नान्हें कहिनी // *हिजगा* //
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*हिजगा* कहे ले अलकरहा लागथे,फेर हिजगा म जिनगी के बड़का-बड़का कारज संवर जाथे नइ तो दांवा धरे कस भंग-भंग ले बर जाथे।कभू-कभू हिजगा म गोटी ले गौंटिया बन जाथे नी तो गौंटिया ले गोटी घलो हो जाय ल परथे। हिजगा म कतको नकसान अऊ कभू-कभू नफा घलो हो जाथे। देखे म मिलथे कोनों बढ़िया कारज के हिजगा करे म नफा मिल जाथे शिक्षा,संस्कृति,संस्कार अऊ पुरखा मन के सुग्घर कारज के *हिजगा* करही त नफेच-नफा अऊ कतको झन सहंराथे।चारी-चुगली,चोरी-हारी,लरई-झगरा,काकरो कमाई,चीज-बस,मार-पीट अऊ काम-बुता के कोढ़रई के हिजगा करही त जिनगी भर धारे-धार बोहावत नकसान हो जाथे,कभू "*बंड़ोरा*" असन उड़ा घलो जाथे।
*"ईरखा के भाव रखइया मनखे सबो सुख पाके कभू मन म शांति नी पा सके।"* पाछू ओकर भुगतना ल भोगे बर परथे।हिजगा के अइसे कतको मनखे के सुवारथ लगे रहिथे जेन ओकर कारज ह "*पुन्नी के अँजोर* " कस फक-फक ले ओग्गर दिख जाथे।मनखे ल काकरो जिनगी सुधर जावय वइसन हिजगा करना चाही। आजकल तो हिजगा के खातिर घर के रिश्ता-नाता "*दरगार चरके*" बरोबर हो जावत हे अऊ संगे-संग *बैरी के डांड़* घलो खिंचाथे।हिजगा ले थोरिक संभल के रहे ल परही। *"मन के घाट आजकल जादा खिसलउ हे।"*
गाँव के मंझोत बस्ती म मिलौतिन जबर कमैलिन रहय।कचरा भिर के सबो काम-बूता एकेझन कर दारे।मिलौतिन के फदालू नांव के एकझन बेटा रहय।मिलौतिन के गोसईंया फउत होगे रहय।मिलौतिन अऊ फदालू दनोझन रहय।खेत डोली जादा नी रहिस बनी-भूती करके ओमन के जिनगी चलत रहय।फदालू गूने समझे के लाइक होगे,नानमून कुछू काम-बूता करे के लायक होगे रहय।' कुछू काम-बूता करे बर दूरिहा शहर कोती जातेंव '..फदालू के मन म बात आइस.।फदालू अपन दाई ल एक दिन कहिथे...!' एकेझन तो मोर आँखी के पुतरी बरोबर हावस बेटा तोला दूरिहा नी जावन देवौं ' मिलौतिन फदालू ल कहिथे.. ! ' तही मोला बता मैं काय बूता करंव जेकर ले हमर घर के हालत सुधर जावय '...फदालू अपन दाई ल कहिस ! ' गाँव के रेलवे टेशन म चहा दूकान खोल ले बने चलही ' दाई अपन बेटा ल कहिस... ! ' फदालू के मन आइस त मुड़ी हलावत हव कहिस '..।
दूसरवान दिन बजार ले चहा दूकान के जोखा मढ़ाय बर समान बिसाय चल दिस।चहा-शक्कर,चहा बनाय के गंजी,केटली अऊ दू-चार दरजन कांच के गिलास लेके आइस।टेशन के बाहिर म दूकान लगाय के टपरा बनाइस। तिसरावन दिन चहा दूकान खोले के शुरू करिस। *" मनखे के सोच ओला आघू बढ़ाथे ।"* बिहनिया के पाँच बज्जी गाड़ी चढ़ोइया मन जावंय कोनों उतरइया मन आवंय।बिहनिया बेरा सबो ल चहा के चुलूक रहिथे, फेर का फदालू के चहा दूकान बिहनिया के शुरू होये-होय रात के दस बजे बंद करय।चहा अतका बढ़िया बनावय.... अदरक,लइची अऊ गोरस के गाढ़ा चहा रहय।पिवइया मन फदालू के चहा ल जबर सहरावंय।नी पिवइया मनखे घलो पीवंय।चहा के चलन बाढ़गे, रोज के बने आमद आय के शुरू होगे।चहा संग धीरे-धीरे अऊ खई-खजाना राखे के शुरू करिस।चहा के संगे-सबो खई-खजाना के चलन बाढ़गे।
मटरु ह फदालू मन के चहा दूकान कोती जावय त देखथे दूकान म चहा पिअइया मन के भीड़ थिरकबे नी करय।फदालू के चहा दूकान के अतका चलन होवत हे अजम दारिस।चहा दूकान म मटरु के आँखी गड़े रहिस।ओमन के कमइ ल देख के मटरु घलो *हिजगा* म उहीच जघा म चहा के दूकान खोल दारिस।फदालू के माढ़े-मउरे दूकान रहिस तेकर ले ओकर गहकी मन ओकरेच करा आवंय।फेर *मउंहा कस थिपइ* थोरिक कम होय के शुरू होगिस,काबर के दूठिन दूकान होगिस।बपरा के धंधा कम होय लगिस।गरीब मनखे के कमई ल नी देख सकें,ओतका दिन ले तो कोनों दूकान नी खोलिन फेर फदालू के खोले के पाछू *हिजगा* म कतको दूकान खुलगे।बपरा के आवक कमतिया गीस *अलराय मखना नार बरोबर हो गीस।* मनखे ल हिजगा ह खा दारिस।
✍️डोरेलाल कैवर्त " *हरसिंगार "*
तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)
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