जाड़ा
लहर चलत हे ठण्डा के अब, दुबके खटिया राहव जी।
उठ झन जाहव जल्दी संगी, नइते बड़ पछताहव जी।
कथरी कंबल अउर रजाई, ये मउसम के साथी ये।
सूँड लपेटे पटक दिही गा, जाड़ा नोहय हाथी ये।
भले सखा फुसमुहा कहाहव, बइठे खटिया खाहव जी।
उठ झन जाहव जल्दी संगी, नइते बड़ पछताहव जी।
घुर-घुरहा तुम भले कहाथव, जब-जब जाड़ा हर आथे।
पानी छूना अउर नहाना, सोंचत मन हर थर्राथे।
तेल लगाके कन्घी कर लव, कुछ दिन काम चलाहव जी।
उठ झन जाहव जल्दी संगी, नइते बड़ पछताहव जी।
सुरुज देव हर अलसाये हे, आगी तक हर हारे हे।
काल बरोबर हवा चलत हे, निगले बर मुँह फारे हे।
कहूँ जोश मा होश गँवाए, फिर तो बच नइ पाहव जी।
लहर चलत हे ठण्डा के अब, दुबके खटिया राहव जी।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाजार
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