बिंसवास
बिंसवास वो दीया आवय। जेकर अँजोर मा मनखे जिनगी भर जगमगावत रहिथे। दसों दिशा मा ओकर सोर होवत रहिथे। बिंसवास के बिना जिनगी अँधियार होथे। बिंसवास ले बिंसवास बाढ़थे, दुश्मन घलो दुश्मनी त्यागथे। बिंसवास मनखे ल महान बना देथे, पखरा ल घलो भगवान बना देथे। जिनगी के रद्दा मा बिंसवास के होना बहुत जरूरी हे।
बिंसवास के बिना कोनों कारज सफल नइ होवय। कोनों भी कारज ल करे के पहिली मनखे ल अपन आप मा बिंसवास होना चाही। बिंसवास ले कतको बड़े संकट ले उबरे जा सकथे। उजड़े दुनिया मा अँजोर लाये जा सकथे। मनखे ईमानदारी से काम करके दूसर के बिंसवास जीत सकथे। जिहाँ बिंसवास होथे, उहाँ सम्मान विराजथे। मनखे ल जिनगी मा सदा बिंसवास के अँचरा ल थामे चलना चाही।
विद्यार्थी जिनगी मा जइसे पढ़ई के महता हे, वइसने पढ़ई मा बिंसवास के घलो बड़ महता हे। बिना बिंसवास के पढ़ई समय बरबादी ही होथे। कतको पढ़ ले याद कहाँ होथे? बिंसवास के बिना कोनों अपन लक्ष्य ल नइ पा सकय। ये बात कभू नइ भुलाना चाही कि बिंसवास सफलता के निसेनी होथे। जउन मनखे के बिंसवास तगड़ा होथे, वो सदा जिनगी मा बाजी मारथे।
बिंसवास मा अइसन जादू हावे कि कतको मुश्किल काम ल सहज बना देथे। तेकरे सेती बिंसवास पात्र मनखे के बात ल कोनों इंकार करे के हिम्मत नइ करे। मालिक के हिरदे ल जीतना हे, तब नौकर ल मालिक के बिंसवास पात्र बनना पड़थे। जेन नौकर अपन मालिक के बिंसवास पात्र बन जथे। वो नौकर के जिनगी मा सुखेच सुख होथे। अपन मालिक बर वइसन मनखे, नौकर नहीं, बल्कि घर-परिवार के एक सदस्य के बरोबर होथे। बिंसवास पात्र मनखे सदा मया-दुलार के हकदार होथे।
संसार मा बिंसवास पात्र बने बर थोरिक समय जरूर लगथे। फेर कहे जाथे न, 'कोशिश करइया के कभू हार नइ होवय।' मनखे ल सदा बिंसवास पात्र बने के कोशिश करना चाही। बिंसवास बहुत नाजुक होथे। थोरिक गलती ले टूट भी सकथे। तेकर सेती सदा ये धियान रखना चाही, कि कोनों भी परिस्थिति में ककरो बिंसवास नइ टूटना चाही।
बिंसवास परिवार अउ रिश्ता के आधार होथे। बिंसवास के टूटे ले घर-परिवार मा झगरा अपन पाँव जमाये ल लगथे। सात जनम तक संग दे के वचन देवइया पति-पत्नी के रिश्ता छिनभर मा टूट जाथे। अच्छा रिश्ता बिंसवास के बिना कभू संभव नइ हे। बिंसवास पक्का होय ले घरेच-परिवार नहीं, परोसी घलो अपन घर के ताला-चाबी ल सौंप देथे। जिनगी मा बिंसवास के मोल होथे, मनखे के नहीं।
संसार मा बिंसवास पात्र मनखे सम्मान पाथे। लोगन मन सदा गुन गाथे। कभू धन के जरूरत पड़ जाथे तब वोला लुलवाये बर नइ परे। हर कोई बिंसवास पात्र के मदद करे बर तियार हो जाथे।मनखे चाहे तो संसार मा सबके बिंसवास ल जीत के सरग के सुख भोग सकत हे, अउ बिंसवास तोड़ के अपन जिनगी ल नरक ले बदतर घलो बना सकत हे।
बिंसवास कोनों दुकान मा नइ मिलय। फेर दुकान ल चलाये बर बिंसवास काफी होथे। ग्राहक ल जब ये बिंसवास हो जाथे कि फलाना दुकानदार अच्छा माल बेचथे अउ वाजिब कीमत लगाथे। तब ग्राहक वो दुकान के नाँव ल पूछत सँउहत चले आथे। दुकानदार ल घलो ये धियान रखे ल पड़थे कि कोन गिराहिक बिंसवास के लायक हे अउ कोन नहीं। बिंसवास के लायक गिराहिक ल ही उधारी दिये जा सकथे। अपन धंधा ल बनाये रखे बर दुकानदार ल बिंसवासी अउ अबिंसवासी मनखे के परख करना जरूरी होथे।
धन के खातिर कभू ककरो बिंसवास नइ टोरना चाही। बिंसवास, धन ले बड़े होथे, धन बिंसवास ले बड़े नइ होवय। धन ल खो के दुबारा पाये जा सकत हे। फेर बिंसवास के टूटे ले दुबारा बिंसवास पात्र बनना बहुत मुश्किल होथे।
बिंसवास के ताला ईमानदारी के चाबी ले खुलथे। तेकर सेती जिनगी मा सदा छल-कपट अउ बइमानी ल तियाग के लोगन मन के बिंसवास जीते के कोशिश करना चाही।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
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