(लघुकथा)
*मोहल्ला के भाई*
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असो पहिली बार होये हे के तीजा मनाये ला मइके आये सावित्री ला अपन ससुराल लहुटे मा अठुरिया ले जादा होगे हे।लइका मन के स्कूल हा तको खुलगे।आन साल वो हा बासी खाये के बिहाने दिन वापिस आ जवत रहिसे। वोकर गोसइया जितेंद्र ले बर आवय नहीं ते मनहरण हा अपन बेटी ला अमराये बर आ जवय फेर ये साल नवा-नवा रेडीमेड के दुकान खोले जितेंद्र हा पहिली ले चेता दे रहिसे के मैं हा असो ले बर नइ आ सकवँ-- बाबूजी ला कहि देबे वो हा तोला छोड़ दिही।
सावित्री के ससुर हा तको तीजा लिहे बर आये वोकर बाबू मनहरण ला कहे रहिस--" समधी जी! आपे मन तीजा के एक-दू दिन पाछू छोड़े ला आ जहू।नाती के स्कूल खुल जा रइही पढ़ई-लिखई मा नुकसान झन होवय। आपके गाँव हा इहाँ ले अस्सी-नब्बे किलो मीटर दूरिहा एकदम इंटेरियल में बसे हे।फटफटी के छोड़ आये-जाये के कोनो साधन नइये नहीं ते महीं हा आ जातेंव फेर वोतेक दूरिहा फटफटी नइ चला सकवँ।"
पाछू दू-तीन दिन ले सावित्री हा बनेच परेशान हे। तीजा के बिहान दिन ताय वोकर बाबूजी मनहरण के एक्सीडेंट मा पैर के हड्डी टूटगे तेकर सेती प्लास्टर चढ़े हे। गाड़ी चलइ तो दूरिहा हे हले-चले तको नइ सकय।अब पहुँचाये बर जावय ते जावय कोन? सास ससुर अउ जितेंद्र हा नराज होगे होहीं अइसे सोच-सोच के वो अबड़े परेशान हे। वोकर चिंता ला भाँपके वोकर दाई हा कहिस--" बेटी !तैं जादा परेशान झन हो। हमर मोहल्ला के बाबू धर्मेंद्र ला कहि देथँव वोहा अपन गाड़ी मा काली बिहनिया ले तोला पहुँचा देही।वोकर खर्चा-पानी ला दे देहूँ।"
हव दाई मैं बिहनिया ले झटकुन तइयार हो जहूँ। वोला चेता दे रहिबे गाड़ी ला बने चलाही।
ग्यारा बजे रहिस होही सावित्री हा अपन ससुराल पहुँचगे। धर्मेंद्र हा चाय पियिस तहाँ ले लहुटगे। सावित्री ला जनइस के सास हा बने बोलत नइये।ससुर हा तको गुसियाये बानी लागत हे।
अचानक वोकर ससुर हा पूछिस-- "वो कोन टूरा ये जेन तोला छोड़े ला आये रहिस। तोर ददा नइ आइच का?"
" बाबूजी के एक्सीडेंट होगे हे तेकर सेती फटीफटी नइ चला सकय। आये रहिसे तेन हा हमर मोहल्ला के भाई ये।"--सावित्री बताइच।
" अच्छा आजकल मोहल्ला मा तको भाई होथें का?" गुस्सा मा सवालिया नजर ले देखत ससुर जी कहिस।
वोकर बात ला सुनके सावित्री अवाक रहिगे।
चोवा राम वर्मा ' बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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