Monday, 9 December 2024

कहय बेपारी- 'सूतव ग्राहक सूतव'

 कहय बेपारी- 'सूतव ग्राहक सूतव' 


मनखे के जिनगी म हाट-बजार के बड़ महत्तम हवय।पहिली के बजार म साग-भाजी अउ नून,गुड़-तेल के पसरा मन ह जेन जगा म माढ़े रहय उहिंचे ले अपन जरवत के हिसाब ले मनखे मन लेन-देन कर डरें। धीरे-धीरे बजार ह कई ठन रूप म विस्तार पावत जेन मेर दिखिस उही मेर अपन बर जगा पोगरा लिस। देखते-देखत बजार ह विकेंद्रीकरण के चोला पहिर के  राजनीति कस गांव-गोढ़ा, कस्बा अउ शहर के चौक-चौक म लमिया गे। मनखे ते मनखे पाढ़ू जीव-जंतु मन के जरवत के सबे चीज-बस ह घला बजार म असानी ले मिल जथे। भलुक बजार म का चीज-बस ह नइ मिले।विज्ञान के चमत्कार ले थोरको कम नइहे ये बजार के चमत्कार ह। वइसे ये टॉपिक म विचार गोष्ठी घलव रखे जा सकत हे कि विज्ञान और बजार के चमत्कार म काकर चमत्कार ह जादा चमत्कारिक हे।ननपन म लइका मन विज्ञान के चमत्कार निबंध ल याद करत चमत्कार ल नमस्कार करे बर सीखिन। फेर नासमझ अप्पड़ टाईप के पेलिहा मन विज्ञान के चमत्कार ल मानबे  नइ करँय। अउ चमत्कार ल नमस्कार करे के जगा दूरिहा च ले मुॅंहुॅं-कान ल झटकार देथें। उनकर बर तो ये दुनिया म बइगा-सिरहा के चमत्कार के आगू म सब बेकार हे।

               यहू विज्ञान ह वरदान के संगे-संग अभिशाप ल घलव गमपलास कस अपन चरित्तर म चटका के राखे हे। फेर जेन ला ये दुनिया म विज्ञान के चमत्कार ह नइ दिखे, समझ जा वो मनखे ह ऑंखी होके नंबर एक के अंधवा हे।जिहाँ तक बजार के बात हे ओकर तो जिहाँ नहीं तिहाँ आजकल गजब पूछंता हे। का गांव ल लेबे ते का शहर.., बजार ह सबो डहर गुलजार हे।बजार..,अंग्रेजी म मार्केट.., बजार कहे म बात ह थोकिन लिल्हर कस जनाथे फेर मार्केट शब्द के रूआब ल आप मन खच्चित मार्क कर सकथो। बजार कहव चाहे मार्केट काम तो वोतकिच होही जतिक के जरवत रही। अब तो बजार ह शहर के बीच ले निकल के सड़क तीर में पसरत जात हे। ब्रोकर-कोचिया-दलाल के बिना बजार ल लुलवा-खोड़वा समझ..।जइसे कि नवा घर के सपना ल अपना बनाय बर दलाल के सलामी लेना च पड़थे। नइते कतिक बेर सौदा म दलाल ह अपन कमाल देखावत हलाल कर दीही ते जिनगी भर मलाल रही जही। मने बजार अउ दलाल के बीच म, साग म नून कस गठबंधन हे।

              जन-जन के अंतस म एकता ,समता अउ भाईचारा के भाव ह जीयत-जागत रहय कहिके अजादी के बाद देश के संविधान ल लिखे गीस।त का ये संवेधानिक बेवस्था के चारो खंभा ह बजार के चमत्कार के आगू म तन के खड़े हे ते नतमस्तक हो गेहे। ये बात ल तो विशेषज्ञे मन ह फरी-फरी कर सकथे। बजार म बेपारी के करेंसी के आगू म बड़े-बड़े के नीयत ह डोल जथे। ये खंभा के सलामती बर खंभादार मन कतिक दमदम ले खड़े हे तेहा उनकर दमदारी के बैलेंस शीट उपर निर्भर करथे। अइसे भी बजार के सांघर-मोंघर बेपारी मन अपन बेपार बर खंभा ल हलाय-डोलाय के का बारा-बिटोना उदीम नइ करें।तीन ठन खंभा ल थोरिक -थोरिक लपकत देखके अनुभवी मन बताथें कि ये तीनों खंभा के नेंव म दिंयार मन सपड़ गेहे तइसे लगथे। मने खंभादार के दाढ़ी म तिनका ह खच्चित लटक गे होही। चौथा नंबर के खंभा के बाते झन पूछव उनला तो बेपारी के पॅंवरी म लामी-लामा होवत अपन ओरिजनल ऑंखी म तॅंय खुद देख सकथस।

                 जियो के फिरीवाले सीम के जियो-मरो विज्ञापन ल कते भुगतमानी मन ह भुलाय होहीं। दू-तीन महिना बर फिरीवाले सीम ल बाँट के येमन आज ले बटोरत हें। बड़े-बड़े नेता के साक्षात फोटो सम्मेत पोस्टर ल देखके जनता मन खुदे भोरहा म पड़ गे रहिन.., कते ह मंत्री आय अउ कते ह बेपारी..। फेर  जेती बम ओती हम वाले खुलेआम विज्ञापन के सेती बेपारी मन तो सकेल डरिन न..। एती बजार के फिरीवाद के फिरकी म उपभोक्ता मन आज ले ताता-थैया करत हे। ये प्रसंग म कते खंभा के नेव ह हालिस होही तेला तँय खुदे अजम सकथस। कभू-कभू तो अइसे लगथे कि कुछ दिन म मार्केट म 'जागो ग्राहक जागो' के जगा म जबरदस्ती 'सूतव ग्राहक सूतव' वाले ऐप ह घलव लॉन्च हो जही। काबर कि जागो ग्राहक जागो ले भलुक तुमन के झन ग्राहक ल जागत देखे हव। सब ल मालूम हे विज्ञापन ह बजार म समान बेचे बर माहौल बनाय के काम करथे अउ एती जनता के वोट पाके नेता मन प्राभेट कंपनी के प्रचार म लगे रहिथें। कन्हो भी ऑफिस म जाके देख ले चहा-पानी के बिना फाईल ह आगू डहर खसकबे नइ करे। खाखीवान (पुलिस) मन के वसूली के अलिखित सूची ह वाचिक परंपरा ले खोखी ( अवैध कारोबारी) के खोपड़ी में टंगाय रहिथे। ओकरे हिसाब ले खाखी अउ खोखी के मझ म भुगतान संतुलन के सदाचार  ह तय होथे। अब तही बता येमन खंभा ल गड़ावत हें कि उखानत हें..।

            फिल्मी दुनिया के हीरो हीरवइन मन बैगपाइपर, आरो, जरदा गुटका, बनफूल तेल, लक्स, लिरिल, निरमा अउ टूथपेस्ट जइसे कतको समान ल बेचे बर घनघोर विज्ञापन करत हें। बजार म का-का नइ बेचावत हे। सरहा-घुनहा अउ टूटहा-परेटहा समान ल बेचे बर हीरवइन मन के डुठरी कपड़ा म कनिहा मटकई ह अब तो आम बात होगे हे। अवइया समय ह घोर बजारवाद के समय रही तब कोन जनी विज्ञापन वाले हीरवइन के कंचन काया म डुठरी कपड़ा ह रही पाही ते अपन इज्जत बचाय बर डुठरी कपड़ा ल खुदे खून के ऑंसू रोना पड़ जाही।बजारवाद के प्रवर्तक ह अइसन दिन आ जही कहिके सपना म घलव नइ सोचे रहिस होही कि बीच बजार म नदी, जंगल,पहाड़ ल बेचत कुरसी म सटके बर येमन फिरी के चँउर, चना, बिजली,पानी संग जनता  के वंदन करत चंदन लगा दिही।

               कुरसी म दास रहय चाहे प्रसाद छे-सात साल म कलारी धंधा म नोट पीटे के कला म उस्ताज सरकार ह बाजारवाद के पीठ म सवार होके झन्नाटा  के विकेंद्रीकरण करत ओला भट्ठी ले निकाल के होटल-बासा म फेमस करे बर अपन कनिहा टाइट करे म मगन हे। बने घला हे मंदहा मन ल ओन्हा-कोन्हा म झिम-झाम चुपरे के जगा अब खुलेआम सिप-सिप करत चुपरे म जादा मजा आही।जेकर विरोध करत येमन सत्ता के सड़क डहर ले सिंहासन तक पहुंच बनाइन,अब उकरे डहर ले येला बउरे बर जनता ले कलौली करई ह घला एक ठन अद्भुत कलाकारी आय।कंगाली के दुख पीरा म कल्हरत सरकारी क्षेत्र के बड़े-बड़े प्रतिष्ठान मन ल बीच बजार म बेपारी मन के कोंवर-कोंवर प्राभेट हाथ म बेचा-बेचा के तुरते पिकियावत फुन्नावत देखे जा सकथे। वो अलग बात आय कि सरकारी हाथ म ये जम्मो प्रतिष्ठान मन ल लकवा मार देथे। फेर एकर ले उलट बेपार के हाईटेक बजार म एकमात्र प्राभेट प्रतिष्ठान ले सरकारी होवइया झन्नाटा दुकान के अपन अलगे कहानी हे। भारतीय लोकतंत्र म घटे ये बजरहा घटना ल इतिहासकार मन सोन के ढेबर्रा अक्षर म कलमबद्ध करत झन्नाटा सन खच्चित नियाव करही अइसे हमला पक्का भरोसा हे।

                  देश ले लेके विश्व के बड़े बजार म बड़े-बड़े बेपारी मन के एकतरफा धाक हे। नानमुन बेपारी मन के गोठ करबे तब पेट बिकाली बर मनिहारी दुकान में कंघी बेचत चंदवा चाचा के दर्शन लाभ लिए जा सकथे। ओती फुटपाथ के रेहड़ी म भोभला भैया ल दंत मंजन धरे गृहस्थी के गाड़ी ल रेक-टेक के खींचत खच्चित देख पाहू।जगा-जगा म खुले मार्ट म स्मार्ट बनत कारोबारी मन के आर्ट के करिया पार्ट ल जानन पाबे ते तोर काया के पार्ट-पार्ट म पीरा भर जही। एक्सपायरी डेट वाले समान के रेपर अउ डब्बा ल बदल-बदल के ऑफर म समान बेचे के धंधा पानी म मार्ट के बेपारी मन कइसे भोगावत हें,येहा आये दिन सोशल मीडिया म वायरल होतेच रहिथे। अइसन म मनखे के हार्ट के उमर ह शार्ट नइ होही ते अउ का होही।बजार म बेपारी मन के डिस्काउंट अउ आफर के टुहू देखई वाले उदीम ह आम उपभोक्ता मन के सोच-समझ अउ बुध-विवेक ल बजरहा बना डरे हे। सबले जादा निम्न मध्यम वर्ग के नकलची अउ पुचपुचहा टाइप के मनखे मन ह ये ज्वाला म झपा-झपा के खुँवार होवत जात हे। येमन ल तो झपाय अउ ठगाय च म आत्मिक शांति प्राप्त होथे तब कोन ह का कर सकथे..। येमन ल कोचक-कोचक के कतको जगाय के उदीम करलव तभो ले ये जेदर्रा मन थोरको कसमसाय के नाम नइ लेवँय। तेपाय के इनकर मन बर 'सूतव ग्राहक सूतव' स्लोगन ह जादा सार्थक घलव लगथे।

                 विकास के नाम म बड़े-बड़े पहाड़ ल ओदारे अउ जंगल ल उजाड़े के काम तो चलतेच हे।येमन ल कहुँ मैकल पर्वत श्रेणी म यूरेनियम, सोना, चांदी जइसे कीमती धातु के भंडार मिले के खबर लग जही तब हाईटेक बेपारी मन यहू ल बेचे बर मिनट भर के सुस्ती नइ करही। भला पर्यावरण ह जाय चूल्हा म..।एती हसदेव जंगल के बेंदरा विनाश तो होतेच हे, जब सतपुड़ा जंगल के इही हाल हो डही तब साँस म नाक डहर ले काला खींचबे, तोर थोथना ल..। एक दिन अइसन आही कि साँस खातिर हवा ल पाउच म बिसाना पड़ही। आफत म अवसर के तलाश करत साँस बर हवा बेचे के ठेकेदारी ह फेर साँघर- मोंघर उही बेपारी के फाईल म आके गिर जही। आखिर म यूनिवर्सल ग्राहक बने जनता मन ल तो दूनों डहर ले पेराना च पेराना हे न..।

            बजार म जेन समान ह सस्ता-सुकाल म मिलथे ग्राहक-मन ओकरे पीछू-पीछू म दौड़-भाग करथें। चीन के सस्ता कपड़ा के आगू म हमर देश म हथकरघा ले बने खादी के परेटहा परे के इही कारण रहिस। आज घरोघर म पहुँचे चाइना आइटम के विरोध म राष्ट्रवादी नारा लगइया मन खुदे चाइना मोबाइल जइसे इलेक्ट्रॉनिक आइटम के दिवाना हें। उनकर माई-खोली अउ परछी- दुवार म चीन के झालर ल बुगुर-बुगुर बरत साक्षात देख सकथो।वैश्विक बजार म न तो लाल ऑंखी वाले बड़े भैया के चले अउ न कन्हो गुरुघंटाल के.., चलही ते सिरिफ साँघर-मोंघर बेपारी अउ दल्ला-दलाल के..।चाइना आइटम ल बिसाय बर ग्राहक-मन ल कोनो बीजिंग-सीजिंग म जाय बर नइ लगे। उनला तो सरी समान ह पड़ोस के दुकान म मिल जथे। हमर देश म चाइना के समान ह दूनो देश के बीच म समझौता के जरिए आवत होही.., फूँक मारे अउ मंतर जाप करे ले चाइना समान ह इहाँ के बजार म झरझर ले गिरत तो नइ होही। कहुँ अइसन होवत होही ते फूँक अउ मंतर जाप के रहस्य ल हमूँ ल बता देतेव ते तुँहर परसादे हमरो माटी के काया ह धन्य हो जतीस। देशहा ग्राहक-मन के तो एके इच्छा हे.., ये चीन के बजरहा आइटम ल चुक्ता निपटाय बर हमरो देश म सस्ता-सुकाल म गजब के टिकाऊ माल बनाय के काम ल शुरू करना चाही । तभे चीन के बउरो-फेंको दुकान म देखते-देखत गोदरेज के तारा ठोंका पाही।

             वैश्विक बजार म बड़े-बड़े संपन्न देश-मन गरीब अउ विकासशील देश मन ल रात-दिन डरवात रहिथें। येमन तोप, बम,गोला,बारूद, मिसाइल अउ युद्धक विमान बेचे बर दू पड़ोसी देश-मन ल आपस म लड़वाय-भिड़वाय के कूटनी चाल म लगे रहिथे। एती पड़ोसी देश चीन ह अपन विस्तारवादी सोच के दादागिरी चलात रहिथे। ओती अमेरिका ह नाटो के भरोसा म नाचो-नाचो करत रहिथे अउ रूस ह वारसा पैक्ट ल गुरमेट के हरदम हुसियारी झाड़त रहिथे। ये सब संपन्न देश मन अपन बजार के हर माल ल दूसर देश म खफाय के जुगाड़ में लगे रहिथें। यूक्रेन म मचे तबाही ह एकर ताजा उदाहरण आय। विश्व के स्वंभू व्यापारी अउ दलाल मन अपन नफा-नुकसान के आकलन करत यूक्रेन, फिलिस्तीन अउ इजरायल के जीलेवा युद्ध म बस अपन समान बेचे म लगे हें। इनकर बजरहा सोच के सेती खून म लथपथ मानवता ह तार-तार होवत हे।

               दुनिया म सामरिक रूप ले पोठ हठेलहा देश मन के चाल-चरित्तर के कोनो ठिकाना नइहे। इनकर धूर्तता के सेती विकासशील देश मन ल अपन शिक्षा, स्वास्थ्य के बजट ल काट के सुरक्षा बजट के संशो करना पड़ जथे। मुद्रा अउ वर्चस्व के खातिर उद्योग अउ बजार के गठजोड़ ल शांति अउ मानवता ले कन्हो लेना-देना नइहे। एती पाकिस्तान अउ बंगलादेश जइसन कट्टर देश -मन ल चुलका-चुलका के हथियार बेचई बूता ह अमेरिका अउ चीन के जइसे मुख्य धंधा-पानी आय। सरी दुनिया म सबले जादा इही मन अतलंग नापत हें। इनकर साम्राज्यवाद के गरभ ले निकले बाजारवादी सोच ह दुनिया ल कहुँ तीसर महायुद्ध डहर झन ढकेल दे..।ईंखरे आशीर्वाद ले ये पेटपोसवा पाकिस्तान ह हमर हाजमा खराब करे बर समुंदर डहर ले बंगलादेश म हथियार भेजे अउ बेचे के नंगई म उतर गेहे। वो अलग बात आय कि हमन अपन चेत-बुध ल बरो के किसम-किसम के नारा लगावत अपन हाजमा ठीक करे म मस्त हन।

              एती साँघर-मोंघर बेपारी और उद्योगपति मन बर हमरो घर ह चरागन तो बनी गेहे। इनला कौड़ी के भाव म जमीन अउ बजार भाव ले कतको सस्ता म रगड़ के कमइया मजदूर जो इहाँ मिल जथे। तेकरे सेती आजकल ईंखर मुँहुँ ले तरतर-तरतर लार ह टपकत हे अउ हाथ ल का कहिबे येमन कूद-कूद के दूनो गोड़ म थपटी पीटत हें। मस्का मारत एलन मस्क ह इहाँ आय चाहे अडानी ह दू हजार करोड़ के नगदउ चटावत अमेरिका जाय,  फिरीवाले हितग्राही मन ल अउ मोबाइल कोचकइया दीदी-भैया मन ल का फरक पड़ने वाला हे। बजार म आफर,डिस्काउंट अउ विज्ञापन वाले बेपार जगत ह खुदे चाहथे कि उनकर मनमानी ले आम आदमी मन कभूच झन जागय। उनकर अंतस म एकेच इच्छा तो जागत रहिथे कि ग्राहक मन हमेशा लात तान के सूते रहँय। मतलब एकदम साफ हे, कहय बेपारी-"सूतव ग्राहक सूतव"..।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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