*हरू कइसे पारन?*
पहिली के मनखे मन के विचारधारा हा कतका विस्तृत, सकारात्मक अउ पोठ राहय, आर्थिक रूप ले भले थोरिक कमजोरहा रहितिस फेर सोंच उंचहा अउ जमगरहा राहय...अउ उही मेर आज काल के मनखे मन के बारे म सोंचबे अउ गुनबे ते कतको पढ़ लिख ले हन, आर्थिक रूप ले घलो ओतेक कमजोर नइ हन फेर..कतको मनखे मन के सोंच अउ बिचार धारा आज घलो एकदम संकीर्ण अउ स्वार्थी प्रवृत्ति के रहिथे... आजकाल तो सिर्फ सामने वाला ला कसनो करके *हरू कइसे पारन?* वाले सिस्टम घलो चलत हे लगथे, संगवारी हो...जइसे कोनो पारिवारिक कार्यक्रम में जाय रहिबे ता काकरो काकरो मुहूं ले गोठ सुने बर मिलथे...सामने वाला मन अपन तरफ ले बनेच करे के पूरा पूरा परयास करे रहिथे..फेर...
कुछ खास किसम के प्राणी मन सिर्फ कमी निकाले अउ नीचेच गिराए (हरू पारे वाले बुता)मा ही लगे रहिथे ...अउ एक बात... अइसन किसम के प्राणी मन अपन जइसे प्राणी घलो खोज डरथे...काबर जब तक नइ गोठियाय राहय इंकर मुहुं खजवावते रहिथे अउ इनला आखिर म इंकर जइसे प्राणी मिल घलो जथे...ताहने सोने पे सुहागा हो जथे।
....बर बिहाव हो चाहे छट्ठी होय,चाहे घर पूजा होय या अउ आने कुछु परिवारिक कार्यक्रम मा...अधिकतर सुने अउ देखे मा आथे ता वो हे ...... सामने वाला के चारी निंदा करना अउ सामने वाला ला *हरू कइसे पारन?* वाला हिसाब किताब चलत रहिथे ...ताहने इंकर पुरोगराम शुरू..फलाना ला तो देख..बड़ घमंडी होगे हे लगथे, गोठियावन तक नइ सकत हे..?. इंकर घर में आए हन ता,नइ चिन्हत हे, ते हा बहिरी मा काला चिन्ही ...
ता कोनो अतेक पैसा कहां ले आइस होही ?
ता कोनो वा.. घर ला घलो कब-कब बने बना डारे हे?..
ता कोनो का बुता करथे?
ता..कतको के तो मुहुच फूले रहिथे...
ता कोनो ओकर लइका मन ला तो देख...
ता कोनो...साग ह तो ढल ढल ले हबे...
ता कोनो...नाश्ता तक बर नइ पुछ सकिस ? जी
ता कोनो...लड्डू हा तो ठक ठक ले रिहिस.. दांत घलो टूट जही।
ता कोनो..गुलाब जामुन गठनहा हवय...
ता कोनो..सोहांरी खड़खड़ ले रिहिस ..
ता कोनो...भात ह चिबरी हे..
ता कोनो साग दार धुंगियहा हो गेहे....
ता कोनो.. ओ ..तो.. हमन आएन ता सब सिरागे रिहिस..
ता कोनो दार भात भर ला खाएन...जी
ता कोनो बइठे तक ला नइ किहिस गा अतेक.... हो गेहे...
ता कोनो...वा हमन ला तो देखिस ताहने मुहु ला ओति कर लिस...
ता कोनो नानुक चेंदरी के पुरतिन नइहन...
ता कोनो चिन्ह चिन्ह के देत हे कहिथे...
ता कोनो ठिकाना नइ हे तेला देहे...
ता कोनो, वा..ते जानत हस अपन लइका ला वहादिहां पढ़ात हे कथे...
ता कोनो हमन ला तो फोटू खिंचवाय तक बर नि पूछ सकिस?
ता कोनो.. खाय हस ते नइ खाय हस तक नइ पूछ सकिस जी?
ता कोनो.. हमला तो नेवता दे बर तक नइ आन सकिस, दूसर करा भेजवाय रिहिस...तभो ले हमन आए हन ? ...
ता कोनो... हमर तो पांव तक नइ परिस ...?
ता कोनो...ओमन ला तो देख....(अपन मन भले कार म आय रही) ना फेर... दुसर किराए के कार म आ जाही तहु सहन....नइ होय.….
मतलब जमाना अइसन चलत हे
जो कुछ राहय अपनेच करा राहय...
नौकरी लगे ते हमरेच लइका के..
फस्ट आय ते हमरेच लइका..
बने पहिरे ओड़हे ते हमरेच लइका..
हुसियार राहय ते हमरेच लइका..
संस्कारी राहय ते हमरेच लइका...
सुख के बेरा म मनखे मन गोठियाथे ते गोठियाथे... फेर.. कतको मन .....
दुख के बेरा मा घलो नइ चुके संगवारी हो...
भले अपन मन ,अपन दाई - ददा, सास - ससुर के एको दिन सेवा झन करे राहय फेर बात अइसे करही...जइसे... जानो मानो....भारी....।
बने सेवा जतन नइ होइस नहिते? सियनहा ,सियनहिन मन हा अउ जिये रहितिस...
ता कोनो कहत हे...बने खाय बर घलो नइ देवत रिहिस कहिथे?...
ता कोनो..बने इलाज पानी घलो नइ करइस कहिथे? ...
अउ अइसने गोठियइया मन के घर कोनो हास्पीटल के आस पास रही अउ कोनो भरती हे कहिके कोनो डाहर ले जान डरे रही ना....ते देखे बर आना तो छोंड़िदेव....फोन तको नइ उठावय.....काबर ए तेला उहिच मन जानय....
भले अपन मन एक दिन देखे तक ला नइ आवन सके फेर सामने वाला ल *हरू कइसे पारन?*....
कोनो रिश्तेदार मन कोनो दुरिहा घुमे ल नहिते कुछू आने बुता ले चल दे रहिथे ...अउ इही बीच गोतियारी या नजदीकी मा कोनो बीत जथे, तेन समय के कथा परसंग ला सुनव.....
हमन आवन नइ सकन कहिके नइ काहय? अउ अंदर से आय के मन भी नइ राहय फेर सामने वाला ल *हरू पारना हे* ता कइसे करही? खबर कोनो ना कोनो डाहर ले मिल घलो जाय रही फेर...
आय रहितेन ते...
हमन ला तो खभरेच नइ मिलिस..
एक मुठा माटी ल तो दे रहितेन...
दुख के नेवता म घलो कारड के इंतजार....
कारड मिल जाही ता.. एक घांव फोन तक नइ कर सकिस...
ओतेक जिनिस परिस कहिथे फेर नानुक चेन्द्रा ला नइ जानेन?
मतलब जमाना अइसन चलत हे......अउ कुछ अकन के बात ल सुनहु ते तो मुंहूंच फार दुहू.....
इंकर बात ला सुनहू ते तो....
दुनिया म जानो मानो इंकर छोंड़ कोनो ईमानेदार नइ होही... दूसर मन तो..कुछु जानेच नहीं...... संस्कारी हे...ता इंकरेच परिवार
इन जेन बोलदिन तेने सही हे... इंकर से तो कभु कुछु गलतिच नइ होय...सकय।
मतलब दूसर के सुखी अउ खुशी ला थोरको झेल नइ सकय
फेर अपन आप ले एक घांव कभू नइ पुछ सकय?
कोनो एक घांव नइ काहय?
चल भला पूछ लेथन बिचारा बिचारी मन कहां ले अतेक करत होही?
अतका घलो नइ सोंचय... गोठियावत हन ते बात हा कोनो माध्यम ले ओकर तक पहुंच जाही ता का होही?
कुछु सहयोग के जरुरत रिहिस होही का?
आने...........आने...?
.....................?
अमृत दास साहू
ग्राम -कलकसा, डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)
मो.नं-9399725588
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