कहिनी // *गोदरी* //
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गाँव के छेदहा म एकठन नानचूक माटी के घर जेमा एकझन झिंगरी नांव के सियानिन डोकरी दाई रहय। जेकर कनिहा कुबर धनुस कस नेंव गे रहिस अऊ लवठी टेकत रेंगे।देहें ल देखे म निचट पोनी बरोबर थुलथुल,*मोंगरा फूल असन* पाके चूंदी सादा दिखय...।फकफक गोरी,आँखी बने दूरिहा के मनखे ल टप ले चिन्हारी कर डारे।ओहर *पातर कान* के घलो रहिस दूरिहा ले कुछू *टुड़ू-फुसू गोठ* ल टप्पा सुन दारे।दांत घलो एकोठन नइ टूटे रहिस *कोहंड़ा बीज बरोबर* रग-रग ले उज्जर दिखे ।सबो ओला झिंगरी दाई के नांव ले जानय।
बपरी घर म एकेझन रहे,ओकर कोनों नता-गोता ओकर नइ रहिस।" जेकर कोनों नइ हे तेकर भगवान हे " कइसनहो करके एक बित्ता पेट भरे बर कुछू जोखा मढ़ाय बर परबेच करे।ओहर भीख मांग-मांग के अपन के *जिनगी के गाड़ी* चलावत रहिस।एकठन बाल्टी,माटी के मरकी,सिल्वर के छोटकुन गंजी,गिलास अऊ दू-चार ठन कटोरी खाय-पीये बर घलो रहिस।भुइयाँ म सुते,दसना करे बर एकठन *चिरहा गोदरी* अऊ ओढ़े बर जून्ना कम्बल रहिस।घर के तीरेच म एकठन ढोंढ़ी जेमा फिटिंग पानी बारो महीना भरे रहे,अउ धार बोहावत रहे।उही ढोंढ़ी के पानी ले झिंगरी अपन के सगरो गुंजास करे।
झिंगरी बिहनिया ले असनान करके उवत सुरुज ल अपन मुड़ी नवाके,दूनों हाथ जोर लेवय अऊ भगवान ल गोहार करे।पता नइ हे ओहर भगवान करा काय गोहार करय ओला ओही जानही।"*काकरो मन के बात ल कोन जान सकत हे*"।तेकर पाछू झोला धरके बस्ती कोती निकल जावे।घरो-घर झिंगरी दाई झोला फइलावत भीख दीहा दाई ओ..दाई !भीख दीहा.. दाई ...! कहत घर के मुहांटी म बइठे कभू खड़े रहे।कोनों चाउंर,कोनों रुपिया पइसा दे अऊ कोनों खाय पीये बर दे देवंय,काकरो घर चहा-पानी मिल जाय।मंझनिया बेरा कोनों खाय बर भात-बासी दे देवंय।उही भात-बासी ल खावय अऊ मंझनिया काकरो आंट-परछी म ढलंग जाय, झिंगरी थके रहे त आँखी घलो उहीच मेर मुंदा जावे,थोरिक थिरावय तंह फेर उठ के एको दू घर जातीस नइ तो अपन घर कोती लहुट जावे।ओतका ले बरदी के लहुटती बेरा घलो हो जावे।
झिंगरी कभू एकोदिन भीख मांगे नइ जातीस त गाँव के सबो पूछे बर धर लेतिन के आज झिंगरी कइसे नइ दिखत हे।काबर के सबो के मया दुलार *तुमा नार बरोबर* झिंगरी ऊपर लगे रहे,लोग लइका अऊ सियान-सियानिन मन सबो झिंगरी के संसो-फिकीर करंय।झिंगरी बर सबो के *मया के पीकी* फुटे रहे। *मया के दहरा अऊ पिरीत के बाहरा* अगम अऊ अपार होथे।ओकर लवठी टेकई के ठुक-ठुक अऊ *पांव के आरो* ल सुन के सबोझन चिन्हारी कर डारंय के झिंगरी दाई आवत हे।
झिंगरी लइका मन संग लइका बन जावे अऊ सियान मन संग सियान हो जावे।' वइसे सियान होइंन तहां ले लइकेच बरोबर हो जाथें '।सियान-सियानिन मन संग बने गोठियावय बतरावय,सबो ओला बने मया दुलार करंय। *"मया करे नइ जावे ,मया हो जाथे।"* झिंगरी ल भीख के संगे-संग भात साग घलो मिल जावे त ओला राधें के संसो नइ रहे।भीख म मिले रुपिया पइसा ल अपन के चिरहा गोदरी भीतरी खुसेर देवै।गोदरी भितरी कतका रुपिया पइसा सकलाय रहिस झिंगरी घलो नइ अजम पाय काबर के जतका मिले रहे ओला नइ गिने रहे बस ओला चिरहा गोदरी म खुसेरत जावै उहीच गोदरी ल दसा के ओकरेच ऊपर सुत जावय।
घाम,बरसा अऊ जाड़ा के समे नाहकत बछर बुलकत गिस येती झिंगरी के उमर समे के संगे-संग *बुढ़वा रुख के पाना असन* खसलत पहावत हे। *जिनगी के बेर बुड़ती* बेरा होवत हे।जांगर के थकती होगीस,'बुढ़वा देहें म बीमारी घलो *गुड़ म चांटा* जइसन गरास दारथे।' झिंगरी ल बीमारी घलो गरासत गिस।जांगर के थकती म जादा रेंगे बुले नइ सके तेकर सेथी भीख मांगे जवई घलो कमतिया गे।आजकाल झिंगरी कइसे नइ दिखत हे अपन परोसिन मेंघई ल मोहरहीन ह पूछिस..। मैं तो नइ जानत हौं दीदी झिंगरी कइसे नइ दिखत हे मेंघई कहिस..।आजकल झिंगरी के कुछू पता नइ चलत हे..गंवतरिहा घलो पंचू करा गोठियावत रहिस..।सिरतोन कहत हावस गंवतरिहा आजकल झिंगरी के कुछू आरो नइ मिलत हे पंचू कहिस...।येती झिंगरी ल गोड़-हाथ के पीरा अऊ जर-बुखार के जोलहन चढ़ा लेहे मंगलू अपन गोसाईंन ल गोठियावत रहे।
गाँव के मनखे मन जान डारिन के झिंगरी के तबियत बिगड़ गे हावे।ओला देखे बर जावेंय कुछू खाय पीये के धर के ले जावें,कोनों चहा-पानी पीयावंय त कोनों खिचरी खवांय।देखते-देखत ओकर बीमारी गढ़ावत जावत हावे। *बेरा के धार म उमर घलो बोहा जाथे*। ' नदिया खंड़ के रुख के कोनों भरोसा नइ रहे कतका बेर ढलंग जाही।' देख-रेख बिना झिंगरी के जीनगी के *बेर बुड़ती बेरा* के समे होगे।ओकर खाय-पीये अऊ गोठ-बात घलो बंद होगे।झिंगरी के *सांसा के तार* कतका बेरा टूट जाही तेकर ठिकाना नइ हे।ओकर सांस जोहउ होगे,हाथ के नारी घलो खखोरी तीर चढ़़े लागिस अऊ देखते-देखत हाथ-नारी जुड़ाय धर लीस।बपरी झिंगरी के परान *पिंजरा के चिरई कस* उड़िया गिस।
गाँव म सोर होगिस झिंगरी अब ये दुनिया ल छोड़ के सरग सिधार गिस कहिके।गाँव के माईलोगन अऊ लइका मन झिंगरी ल ये दुनिया ले जाय के बड़ दुख होईस।ओकर क्रिया-करम करे बर चैतू,बैसाखु,जेठू,पंचू अऊ गवतरिहा सबो सकलाईन।कहे गे हावे *जेकर कोनों नइ हे तेकर भगवान हे*।मियाना म बोहके अमरइया के मरघटिया लेगिन।ओकर जतका जिनीस घर म रहिस जुन्ना ओंढा,कम्बल के संगे-संग चिरहा गोदरी सब ल सकेल के बोरी भितरी भर के मरघटिया लेगिन।झिंगरी के लहास ल खंचवा खनके माटी देईन। *माटी के काया माटी म मिलगे*।मरघटिया म पंचू बोरी ले चिरहा गोदरी ल निकाल के फेकिस त चिल्हर पइसा गिरे के अवाज सुनाइस।जेठू देखिस त सहिच म सिक्का अऊ चिल्हर पइसा फेंकाय रहिस।
पंचू गोदरी ल अऊ बने हलाइस त जमे चिल्हर ह खल-खल ले गिरगे,चिरहा म अपन अँगरी ल खुसेरिस त भितरी म एक,दू,पाँच अऊ दस-बीस रुपिया के कतका अकन नोट घलो खुसरे रहिस।जमो नोट,सिक्का अऊ चिल्हर पइसा ल सकेल के गिनती करिन त पाँच हजार दू सौ पच्चीस रुपिया होईस।अपन के क्रिया-करम करे के पुरती झिंगरी सकेल दारे रहिस,ओहा काकरो बोझा नइ बनना चाहत रहिस।उहीच रुपिया-पइसा के ढोंढ़ी तीरेच म झिंगरी दाई के गोदरी के चिन्हा सबो जुरमिल के एकठन नानचूक चंवरा बनवाईन।जेहर *झिंगरी चंवरा* नांव ले गाँव भर उजागर होगिस।
✍️डोरेलाल कैवर्त "*हरसिंगार*"
तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)
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