" दीया "
मंगलू के दू झन बेटा रिहिस। घर म कोनो चीज के जरूरत नई रिहिस।बेरा के संग- संग लईका मन बाढ़े लगिस। मंगलू अपन बड़े बेटा बरातू के बिहाव पड़ोसी गांव के बिमला संग बढ़िया धूम धाम,अऊ ठाठ-बाट ले करिस।कोन दाई ददा ल बबा बने के संऊक नई राहय,फेर मंगलू के परिवार म अईसन कुछु नई होईस। गांव पड़ोस म आनी -बानी के गोठ होय लगिस। रद्दा बाट म तरिया बोरिंग म 'अई दू -दू तीन -तीन बछर बीत गे फेर कहीं न कुछू'।कहिथे न फुटहा करम के फूटहा दोना। बिमला के ऊपर दुख के पहाड़ टूटगे।बईगा कर जाय त कहाय तुंहर घर म फलाना फलाना के सांया हे ऐला भगाय बर एक बाटल मन्द दुगोड़िया एक्काईस ठन लिम्बू चना मुर्रा,सुपली चरिहा धजा अमका डमका। डाक्टर के घलो उही रंगा ढंगा, दुनिया भरके दवई दारु लिख देवे अऊ ठोंक बजा के अपन फीस ले लेवें।अईसे तईसे कतको पईसा खुवार होगे।कतरो ईलाज- पानी कराईस बईगा गुनिया देखाईस फेर कोनो काट नई करिस। बिमला के रोवई संसो करई म आधा मुहरन ह घट गे।बरातू ल संगवारी मन ठोसरा मारे,फेर का करही बिचारा मन संवास के रही जाय।
मंगलू छोटे बेटा के बिहाव करके नवा बहुरिया लानिस।घर म हंसी खुशी दिन बीते लगिस। मंगलू के छोटे बेटा कोमल दाई ददा के आज्ञाकारी रहे। मंगलू के मन म फेर बबा बने के पिकी फूटिस अऊ वहू दिन आगे जब सरोज हर सुघ्घर अकन बेटा बेटा ल जनम दिस। गांव घर के मन अड़बड़ उछाह मनाईस सरोज ह का जानत रिहिस के इही खुशी ओकर दुखी होय के कारन बनही।
जईसे पानी बिना मछरी तड़पथे वईसने लईका बर भईया भऊजी ह छटपटावत रिहिस।बरातू अऊ बिमला के मन के आस पूरा होय लगिस।लईका कुम्हार के माटी के लोंदा कस आय। जईसे गढ़बे तईसे बनही।बरातू बिमला अपन देवरानी के लईका गोलू ल अपन लड़का कस अपन तीर राखे लगिस।ऐती सरोज अपन लईका ल अपन ले दुरिहावत देख बड़ दुखी होईस एकर बर बाता चीता घलो होगे। फेर सरोज के सास -ससुर एको नई सुनिस। मंगलू कहिथे का ऐ तोरेच लईका आय हमर लड़का नोहे कही सुनाके चुप होगे।बिना साबुन सोडा के सरोज के नहाय के ठिकाना न धोय के। साबुन सोडा नोहर होगे।आन जातकस हाड़ी चुल्हा ल छोड़ा दिस। सरोज घर के पहाटनीन कस होगे । सरोज के दुख अऊ घर के बेहवार ल देख के ओकर दाई -ददा आय जाय बर छोड़ दिस।
दू बछर म सरोज के पांव अऊ भारी होगे। फेर का दुब्बर बर दू असाढ़ ओकर दूसर लड़का आते साठ गंवागे। मंगलू कहिथे कोन जनि कते नक्षतर म जनम धरे हे कलमुंही ह जब ले हमर घर आईस---।
कोमल दाई ददा के गोठ ल सुन थूक ल लील के रहिगे। महतारी के दुख ल महतारी ह जानही। बड़े लईका अऊ दुरिहागे।भरे देवारी के रात आय।जम्मो अंगना देहरी ,गली खोर दीया के अंजोर म जगमगावत हे। फेर सरोज के मन मन कुलूप अंधियार हे सरोज के दीया ओकर ले दुरिहागे। अंधियार मे सरोज के आंखी डहर ले टप टप आंसू चुचवावत हे अऊ सिसक सिसक के रोवत भगवान ल कोसत हे।हे भगवान का बीगाड़ करे हौं जेकर अतिक बड़ सजा देवत हस।मे महतारी हो के अपन लईका ल दुलार नई संको।जेन ल नौ महिना अपन कोख म राखेंव ओला संग म घुमा फिरा नई सड़कों। एक महतारी होके मोला बांझ बना देस।का इही तोर विधी के विधान आय।का इही तोर लीला आय?
सरोज अपन कुरिया म सुते -सुते रोवत राहय।तभे बरत छुरछुरी ल धरे गोलू खोली म आईस।छुरछुरी ल उही जगा फेंक के ओ हर सरोज के कोरा म खुसरगे।कथे दाई ते काबर रोवत हस चल ना खोर डाहर खेलबो। गली म दीया मन चकचक ले बरत हे। सरोज के मया हर बईहा पूरा कस उमड़गे।लईका ला पोटार के जकही मन कस चूमे चांटे लगिस।हिरदे के सबो दुख (संताप) जुड़ागे।ऐला देख बिमला के घलो बदलगे।पाछू ले बिमला आथे सरोज तीर म जाके कथे बहिनी तोर लईका तोरेच रही।तै मोला अतिक चंडालिन समझगेस कि तोर लईका ल मै तोर ले नंगा लेहूं।चल कुरिया ले निकल मिलजुल के सुरहोती के दीया ल जलाबो।
सरोज के मन के ओनहा कोनहा में जईसे दीया जगमग जगमग बरे लगिस। जेठानी के पांव म गिर के कहिथे -दीदी तै मोला क्षिमा कर दे। मै तोला जान नई सकेंव।लईका तो खुद दीया बरोबर होथे जिहां रहिथे अंजोर बगराथे।गोलू के असली महतारी तो तही आस। दोनों देवरानी जेठानी गोलू के एक एक हाथ ल धर के हांसत हांसत कुरिया ले निकलत रिहिस।गोलू हांथ ल झटाकार के कहिथे दाई तुमन दीया ल जलात जावव मे हर गली अंगना मे राखत जावत हंव।
फकीर प्रसाद साहू
" फक्कड़"
सुरगी
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