. *सुख के अंगूठी* ( छत्तीसगढ़ी कहानी )
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
( 1 )
एक सुघड़ महिला रहिस- 21बरस के। हँसमुख अउ अड़बड़ सुन्दर। जेन देखे तेने ओकर रँग-रूप मा खिंचा जावे। दू साल पहिली एक दुर्घटना म माँ-बाबूजी के निधन के बाद वोहा घर म बिलकुल अकेला होगे। रोज बिहनिया नहा-धो के पूजा-पाठ करे के बाद सरलग एक झन औघड़ साधू बाबा के दर्शन करे बर जाय। साधू बाबा के आश्रम ओकर घर के तिर मा रिहिस। एक दिन सोन के अँगूठी देवत बाबा बोलिस-' एला अनामिका अँगुरी म पहिन ले बेटी, एहा सुख के अंगूठी हे! माँ-बाबूजी के दुःख मनाना अब छोड़ दे। जिनगी बहुत लम्बा होथे, ओला बिरथा पूजा-पाठ म झन गँवा। अपन नवा जिनगी जिये के शुरुआत कर। '
थोरिक दिन बाद महिला बाबाजी के आशीर्वाद लेवत, पाँव परत प्रसन्नचित्त होके बोलिस- ' बाबाजी, मोर बिहाव हो गे हे! अब मैं अपन पति के साथ इहाँ ले पाँच सौ किलोमीटर दूर एक शहर म चल देहूँ! '
बाबाजी ओला आशीर्वाद देवत बोलिस- ' सुखी रहव, खुश रहव। '
फेर बिहाव के बाद नवा शहर म जाय के बाद तो जइसे महिला के उपर दुःख के पहाड़ ही टूट परिस! ओकर पति दिखे अति सुन्दर फेर शराबी अउ मक्कार रहिस। कमाई-धमाई करना तो दूर शराब पीके रोज रात घरवाली संग मारपीट करे अउ कई दिन ओकर कमाई के पैसा घलो छिन ले। ओकर पति ला फकत शराब अउ अपन मक्कारी से मतलब रहिस, बाकी काम से कोई लेना-देना नई रहिस। एकर ठीक उलट महिला अपन पति ला परमेश्वर माने अउ जी-जान से ओकर सेवा करे। रोज बिहनिया पाँच बजे पूजा-पाठ-ध्यान करके अपन पति के दीर्घायु के कामना करे। ....... फेर कइथें ना- कुकुर के पूछी टेड़गेच्च के टेड़गा! अइसने पाँच बरस बीत गे। न पति सुधरिस न लोग-लइका होइस। अपन दुःखी जीवन ले तंग आके एक दिन साधु बाबा के दर्शन करे बर महिला चुपचाप घर ले चल दीस।
साधू बाबा के पैर छू के आशीर्वाद लेहे के बाद महिला रोवत-रोवत बोलिस- बाबाजी, अपन परिवार के जतन करे बर जी-जान ले लगे रइथों अउ अपन पति के दीर्घायु के मन्नत माँगथौं। फेर मोर पति रोज रात शराब पीके मारपीट करथे! आप तो मोला सुखी जीवन के आशीर्वाद देय रहेव फेर एकर उलट काबर होवत हे?
साधू बाबा ओकर कुम्हलाये चेहरा ला देख के गंभीर होगे अउ आँख बंद कर ध्यानमग्न होगे। दस मिनट बाद बाबाजी आँख खोलिस अउ बोलिस- बेटी, सुख के अंगूठी कहाँ हे?
' बाबाजी, आपके अंगूठी तो मोर पर्स म हे। अनामिका ऊँगली म मोर बिहाव के अंगूठी ला पहिरे हँव! '
' बेटी, जेन अंगूठी तैं पहिने हस ओहा दुःख के अंगूठी हे! तैं अपन जीवन के पाँच साल व्यर्थ गंवा देहे। वापिस लौटत समय अंगूठी ला नदिया म फेंक देबे अउ मोर देहे सुख के अंगूठी ला पहिर लेबे। '
बाबाजी के बात ह ओकर अंतस म हमा गे। वापसी म नदिया परिस त दुःख के अंगूठी ला नदिया मं फेंक दीस अउ एकर साथे-साथ पति संग के रिस्ता ला घलो नदिया म विसर्जित कर दीस। ...... आज तक पति ला परमेश्वर मान के ओकर जतन करत रिहिस मगर पति तो मक्कार निकलिस। अब अपन गलती के सजा ओहा खुद भुगते!.... पल भर मा ओकर सिर के उपर ले मानो पहार कस बोझा हट गे! ....... आज जइसे
ओकर दुनिया ही बदल गे। आज ओला नाचे के मन करत रहिस, जइसे जंगल म मगन होके मोर नाचत रहिथे। आज ओला हाँसे के मन करत रहिस, जइसे खेल म जीते के बाद लइका के चेहरा म हाँसी कौंध जाथे। आज ओला रोये के मन करत रहिस, जइसे बरसों बाद अपन भाई करा मिले के बाद बहिनी के आँसू छलक जाथे।..... बाबाजी ला मने-मन पैलगी करिस अउ सुख के अंगूठी ला अपन अनामिका ऊँगली म पहिर लीस।
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( 2 )
लगभग 15 दिन बाद पुलिस थाना ले फोन आइस- ' दुर्घटना मा एक शराबी के मृत्यु हो गे हे। ओकर घर म ताला लगे हे अउ पर्स मं आपके मोबाईल नंबर मिले हे। मैं ओकर फोटो मोबाईल में भेजत हौं। '
थोरकुन देर बाद महिला जवाब दीस- ' हाँ वोहर मोर पति के फोटो हे! फेर ओ घर म अब मैं नि रहौं। न ही पति से अब कोई संबंध हे! '
' दुर्घटना म मृत्यु के मुआजवा राशि दस हजार डालर तुरते मिलही। आप पुलिस स्टेशन आ जावव। '
' ये पइसा मैं नइ ले सकवँ सर! पइसा के बोझ उठाके अब मैं जी नइ पाहूँ। मोर जिनगी के पाँच बछर ओकर बोझ उठावत बिरथा गँवा गे! अब अउ बोझ उठाय के हिम्मत नि हे! ...... उही पइसा मं ओकर अंतिम संस्कार कर देवव! '
( *एक अमेरिकन लोककथा उपर आधारित छत्तीसगढ़ी कहानी* )
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