Monday, 9 December 2024

लघुकथा) असली महतारी

 (लघुकथा)


असली महतारी

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रात दिन खेत मा खँटइया बहुतेच सिधवी  रामकली अपन सास के बाँझ के ताना ला सुनके मनमाड़े बिफर जावय। कइ पइत पारा-परोसी अउ रिश्तेदार मन के बाल-बच्चा   के बारे मा पूछे ले शेरनी सही गुर्राके झगरा कर डरय।अगर वोकर गोंसइया भला मानुष नइ होतिच त बहुत पहिलीच फाँसी मा झूलके मर जा रहितिच।

पंद्रा बछर के गृहस्थी के बाद तको संतान सुख नइ मिलिच त वो बेचारी के का दोष?वोकर पिताजी ह तो बड़े-बड़े नामी डॉक्टर मन सो इलाज मा लाखों रुपया खर्च तको करिस।सास के कहे मा कतकों बइगा- गुनिया मन के जड़ी-बूटी खाइच, झाँड़-फूँक तको करवाइच फेर गोदी हरियर नइ होइच।

    गाँव मा भयंकर अकाल परिच त डेड़ साल पहिली वो हा अपन पति संग ईंट भट्ठा मा काम करे बर इलाहाबाद आये  रहिस। अभी दसे दिन पहिली वो हा एक झन नवजात नोनी ला धरे हाँसत-कुलकत गाँव लहुटे हे। सासू माँ के तो खुशी के ठिकाना नइये। वो गाँव भर मा अपन दादी बने के खबर ला मिठाई के संग बाँटत हे। आज छठ्ठी के कार्यक्रम रखे गे हे। सगा-सोदर सकलायें हें।

वो लइका काकर ये तेन राज ला सिरिफ भगवान हा अउ कपड़ा मा लपटाय नार-फूल सहित झुंझकुर मा फेंकाये मिले रहिस तेला केवल रामकली अउ वोकर गोंसइया जानत हे।असली महतारी तो अब रामकली हरे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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