Monday, 9 December 2024

आखर के अरघ शहीद वीर नारायण सिंह

 आखर के अरघ 

    शहीद वीर नारायण सिंह 

             आज 10 दिसम्बर 2024 आय त सुरता आवत हे हमर गरब गुमान वीर नारायण सिंह के काबर के 10 दिसम्बर 1857 के दिन जब सुरुज मुंह लुकावत रहिस होही रायपुर मं अंग्रेज सरकार उनला फांसी देहे रहिस ...। 

  वीर नारायण सिंह के जनम सन् 1795 मं सोनाखान के जमींदार राम राय बिंझवार घर होए रहिस । जब उन जमीदारी सम्हारिन त गरीब गुरबा के दुख बिपत मं दिन रात खड़े रहैं ...।  सन् 1856 के दुकाल ल तो कभू भुलाए नइ जा सकय , मनसे पेज पसिया बर ललाये लगिन , हारी बीमारी मं कम तो भूख मं मनसे मरे लगिन । परोपकारी जमींदार वीर नारायण के करेजा फाटे लगिस त उन अपन कोठी के धान बांटे बर धरिन फेर कतका दिन गुजारा होतिस ? उन निकलिन सेठ साहूकार , आने जमींदार मन से सहायता मांगे बर फेर कोनो आगू नइ आईन । 

"सोनाखान के आगी " काव्य खण्ड मं लक्ष्मण मस्तुरिया वीरनारायण सिंह के बात लिखे हें .....

    " अन्यायी के अन्याय सहे ले 

      सबले बड़े होवय अन्याय ।

     काट के पापी ल खुद कट जावै 

    धरम करम गीता गुन गाय । " 

            गरजिन वीर नारायण अपन प्रजा बर अउ साहूकार के कोठी के दुआर खोल दिन .ओ समय उंकर संग 300 मनसे रहिन , संग देवइया बढ़त गिन फेर माखन साहूकार ओ समय के अंगेज कमिश्नर तीर फरियाद करिस अंगेज सरकार ल तो मौका मिलिस अउ वीरनारायण 24 अक्टूबर 1856  के दिन गिरफ्तार कर लेहे गिन । हितू पिरितू मन तो आगी अंगरा होगिन अउ 28 अगस्त 1857 के दिन उनला मुक्त करवा लिन फेर अंगरेज सरकार के हाकिम हुक्काम मन से बांचना जरूरी रहिस ते पाय के वीर नारायण कुरुपाठ के पहाड़ी मं अपन जुझारू संगी मन संग सरण लिहिन ।छापामार युद्ध ल अपनाना जरूरी रहिस एतरह अंग्रेज मन के नाक मं दम कर दिहिन । अंग्रेज मन संग तो लड़ना च रहिस फेर साहूकार मन के संग आने जमींदार मन से भी तो निपटना रहिस ..। हमर देश मं जयचंद मन के कमी तो कोनो दिन नइ रहिस । एती अंगेज सरकार गुनिस तोला नइ सकिहौं त तोर पेट के पिला ल तो देखी लैहौं ..फेर का दुखी भूखी जनता ऊपर अत्याचार बढ़ गिस , लोगन के घर दुआर ल जरो बरो देहे लगिन ...वीर नारायण अपन प्रजा ल अपन लइका असन जानयं , मानयं ..। चार झन संग सलाह करिन , गुनिन के मोर सेतिर मोरे अपन मन दुख सासत काबर सहयं तेकर ले मैं आत्म समर्पण कर देहौं ....धन्य हमर छत्तीसगढ़ के दाई , बहिनी , बहू बेटी मन 

दुख बिपत मं संग मं खड़े रहिथें तभे तो उंकर पत्नी घलाय आत्म समर्पण बर राजी होईन । एतरह वीर नारायण सिंह अंग्रेज सरकार तीर आत्म समर्पण कर दिन । " मोरे मन कुछ और है कर्ता के कुछ और " .....सुरता आवत हे सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के लपट छत्तीसगढ़ घलाय तो पहुँचबे करिस ...सरकार ल बहाना मिल गिस वीर नारायण सिंह ल राजद्रोही , विद्रोही नेता कहे के । 

   सबले बड़े दुख , लाज के बात  एहर आय के हमरे मनसे मन घर के भेदी लंका छेदी बन गिन । एकतरफा न्याय अउ काला कहिथे ...

10 दिसम्बर 1857 के दिन वीर नारायण सिंह ल रायपुर मं फांसी देहे गिस , जेन जघा मं छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी ल फांसी देहे गए रहिस आज हमन ओ जघा ल " जय स्तम्भ " के नांव से जानथन । 

  मन अउ कलम दुनों भरभरा उठिस जी ...

 शहीद वीर नारायण सिंह ल शत शत नमन 

       सरला शर्मा

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