचल हे तोर बेटी हर भोला, लगथे एक दिन ये तोर नाँव ल जरूर रोशन करही। बड़ अटपटा सवाल करथे कका। कभू-कभू तो मँय फटकार घलो देथों फेर ओकर सवाल करई बंद नइ होए। भोला बोलिस। अरे बेटा, बचपन में जाने के उत्सुकता जादा होथे, झन फटकारे कर, पूछन दे कर। फटकारे ले लइका के मन मा कुंठा भाव पैदा होथे। भोला पूछिस- कुछु मोर ले काम रिहिस का कका? सालिक किहिस। हाँ भोला, काली हमन दू दिन बर तोर काकी संग बेटी घर जावत हन। तब थोरिक मोर घर के घलो आरो ले रहिबे। इही चेताये बर आये रेहेंव। चोर चिल्हाट अबड़ सुनाई परत हे। सालिक बोलिस। भोला किहिस- बइठ न कका, चाय बनवावत हँव। चाय पी ले। नहीं रहन दे नइ लागे बेटा, अभिचे खाना खाये हँव अउ तोर कर आये हँव। जउन काम ले आये रेहेंव होगे। सालिक बोलिस।

             सालिक के जाये के बाद एक झन भठरी अँगना मा पहुँचगे। अउ बोले लगिस। जय हो जय हो गौटिया जय हो। तोर भाग बहुत उज्ज्वल हे। तैं बहुत दयालु हस। तैं सबके सुनथस तोर ल कोई नइ सुने। भगवान के तोर ऊपर बहुत किरपा हे। तैं सबके बनाये बर सोचथस फेर तोर ल बनाये बर कोई नइ सोचे। कारण सबकुछ ठीक हे गौटिया। बस एक गिरहा तोर खराब होये के कारण तोर सोचे काम बिगड़ जाथे। तैं अपन गिरहा ल टोरवा ले। उही बेरा मा ज्योति पहुँचगे। गिरहा के बात सुनिस कि सवाल पूछना शुरू कर दिस। ये गिरहा का होथे गा? ज्योति सवाल पूछे लगिस। भोला किहिस- गा नोहे बेटी, भठरी महाराज आये। भठरी महाराज आये पापा, गिरहा का होथे महाराज? ज्योति पूछे लागिस। भठरी बोलिस- गिरहा, एक प्रकार के शनि होथे बेटी, जेन हर मनखे के जिनगी मा बाधक होथे। तैं नइ समझ पावस। शनि कहाँ रहिथे महाराज? ज्योति पूछिस। शनि अगास मा रहिथे बेटी। भठरी बोलिस। अगास मा रहिथे त हम तो भुइयाँ मा रहिथन न महाराज त हमर कर कइसे आही? ज्योति बोलिस। शनि भुइयाँ मा नइ आवय बेटी, अगास ले ही मनखे बर घातक बनथे। भठरी बोलिस। त आथे तेन ल कइसे जानथस महाराज? ज्योति फेर सवाल करिस। मनखे के हाथ अउ मस्तक के रेखा देख के हम भठरी मन सब जान लेथन बेटी। भठरी बोलिस। त मोर जनम दिन कब हरे ले तो बता? ज्योति बोलिस। भठरी अकबकागे। मुँहू सुखागे। बात बनाके भठरी बोलिस- बेटी, जनम दिन ल भठरी मन नइ बतावै। जेन बात ल मनखे नइ जाने तेन बात ल भठरी मन ज्योतिष देख के बताथे। अ.. इ.. से, ज्योति बोलिस। उही समय दुवार चुरत दूध हर उफनीस अउ ज्योति के नजर परगे। सुने रिहिस कि दूध ले दही मिलथे। भठरी ले पूछे लगगे कि दही दूधेच मा काबर रहिथे, पानी मा काबर नइ रहय महाराज? सवाल सुनके भठरी सकपकागे, ओकर होंठ सुखागे, जानो-मानो भोला के शनि भठरी मा झपागे। मिट्ठू कस बोलइया भठरी गिरहा नक्षत्र के बात भुलागे। शरमा के भठरी अपन गठरी ल धर के उठगे, अचानक नींद खुलिस अउ मोर सपना टूटगे।।

  

       राम कुमार चन्द्रवंशी

       बेलरगोंदी (छुरिया)

       जिला-राजनांदगाँव

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