Monday, 4 November 2024

मन के गोठ*

 मन के गोठ*

            सही मायने मा संस्कार अउ संस्कृति गाँव के अँचरा मा आजो धरोहर हे। एकर बीच रहिके जब तिहार मनाए जाथे तभे लगथे कि कृषि संस्कृति मा तिहार के उपज हर मनखे ला जोरके सुम्मत मा रहे के सीख देथे। एकर सउँहत प्रमाण हमर देवारी होरी ले बड़का कोनो नइ हो सके।

        सामुहिक कारज ला निभाय बर निपटाये बर घरो घर चंदा बरार दार चाँउर तेल के सँगे सँग तन मन के अर्पण ले तिहार के शोभा बढे चढ़े रथे। जतके खुशी मनावत तिहार के समापन होथे ओतके धीरता ले परसाद के अगोरा रथे छीना झपटी गाँव के संस्कार मा देखे ला नइ मिलय। जेन हर मनखे मा मनखेपना के छाप देखाथे।

     मन अउ चिंतन के घोड़ा दउँड़थे तब कलम घलो रेंगे बर कोचकत रथे। तब सबो कलम के भागधनी मन दू आँखर लिखे मा कमती घलो नइ करे।

       कृषि संस्कृति मा प्रकृति पूजा सबो जगा समाए हे एकरे सेती धान के बाली मेमरी सिलिहारी गोबर के बने गोबर्धन नवा बाँस के सूपा जेमा सुकधना रखे जाथे। सोहाई अउ ओमा बउरे जिनिस सबो तो प्रकृति के कोरा ले सकेले होथे। तेंदू सार के लउठी कउड़ी बाँख रेंसा कोनो कम्पनी मा नइ बनय ना कोनो दुकान मा मिले। धरती के कोरा ले उपजे बाढ़े समान के जुगत ही आय। धरती महतारी हमरे बर ही सिरजे हे।

         गाँव के कोनो मोटियारी सँवरेगी  खोपा मा दौना पान अरझाके ओइल्हे रेंगही तभो लगही कि कोनों कुँआ पार के दौना के गला डोहरी मा तो नइ ठाढ़े हवन। प्रकृति के कोरा ले उपजे दौना पाना आज के सेंट इत्तर के जइसे रोगधारी नइ होके हवा मा ममहाही घोरथे।

            महिना पँदराही के अगोरा के बाद होरी देवारी जाथे तब जावत जावत मन मा नवा खुशी उमंग उच्छाह भरके जाथे। मनखे ला मनखे रेहे के सीख देके जाथे।

        अपन संस्कार अउ संस्कृति ला कइसे जिया के राखना हे अउ आगू के पीढ़ी ला सँउपना हे ये सब के जुम्मेवारी होथे।

     आज के बिगड़े हाल मा तिहार बार हर दारू कुकरी मंद मँउहा के अगुवा हिस्सा बनके रहि गेहे। जेन हर बहुते दुख के गोठ हे। काबर कि एकरे सेती ही फटाका के जगा मूँडी फुटथे। नँगारा के जगा पीठ बाजथे। चिटिक सावचेती करत नवा पीढी ला सच सोझ रसता रेंगे के संस्कार देय जाय या उन मन समाज विरोधी करम ले दुरिहा रेहे के ठान लेवय तो  छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़िया उपर कोनो अँगरी नइ उठा सकय। 

छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा सुखदाई हे फलदाई हे। अब बखत ये हे कि हमर धरती महतारी के सात धार के कोरस ला दूसर झन झपटय। सुम्मत मा रहिके बघवा बनके गरजे ला परही।अउ जनमो जनम ये माटी महतारी सँग रहन।अउ  मोर इही बानगी कि----------


छत्तीसगढ़ महतारी मोर तँय अतके आस पुराबे। 

जब जब जनम धरवँ मँय दाई कोरा मा अपन बलाबे। 

           *रौना*

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