पितर नेवता :सद्भावना के संवाहक
पितर पाख के बारे म विचार आइस घरों घर पितर मानथे अउ मनाथे पितर आये हे के नेवता घलो देथे l
नेवता माने अपन घर आये के सप्रेम निमंत्रण l
नेवता देने वाला अपन पितर ला मिलाथे l सगा सोदर हित मीत ला पास पड़ोस के मन ला बुलाके पितर भोज कराके आत्म संतुष्ट होथे l आये पितर उंकर जो भी नाता हो माता पीता बबा डोकरी दाई भाई कका काकी बेटा सबो पितर
म गिने जाथे l
पितर नेवता के पीछू हिर्दय ले जुड़े हन l तोर जाये के बाद अपन ले जुड़े सबो रिस्ता नाता सकलाये हन l हिर्दय ले तोर सुरता करत हन l मिल जुल के अपना पन के भावना के उदगार करत हन l श्रद्धा भावना प्रेम हमला जोड़ के राखे हे l करुणा ममता दया सहानुभूति अंतस ले भावना के साथ सुमत बनाके हाबन l पितर देव के रूप म आथे l तोरा मन दरपन कहलाये
साफ निर्मल सुभाव म समाये
कुछ विशेष घटना के गोठ बात घलो करथे l पितर के गुन आचरण आदत व्यवहार ला उदगार बखान करथे -" बने रहिस हे...... I" पितर ए सब सुन के जान के तृप्त हो जथे l
ओकर नाम से सब भोग परसाद लेवत हे देख के मन भर जय संतुष्ट होके जाय l
आखिर पितर भावना के भूखे हे l बरा सोहॉंरी तेलाई पकवान हँसी ख़ुशी के नेंग आय l
पितर पाख म क्रोध गुस्सा बैर भाव अउ गलत मनोविकार ला त्याज्य करे जाथे l पितर मन नाराज होके श्राप झन देवय l
देव तुल्य मानके उही श्रद्धा विस्वास ले अरपन तरपन करथे l इही मान्यता हमर मानवतावादी ला आघू बढ़ाथे l
मैनखे हन मैनखे ला चिन ले
मैनखे होये के इही धरम हे मैनखे मन बर जी ले l मैनखे अस करम कर, लूट पाट हिंसा मार खतम कर के भावना ला छोड़ दे l अइसे अवगुन जौन
परिवार पडोसी ला अलगाथे लड़वाथे वो बुराई ला आवन झन दे l पूरा पखवाड़ा पितर के गुन गान करे बर नेवता नेवत के
अपन होये के परब मनाये जाथे l इही कहिबों -पितर नेवता सहिर्दयता के संवाहक हे एक दूसर के हिर्दय ला जोड़थे l
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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