लघु कथा -
"कोन मेऱ गँवागे "
"अभी के समय ला देखत हन
विचित्र हे l कोनो ल कुछु झन काह ?"सियान पलटू बतावत रहिस l उही बेरा नतनिन तनु चाय पानी लाके देथे l
" ले चाहा पी ले l "
कप ला उठावत जगतू कहिथे
" नोनी बर सगा नई आवत हे? " पलटू कहिस -" रिस्ता जम नई पावत हे l नोनी ला नोनी असन राखे हन l कोनो डहर अकेल्ला नई भेजन l"
" घरेच म घलो नई रखना चाही l बाहिर आना जाना होथे त उंकरों दिमाग खुलथे हिम्मत आथे l "
"दूसर मन तो आन तान
कहिथे, खुल्ला छोड़ दे हे l "
"उंकर मन का हे, जेकर सोच गलत हे,नजर दोस हे l"
नतनिन के नता म मजाक हो जावत होही? "
पलटू बताथे -" बने कहेस लोगन म नजर दोस हेl नजर घलो लगे हे l नजरिया घलो बदल गे हे l नोनी मन बर सगा खोजाईया भला आदमी नई हे l बने बिचार कोन जनी कहाँ?
कोन मेऱ गँवागे हे l बखत मैनखे के मुँह ले बुराई बुराई निकलथे l ओकर संस्कार ल नई देखय सुघराई के पीछू दौड़त हे l "
हाँ जगतू, अपन नोनी ला बार खार नई भेजन तेखर सेती
बाहिर के हवा पानी ले नोनी बाँच गे हे l"
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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