Monday, 9 December 2024

कुकुर पोसवा समाज*. ब्यंग (टेचरही).

 *कुकुर पोसवा समाज*.         

                             ब्यंग (टेचरही).  

          सामाजिक नवाचार के नीत यहू हे कि घर के मोहाटी मा उँचहा नसल के कुकुर बँधे होना। कुछ नहीं तौ देसी खर्रू कुकुर ला डेहरी रखवार बना। अतको नइ कर सके माने वर्ग विभाजन के क्रम मा गरीबी रेखा के निचे वाले क्रम मा फेंके जाबे। समाज मा इज्जत पाना हे तौ कुकुर पोस। अउ यहू चेत रहे कि निँगती मोहाटी मा कुकुर ले सावधान के तख्ती लटके मिलना चाही। मान ले कुकुर नइ भी हे तभो झझक तो रही कि इहाँ कुकुर रथे। कुकुर रहिके घलो नइ भूँकिस तब समझ ले कि वो अपन कुत्ताईपना ला अपन स्वामी ला सउँप देय हे। अइसे भी घर बँगला के ठसन शान सौकत रूआब  ला देख के पता चलि जाथे कि इहाँ कुकुर ही रथे। शुद्ध शाकाहारी मन खटिया मा परे बाप के दवा लाने बर भुला सकथे फेर कुकुर के आहार लाने बर नइ भूले। एक झन हास्य कवि कुकुर पोषक ला कहि दिस कि, तोर कुकुर बढ़िया हे जी, कहाँ ले लाने हावस। कुकुर पोषक जोरहा गुर्राके किहिस तँय एला कुकुर झन बोल ये मोर बेटा असन हे। बतकड़ू कवि फेर एक ठन गोली दाग दिस अउ कहि दिस कि कुकुर तोर बेटा असन हे  तौ तोर बेटा काकर असन हे?

         सच तो इही हे कि कुकुर ला लइका असन पाले पोसे जावत हे, अउ लइका कुकुर बरोबर गली मा बिना सीख अऊ संस्कार के घुमत हे। बिना देख रेख के लइका बेँवारसपना मा गली के होके रहिगे हे। ये मन सरकारी पानी चघाके नाली सैया के सुख भोगत हें। एकर ले मान सम्मान मा कटौती नइ होवय। नाक तो तब कटथे जब मोहाटी मा कुकुर नइ बँधे मिले।

       कुकुर आदमी के सँग रहिके आदमीपना सीखत हे। अउ आदमी कुकुरपना ला। ओइसे भी आदमी ला कुकुर चरित्र अपनाए मा जादा दिक्कत नइ होवय। वो एकर सेती कि आज के परिधान मा मनखे हर दूसर मनखे के सुभाव मा कुत्तागिरी ला देखा सीखी मा सीख जाए रथे।

        मनखे चोर डाकू लुटेरा ले डरे। अब कुकुर ले डरथें। एक इही जीव तो हे जे मनखे अउ पशु के बीच के सभ्यता मा समानता लाथे। जेकर ले ईमानदारी अउ वफादारी के परिभाषा बाचे हे। बजार के बिसाय दस रुपिया के तारा उपर भरोसा हे फेर परोसी उपर नइये। कुकुर उपर भरोसा हे फेर हजार रुपिया के तनखाधारी चौकीदार उपर नइ रहय। सुविधा सम्पन्न मानवीय विकास यात्रा के डहर मा चलत कुकुर सभ्यता मा आके डेरा डारे हावन। हबकना भूँकना गुर्राना हम इही कुकुर मन ले सीखे हावन। ये अलग बात हे कि विज्ञान चन्दा मा चल दिस अउ हम तर्कशील होके नव राति चतुर्थी मनाए बर चंदा परची धरके मोहाटी मोहाटी किँजरत हावन। हमर कोती के रावन ला मारे बर घलो चंदा देना परथे। उपासना अउ जगराता तक ले घलो हमर कुकुरपना के निवारण नइ हो पावत हे। जौन रैबीज वैक्सीन तइयार हे अब काम नइ आवे। अब ये दू पाया मन अतका जहरीला होगे हें कि काटे के तो बात छोड़ गुर्रा दिहीं ओतके मा संक्रमण बगर सकते। तब अइसन मा डब्ल्यू एच ओ ला आवेदन देके सचेत करवा देना उचित समझथौं। जेकर ले नवा वैक्सीन के खोज चलत रहय।

     हमरो पारा मा एक ठन सम्मानित आदरणीय जी रथे। जेकर खसुवाहा होय के कारण अतके हे कि ये खसमाड़ू ह हर पंचवर्षीय मा मालिक बदलत रथे। एकर ले साफ हे कि वो स्वामी भक्त नइये। अपन ईमानदारी वफादारी ला चौपाया मन ला धरा देय हे। कर्तव्यनिष्ठ कर्मठ अउ जुझारूपन ले स्वामीभक्ति देखातिस  गुर्राये हबके के काम करतिस ते कम से कम सरपंच तो बने के संभावना तो रतिस।

         जेकर मा दम होथे वोमन चौपाया के सँगे सँग दू पाया घलो पोस के राखथें। इही पोसवा मन मा वो सब गुण भरे रथे जेकर ले कुकुर के इज्जत होथे। इन मन ला तोर हमर नुकसान से मतलब नइ रहय। मालिक के आदेश मिलत भर के रथे, फेर तो ये मन मालिक के जुट्ठा नमक खाय के करजा उतारे मा देरी नइ करे अउ शांति पारा के शांति ला भंग करके भगदड़ मचाके मालिक के साख बचाथें। अइसन बेरा मा मर कटगे तब नाम ला सहीद मनके सुचि मा जोड़वाए बर बाचे दू पाया मन धरना तो कर ही सकथें। कुकुर देव के मंदिर एकलौता बालोद जिला के मालीघोरी मा ही काबर रहय। आस्था के घंटाघर तो अबड़ बनत हे, फेर मालीघोरी के मंदिर कस भरोसा के चिनहा प्रतिक बर एक ठन एतिहासिक काम तो घलो होना चाही।

        आज हमर समाज ला कुकुर के बहुते जरुरत हे। नाम इज्जत अउ रुआब के साख बचाना हे तौ कुकुर पोसना जरूरी हे। हम ये नइ कहन कि  कुकुर चौपाया ही होय। बिना पट्टा सँखरी वाले घलो चलही।

       गाय सड़क मा हे अउ कुकुर बेडरूम मा, मनखे के लइका कुपोषित होवत हे अउ कुकुर दूध मलाई मा सनाय रोटी बिस्कुट खावत हे। पाठ भर पूरा पार करके लइका मन पैदल इस्कुल जावत हे, कुकुर कार मोटर के सँग हवाई जहाज तक मा सफर करत हे। कुकुर पोसवा समाज कुकुर ला गोदी मा लेय के जगा ओतके खरचा मा कोनो गरीब के लइका ला गोद ले लेतिस ते देन दिन येमन कुकुरगति के होही वो दिन हो सकथे मुखाग्नि तो नहीं कंधा देय बर खड़े मिलतिस। फेर हमला तो कुकुर पोसवा समाज के नाक साख ला बचाके ये परम्परा ला आगू पीढ़ी तक ढकेलना हे, कि हम उचहा दरजा के कुकुर पोसवा समाज के पोषक आवन। 


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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