लघुकथा -
भोरहा
दूनो बइठ के गोठियावत रहिस परेमा अउ परभू l
बचपन के दोस्त हे l मिलगे अचानक छट्टी के कार्यक्रम म l
छट्टी घर म का होथे कांके पानी
लइका देखई अउ नेग देवाई l
सगा पहुना संग मिल भेंट गोठ बात अउ हाल चाल पूछई l
बेरा कती जाथे गम नई मिले l
परभू -" सुरता नई करस मोला l" तै मोला सुरता करे हस l"
" सुरता करके का करबे, तहूँ अपन घर म मस्त l महूँ अपन घर म तरस्त l"
"का तरस्त? तरसे ले जिनगी नई चलय l"
परभू -"परेमा, प्रेम ला सब नई जानय l पूछथे भर आपस म हे कि नहीं, ओ तो दिखथे l"
परेमा -" दिखय नहीं लोगन देखथे,भरम भूत म l"
परभू -" बने बने हस ना l"
"बने बने हे सब फ़ेर सुरता आथे भोरम देव घुमाये हस तेन l" परभू -थोकिन मुड़ी हलावत
" भोरहा म झन रहिबे पूरा जिनगी म सीखे जाने के गुर हेl प्रेम अउ काम अलग अलग हे l' परेमा थोकिन हाँस के
ढाई आखर प्रेम के पढ़े.... I"
परभू हाँस के -" मूरख होय l
उही बेरा सुवासीन आगे लइका ला धर के l तुमन का करत हव देख बाबू भुवन ला l इही नाँव धरे गिस l बड़ सुगघर हे l
एखरे सुरता करत रहेंन भोरम देवl
हमू मन ला कब दिही? परेमा l
-मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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