दू-तीन दशक पहिली के सामाजिक परिवेश ले तार जोरे हे -अनोखी बहू
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू के साहित्य समर्पण अभिनंदनीय हे। उन मन सरलग छत्तीसगढ़ी कविता अउ कहानी लिखथें। बाल साहित्य जइसन मनोवैज्ञानिक अउ कठिन विधा म घलव उन दखल रखथें। छंद लेखन म उॅंकर कलम आजकाल जोरदार चलत हे। कुल मिलाके कमलेश प्रसाद शर्माबाबू छत्तीसगढ़ी साहित्य बर समर्पित रचनाकार आँय कहना अतिश्योक्ति नइ होही। जिंकर रचना मन म विधागत शिल्प तो रहिबे करथे, उँकर भाव पक्ष के सजोरपन ह पाठक ल बाँधे रखथे। पाठक मन ल पढ़त खानी अइसे लगही कि ए सब तो हमरे तिर-तखार के गोठबात आय।
अभी के लिखइया म कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू के नाँव जाने पहचाने नाँव हरे। अब तक उॅंकर ७ किताब छापाखाना ले छप के आ गे हवय। जेन म कविता संग्रह, कहानी संग्रह शामिल हें। उॅंकर लेखन क्षमता अद्भुत हे।
बाल साहित्य जौन बड़ कठिन विधा आय। काबर कि एक डहर बाल साहित्य ल परकाया साहित्य के श्रेणी म गिने जाथे। दूसर डहर, जब मनखे नानकन रहिथे, माने लइका रहिथे त ओकर शब्द भंडार कमती रहिथे अउ जब बड़े हो जाथे त नानपन के बालमन नइ राहय, बालसुलभ मनोभाव कहूॅं छू लम्बा हो जथे। अइसन म बाल-साहित्य लिखना कठिन हो जाथे। फेर उॅंकर कलम के गाड़ी बाल साहित्य के पटरी म सरपट दउंड़त मिलथे। एकर प्रमाण आय कुदीस बेंदरा जझरंग-जझरंग, आबे तैं चुप-चुप चंदा अउ आँगनबाड़ी महूँ जाहूँ (बाल कविता संग्रह) अउ प्रियांशी के परेवा, बालकहानी संग्रह।
कहानी 'अनोखी बहू' उँकर अभी-अभी प्रकाशित कृति आय। जे तिसरइया कहानी संग्रह आय। एकर पहिली कहानी संग्रह 'छत्तीसगढ़ के रतन बेटा' अउ 'खेतिहारिन' प्रकाशित हो चुके हावय।
नवा कहानी संग्रह के कहानी मन ऊप्पर अब नज़र दउड़ाए के बारी हे। संग्रह के कहानी मन म छत्तीसगढ़ के लोकजीवन अउ सामाजिक ताना-बाना के सहज दर्शन होथे। संग्रह के शीर्षक ऊपर लिखे गे कहानी 'अनोखी बहू' तीन दशक पहिली छत्तीसगढ़ के सामाजिक अउ पारिवारिक परिवेश ल रेखांकित करथे। शिक्षा अउ वैज्ञानिक सुविधा के चलत एमा आज बदलाव जरूर आय हे। गोद ले के या चिकित्सा सुविधा के चलत दूसरइया बिहाव नइ होवत हे। ए संग्रह के भूमिका लिखत वरिष्ठ साहित्यकार डॉ परदेशी राम वर्मा संग्रह के कहानी मन ल ठेठ छत्तीसगढ़ के गॅंवई-गाॅंव के जिनगी ले जुड़े, कहानी बताय हवॅंय।
अब संग्रह ऊपर अपन बात रखे के कोशिश करत हॅंव। ए मोर पाठकीय भाव आय।
'बाॅंके बढ़ई' छत्तीसगढ़िया मनखे मिहनती होथे, पसीना ओगराय ले नइ घबराय, एक सबूत देथे, त शिक्षा के अभाव म दूर-अंचल म व्याप्त अंधविश्वास कइसे फलत-फूलत हावे, एकर पोल घलव खोलथे- 'अति-अंधविश्वास'। ए अलग बात आवय कि स्वच्छता अभियान के बाद आय परिवर्तन के कहानी कहे जा सकथे।
'अनोखी बहू' एक मार्मिक कहानी हे, जेन म अइसे बहू के बात हे जउन कुल के वंश बढ़वार बर घर म नवा बहू यानि अपन सउत लानथे, परिवार के खुशहाली बर त्याग तपस्या के अद्भुत कहानी हे, फेर अपन ऊपर ठगड़ी के करु बोली के बाण ले अतका आहत हो जथे कि बइठे-बइठे भगवान ल प्यारी हो जथे। ओकर साॅंसा के डोर टूट जथे।
'जरहा बीड़ी' बदलत बेरा के संवेदना ल समोये मार्मिक कहानी आय। जेन म दू पीढ़ी के सोच के फरक साफ देखे ल मिलथे। ए कहानी यहू बताथे कि लत के आगू मनखे तन के नकसानी ल कइसे नजरअंदाज करथे।
'बाँके बढ़ई' हुनरमंद मनखे के जिनगी कइसे बहुरथे? ए संदेश दे म सक्षम हावे।
'मनौती अउ पनौती' मनखे के भ्रम टोरे म बड़ दूर ले मील के पथरा साबित होही। यहू संदेश देथे कि मनखे अपन करनी के फल इहें ही भोग थे, येहू संदेश देथे कि कोनो भी मनखे जन्म से मनहूस/अशुभ नइ होय। ए तो मनखे के भरम आय।
गँवई-गाँव म बगरे अंधविश्वास अउ अशिक्षा ले मनखे के का दुर्गति होथे अउ कतका जोखिम पालत जिनगी जीथें, एकर जीवंत उदाहरण 'अति अंधविश्वास' कहानी म मिलथे। ढोंगी पाखंडी मन अइसन मनके भरम अउ अंधविश्वास के कतका फायदा उठाथें, वहू ल कहानी रेखांकित करथे। देर आइस दुरुस्त आइस। आज स्वच्छता ले ही जिनगी म खुशहाली आवत हे। बेमारी के इलाज म कतको गाढ़ा कमई बिरथा चल देवय, तेकर विकास म लगे ले खुशहाली देखे ल मिलत हे।
आज मानवीय मूल्य दिनों-दिन घटतेच जावत हे। लोगन ऊपर ले भरोसा आए दिन टूटत हे। कारण वाजिब हे। भोरहा एक बेर होही, दू बेर होही। दू ले आगर धोखा खाय ले सावचेत रहे के आय। इही बात के सावचेत कराथे भोरहा ऊपर भोरहा कहानी।
व्यापार जगत म ग्राहक ल देवता समझे जाथे। ग्राहक ले बने बेवहार रखे अउ सौदा यानि लेन-देन करत बेरा शांत भाव ले रहे के सिखौना दे जाथे। जय भगवान कहानी इही बेवहार के नफा-नकसान ल बढ़िया पिरोय हावय।
घोर अपराध कहानी म खाप पंचायत के दुर्भावना ले भरे फैसला ल रेखांकित करे म सफल हे। मुंशी प्रेमचंद जी के कहानी 'पंच-परमेश्वर'... तब के सामाजिक अउ मानवीय मूल्य के उचास ल बताथे , उहें ए कहानी आज के समे म मनखे के सुवारथ अउ मानवीय मूल्य म दिनों-दिन आवत गिरावट ल सरेखे के सुग्घर उदिम हे। कहानीकार के उद्देश्य समाज म आय खाई ल पाटे के हावय।
ए संग्रह अनोखी बहू म कुल 9 कहानी संग्रहित हे। जम्मो कहानी के भाषा अउ संवाद मन पात्र / चरित्र के मुताबिक हें। शिल्प बढ़िया हे। शब्द चयन सही हे। मुहावरा हाना के प्रयोग सहराय के लइक हे।
कहानीकार के भीतर बइठे कवि के चुगली कहानी मन करत हावॅंय। कहानी के बीच-बीच म कविता के प्रयोग ल बढ़िया कहे जा सकथे। कविता मन जेन ढंग ले प्रस्तुत करे गे हे कथानक ल आगू जरुर बढ़ाथे, फेर भर्ती के हे बरोबर लागथे। पात्र के मुख ले आय म जादा छाप छोड़तिस। संगेसंग कविता औसत रूप ले बड़े होगे हावय। हो सकत हे, कि सुधि पाठक बर उबाऊ हो जय। कहानी के पाठक कविता के भूल-भुलैया म भटकना नइ चाहय। मोर ए विचार ले कतको सहमत हो सकथौ अउ कतको असहमत घलव हो सकथौ।
छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अउ लोक व्यवहार ल सहेजे 'अनोखी बहू ' कहानी संग्रह छत्तीसगढ़ी कहानी बर नवा डहर गढ़ही अइसे मोला भरोसा हे। एकर कव्हर पेज अउ भीतरी पन्ना मन सुग्घर छपाई संग बढ़िया क्वालिटी के हे। ए संग्रह के अनोखी बहू अउ पर भरोसा तीन परोसा जइसन कहानी ले कहानीकार अपन समे के संग दू-तीन दशक पहिली के सामाजिक परिवेश ले तार जोरे म सफल हे।
पठनीय अउ सुग्घर संग्रह के प्रकाशन बर कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू ल अंतस् ले बधाई अउ शुभकामना कि उॅंकर कहानी पाठक के हिरदे म घरोंदा बनावत रहय।
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पोखन लाल जायसवाल
पलारी (पठारीडीह)
जिला बलौदाबाजार-भाटापारा छग
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