Monday, 11 November 2024

सिधवा चन्द्रहास साहू मो 8120578897

सिधवा 

                                              चन्द्रहास साहू

                                       मो 8120578897


जम्मो कोई पारा भर के मोटियारी अउ सियनहिन मन सकेलाये हाबे, बइटका बइठे हाबे।। संझा के बेरा अइसने रोज सकेलाथे। ये ठाकुर चौरा आवय जम्मो के सुख-दुख ला सुन लेथे। कभू सास बनके सावचेती कराथे तब कभू बहुरिया मन ला घला बेटी के मान देथे। कभू बेटी के चूरी ले गमकत रहिथे ये चौरा हा तब कभू दुखियारी के आँसू ले सुसकथे घला। मोटियारी के फूल कस हाॅंसी ले मुचकाथे अउ लइका के आरो ले किलकारी मारथे। आज घला गमकत हाबे। खनकत हे गोठ अउ बाजत हाबे चूरी। 

"आज का साग रांधबे बहिनी  ?''

राधिका गोठ के मुहतुर कर दे रिहिस अब। साग ले गोठ शुरू होके कहाॅं तक जाही ते....?

"आज मोर घर कुछू नइ हाबे बहिनी ! अब तो घर बनाइ के सेती बारी-बखरी घला सिरागे। जम्मो ला बिसा के लानबे तब खाबे। गुड्डू के बाबू लानही बाजार ले तब होही बेवस्था ।''

जानकी किहिस उदास होवत।

"संसो झन कर बहिनी ! मोर घर मुनगा हाबे । आजेच रवतइन अउ बइगिन ला देये हॅंव। बाचे चार काड़ी ला तहूं ला दे दूहूॅं।''

राधिका मुचकावत बताइस।

"मोरो भतीजा के बिहाव माड़हीस दीदी ! एसो के बइसाख मा हाबे। अब्बड़ टूरी खोजे ला पड़िस बहिनी ! तब बने सुघ्घर  मिलिस अब। काला बताबे....? अब्बड़ खरचा होगे। पेट्रोल-डीजल,अवई-जवई मा आधा एकड़ खेत घला बेचागे। टूरा हा गरीब हे अउ अउ सरकारी नौकरी मा नइ हे तइसन बर अब्बड़ हर्राव हे अब टूरी मिलना।''

राधिका के मन गमकत रिहिस माइके के सुरता करत अब।

"सिरतोन काहत हस। टूरी वाला मन ला तो सरकारी दमाद चाही तब गरीब मन बर का  हे...? ले बने हे बर बिहाव होही तब सुघ्घर कमाये खाये अउ सुख से राहय बेटा बहुरिया मन। मोर आसीस हाबे।''

भलुक जानकी मुचका के आसीस दिस फेर अंतस मा पीरा रंदियावत रहिथे। गरीबी के पीरा ला तो वहूं भुगतत हाबे। ....अउ उप्पर ले बाढ़े बेटा कब हाथ पिंयर होही ते.....?''

"...अई ! आज तो अब्बड़ अनित होगे या। जानथो तुमन ?''

मुड़ी मा कंघी खोसे आवत किहिस रमेसरी हा। जम्मो कोई सुकुरदुम होगे। 

"का गोठ होगे बताबे तभे तो जानबो बही ! अइसना गोठियाबे तब कोन बता सकही ?''

"आज मंझनिया कुन  मनियारी दुकान मा नान्हे दाऊ अउ  मनियारी दुकान वाली हाॅंस-हाॅंस के गोठियावत रिहिस। उदुप ले मनियारी वाली के आदमी आगे अउ अब्बड़ ठठाये हाबे वो माईलोगिन ला। माड़ी-कोहनी के छोलावत ले मारे हे बहिनी ! नान्हे दाऊ के कनपट ला घला पड़े हाबे दू राहपट।''

"बन्नेच करिस बहिनी ! ... सिरतोन बनेच करिस। भगवान हा चिक्कन-चांदो का रुप सुंदर बना देहे मिहिच आवव कहिथे मनियारी वाली हा। अब्बड़ फुटानी मारत रहिथे। अंगरेजी झाड़थे। वोला तो दंदरत ले थुथरतिस वो !''

रेवती मुड़ी खजवावत आइस अउ बड़बड़ाये लागिस। 

हाथ हलावत अंगरी फोरत झरझरावत ओरियावत हे। फेर राधिका के दबकई।

"चुप न रे....!''

"गोठियाही ओतकी मा कइसे मार दिही वो ?''

राधिका अब अचरज करत पुछिस। 

"प्यार-मोहब्बती के गोठ करत रिहिस वो बहिनी ! वोमन।''

रमेसरी बताइस तब रेवती एक ठन गाना ढ़ील दिस।

"धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है हद से गुजर जाना है.....!''

जानकी घला कहाॅं कमती रही....। वहूं हा सुर लमा दिस।

"तोर मोर जब ले मया होगे न.....! ये दुनिया हा काबर बैरी होगे न ....... ! तै मोर  हस दीवानी.....दीवाना हंव तोर.....!''

"रंग-झाझर चलत रिहिस वो ! अहा उम्मर मा।''

रमेसरी हाथ हला-हला के इतरावत बताये लागिस। जम्मो कोई खलखला के हाॅंस डारिस।

"नान्हे दाऊ तो सबरदिन के जीछुट्टा आवय। नानचुन टिकली बिसाये बर जाबे तभे गोटारन कस आँखी  ला छटिया के देखत रहिथे।''

"...निच्चट देखत रहिथे बहिनी...! जाके भसेड़ देबे अइसे लागथे.... फेर ?''

"फेर का जानकी  ?''

मनटोरा आवय वोकरो गोठ मिंझरगे अब।

"महूं तो वोकर भादो उजार करे रेहेंव बहिनी ! तब ले मोर संग नइ इतरावय। नारी मन के गोठ मंदरस कस मीठ होना चाही फेर कभू-कभू बिच्छी बरोबर झार लागे तइसे घला गोठियाना चाही तभे दुनियां मा चल सकथस। ....नही ते गिधवा मन पग-पग मा खखोल डारही।''

मनटोरा नारी जीवन के सार गोठ ला बता दें रिहिस। .....अप्पढ़ मनटोरा। इही तो बइटका के सार आवय। बड़का विद्वान मन जौन ला अब्बड़ जोग लगा के पाथे तौन ज्ञान ला इहां हाॅंसत-मुचकावत सीख जाथे।

"आज तो अब्बड़ अलहन होगे बहिनी हो ! खाल्हे पारा वाली रतनपुरहिन भौजी के एकलौता भतीजा हा भारत पाकिस्तान बार्डर मा शहिद होगे वो ! बिचारी रतनपुरहिन भौजी ! अब्बड़ रोवत रिहिस। अब्बड़ चुप करायेंव तभो ले आँसू बोहावत माइके गिस वोहा।''

मोहनी के गोठ सुनके जम्मो कोई सुकुरदुम होगे। आक्रोश अउ गुस्सा ले भरगे।

"सिरतोन बेटी हो ! जवान बेटा ला गवाये ले सिरिफ परिवार हा अनाथ नइ होवय भलुक पूरा देश आँसू मा भिंग जाथे।''

बइगिन डोकरी समझाइस। 

"अमेरिका वाला मन बने करिस। ओसामा बिन लादेन ला उकरे घर मा खुसरके मारिस तब जानिस अमेरिका हा घला आतंकवाद के पालन पोषण पाकिस्तान हा करथे कहिके।''

"अमेरिका हा घला कोन मार ले दूध के धोवाये हाबे। बिन पेंदी के लोटा आवय। वोकर कथनी अउ करनी मा सबरदिन अंतर रहिथे।'' 

"का करबे हमरो देश के कतको नेता मन घला अइसना हाबे-लबरा। तेकर सेती नक्सली अउ आतंकवादी मन ले जुझे ला परथे। देश मंगल ग्रह मा जा सकथे फेर घर के नक्सली ला नइ मार सके ....?''

अब अंतरराष्ट्रीय मुद्दा के गोठ बात होवत हे । सिरतोन येहां सिरिफ बइटका चौरा नोहे भलुक गाॅंव के संसद भवन आवय भलुक कोनो कानून नइ बने फेर जम्मो मुद्दा के बरोबर विश्लेषण करथे माईलोगिन मन। 

"ये बेड़जत्ता पाकिस्तान कभू नइ सुधरे। रोगहा...हा !  हमर भारत के मन ईटा कोहरा मा मारही वोतकी मा पटा जाही नानचुन टेपर्रा मुहूॅं के हा फेर अब्बड़ गरब गुमान करथे।''

रेवती रगरगावत किहिस। 

"का ईटा पथरा खोजे ला जाबे बहिनी ! हमर देश के जनसंख्या अतका हाबे कि वोकरे कोती मुहूॅं करके मूतबे ते आधा का पूरा पाकिस्तान बोहा जाही धारे धार....। जम्मो नक्शा बदल जाही वो सिरतोन।''

रमेसरी लोहारिन सोज्झे किहिस अउ जम्मो कोई हो.....हो.... खलखलाके हाॅंसे लागिस।

"देख सुन के गोठिया न रे परलोकनीन ! वो दे वो पार तोर कुरा ससुर बइठे हाबे।"

बइगिन डोकरी बरजे लागिस। बड़ा बिचित्तर हाबे ये डोकरी हा नेवरनीन बहुरिया मन ला गारी बखाना देये बर सीखोथे तब कभू ये चौक के मरजाद राखत एको गोठ फरके नइ देवय।

"आर्मी वाला मन सुघ्घर होथे वो! बिचारा मन अब्बड़ दुख पीरा सही के ड्यूटी करथे फेर ये पुलिस वाला मन अब्बड़ मेछराथे।''

''सिरतोन कुकुर होथे वो ये पुलिस वाला मन। तभे तो कभु आर्मी वाला मन शहिद होथे तब जम्मो देश रोथे अउ पुलिस वाला मन उप्पर कोनो बिपत हाथे तब जनता थपोली मारके बने होइस कहिथे। ये पुलिस वाला मन जवान बेटा के पोस्ट मार्टम करे बर तक बाप ले पइसा ऐंठ लेथे। जवान बेटा के दुख ले जादा दुखी तो पोस्टमार्टम करवाये मा होथे। खून के आँसू रोये ला परथे। मेहां जानथव। बिलासपुहिन के नाती एक्सीडेंट मा बित गे तब जानेंव सौहत। 

मनटोरा किहिस वोकर रुआं ठाड़ होगे रिहिस पुलिस अधिकारी ला सुरता करत। 

"सिरतोन कहात हस बहिनी ! फेर कोनो-कोनो पुलिस वाला मन बने घला रहिथे वो !''

रेवती किहिस टोंकत। फटफटी के आरो आइस अउ बइटका ठउर मा आके ठाढ़े होगे। गाॅंव के रखवार आवय मुचकावत उतरिस अउ रायपुर वाले भतीजा के बिहाव  होइस तेकर सेती जलेबी अउ लाड़ू खवावत हे। भलुक गाॅंव के कतको झन जानत हाबे तभो ले रखवार बताये लागिस।

"भतीजा टूरा हा अनजतनीन  नोनी ला ले आने रिहिस। दूनो झन एक दूसर के मया मा बंधाये रिहिस तब का करही...? आजकल के दिन बादर अइसन बेरा मा कोनो हा जहर मोहरा खा डारही तब का होही....? दूनो कोई बालिग हाबे तब सुघ्घर कमाये खाये अउ सुख ले राहय अतकी तो आस रहिथे दाई ददा ला। कर दिस बिहाव।''

"बने काहत हस रखवार कका ! फेर अइसना गोठ ला 

सबो कोई नइ जाने। आजकल तो जतका शिक्षित वोतके अकड़ रहिथे। आनर किलिंग करत हाबे।''

रेवती किहिस संसो करत। 

"....फेर सब अइसने करही तब नवा पीढ़ी ऊप्पर

गलत प्रभाव घला पड़ही।.... अउ ईज्जत कमाये बर तो पूरा जिनगी कमती पड़ जाथे।''

बइगिन डोकरी किहिस। 

"का करबे दाई...? हमू मन अब्बड़ संसो मा बुड़गे हावंन वो ! मोरो ढेरउठी बर कोनो बहुरिया नइ मिलत हाबे। बेटा हा मन करथे तब टूरी हिन देथे। टूरी मन करथे तब बेटा हा मन नइ करे अउ दूनो कोई मन कर लेथे तब गरीबी हा बाधा बन जाथे। तीन बच्छर होगे टूरी खोजत। कब भाग फहराही ते....?''

जानकी किहिस अउ रोनहुत होगे। 

"भुई....भुई......!''

पुलिस गाड़ी के सायरन के आरो हलू-हलू बाजे लागिस अउ उदुप ले बइटका ठउर मा आगे। अब जोर जोर से नरियावत हाबे। जानकी रमेसरी राधिका मनटोरा बइगिन डोकरी जम्मो कोई सुकुरदुम होगे, डर्रागे। गाॅंव के बबा जात मन घला निकलगे अब।

"राजीव का घर कहाॅं पर है।''

"और कोटवार ?  उनको भी बुलाकर लाओ....!''

गाड़ी ले उतरते साठ किहिस पुलिस वाला हा। रौबदार आरो जानकी तो डर्रागे।

"कोन राजीव साहब ! इहाॅं  दू झन राजीव नाव के हाबे ददा हो..? एक झन मंझला दाऊ बेड़ा मा हाबे। ...अउ ये दूसर जानकी के लइका राजीव हा अभिन तो उड़ानू होये हाबे वोकर ले का बुता....?''

बइगिन डोकरी आवय। 

"दाई ! हमन जवनहा राजीव ला खोंजत हावन।''

"जेखर बिहाव नइ होये हाबे तौने राजीव ला दाई !''

रुपा अउ संतोषी दू झन मोटियारी पुलिस वाली उतरिस अउ पुछिस।

डोकरी  दूनो कोई ला देखिस ते आँखी मा चमक आगे। नोनी मन आगू बढ़के अपन गोड़ मा ठाड़े होवय अइसना तो गुणथे  बइगिन डोकरी हा। ससन भर देखिस रुपा ला सांवर बरन, पतरेंगी,  मुचकावत चमकत चेहरा अब्बड़ सुघ्घर दिखत हाबे।  वइसना वोकर वर्दी घला चमकत हाबे।

"ये दे तो बइठे हाबे राजीव के दाई जानकी हा।''

कोटवार पहिली जोहार भेंट करिस जम्मो कोई ला  अउ बताइस।

"का होगे... भगवान। मोर राजीव ला घेरी-बेरी काबर पुछत हाबे....?''

जानकी संसो करत हे ।

"का होगे साहब !''

"का होगे साहबिन ! मोर बेटा राजीव ला काबर घेरी-बेरी पुछत हावव।''

जानकी दूनो हाथ जोरके काॅंपत किहिस। मुहूॅं चपियागे। अब सकेलाये मनखे जम्मो खुसुर-फुसुर करत हाबे। 

"राजीव के बिहाव बर टूरी खोजत हावव न !''

"हाॅंव !''

"वोकर कम्पलेन आये हे। शहर मा रही के वोहा अब्बड़ गुलछर्रा उड़ावत हे अउ तुमन आने-आने गाॅंव मा टूरी खोजे ला जाके टूरी मन के जिनगी ला खराब करत हो।''

पुलिस वाला हा किहिस। जानकी ला तो अइसे लागत हाबे जइसे धरती फाट जातिस अउ समा जातेंव फेर कहाॅं फाटही धरती....? येहाॅं तो अभिन के जानकी आवय।

जानकी के गोसइया परसू राम घला आगे अब शहर ले वहूं अकचका गे ये जम्मो ला देख के। जम्मो कोई ला जोहार भेंट पैलगी करिस अउ जम्मो कोई ला अपन घर लेगिस।

दू कुर्सी, खटिया अउ मचोली ला दुवार मा निकाल के बिछाइस। का करही ? नानकुन घर । चार झन आथे अउ भर जाथे। 

"ले चाय पानी पी लेव तब गोठियाहू ।''

परसू राम किहिस पानी बांटत अउ जानकी ला चहा बर आरो करिस। भलुक गोसइया आगे हाबे तभो ले जानकी के डर अभिन घला वइसनेच हाबे। जम्मो कोई बइठगे अब दुवारी मे बिछे कुर्सी खटिया मा। बड़का पुलिस वाला हा जम्मो कोती ला देखे लागिस ससन भर। नान्हे-नान्हे कुरिया, नान्हे परछी, नान्हे दुवारी अउ ओ पार के कोठा।‌ कोठा मा धौरा बइला, बछरु ला दूध पियावत गाय। खपरा छानी कच्ची घर अउ कोठ मा टंगाये राजीव के ननपन के फोटो, ददा-दाई अउ देवी-देवता के चोरो-बोरो लगे जम्मो फोटो। सब्बो ला देखत हाबे मोटियारी रुपा हा ।

"कितने गाॅंव मे गये हो लड़की ढ़ूंढ़ने के लिए ?''

"अउ कहां है राजीव .....?''

माखूर गढ़त किहिस पुलिस वाला ए एस आई शर्मा जी हा। सिपाही नेताम जी घला पंदोली देवत हाबे। 

"साहब ! पीछू बच्छर के तो गिनती नइ रिहिस। अब्बड़ गाॅंव देहात किंजरे हावन। बीसो पचीसो ला देखेन अउ एसो चार जगा देखेन नोनी फेर कोनो हा हमी मन ला पसंद नइ करिस। लइका ला तो जम्मो पसंद करिस फेर न खार मा खेत अउ न गाॅंव मा सुघ्घर घर । ...कोन  अपन राजकुमारी बेटी ला पठोही ? ......अउ सिरतोन घला आवय मोरो बेटी रहितिस तब जानतेंव।''

परसू राम उदास होवत किहिस। एक घूंट पानी पियिस अउ फेर केहे लागिस।

" लइका भलुक पढ़ लिख के सजोर होगे हाबे अउ नौकरी के तियारी करत हाबे। अब्बड़ फारम भरत हे फेर नौकरी नइ लगिस। ... फेर कहिथे न भगवान घर देरी भलुक हाबे फेर अंधियारी नइ हे। अब पंदरा महिना दिन होगे बिजली विभाग के कार्यालय मा संविदा नौकरी मा जावत हाबे।''

"अब नौकरी वाला हो गये इसलिए टूरी मन को धोखा दे रहे हैं क्या ?''

"का धोखा कहिथो साहब ! नौकरी तो अभिन लगिस । कहाॅं का होगे बताहू तब जानबो   ?''

हाथ जोड़त किहिस परसू राम हा।

"लाटाबोड़ गाॅंव मे नोनी देखने गये थे फिर सगाई तय होगे। जम्मो तैयारी हो गयी और जिस दिन सगाई होना था उहिच दिन सगाई के लिए मुकर गए तुम और तोर लइका...बोलो सिरतोन है कि नही ?''

शर्मा जी के गोठ ला सुनके झिमझिमासी लागिस परसू राम ला। 

"हमन नइ मुकरे हावन साहेब ! टूरीच मा ऐब रिहिन। ...अउ आने टूरा संग मया करथो कहिके अपन सियान मन ला बताये बर  सामरथ नइ करिस। मोला घुंट-घुंट के जिये ले बचा ले कहिके टूरी हा रोये लागिस। वोकरे सेती राजीव हा सगाई ला टोर दिस। भलुक जम्मो अनित टूरी के रिहिस फेर मोर सिधवा बेटा हा वो नोनी के ईज्जत मा आंच झन आवय कहिके अपन हा दंदर दंदर के पीरा सही लिस। टूरी ला चिटिक भर घला बदनाम नइ करिस। ये बेरा मोर बदनामी हो जाही ते मोला जादा फरक नइ परे बाबू  ! फेर वो टूरी के बदनामी होही तब वोकर जिनगी खराब हो जाही ...। अइसना तो केहे रिहिस मोर दुलरवा सिधवा लइका हा। ....अतिक सुघ्घर बिचार राखथे लइका हा नोनी मन बर तब काकरो संग का अनित करही साहब हो ?''

परसू राम काहत रिहिस अउ वोकर चेहरा मा सांच के उजास दिखत हाबे। पुलिस वाला मन अब मुक्का होगे हे अउ मोटियारी रुपा पुलिस वाली हा मुचकावत हाबे। 

"कोन, का शिकायत करे हाबे साहब हो ! जेमा हमर घर तक आये ला परगे...?''

परसू अब फेर पुछिस अचरज करत। अधेरहा अउ उम्मर मा सबले बड़का साहेब शर्मा जी रुपा ला कोचकिस अउ रुपा हा परसू राम के गोड़ मा गिरगे। परसू राम जी ये नोनी ला चिन्हथो..? येहाॅं देवकोट गाॅंव के माधो राम के बेटी आवय। चार महिना पाछू इकर घर मा सगा बनके टूरी देखे ला गेये रेहेव।''

"बेटी !''

परसू राम नोनी रुपा ला गोड़ ले उठाइस अउ मुड़ी मा हाथ फेर के आसीस दिस। ससन भर देखिस तब चिन्हिस रुपा ला। 

" ये दूनो नोनी बाबू के मन आगे रिहिस फेर येकर ददा हा राजीव ला कुछू नइ कमावय कहिके मना कर दे रिहिस। नोनी रुपा ला दू महिना होये हाबे ये पुलिस के नौकरी मा आय। भलुक टूरा कमती कमाथे तौन हा बन जाथे फेर सुघ्घर बेवहार होना चाही....!''

शर्मा जी फेर किहिस।

"तोर लइका पढ़े-लिखे हे, होनहार हाबे तब अपन गोड़ मा ठाड़े हो जाही....! अउ घर चलाये बर तो ये पुलिस वाली रुपा हा हाबेच। तुमन ला मन आवत होही तब हमर रुपा हा ये घर के बहू लछमी बनही....?''

शर्मा जी अब पुलिस वाला कमती अउ घर जोड़ा महराज जादा लागत हाबे। 

"येकर बाबू जी के तबियत उच्च नीच हाबे। कोनो सुघ्घर सगा आवय कहिके हमर मन करा सोर पठोये रिहिस। हमन तो पुलिस वाला आवन जम्मो के तफ्तीश करथन तब हामी भरथन। अउ आज इही कोती के पेट्रोलिंग के ड्यूटी रिहिस। तब कइसे छोड़ देबे  ? रुपा ला घला संग मा बइठार लेंव।''

मोहाटी मा गाड़ी बाजिस अउ अब राजीव घला आगे। 

"मोला  बताये रिहिन बाबू जी ! सगा आवत हाबे अइसे फेर तुहर मन के फोन नइ लगिस।''

राजीव आते साठ किहिस अउ टूप टूप पाॅंव परिस अपन ले बड़े के। ससन भर रुपा ला देखिस। रुपा लजागे अउ वहूं हा राजीव के गोड़ मा नवगे।

"सगा हो ! अब हमर राजीव हा घला बेरोजगार नइ हाबे अब यहूं हा पंदरा महिना दिन ले बिजली आफिस मे आपरेटर के बुता मा जावत हे।''

परसू राम किहिस मुचकावत।

"ले आ बेटी ! रंधनी कुरिया ला देख ले हमर।''

जानकी अब होवइया अपन बहुरिया के हाथ ला धरके भीतरी कोती चल दिस। 

"भौजी !  बहुरिया ला रंधनी कुरिया मा खुसेरत हाबस तब बने सुघ्घर चहा घला बनवा लेबे। .....अब अइसन उछाह के बेरा मा कुछु मीठा हो जावय तब बनही।''

मनटोरा आवय चट ले किहिस। जम्मो कोई हाॅंसे लागिस अब।

"मोला तो अब ये संसो हाबे हमर सिधवा भतीजा राजीव के बरात ला थाना मा लेगबो कि रुपा के बाबू जी घर।''

कोटवार के गोठ सुनके जम्मो कोई अब चहा के अरझत ले हाॅंस डारिस। 

बादर मा लुकाये सुरुज नारायण अब उघर गे। वहूं अब बुड़के तियारी करत हाबे सोनहरी,ललहूं, पिंयर रंग ले उजास बगरावत हे। परसूराम जानकी मंटोरा अउ आने मन अब अब्बड़ उछाह मनावत हे।

"मोर देवर बाबू तो अब्बड़  सिधवा हाबे....दिखत हे ....? पुलिस वाली ला घर तक ले आनिस। अब लुक-लुकउवला, चोर पुलिस खेले मा सुघ्घर मजा आही....हा ...हा...।''

मनटोरा आवय अपन होठ के एक कोर ला चाब के चट ले फेर किहिस मुचकावत,दिल्लगी करत। ....अउ राजीव तो लजा गे अब। बिचारा सिधवा कुछू ठगे ला नइ आवय भौजी मन सबरदिन जीत जाते तब का करही ?

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

[11/11, 7:21 PM] पोखनलाल जायसवाल: गँवई-गाँव के जिनगी म मनखे मनखे ले जुराव के कतको जरिया रहिस अउ अभियो हावय। आगी माँगे के बहाना, तरिया बाट जाए के बहाना, सँझाती बेरा कथा-कंथली सुने सुनाए के मउका, लइका भुलवारे के बहाना, घर बार के घरउदिहा बुता निपटाय पाछू फुरसुदहा बइठे के बहाना। जेकर चलत लोगन अपन सुख दुख ल एक-दूसर संग गोठिया लेवँय।

      मइनखे के सइता नइ रहे ले गाँव के चौपाल चगला गे हे। बारी-बखरी के नाँव म परिया तो बाँचेच नइ हे। बरवँट घलो नँदावत हे। लोगन घर के मुँहाटी म बइठई ल नइ भावत हें। टीवी के आय ले हाथ-गोड़ सकेले घर भीतरी खुसरे रहिथें। मोबाइल म रील अउ वीडियो म भुलाय घर के मनखे के सुध नइ लेवत हें, त बाहिर के मनखे के कोन काहय। खैर बदलत बेरा के सँग कदम-ले-कदम मिला के चले के आय। कहे गे हे न? कि चलती के नाँव गाड़ी। 

        चंद्रहास साहू के कहानी सिधवा निपट गँवई-गाँव के चउँक-चौराहा तिर बइठे लोगन के मुँहाचाही ले आगू बढ़थे। जेन मया-दुलार अउ हँसी-ठिठोली संग जिनगी के मजा ल हूबहू चित्रित करथे। जे आज के बेरा म खिरकत जावत हे या फेर कतको जघा ले नँदई च गे हे। मोबाइल टीवी के आय ले जिनगी के  लौकिक आनंद अउ खुशी ह कहूँ मेर गिरवी धरा गे कहिनउ जनाथे। सबे च टेंशन म जीयत हें, कस बेवहार करे लग गे हें। उत्ती मुड़ा के रहवइया ल बुड़ती मुड़ा के मनखे बर नवा मनखे (सगा पहुना)लागे धर ले हे। एक ठन बने बात ये हावय कि दस कोस दुरिहा मनखे ले छिन भर म गोठ-बात हो जवत हे। सुख-दुख ल पूछ लेवत हें।

      सुख-दुख बाँटत दुनिया भर के हाल-चाल ल सुग्घर फोरियावत ए कहानी सरल सुग्घर अउ सहज भाषा म अपन कथानक ल आगू बढ़ाथे। एहर कहानीकार के लेखकीय दृष्टि ए, जेन म उँकर सामाजिक सरोकार दिखथे।

      लोक अपन जिनगी म गीत के आनंद कइसे लेथे, वहू ए कहानी म देखब म आथे। त बइगिन दाई के मर्यादा म रहे के सीख सियानी गोठ के मरम ल सिखाथे। 

      शिक्षित होय के बावजूद ऑनर किलिंग के बाढ़त मुद्दा ल बढ़िया उठाय गे हे। शिक्षित मनखे के बेवहार ऊपर वाजिब सवाल खड़े करे गे हे।

     गाँव-गँवई म पुलिस आय पाछू पूछताछ के जीवंत चित्रण, गँवइहा मन के डर, आदर सब कुछ लाजवाब चित्रित हे।

      राजीव के चरित्र सुग्घर गढ़ाय हे। रूपा घलो अपन ददा के भूल ल सुधार सराहे के लाइक उदिम करत हे।         

        कहानीकार चंद्रहास साहू गँवई-गाँव के मनखे मया-परेम के सुतरी म बँधाय राहय के उद्देश्य ले बढ़िया कहानी गढ़े म सफल हे। उन ल हार्दिक बधाई।

०००

पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा

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