Monday, 9 December 2024

गुड़ेरा-गुड़ेरी के झगरा*

 .                   *गुड़ेरा-गुड़ेरी के झगरा*

                                        

                              - विनोद कुमार वर्मा 


( *गुड़ेरा* चिरई ला कोनो जगा *गोड़ेला* चिरई त

     कोनो जगा *बाम्हन* चिरई  घलो कहिथें। )


        एक किसान परिवार गाँव म सुखपूर्वक रहत रहिस। दुनों जाँवर-जोड़ी म बहुत मया रहिस। ओमन के दू लइका रहिस जेमन प्राइवेट स्कूल मा पढ़त रहिन। किसान बड़े बिहन्चे खेत के देख-रेख अउ काम करे बर घर ले बाहिर निकल जाय अउ ओकर घरवाली घर के सबो काम-बूता ला जतन से निपटाय। दुनों लइका मन ला टिफिन-बाटल देके स्कूल भेजे।  कपड़ा-बरतन, झाड़ू-पोंछा, दाल-रोटी कतकोन काम घर के लगे रहे, रेले-रेस कस। फेर लइका मन ला स्कूल भेजे के बाद चिरई मन ला गेहूँ-चावल के दाना, मुर्रा-लाई अउ पानी देना कभू नि भूले। एकरे खातिर ओकर अँगना अउ कोठा के आसपास गुड़ेरा चिरई के दस जोड़ा अपन खोंधरा बना ले रहिन। लइकामन के स्कूल जाय के बाद गुड़ेरा चिरई मन के चीं-चीं के समवेत स्वर-ध्वनि कुछ रुक-रुक के तब तक गूँजत रहे जब तक किसान के घरवाली ओमन के दाना-पानी के इंतजाम नि कर दे।

          सब ठीके-ठीक चलत रहिस फेर एक दिन लइकामन के पढ़ाई ला लेके पति-पत्नी के बीच झगरा होगे। किसान दुनों लइका ला पढ़ाई बर शहर भेजना चाहत रहिस। एक ठिन प्राइवेट होस्टल मा ओमन के रहे अउ खाय-पीये के बेवस्था रहिस- उहाँ बातचीत घलो कर दारिस। ओमन के गाँव ले शहर हा 30 किलोमीटर  दूरिहा म रहिस। किसान के घरवाली ये बात ला सुनके भड़क गीस कि बिना ओकर सलाव के दुनों लइका ला बाहिर भेजे के फैसला कइसे कर लीस? गाँव के सरकारी स्कूल मा 12 वीं तक पढ़ाई होथे..... ओकर कहना रहिस कि आठवीं के बाद दुनों लइका ला प्राइवेट स्कूल ले सरकारी मा डार देबो फेर ओकर बाद कालेज पढ़े बर शहर भेजबो। कम उमर मा लइकामन  शहर के हवा मा बिगड़ जाथें। प्राइवेट स्कूल मा आठवीं तक के पढ़ाई होत रहिस। एती किसान के कहना रहिस कि सरकारी स्कूल म पढ़ाई कंडम हे। इहाँ पढ़ाय ले दुनों लइका के भविष्य खराब हो जाही! दुनों के बीच झगरा अतका बाढ़िस कि बोलचाल ही बन्द हो गे। घर के सबो काम सुचारू रूप ले चलत रहिस फेर दुनों लइका के स्कूल जाय के बाद अउ ओमन के वापिस आत ले घर हा सुन्ना-सुन्ना रहे। सबो गुड़ेरा मन घलो घर के सूनापन ले दुखी रहिन। 

       एक दिन खोंधरा मा एक गुड़ेरी अपन गुड़ेरा ले कहिस- ' मैं तो किसान के घरवाली कोती हों तैं कोन कोती हस?'

        गुड़ेरा जवाब दीस- ' मैं किसान कोती हों। ओहा ठीक कहत हे। पढ़े बर शहर मा लइकामन ला भेजना चाही। '

       एही बात ला लेके गुड़ेरा-गुड़ेरी के घलो झगरा हो गे अउ दुनों के बोलचाल बन्द होगे। कहे घलो गे हे कि खरबूजा ला देखिके खरबूजा रंग बदलथे! दू-चार दिन अइसने गुजर गे। ओकर बाद एक बुजुर्ग गुड़ेरा ओमन ला समझाय बर आइस। गुड़ेरी के गुस्सा अभी घलो कम नि होय रहिस। बुजुर्ग गुड़ेरा सवाल करिस- ' गुड़ेरा ये बता तोला बोट देह बर परही त कोन ला बोट देबे? किसान ला कि ओकर घरवाली ला? '

       ' किसान के घरवाली ला बोट देहूँ! '- गुड़ेरा जवाब दीस। 

       ' अब तो तुमन के झगरा खतम हो गे बेटी। दुनों एके कोती हावव त का बात के झगड़ा! '- गुड़ेरी ला समझावत बुजुर्ग गुड़ेरा बोलिस। 

      ' तैं किसान के घरवाली ला काबर वोट देबे? तैं तो किसान कोती रहे! ' - गुड़ेरी शक के नजर ले देखत गुड़ेरा ले सवाल करिस। 

       ' मैं किसान के बात ले सहमत हौं फेर बोट ओला नि दों! ' - गुड़ेरा जवाब दीस। 

      ' बोट काबर नि देस तेला ठीक से बता? ' - गुड़ेरी फेर सवाल करिस। 

      ' किसान के घरवाली हमन के बहुत ख्याल रखथे। ओकर से मैं बहुत ज्यादा मया करथौं! एकरे सेथी ओला बोट देहूँ! ' - गुड़ेरा के जवाब ला सुन के गुड़ेरी के जी हा कच्च ले करिस!

      ' मोर ले घलो जादा मया करथस का? ' - गुड़ेरी फेर सवाल करिस। 

       ' हाँ, तोर ले घलो जादा मया करथौं! तोला छोड़ देहूँ फेर किसान के घरवाली ला नि छोड़ सकौं! ' 

         गुड़ेरा के जवाब ला सुनके गुड़ेरी बिफर गे।  बुजुर्ग गुड़ेरा ले बोलिस- ' एला बोल दे कि दू हप्ता तक मोर लक्ठा मा झन आही! लक्ठा म आही  त चाब दिहों! बड़ आय हे किसान के घरवाली ला मया करने वाला! दू हप्ता बर एला तलाक देवत हौं! '

.......................................................

No comments:

Post a Comment