नान्हे कहिनी *" ऊरई "*
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एकठन छोटकुन गांव कापूभांठा डोंगरी के खालहे म सुग्घर बसे हे जिहांँ सुमता के डोरी हर तुमा के नार असन लामे हे, मया-दुलार के धार खल-खल बोहावत रहे।खेती-किसानी के बूता ल एक दूसर ले ओसरी-पारी सफंरीहा करंय।गाँव म धरम-करम के कामो घलो होवै कभू राम सप्ताह त कभू नवधा रामायन अउ दही कांदो तको होवत रहय।दुर्गा-दसेरा,देवारी अउ तीज-तिहार ल घलो बड़ उछाव ले मनांवय।गाँव म पुलिस केस कभू नी होईस नानमून लड़ई-झगरा गाँवेच म निपट जातीस।कोनों थाना-कछेरी के मुहांटी तको नी खुंदे रहिन।गाँव म तरिया,नरवा,पयठू अउ कुआँ-बवली पानी के जरिया रहय।पनपीया तरिया के फिटींग पानी पोरिस भर ले भुइँया ह रग-रग ले दिख जावे जिहाँ पुरईन पान अऊ कमल के फूल म कतका सुग्घर दिखय कोकड़ा उड़ियावत,पनबुड़ी चिरई मन पानी म तउँरत रहे त कतका बढ़िया लागय।मंझनिया तरिया पार म बइठ के सुग्घर जुड़-जुड़ हवा लेवत पहा जावे गम नी मिले।देख के छाती घलो जूड़ा जावय।
जइसे बस्ती ले बाहिर निकलते त खेत-खार सुतिया,लमरी डुमराही,पीपराही,बसकट्टी माझांखार म ढेल-ढेलवानी, डोली,भर्री बाहरा मन म धान अउ ओन्हारी के भरमार रहय।गाँव के बरछा म सबोझन के कुसियार लगे रहय,कुसियार ल चरखा म पेर के बड़का कराव म गुड़ घलो बनावंय। धरसा म गाड़ा-पीढ़ा के रेंगान रहय। गाँव म मोर जानत ले कभू दुकाल नी परीस।अमरइया म कोईली के कुहू-कुहू सुग्घर गीत के सातो राग ह सुनावत रहिथे।मन बड़ नीक लागत रहिथे।अइसन सुम्मत के सुग्घर गाँव कापूभांठा कहत ले छेद ये।
उही गांव म दुखू ठेठवार ऊँचपुर,मेछा अंटियाय,दोहरी काठी के अउ मुड़ी म पागा बांधे तेंदू के जबड़ लउठी धरे घेंच म चांदी के माला पहिरे रहय। जबड़ भड़हां लिखरी गोठ करय त भंड़े बिना गोठेच नी निकले।वोकर गोसाईंन दुखिया निचट दुबर पातर राहेर कांड़ी कस देंहे फकफक गोरी अउ सतवंतिन वोकर एकेच झन लइका नानचूक गेदा टेंगनू रहय।दुखू ठेठवार रोज गाँव के गरुवा मन ल चराय बर जंगल कोती ले जावय अउ संझवाती बेरा म सबो गरुवा मन ल सकेल के गाँव लेके आवय अइसने रोजेच के बूता रहे। एती वोकर गोसाईंन ह गँवटिया घर के पानी भरे के बूता करे।एकर ले दू पइसा मिल जाय त घर के खरचा चलत रहीस।एती टेंगनू अपन संगी जहुँरिया मन संग खेलकूद के दिन ल पहावय अइसन वोमन के जिनगी पहावत रहिस।
समे बरोबर नी रहे कभू घाम त कभू छाँव कभू सुख त कभू दुख एहर ओरवाती के छइँहा आय कतका बेर का हो जाही तेकरो ठिकाना नी रहे।अइसे ढंग ले एक दिन दुखू ठेठवार गरुवा चराय जंगल कोती गे रहिस एकठन रुख के छइँहा म सबो गरुवा ल ठोके रहिस अउ अपन ह रुख के तरी म बइठ के बंसुरी ल बिधुन होके बजावत रहिस।अलहन ह गोड़ तरी म रथे।एकठन सांप ह आके दुखू ठेठवार के तरपवां ल चाब दीस।वोकर देहें भर जहर ह चढ़ गीस बस भइगे अउ थोरिक बेरा म वोकर परान ह वोइच मेर निकलगे।देहें ह करा कर ठरत रहे।
एती गांव बस्ती म चिहुर परत रहे आज दुखू ठेठवार गरुवा लेके कइसे नी लानत हे।अपन-अपन घर ले सबोझन घर के मुहांटी ले झांक -झांक देखे के आज अतेक बेर होगे गरुवा मन ल चराके कइसे नी लानथ हे।एती मुंधियार होवत रहे।दू-चार झन मन देखे बर निकलीन संगे-संग अउ संघरा होवत बनेच झन होगीस। सबो जंगल डहर जाय बर धर लीन। गरुवा मन के सोर ल सुनके वोमेर सबो पहुंचीन त रुख तरी दुखू ठेठवार के देहें परे रहे।हाथ के नारी ल छू-छू के देखिन त कोनों अपन कान ल वोकर छाती म मढ़ाके देखिन।वोकर सांसा नी चलत रहीस नारी जुड़ा गे रहीस।वोकर मुहूंँ मेर गेजरा ल देख डारिन अउ समझे म चिटिकोन समे नी लागीस।
कइसनो करके दुखू ठेठवार के लहास ल लानीन।कोनों गरुवा ल खेदत लानिन।लानत ले मुंधियार होगे रहिस मनखे मन चिन्हात नी रहीन।दुखिया के ऊपर तो दुख के पहार टूटे रहिस।वोकर लइका टेंगनू गेदा रहिस त का जाने बपुरा।दुखिया ल करलाई होगीस पारा के मन आइन दुखिया ल समझा बुझा के चुप करइन कोनों कहत रहिस एतकेच दिन बर आय रहिस त कोनों करम के लेखा ऊपर दोस देवत रहिस।कोनों सादा धोती ओढ़ावत रहीन सबो कें आँखी ले आंँसू के नरवा ह बोहावत रहीस।बिहनिया बेरा गांव के पारा के अउ नता-गोता मन आके सकलइन अउ वोकर किरिया करम करे के संजोरा करे लागीन।तहं ले चार झन दुखू ठेठवार के लहास ल बोह के गांव के बाहिर अमरइया म सुपारी आमा के तरी मरघटिया म ले जाके वोकर किरिया करम करके घर आगीन।घर म गोलहत्थी चुरे खवइन अउ फेर दस दिन बाद म दसनहावन घलो होगे।
एती बिचारी दुखिया के दुख के गठरी बंधाय रहिस वोकर जिनगी अँधियार होगे।।जेला काँटा गढ़ही वोकर मरम ल उहीच जानही।धीरे -धीरे दिन महिना अउ साल पुरत गीस थोरिक दुख ल भुलाके काकरो बनी भूती करत अपन अउ लइका के पेट भरत रहीस।कमोइया बिना वोकर दू खांड़ी के भर्री डोली परीया पर गे रहीस किसिम-किसिम के बंद-बुचरा आनी-बानी के काँटा-खुँटी जाम गे रहीस।
टेंगनू के लइकई समे रहीस अपन संगी जहुँरिया संग खेलय कूदय।अपन ददा के मरे के सुरता नी रहिस कभू-कभू दाई ह सुरता करा देवै त आंखी ह डबडबा जावे।एक दिन पारा म अपन संगता के घर म खेलत रहीस त उही समे म वोकर घर पहुना आईस त खई-खजाना धर के आय रहीस।खई-खजाना ल बाँट के खावंय त टेंगनू घलो ल दे देवंय।पारा म दूसर संगी के घर म पहुना आवय त उहों खई-खजाना धरके लाने रहय तेन ल बाँट के खावय अउ टेंगनू ल घलो देवंय।
हमर घर पहुना काबर नी आवंय टेंगनू ह एक दिन मन म सोचिस।हमरो घर पहुना आतीस त महूँ बने खई खाय बर पाते।हमर घर पहुना काबर नी आवय टेंगनू ह अपन दाई ल एक दिन पूछिस।हमर पहुना मन भर्री डोली के ऊरई तरी म हांवे,दाई ह अपन दुलरु टेंगनू ल कहिस। तैं जाके रोज खनबे तंह ले पहुना मन बाहिर निकलहीं।
*जेन मंजिल ल पाये के लालसा रखथे वोहर समुद्र म घलो पखरा के पुलिया बना डारथे* बिहिनिया होइस तहं ले टेंगनू अपन दाई ल कहीस अऊ गैंती रांपा धरके भर्री डोली कोती जाय ल धर लीस अऊ डोली ल खने के शुरू करीस।माटी ल खन के मेंड़ म करत गीस त डोली के मेड़ चाकर अऊ ऊंच होगे।देखते-देखत म परीया परे डोली ह बाहरा खेत बनगे।खेत म धान बोईस अऊ मेंड़ म राहेर।धान के बढ़वार होईस पानी ह समे-समे पुरोदीस त धान घलो पोठ होईस ओन्हारी घलो उतेरिस।हर साल देखते-देखत म कोठी भरे रहय जम्मो जिनीस के उपजे ल धर लीस।फेर टेंगनू के घर म पहुना आय के शुरू होईस।हमर पहुना मन ऊरई तरी लुकाय रहिन महतारी ह अपन दुलरु टेंगनू ल कहीस। *सफलता के दीया मिहनत ले बरथे*।
✍️ *डोरेलाल कैवर्त*
*तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*
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