Monday, 9 December 2024

लघुकथा - भोरहा

 लघुकथा -

             भोरहा 

दूनो बइठ के गोठियावत रहिस  परेमा अउ परभू l

बचपन के दोस्त हे l मिलगे अचानक छट्टी के कार्यक्रम म l 

छट्टी घर म का होथे कांके पानी 

लइका देखई अउ नेग  देवाई l

सगा पहुना संग मिल भेंट  गोठ बात अउ हाल चाल पूछई l

बेरा कती जाथे  गम नई मिले l

परभू -" सुरता नई करस मोला l" तै मोला सुरता करे हस l"

" सुरता करके का करबे, तहूँ अपन घर म मस्त  l महूँ अपन घर म तरस्त l"

"का तरस्त? तरसे ले जिनगी नई चलय l"

परभू -"परेमा, प्रेम ला सब नई जानय l पूछथे भर आपस म हे कि नहीं, ओ तो दिखथे l"

परेमा -" दिखय नहीं लोगन देखथे,भरम भूत  म l"

परभू -" बने बने हस ना l"

"बने बने हे सब फ़ेर सुरता आथे भोरम देव घुमाये हस तेन l" परभू -थोकिन मुड़ी हलावत 

" भोरहा म झन रहिबे  पूरा जिनगी म सीखे जाने के गुर हेl प्रेम अउ काम अलग अलग हे l' परेमा थोकिन हाँस के 

ढाई आखर प्रेम के पढ़े.... I"

परभू हाँस के -" मूरख होय l

उही बेरा सुवासीन आगे लइका ला धर के l  तुमन का करत हव देख बाबू भुवन ला l इही नाँव  धरे गिस l बड़ सुगघर हे l 



एखरे सुरता करत रहेंन  भोरम देवl

 हमू मन ला कब दिही? परेमा l


-मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

No comments:

Post a Comment