Monday, 23 September 2024

गाँव के बेटी रानी - कहानी -------------------

 गाँव के बेटी रानी - कहानी

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रानी बहुत ही खूबसूरत रहिस हे। नाव रानी रहिस हे वइसने राजकुमारी असन.दिखय। नाक नक्सा परी कस रहिस हे। रानी के बाबू ओखर जनम के पहिली ही ट्रैक्टर ले गिरके मर गे। परेमा याने रानी के माँ पहिली ले थोरिक कमती बुद्धी के रहिस हे बाद म सदमा के कारण थोरिक झकली असन होगे। ओखर देखभाल गाँव  के मन.ही करत रहिन है। परेमा अपन बेटी ल बहुत मया करय। गोबर कचरा करना अउ साग भाजी टोरे के अलावा कुछू दूसर काम ओला आवत नइ रहिस हे।


रानी ह अउ लइकामन संग आँगनबाड़ी जाये ले लगगे। बाद म स्कूल भी गीस। देखत देखत पाँचवी पास होगे। महतारी के मया म काम बूता नइ करय। ओखर संग म अरुण कुमार शिक्षक के बेटी घलो पढ़त रहिस हे। परेमा ह बेटी के स्कूल म जाके बइठे राहय। छुट्टी होवय त संग संग म रेंगत आवय। घर आगे आगी सिपचावय अउ रांधय। परेमा के मन राहय त बढ़िया साग रांधय नइ त पेज पी के रहि जायें। अरुण कुमार के बेटी नीरा बने संगवारी बन गे रहिस हे। पांचवी के बाद दूसर गांव म पढ़े बर जाना रहिस हे। गाँव म पाँचवी तक ही रहिस हे।


परेमा ह सांझ कर ककरो घर.दूवारी ल बाहर देवय ककरो घर के साग भाजी सुधार देवय त कुछ जिनिस नइते पइसा मिल जाये। ओकर जेन भी जरुरत होतिस तेन ल गाँव के मन पूरा कर देवंय। रानी के फीस ,पुस्तक कापी अउ डरेस के जुगाड़ अरुण कुमार कर देवय। गांव के मन घलो रानी ल कपड़ा दे देवंय। अब रानी दूसर गाँव म पढ़े बर जात रहिस हे।


परेमा ह बेटी के पाछू पाछू ओकर स्कूल चल देवय।छुट्टी के होलत ले बइठे राहय। ओ ह बेटी ल छोड़बे नइ करय। एक दिन गौटिया कहिथे--" परेमा तोर बेटी बाढ़त हावय, बही का़ही कुछु कर अउ पइसा जमा कर, बेटी के बिहाल करबे के नहीं? दिनभर किंजरत रहिथस। मोर घर के बूता ल करे कर मैं पइसा देहूं।" परेमा ह " हाँ" कहिथे फेर काम म कभू कभू जाये। बेटी ल छोड़बे.नइ करय। अब रानी दसवीं पास होगे। दिन के स्कूल म खाना खावय अउ रात के भरोसा नइ राहय। रानी समझदार होगे रहिस हे। रात के कभू रांधय तेन ल मोला भूख नइ लागत हे कहिके माँ के बिहनिया खाये बर रख देवय। माँ ल बिहनिया खवा देवय। माँ ह ओला खाले कहिके बइठे राहय त रानी काहय "मैं स्कूल म खाहूं।" कभू कभू स्कूल के मन ल दया आवय त परेमा ल घलो खाना दे देवंय।


बाढ़त रानी के चिंता अब सब गांव के मन ल होय ले धर लीस। एक दिन गौंटिया ह अरुण कुमार ल कहिथे --" मास्टर जी अब रानी के बिहाव करना हे। बेटी बाढ़त हावय। गाँव के बेटी तो हमरे बेटी आये। जमाना ठीक नइये , माँ ह तो बही आये कुछु समझय नहीं।" 


अरुण गुरुजी कहिस -" नहीं दाऊ, अभी रानी छोटे हावय। ओला पढ़न देथन। रानी बहुत होशियार हावय। ओला बारहवीं करन देथन। ओखर पढ़ाई के खर्चा ल तो मैं देवत हावंव। ओखर बर कपड़ा लत्ता के कमी नइये गाँव के मन देवत रहिथें।"


दाऊ कहिस -"हाँ, ये बात तो सही हावय,ठीक कहिथस मास्टर जी रानी ल बारहवीं करन दे। दूसर डाहर लड़खा गोजत रहिथन।"


अरुण गुरुजी कहिस--" हाँ, दाऊ बने बात आये। बेटी के जात येला जादा दिन ले नइ राखन, अब ये हर हमर गाँव के जिम्मेदारी आये। अब येला मोर घर में ही राखहूं। नीरा संग रहिही अउ मास्टरिन संग काम बूता सिखही। जमाना ल देखत हुरे ये अब रात के ही अपन माँ संग घर जाही।"


देखत देखत रानी बारहवीं पास होगे। मास्टर जी ह रानी के गोठ ल कइ झन तीर गोठियाये रहिस हे। रानी के रिजल्ट आथे अउ ओखर पहला आये के समाचार सब जगह बगर.जथे। एक दूहर.गांव के मास्टर.ह अरुण कुमार जी तीर आथे अउ कहिथे--" देख गुरुजी मैं ह रानी के चर्चा सुनज हावंव, मैं रगनी ल बहु बनाना चाहथंव। जातपात ल मैं.नइ जानंव। मोर बेटा इंजिनियर हावय अउ निको म काम करथे।  मोला अइसने बेटी चाही जेन ह बेटी के रुप म रहि के हमर चर के बेटी के कमी ल पूरि खर देवय। तूमन सोच लेवव। बिहाव के खर्चा मोर डाहर ले रहिही नहीं त मैं अइसने बेटी ल बिदा करके लेग जहुं। भइगे मोला बहु बेटी के रूप म रानी चाही।"


अरुण कुमार ह ओला ले के दाऊ घर गीस। गाँव के चार झन ल अउ बलाये गीस। सब झन तय कर लीन के रानी के बिहाव धूमधाम से होही। अरुणकुमार ह कहिथे के मैं ह रानी के कन्यादान करहूं। सब खुश होगें। परेमा ल बलाये गीस अउ सब बात ओला बताये गीस। परेमा के रोना शुरु होगे --" मैं गरीबिन कइसे बिहाव कर सकथंव। अतेक बढ़हर घर म मोर बेटी कइसे रहिही? " दाऊ कहिस --" सरि दिन तो मास्टर घर म रहिके सीख गे हावय। बिहाव ल गाँव के सब झन मिल बांट के करबोन।"  


ये बात ह हवा कस बगर गे। सांझ कन सब गुड़ी म सकलागें। रानी के बिहिव बर सब कुछु न कुछु देय बर तइयार होंगे। दाऊ कहिस --" हमर गाँव के " रामकोठी" म  बीस गाड़ा धान सकलाये हावय। असो के छेरछेरा के सकेला ल हमन रानी के नाव ले करबो। ये सकेला रामकोठी म जाही। इही धान के पइसा ले रानी के बिहाव होही। ये रामकोठी के आसिस आये रानी बेटी ल।" सब झन खुश होगें। अभी तो जेठ के महिना चलत हावय। पूस के आत ले हम सब झन तइयारी घलो करबो अउ रानी ल कुछु सीखो घलो देबो। अभी तो घर गिरहस्थी ल जानय नहीं। इही सोच के संग बइठक उसल जथे।


रानी ल मितानिन ह सिलाई सिखोवत रहिस हे। गाँव के मन अपन आपन कपड़ा धागा लान के देवत रहिन हे। छः महिना म बने सीख गे। अब रोज बिहनिया परेमा दूनो अपन घर के बुता करके मास्टर जी घल आ जायें। परेमा ह घर बुता करय अउ रानी ह खाना बनावय। मास्टरिन ह कुछु न कुछु नवा नवा सिखोवय। सब झन संग म खाना खावंय। बरतन साफ करके परेमा ह दूसर डाहर चल देवय। रानी ह सिलाई सीखे बर चल देवय। कुछ लइकामन ल एक घर म सकेल के पढ़ावत भी रहिस हे। चार पांच बजे तक रानी ह आवय। परेमा अपनी बेटी तीर दू तीन चक्कर लगावय। रानी ओला अब नाव ले ले के सबके घर भेजय जेमा थोर बहुत काम करय। सांझ कन बर साग भाजी चाऊर दार मिल जाये। परेमा कोनो मेर ले लकड़ी घलो सकेल लेवय नइ मिलय त मांग लेवय अउ सांझ कन घर म रांधय। रानी ह मास्टर घर रांध के अपन घर आ जाय। दूनो माँ बेटी घर म रांध खा के गोठियावत सुत जांय। रात के भी रानी ल अपन संग म सुतावय। 


देखत देखत छेरछेरा के तिहार लकठियागे। अगहन भर बिरस्पत के पूजा म रास के कोठी म रखे म समय ह पहागे। एक महिना पहिली ले सब रानी के बिहाव के तइयारी म लगगे। का देना हे येला सब आपस म तय कर लीन। 


छेरछेरा के दिन सबके दूवारी लिपाये रहिस हे। सब घर सियान मन.दान करे बर धान ल निकाल के रखे रहिन हे। नहा के तइयार होगे दाऊ के अगवानी म गाँव के मन छेरछेरा माँगे बर निकलिन। सबले पहिली तो गौटनिन ह दिस। एक बोरा धान। मास्टर घर मास्टरिन ह ग्यारह ठन लुगरा दिन अउ एक दौंरी धान दिस। कुछ मन तो दार ,मसरी,वचन म दिन। मंझनिया तक तो गंज अकन जिनिस सकला गे। पइसा घलो सकला गे। सब झन तय करे रहिन हे के कोन काये दिही तेकर घोसना कर दिन। दाऊ घर गौटनिन ह गला के हार दिस। छेरछेरा म अइसना सकेला तो कोनो देखे नइ रहिस हे। सांझ कन सब दाऊ घर बइठ के चाय पीन। अउ तय करिन के अक्ती के भांवर परही। ये सब बात ले अंजान रहिस हे परेमा ह। रानी कुछ कुछ समझत तो रहिस हे फेर अकबका गे रहिस हे " काये होवत हे?"


रानी ह छै महिना म अन ब्लाऊज मन सिल डरे रहिस हे । सब झन पहिली ले ओला लुगरा ल दे दे रहिन हे सब ल ताइयार करत गीस अउ मास्टरिन ह एक कुरिया म सकेलत गीस। टिकावन बर अपन बिहाव के हंडा ल निकाले रहिस हे। ओला उजरा दिस। 


अक्ती के एक सप्ताह पहिली ले सब तइआरी सुरु कर दिन। घर ल जेवनासा बना दिन अउ परसार म बिहाव रखिन। परसार बहुत बड़े रहिस हे। उहां पांच छै ठन कुरिया भी रहिस हे। गाँवे के मनखे मन के कइ झन रिस्तेदार मन घलो आ गे रहिन हे। ये अनोखा बिहाव के चर्चा चालो डाहर होगे रहिस हे। सब टिकावन धर के देखे बर आये रहिन हे। हर कोई रानी के मइके वाला बनना चाहत रहिस हे। कंड़रा घर ले पर्रा बिंझना आगे। मड़वा बर बांस आगे। कुम्हार घर ले नांदी दीया करसा आगे। नाऊ घर से आम के पाना पतरी आगे। बड़ाई ह मंगलोहन बना दिस। एक टुकनी लाई आगे।चुल्हा बनगे ,चूल बनगे। बिहनिया ले तेल हरदी चढ़ाये के शुरु करिन। गांव के सात झन बेटी मन तेल चघाये बर आगें। दाऊ के बहिनी बिहनिया पहुंचगे अउ अपन भौजाई ल पुरोवत रहिस हे, "मोला नइ बलायेस?" मैं फूफू आंव। परेमा ह चुप देखत रहिस हे। ओला ये तो समझ म आवत रहिस हे के रानी के बिहाव होवत हे बाकी सब कुछ सून्य रहिस हे। अब तो परेमा मड़वा तीर म बइठ गे। चुपचाप सब देखत रहिस। अब तो रानी के फूफू घलो रिस्ता म बंधागे। सब झन हरदी चघाये म लगे रहिन हे। तीन बजे बारात आ गे। दाऊ के घर म जेवनासा रहिह हे सब उहें रहिन। बढ़िया फ्रूट सलाद अइरसा, जलेबी भजिया खाये बर रखे रहिन हे। मास्टर अरुण कुमार ह सेवा म लगे रहिस हे। समधी जी ह ये सब ल देख के बार बार काहय काबर अतेक करे हव?


सब नास्ता करके आराम करत रहिन.हे। येतिबर रानी के नहडोरी होवत रहिस हे। नहा के चुकचुक ले पिंवरी लुगरा पहिर के तइयार होइस। पिंवरी ल बड़े साव घर दे रहिन हे। बढ़िया गोटा लगे रहिस हे। जेवर पहिर के तइयार होगे। दाऊ घर के नेकलेस, मास्टरिन घर के पायजेब,  छोटे गौंटिया घर के कान के झुमका, महराजिन घर के हाथ के चाँदी के कड़ा पहिर के रानी ह राजकुमारी असन दिखत रहिस हे। 


पूरा गाँव के खाना दाऊ घर ही रहिस हे। ककरो घर के साग भाजी त ककरो घर के दार, हरदी ,धनिया, सरसों ,मिरचा तक गाँव के रहिस हे सिरिफ नून ल ही खरीदे रहिन हे। सब खाना खा के बराती मन के सुवागत म लगे रहिन हे। दाऊ ह समधी भेट करिस ओकर बाद गाँव के मन भेट करिन। बहुत झन.नवजवान लड़का के साथी म ये अनोखा बिहाव ल देगे बर आये रहिन हे। अतेक इंतजाम देख के सब अचरज म रहिन हे। बराती मध सत्तर झन रहिन.होही।


समधी बलाव होइस। समधी मन डाहर के जेवर कपड़ा चढ़ाव म अइस। सब देखत रहि गें। नेकलेस, कान ए टाप,अंगुठी, कंगन, करधन, पायजेब आये रहिस हे। सुग्घर बनारसी लुगरा आये रहिस हे। पहिरा के रानी ल मड़वा म लानिन त सब देखय रहिगें। गोरी नारी सुग्घर रानी के सुंदरई अउ बाढ़ गे रहिस हे। वर बुलाव होइस। दूनों झन मड़वा म बइठ गें। बिहाव के मंत्र पढ़े गीस। भांवर बर उठिन त सब देखत रहिगें। राम सीता कस लगत रहिन हें। भांवर सुरु होइस। अंजली भरे बर सारा बलइन त कइ झन लड़का मन आगे।.महराजिन के बेटि कहिथे " मै भरत हंव जी, तूमन सब झन मोर कांध म हाथ रखे राहव। " वइसने करिन। लड़का मन एक के बाद कंधा म हाथ रखत लाइन लगा लीन। अरे बीह झन लड़का खड़े रहिन हे। रान के बरोबर के गांव के सब लड़का भाई बन के खड़े होगें। बराती मन खड़े होगे देखे बर। हर फेरा के बाद लाई भरत जायें अउ विछोव ल सुरता करके उदास होवत जायें। रानी ल कभू लड़का मन संग हंसी मजाक करत कोई नइ रहिन हे, आज सब भाई बनके खड़े हावय। माँग भराये के बाद रानी ल लगिस के अब गाँव छूट जही। ओकर आंखी म आँसू आ गे। फूफू दाई कहिथे " तोर मइके नइ छूटय बेटी झन रो। दूरिहा नइ गेस, तीर म हावस सब तोर ले मिले बर जाहीं।"


टिकावन म दाऊ घर के हंडा राहय त बड़े साव घर के कोपरा, महराज ह पचहर देथे। गांव भर के मन अपन बिहाव के टिकावन में के जुन्ना बरतन ल रानी ल चिन्हा समझ के देथें।गाँव म सगाये मनखे मन भी टिकावन टिकथें। छेरछेरा म आये नगदी अउ मड़वा म आये.नगदी ल मिला के दू लाख हो जथे। मास्टर जी ह समधी ल देथे त समधी ह कहिथे " मैं ये पाइसा ल नइ रखंव येला रानी के नाव म खाता खोल के जमा कर दव। वक्त जरुरत म काम आही। अतेक बरतन ल हमन काये करबो समधी जी। हमला तो बेटी भर चाही।" दाऊ ह कहिथे " ये हमर गा्व के मन के मया आये। येला तो लेगे बर परही।"  सब रात भर गोठियावत रहिथें। तीन बजे राय के बिदा के तइयारी होथे। चाऋ बजे बेटी बिदा हो जथे। गांव भर म सन्नाटा छा जथे।


बिहाव पूरा हो जथे। ओ मन ल देवता के पांव परे बर लेखथें। ओकर बाद परसार के बर के रूख के पांव परवाथें। दाऊ कहिथे। " देख बेटी ये रूख ल देख ये गाँव ह पूरा रूख आये जेकर छांव म तंय पले बढ़े हस. येला कभू भुलाबे झन। अइसने कइ ठन रुख तइयार करबे,अउ अपन जीवन ल बर के रुख सरिख बनाबे जेकर छाया म कइ झन राहंय।"


रात के सब खाये बर बइठथें। उही बेरा म परेमा ह उठ के रानी ल खोजथे। एक झन ह ओला रानी तीर पहुंचा देथे। रात के फेर उही तीर म सुत जथे। रानी घलो खाना खा के थोरिक देर सुत जथे। परेमा भीड़ म रानी ल देखय भर ,तीर म जादा देर नइ राहय। बिहनिया बिदा हो जथे।


परेमा बिहनिया उठथे त बिदा होये के बाद म  कहिथे। मैं कइसे जाहुं।"  तै अभी सुत बिहनिया बताबो " कहिथे गौटनिन ह। परेमा अपन घर चल देथे। घर ल लीप बहार के दाऊ घर आथे। दाऊ ल कहिथे --" कोन मेर हावय रानी के घर ह? मोला अमरा दे। ओकर संग म रहिहूं।" गौटनिन निकलथे अउ कहिथे -"बही रानी के बिहाव होगे हावय अब ओ ह अपन ससुरार चल दिस। ये गाँव तोर ससुरार आये।तैं इहां रहिथस न वइसने रानी अब अपन ससुरार म रहिही। तीजा म ओला लानबो।" 


परेमा खड़े होके चुप सोचत रहिथे फेर कहिथे -" त मैं कहां जांव?"  गौटनिन कहिस " परेमा तैं मोर घर अउ मास्टरिन घर बुता कर अउ खाना खा। रात कन अपन घर म सुते बर जा। काबर के ओ ह रानी के माइके आये। बने लीप बहार के घर ल साफ रख। परेमा धारन ल धरे खड़े रहिस।गौटनिन अपन बुता म लगेगे। गाँव के सगा मन बहुरगें। सबके मुंह म एके बात अइसना बिहाव तो जिनगी म न सुने रहेन न देखे रहेन। रानी अपन गाँव घर के सुरता ले के अपन घर चल दिस। छेरछेरा तिहार के महिमा ल सोचत सोचत रानी बिदा होगे।

सुधा वर्मा

12/1/2014 म देशबंधु म प्रकाशित

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