Monday, 23 September 2024

तरिया के बेंदरा-बिनाश महेंद्र बघेल

 तरिया के बेंदरा-बिनाश  

                          तरिया के बेंदरा-बिनाश  

                          महेंद्र बघेल                


विज्ञान के कहना हवय कि खेत-खार , डोंगरी-पहाड़ अउ हरियर-हरियर पेड़-पौधा वाले धरती के आज के सरूप ह ब्रह्मांड म अँगरा कस दहत आकाशीय पिंड के करोड़ो बरस म धीरे-धीरे ठंडा होय के कहानी आय।त इही धरती म मनखे के समाजिक प्राणी होय के पाछू कतको जीव-जंतु के बीच म अपन अस्तित्व ल बचाय खातिर लाखों बरस के इतिहास म ओकर विकास के संघर्ष यात्रा आय।सबे जीव-जंतु ल जिंदा रहे बर  साफ हवा, पानी अउ जेवन के जरवत पड़थे, येहा उनकर जरवत के पहिली चीज-बस आय। ये दुनिया म जस-जस विकास के दायरा ह बढ़त गीस तस-तस जरवत के सूची ह घलव लमियावत गीस। गुनवान अउ बुधियार मनखे मन के कहना हवय कि मनखे के शरीर म धरती कस तीन चौथाई भाग म जल विदमान रहिथे।मनखे ल पीये बर,पकाय बर, सिंचाई बर,धोय-माँजे बर अउ नहाय-खोरे बर पानी के जरवत पड़बे करथे। मने जल हे त जीवन हे। एक जमाना म नरवा-ढोड़गा, तरिया-नदिया म लंगोटी पहिरके दफोड़-दफोड़ के नहाय के अलगे आनंद रहिस।नदिया-नरवा के कलकल-छलछल सलँगत निरमल पानी म छलांग लगाके पनबूड़ी कस तऊँरे बर काकर मन नइ होत रहिस होही भला। देखते-देखत लइकामन के तरिया म आल-पाल नाहके के देशी कला ह उही तरिया म ठंडा होवत जइसे कल के बात होगे। समय के चकरी अइसे चलिस कि आजकल माडर्न माई-पीला मन तऊरन सूट पहिरके तऊरन तरिया (स्वीमिंग पूल) म तऊरे के एकतरफा सांस्कारिक मजा लेवत रहिथें।

                    पियासे मनखे ल ठऊँका समय म पानी नइ मिल पाय तब ओकर टोंटा ह सूखाएच ल धरथे,चोला ह बड़ बियाकुल हो जथे। अइसने कहुँ धरती ले पानी ह एकाध महीना बर अटा जाय तब का होही तेकर कल्पना करेच म हाड़गोड़ा मन काँप जथे।बिन पानी के जीव-जंतु के जिनगी ह धारेधार बोहा जही।धरती के चारो मूड़ा म त्राहि-त्राहिमाम मच जही।जेठ-बैसाख के लकलकउवा घाम, तीपत भोंभरा, झरझरउवा झाँझ अउ तन-बदन ल उसनत गरमी के पाछू जब असाढ़ के महीना म मानसून ह बरखा ल धरके लाथे। तब दर्रा हाने धरती ह बरखा रस ल सपसप-सपसप ससन भर पीयत अंतस के जम्मो खुशियाली ल अपन कोरा म अंगोट लेथे।उसनत गरमी के आशीर्वाद ले मनखे-मनखे के पेट-पीठ, मुड़ी-कान म अकाश के चंदैनी कस छबड़ाय घमूर्री ह अपन परिवार के बढ़वार बर जोखत रहिथे।एती घमूर्री म लसखाय भुगतमानी मन घमूर्री के परिवार नियोजन करे बर बरसाती पानी म कूदकूद के नहावत गोदगोदा के खाल्हे म अपन पेट-पीठ ल छेल्ला ढील देथें।

               बरखा के पानी ले प्यास बुझावत धरती ह अपन कोरा म तरिया, कुआँ, बावली अउ बाँध-बँधिया ल समोख के राखथे।जम्मो जगत के प्यास बुझाय बर उही पानी ल नदिया-नरवा के माध्यम ले समुद्दर डहर घलव पठो देथे।एक जमाना म तरिया,कुआँ अउ बावली ले मनखे मन के निस्तारी होवय।आजकल घरोघर म नल-जल के सुविधा होय के सेती कुआँ अउ बावली के नाम म सिरिफ ओकर सुरता ह बच पाय हे।फेर खेती किसानी के काम म चिभके किसान, बनिहार,मजदूर अउ दीदी-बहिनी मन बर ये तरिया के घटौंदा ह क्रियाशील चौपाल के उदाहरण आय। जिहाँ चुरोना काँचत, हाथ-गोड़ रगड़त,नहावत-धोवत अउ गोठियावत-बतरावत मन के गुबार ह अपने-अपन खल-खल ले धोवावत रहिथे।घर परिवार के सुख-दुख, परोसी के उभरौनी, सास-बहू के कीटिर-काटर, पंचायत के लप-झप अउ उढ़रिया मन के मया-मोहब्बत जइसन कतको गोठबात ल सुनत-सुनत तरिया के घटौंदा ह गमकत रहिथे. गाँव-गँवई म लोगन मन के बिहिनिया ले लेके संझा तक के घर-दुवार, खेत-खार, गांव-गली म घटे आँखीदेखी हालचाल के साक्षी बनथे इही बपरी तरिया ह..।

               मोबाइल के आय के पहिली गाँव-गाँव म एतीओती के शोरखबर ल बगराय के कामबूता ल मरदनिया मन करत रहिन। ठउका अइसनेच काकर घर तीजा लेय बर कतिक सगा आय हें, का-का रोटी-पीठा धरके लाय हें, खपरा ले चौसेला, चपाती ले सोंहारी,फरा ले बरा,ठेठरी ले खुरमी अउ झोर ले सुरवा तक के पेज-पहुनई के किस्सागोई ले तरिया ह अभिमंत्रित होवत रहिथे।तरिया के फरियर-फरियर पानी म हरिहर-हरिहर पत्ता के मझ म दगदग ले फूले खोखमा के फूल ह मनखे-मनखे के अंतस म उपजे खुशियाली के भाव लहर ला गदगद ले फिजो के रख देथे।हरेली बर खेती-किसानी के काम म अवइया जम्मो औजार मन ल इही तरिया के पानी म धो-धुवाके पूजा पस्ट करे जाथे. देवारी के दिन गरूगाय ल इही तरिया म असनाँद कराके गोरधन खुँदाय के पवरित काम ल निपटाय जाथे।कभू जलरंग पानी म छलांग लगाके लइकामन डुबक-डुबक के छुवउल खेलत तरिया ल आलपाल कर देवत रहिन।उही तरिया म हर-हर गंगे हर-हर पाई नहाखोर के बासी खाई के मंतर जाप के संग उवत सुरूज ल अरध देवत घर परिवार के खुशियाली के कामना घलव करे जाथे।

                 तरिया म मनखे मन लक्स, हमाम, लिरिल, रेक्सोना अउ लाइफ्बाँय म नहावत अपन त्वचा के अंदर म छुपे किटाणु ल धो डारथें।किसानी म लगे बैला भईसा के पेट-पीठ म छबड़ाय चिखला माटी ल एक मुठा पैरा म रगड़रगड़ के असनाँद करवाय के पुनीत काम इही तरिया म सम्पन्न घलव कराय जाथे। संगेसंग मवेशी मन ल धोवत माँजत इनकर पूछी ल धरके तउँरे के मजा सिरिफ भागमानी मन के नसीब म लिखाय रहिथे। मरनी हरनी म दस दिन ले पनीज्जरी देय बर, तीजनहावन के दिन आस म पानी रुतोय बर, समय देख के खेतखार म पल्लो करे बर अउ प्यास मरत गाय गरू के प्यास बुझाय बर इही तरिया ह सहारा बनथे।बिहनिया ले साँझ तक गांव के पौनी, मजदूर, बनिहार, किसान सबके निस्तारी इही तरिया म होथे। इही घाट-घटौंदा ह नहावत खोरत दीदी बहिनी संग नवा बहुरिया अउ लुगरा धरके आय सगा सजन मन ले भेंट मुलाकात करे के अघोषित मंच घलव आय।बर-बिहाव म मउँर सरोई, पींयर धोवई, सावन म भोजली अउ चइत-कुँवार म जग-जवाँरा के सरोवर असनाँद ले लोक आस्था ह सुवासित होथे। त भादो म गणपति अउ कुँवार म दुर्गा मूर्ति के विसर्जन इही तरिया म करे के विधान हवय। तब हम कहि सकथन कि गाँव-गँवई के लोक जीवन के सांस्कृतिक, समाजिक अउ पारिवारिक शोर-खबर ह इही तरिया के मेड़-पार,घाट-घटौंदा ले अनुगुंजित होवत रहिथे।पुरखा सियान मन के खनवाय तरिया ह हमर धरोहर आय, येमा मनरेगा के माध्यम ले बेरा बखत म गहरीकरण घलव होवत रहिथे। क्षिति जल पावक गगन समीरा।पंच रचित अधि अधम शरीरा। माटी,पानी ,हवा,आगी, अकाश ये पंचतत्व के बिना जिनगी ह संभव नइहे।पानी ह घलव इही पंचतत्व के एक ठन हिस्सा आय। कुऑं, बावली, तरिया, डबरी, बाँध-बँधिया, नदिया-नरवा अउ बोरवेल ले हम सबला पानी मिल पाथे। जेकर रखरखाव अउ स्वच्छता के जुम्मेदारी हम सब मनखे समाज के हवय।फेर वाह जी वाह मनखे मन के चेत-बुध ह चेथी डहर खसल गेहे। प्रकृति ह जीव-जगत बर उपहार स्वरूप पानी ल फोकट म दे हवय तेकर सेती हमर अंतस म येकर बर अपनापन के भाव नइहे।कहुँ इही पानी के एकेक बूंद ल बिसाके बउरना पड़तिस तब मनखे के चेत-बुध ह तुरते सोझिया जतिस।

           घर म शौचालय होय के बाद घलव बबाजात मन झिमझाम देखत तरिया के मेड़-पार म बिंदास खुलासा करे ले थोरको बाज नइ आवॅंय।एती तरिया के पानी म मंजन-गुड़ाखू घीस-घीस के पुर-पुर पुरकई ह बड़ेजन समस्या हवय। त ओती उही पानी म नहावत-अचोवत एक लोटा जल ले सबो समस्या के हल खोजे बर भारी हलचल मचे हे।धर्मात्मा टाइप के मनखे मन पूजा-पष्ट के फूल-पत्र अउ हूम-धूम के राख-माटी ल इही तरिया म ठंडा करके धकाधक पुण्य लाभ घलव कमावत हें। घरोंघर म नल-जल, नहानी अउ शौचालय के सुविधा होय के बाद कतको स्वार्थी मनखे मन निकासी के जम्मो गंदा पानी ल इही तरिया डहर बरो देथें। तरिया तीर के घर वाले मन के बाते झन पूछ येमन तो तरिया के मेड़ पार ल चानचान के नवा-नवा बिल्डिंग टेकाय म मस्त हें।अइसने मन ल चौरासी लाख योनि में भटकना नइ पड़े भलुक सोज्झे मनखे योनि म एंट्री मार लेथें।इही ल कहिथे किस्मत..,मने आम के आम अउ गुठली के दाम।

                   कस्बा अउ शहर के तरिया मन के हाल ह अउ बेहाल हे।अपन ललमुँहा आका के आशीर्वाद ले सलमलावत जमीन दलाल मन धीरे-धीरे मेड़-पार ल चनियावत तरिया ल पाट-पाट के सपाट करे के काम म लग जथें। फेर देखते-देखत अलग-अलग नाप म पलाट काट-काट के चुक्ता बेच देथें, मने येमन तरिया के बेंदरा बिनाश करत खुलेआम सुनियोजित हत्या कर देथें। बचे-खुचे तरिया म एती-ओती के गंदा पानी ह समावत इहाँ के पानी ल गाढ़ा अउ हरियर तो करबेच करथे, पानी के तीर-तीर म लोरे पाउच,पतरी, गिलास, डब्बा,सनपना जइसन किसम-किसम के कचरा ले उड़त बदबू ह मनखे मन के घनघोर स्वार्थी होय के दर्शन घलव करा देथे। अउ एती वेवस्था के सरकारी अमला  मन करिया चश्मा पहिने दलाली के झप्पी लेवत उँघासन- उँघासन करे म मस्त हें।कुल मिलाके एके बात हे कि कागज म 'स्वच्छता-ओडीएफ' अउ साइनबोर्ड म 'तरिया हमर धरोहर' के ठप्पा लगे ले भला का होही, मनखे-मनखे के अंतस म नीक सोच के ठप्पा लगना जादा जरूरी हे।                                        


महेन्द्र बघेल डोंगरगांव        


विज्ञान के कहना हवय कि खेत-खार , डोंगरी-पहाड़ अउ हरियर-हरियर पेड़-पौधा वाले धरती के आज के सरूप ह ब्रह्मांड म अँगरा कस दहत आकाशीय पिंड के करोड़ो बरस म धीरे-धीरे ठंडा होय के कहानी आय।त इही धरती म मनखे के समाजिक प्राणी होय के पाछू कतको जीव-जंतु के बीच म अपन अस्तित्व ल बचाय खातिर लाखों बरस के इतिहास म ओकर विकास के संघर्ष यात्रा आय।सबे जीव-जंतु ल जिंदा रहे बर  साफ हवा, पानी अउ जेवन के जरवत पड़थे, येहा उनकर जरवत के पहिली चीज-बस आय। ये दुनिया म जस-जस विकास के दायरा ह बढ़त गीस तस-तस जरवत के सूची ह घलव लमियावत गीस। गुनवान अउ बुधियार मनखे मन के कहना हवय कि मनखे के शरीर म धरती कस तीन चौथाई भाग म जल विदमान रहिथे।मनखे ल पीये बर,पकाय बर, सिंचाई बर,धोय-माँजे बर अउ नहाय-खोरे बर पानी के जरवत पड़बे करथे। मने जल हे त जीवन हे। एक जमाना म नरवा-ढोड़गा, तरिया-नदिया म लंगोटी पहिरके दफोड़-दफोड़ के नहाय के अलगे आनंद रहिस।नदिया-नरवा के कलकल-छलछल सलँगत निरमल पानी म छलांग लगाके पनबूड़ी कस तऊँरे बर काकर मन नइ होत रहिस होही भला। देखते-देखत लइकामन के तरिया म आल-पाल नाहके के देशी कला ह उही तरिया म ठंडा होवत जइसे कल के बात होगे। समय के चकरी अइसे चलिस कि आजकल माडर्न माई-पीला मन तऊरन सूट पहिरके तऊरन तरिया (स्वीमिंग पूल) म तऊरे के एकतरफा सांस्कारिक मजा लेवत रहिथें।

                    पियासे मनखे ल ठऊँका समय म पानी नइ मिल पाय तब ओकर टोंटा ह सूखाएच ल धरथे,चोला ह बड़ बियाकुल हो जथे। अइसने कहुँ धरती ले पानी ह एकाध महीना बर अटा जाय तब का होही तेकर कल्पना करेच म हाड़गोड़ा मन काँप जथे।बिन पानी के जीव-जंतु के जिनगी ह धारेधार बोहा जही।धरती के चारो मूड़ा म त्राहि-त्राहिमाम मच जही।जेठ-बैसाख के लकलकउवा घाम, तीपत भोंभरा, झरझरउवा झाँझ अउ तन-बदन ल उसनत गरमी के पाछू जब असाढ़ के महीना म मानसून ह बरखा ल धरके लाथे। तब दर्रा हाने धरती ह बरखा रस ल सपसप-सपसप ससन भर पीयत अंतस के जम्मो खुशियाली ल अपन कोरा म अंगोट लेथे।उसनत गरमी के आशीर्वाद ले मनखे-मनखे के पेट-पीठ, मुड़ी-कान म अकाश के चंदैनी कस छबड़ाय घमूर्री ह अपन परिवार के बढ़वार बर जोखत रहिथे।एती घमूर्री म लसखाय भुगतमानी मन घमूर्री के परिवार नियोजन करे बर बरसाती पानी म कूदकूद के नहावत गोदगोदा के खाल्हे म अपन पेट-पीठ ल छेल्ला ढील देथें।

               बरखा के पानी ले प्यास बुझावत धरती ह अपन कोरा म तरिया, कुआँ, बावली अउ बाँध-बँधिया ल समोख के राखथे।जम्मो जगत के प्यास बुझाय बर उही पानी ल नदिया-नरवा के माध्यम ले समुद्दर डहर घलव पठो देथे।एक जमाना म तरिया,कुआँ अउ बावली ले मनखे मन के निस्तारी होवय।आजकल घरोघर म नल-जल के सुविधा होय के सेती कुआँ अउ बावली के नाम म सिरिफ ओकर सुरता ह बच पाय हे।फेर खेती किसानी के काम म चिभके किसान, बनिहार,मजदूर अउ दीदी-बहिनी मन बर ये तरिया के घटौंदा ह क्रियाशील चौपाल के उदाहरण आय। जिहाँ चुरोना काँचत, हाथ-गोड़ रगड़त,नहावत-धोवत अउ गोठियावत-बतरावत मन के गुबार ह अपने-अपन खल-खल ले धोवावत रहिथे।घर परिवार के सुख-दुख, परोसी के उभरौनी, सास-बहू के कीटिर-काटर, पंचायत के लप-झप अउ उढ़रिया मन के मया-मोहब्बत जइसन कतको गोठबात ल सुनत-सुनत तरिया के घटौंदा ह गमकत रहिथे. गाँव-गँवई म लोगन मन के बिहिनिया ले लेके संझा तक के घर-दुवार, खेत-खार, गांव-गली म घटे आँखीदेखी हालचाल के साक्षी बनथे इही बपरी तरिया ह..।

               मोबाइल के आय के पहिली गाँव-गाँव म एतीओती के शोरखबर ल बगराय के कामबूता ल मरदनिया मन करत रहिन। ठउका अइसनेच काकर घर तीजा लेय बर कतिक सगा आय हें, का-का रोटी-पीठा धरके लाय हें, खपरा ले चौसेला, चपाती ले सोंहारी,फरा ले बरा,ठेठरी ले खुरमी अउ झोर ले सुरवा तक के पेज-पहुनई के किस्सागोई ले तरिया ह अभिमंत्रित होवत रहिथे।तरिया के फरियर-फरियर पानी म हरिहर-हरिहर पत्ता के मझ म दगदग ले फूले खोखमा के फूल ह मनखे-मनखे के अंतस म उपजे खुशियाली के भाव लहर ला गदगद ले फिजो के रख देथे।हरेली बर खेती-किसानी के काम म अवइया जम्मो औजार मन ल इही तरिया के पानी म धो-धुवाके पूजा पस्ट करे जाथे. देवारी के दिन गरूगाय ल इही तरिया म असनाँद कराके गोरधन खुँदाय के पवरित काम ल निपटाय जाथे।कभू जलरंग पानी म छलांग लगाके लइकामन डुबक-डुबक के छुवउल खेलत तरिया ल आलपाल कर देवत रहिन।उही तरिया म हर-हर गंगे हर-हर पाई नहाखोर के बासी खाई के मंतर जाप के संग उवत सुरूज ल अरध देवत घर परिवार के खुशियाली के कामना घलव करे जाथे।

                 तरिया म मनखे मन लक्स, हमाम, लिरिल, रेक्सोना अउ लाइफ्बाँय म नहावत अपन त्वचा के अंदर म छुपे किटाणु ल धो डारथें।किसानी म लगे बैला भईसा के पेट-पीठ म छबड़ाय चिखला माटी ल एक मुठा पैरा म रगड़रगड़ के असनाँद करवाय के पुनीत काम इही तरिया म सम्पन्न घलव कराय जाथे। संगेसंग मवेशी मन ल धोवत माँजत इनकर पूछी ल धरके तउँरे के मजा सिरिफ भागमानी मन के नसीब म लिखाय रहिथे। मरनी हरनी म दस दिन ले पनीज्जरी देय बर, तीजनहावन के दिन आस म पानी रुतोय बर, समय देख के खेतखार म पल्लो करे बर अउ प्यास मरत गाय गरू के प्यास बुझाय बर इही तरिया ह सहारा बनथे।बिहनिया ले साँझ तक गांव के पौनी, मजदूर, बनिहार, किसान सबके निस्तारी इही तरिया म होथे। इही घाट-घटौंदा ह नहावत खोरत दीदी बहिनी संग नवा बहुरिया अउ लुगरा धरके आय सगा सजन मन ले भेंट मुलाकात करे के अघोषित मंच घलव आय।बर-बिहाव म मउँर सरोई, पींयर धोवई, सावन म भोजली अउ चइत-कुँवार म जग-जवाँरा के सरोवर असनाँद ले लोक आस्था ह सुवासित होथे। त भादो म गणपति अउ कुँवार म दुर्गा मूर्ति के विसर्जन इही तरिया म करे के विधान हवय। तब हम कहि सकथन कि गाँव-गँवई के लोक जीवन के सांस्कृतिक, समाजिक अउ पारिवारिक शोर-खबर ह इही तरिया के मेड़-पार,घाट-घटौंदा ले अनुगुंजित होवत रहिथे।पुरखा सियान मन के खनवाय तरिया ह हमर धरोहर आय, येमा मनरेगा के माध्यम ले बेरा बखत म गहरीकरण घलव होवत रहिथे। क्षिति जल पावक गगन समीरा।पंच रचित अधि अधम शरीरा। माटी,पानी ,हवा,आगी, अकाश ये पंचतत्व के बिना जिनगी ह संभव नइहे।पानी ह घलव इही पंचतत्व के एक ठन हिस्सा आय। कुऑं, बावली, तरिया, डबरी, बाँध-बँधिया, नदिया-नरवा अउ बोरवेल ले हम सबला पानी मिल पाथे। जेकर रखरखाव अउ स्वच्छता के जुम्मेदारी हम सब मनखे समाज के हवय।फेर वाह जी वाह मनखे मन के चेत-बुध ह चेथी डहर खसल गेहे। प्रकृति ह जीव-जगत बर उपहार स्वरूप पानी ल फोकट म दे हवय तेकर सेती हमर अंतस म येकर बर अपनापन के भाव नइहे।कहुँ इही पानी के एकेक बूंद ल बिसाके बउरना पड़तिस तब मनखे के चेत-बुध ह तुरते सोझिया जतिस।

           घर म शौचालय होय के बाद घलव बबाजात मन झिमझाम देखत तरिया के मेड़-पार म बिंदास खुलासा करे ले थोरको बाज नइ आवॅंय।एती तरिया के पानी म मंजन-गुड़ाखू घीस-घीस के पुर-पुर पुरकई ह बड़ेजन समस्या हवय। त ओती उही पानी म नहावत-अचोवत एक लोटा जल ले सबो समस्या के हल खोजे बर भारी हलचल मचे हे।धर्मात्मा टाइप के मनखे मन पूजा-पष्ट के फूल-पत्र अउ हूम-धूम के राख-माटी ल इही तरिया म ठंडा करके धकाधक पुण्य लाभ घलव कमावत हें। घरोंघर म नल-जल, नहानी अउ शौचालय के सुविधा होय के बाद कतको स्वार्थी मनखे मन निकासी के जम्मो गंदा पानी ल इही तरिया डहर बरो देथें। तरिया तीर के घर वाले मन के बाते झन पूछ येमन तो तरिया के मेड़ पार ल चानचान के नवा-नवा बिल्डिंग टेकाय म मस्त हें।अइसने मन ल चौरासी लाख योनि में भटकना नइ पड़े भलुक सोज्झे मनखे योनि म एंट्री मार लेथें।इही ल कहिथे किस्मत..,मने आम के आम अउ गुठली के दाम।

                   कस्बा अउ शहर के तरिया मन के हाल ह अउ बेहाल हे।अपन ललमुँहा आका के आशीर्वाद ले सलमलावत जमीन दलाल मन धीरे-धीरे मेड़-पार ल चनियावत तरिया ल पाट-पाट के सपाट करे के काम म लग जथें। फेर देखते-देखत अलग-अलग नाप म पलाट काट-काट के चुक्ता बेच देथें, मने येमन तरिया के बेंदरा बिनाश करत खुलेआम सुनियोजित हत्या कर देथें। बचे-खुचे तरिया म एती-ओती के गंदा पानी ह समावत इहाँ के पानी ल गाढ़ा अउ हरियर तो करबेच करथे, पानी के तीर-तीर म लोरे पाउच,पतरी, गिलास, डब्बा,सनपना जइसन किसम-किसम के कचरा ले उड़त बदबू ह मनखे मन के घनघोर स्वार्थी होय के दर्शन घलव करा देथे। अउ एती वेवस्था के सरकारी अमला  मन करिया चश्मा पहिने दलाली के झप्पी लेवत उँघासन- उँघासन करे म मस्त हें।कुल मिलाके एके बात हे कि कागज म 'स्वच्छता-ओडीएफ' अउ साइनबोर्ड म 'तरिया हमर धरोहर' के ठप्पा लगे ले भला का होही, मनखे-मनखे के अंतस म नीक सोच के ठप्पा लगना जादा जरूरी हे।                                        


महेन्द्र बघेल डोंगरगांव

No comments:

Post a Comment