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*छींट -बूंद/नान्हे कहिनी*
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*(बड़े मनखे मन के बर बिहाव म लाख - करोड़ के खरचा अउ छोटे मनखे मन के बिहाव म सब नेंगहा जोगहा।फेर बिहाव तो बिहाव होथे,उमा अउ महेश के मिलन होथे। अउ सबो बरतिया मन उमा महेश के गण ही तो आँय। वो बरतिया वो उमा महेश के गण मन बर, एक एक दोना छींट बूंद (रंगीन बुंदिया अउ सेव्) के व्यवस्था बनात बई के गाथा।)*
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कइसन भी कर के बेटी के हाड़ा म हरदी चढ़ जाय...गुनत हे बेलमती । फेर काली बरतिया आहीं, तेमन बर कुछु करेच बर लागही । सब बरतिया मन ल ओनहा- पटकु, कपड़ा लत्ता भेंट तो करे नई सकही, तब कम से कम वो मन ल एक जुवार नून -पसिया पियाही अउ आते साथ जलपान बर दिही एक -एक दोना छींट -बूंद ।
" पहारू बेटा ! बनत हे ग तोर बुंदिया हर?"बेलमती पूछिस ।
"हाँ, बई बनत हे , बढिया बनत हे ।"पहारू हलवाई ओझी दिस ।
"बेटा, एको घाना बने बट बट ले गोड़ रंगी, रंग ल दे के बना दे न ।"
"काबर ओ बई..."
"येकर ले छींट -बूंद नई बन जाही बेटा, तोर बुंदिया हर । जानतेच हस तब ले पूछत हस तँय !"
"गोड़ रंगी रंग हर महुरा ये, ओ बई !छींट- बूंद बनाय बर मंय खाय के रंग अलग धरे हंव ।"
"बढिया बेटा, कुछु भी कर , फेर तँय छींट-बूंद भर बना दे ।बने सुघ्घर लागथे ग वोहर देखे ले ही ।"बई तो लहरत कहिस ।
"अच्छा तँय ये बता , कोन -कोन रंग के बना दँव?"
"बस बेटा, लाल अउ हरियर !गोटेक- खाड़ेंक भर दिखत रहें लाल अउ हरियर बूंद मन ।"बेलमती कहिस ।
छींट बूंद बन के सकिस ।पींयर पींयर बुंदिया के दाना बीच बीच म हरियर अउ लाल दाना ।
"छींट- बूंद ल का होही बई ?" पहारू हलवाई घलव तो एक नम्बर के बेलबेलहा ये ।
" एक एक दोना छींट- बूंद बरतिया मन खाहीं ..."
"अउ का ?"
"अउ का बेटा ! अशीष दिहीं , वो सब मन तो देवता रूप, गण- रूप आँय न उमा -महेश के !"
"पक्का बई ?"
"हाँ, बेटा !"
"कतेक अशीष दिहीं बोमन ?"
"वोतकी,जतका तोर बनाय ये परात भर के छींट -बूंद मन हांवे !" बेलमती कहिस ।
अब पहारू हलवाई देखिस - वोकर बनाय ये छींट -बूंद मन तो उमा -महेश के गण मन के भोग यें !
*रामनाथ साहू*
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