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*धनबोड़ा/छत्तीसगढ़ी कहानी
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*धनबोड़ा माने धनी- मानी मनखे मन के धान के कोठी म, बिराजने वाला छोटे अजगर।धन चिरई माने कोठी म ले,उड़ने वाला छोटे गिधरईल चमगेदरी। एमन के उपस्थिति ले घर हर गझिन लागे।फेर अब...? अतीतजीविता (नास्टेल्जिया) के एकठन कथा।*
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"ये गौटिन दई ! ये कोठी म का न का का हे गुजगुज अकन के !" रूपा कमेलिन बड़ जोर ले किकियात कहिस ।
"कुछु नोहे बेटी , धनबोड़ा ये । वोहर कनहुँ ल कुछु नई करे ।" गौटिन रामगोसाईं कहिस ।
"कुछु नई करे कहथस ,दई ! वोकर उपर पाँव परही, तब नई चाबही वोहर !" रूपा अब ले थरथरात रहिस ।
"बने कहे! एक पइत महुँ वोकर करा हपट परे हांवों । फेर वोहर कुछु नई करिस ।"एक झन अउ आन कमेलिन बुधियारीन तीर म साखी देंवत कहिस ।
"देखा, नोनी हो ! मोर ठन चार कोठी हावें , वोमन म अन्न -धन्न हर धरे नई समात ये। चारों कोठी म दीया -बाती के बेरा जब दीया झलकाथों, तब मोर मन अउ गहा हर भर जाथे ।" राम गोसाईं कहिस ।
"बड़खा घर के बड़खा गोठ ओ बई ! अभी तो हमन ल वो बुता करन दे । कतका कहे हस... छै खाँड़ी अकन दुबराज धान ल निकाले बर हे। "रूपा कहिस ।
"तब वो धनबोड़ा ल फेर छू पारबे त...?"बुधियारीन कहिस।
"तब फेर किकियात उतर आँहा कोठी ले ...!" रूपा कहिस तब वो दुनों झन हाँस भरिन ।
"नोनी हो ! दिन -रात भर्र ...भिर जउन मन , उड़त रथें, वोमन के रात के नांव नई लेंय । वोहु मन गछे लक्षमी के चिन्हारी आँय ।"राम गोसाईं गौटिन कहिस।
"धन चिरई कह न बड़े दई !"रूपा कहिस।
"वो गिधरईल पिला मन ल तो कहत हे रे...!"बुधियारीन कहिस," चल चल विलम्ब बे त बुता ल तंय अउ मंय भर तो करबो । ये बड़े दई हर गोठ भर करिही ।
"ठीक कहत हव, नोनी मन ! चला अपन बुता म लग जावा । अगाहु छै महिना बर चारा दाना पानी के तियारी करा।"राम गोसाईं गौटिन कहिस।
पाँच- छै खाँड़ी धान निकाले म दुनों नोनी मन ल बनेच बेरा हो गय।राम गोसाईं गौटिन अब वोमन घर जाय, नहाय- धोय के छुट्टी कर दिस। येमन जब दुसरईया जुआर बुता आँहीं, तब आगु के पछीनई- निमारई हर बनत रही। पहिली तो चलनी म चाले बर परिही...।
रूपा अउ बुधियारीन बने दिन भर भिडिन, तब वो दुबराज के छै खाँड़ी धान हर कूटे बर तियार होइस । बड़का ढेंकी म भद भद कुटाइस धान हर। कभु एकड़ा त कभु जोड़ी म कचारें ढेंकी ल वो दुनों नोनी मन । दु दिन के बुता म अस्करी , दून, बगरी कहत रूपा हर छेवर म अब 'छरा' गय कहत ढेंकी ल बंद करिस।
अब पछिनई के बुता हर बाँच गय रहिस। फ़टस...फटस पछिना घलव गय।रगरग ले दुबराज के परेवा नख कस चउर के ढेरी लग गय...
"रूपा जा ! पीतल ल लेके आ ।"राम गोसाईं कहिस।
रूपा तो मुचमुचा उठिस ...आगु का होने वाला हे,तउन ल जान के ।
"चला धरा दु तामी चउर,एक एक झन ! अतेक करे धरे लागे हव,तव दु दिन तुंहु मन पसिया पी लिहा।"राम गोसाईं कहिस।
"नई लागे बड़े दई ! हमन जउन जइसन खावत हन , वो बहुत बढ़िया हे।"बुधियारीन कहिस।
"सब वोइच अन्न कुंवारी अन्नपूर्णा दई ये बेटी । फेर राम गोसाईं के मुँहू म जउन कौरा ल नावत हव, वोइच ल तुंहु मन दु दिन पसिया पी लिहा ।"राम गोसाईं गौटिन मनाय असन कहिस ।
"दे बड़े दई ,दे ! ले जाबो हमन ओ।"रूपा अपन गमछा ल बगरावत कहिस। अब राम गोसाईं गौटिन वोमन ल दु तामी चउर नाप दिस। रूपा तो लंबा सुआसा लेके दुबराज के कहर ल पेट म भरे लागिस। वोला अइसन करत देख दुनों झन हाँसिन ।
( 2 )
"ले दई, धर ! तोर जम्मो कोठी के लक्ष्मी मन ल! ये सब मन ये बैंक पास बुक म एके लाइन म लिखा गय हें।" राम गोसाईं गौटिन के पूत दयासागर वोला कहत रहिस।
"कइसे का हो गय, बेटा ?"
"खेत ले सीधा मंडी । मंडी ले रुपया बैंक घर अब उहाँ ले अब ये तोर हाथ म नकद नारायण के रूप म ।"दयासागर वोला अरथात रहिस।
"बेटा, ये जिनगानी हर बड़ तेज हो गय हे न !" राम गोसाईं कहिस तड़प के।
"हाँ...!तोर छेर -छेरा देय बर चार कट्टी धान मंगवा लेय हंव।बाकी सब मंडी दुआर !"दयासागर कहिस, तब राम गोसाईं गौटिन के मुँहू ले बोल नई फुटिस । तभो ले थरथरात पूछिस-बेटा !साल भर के जेवन -खान बर ?
"वोकर फिकर झन कर ! मंय बढिया- बढिया चाउर लानहाँ । तँय देखत रह जाबे ।"दयासागर जवाब दिस।
"फेर एक ठन अउ गोठ हे दई?"
"वो का ये गा...!"
"ये चारों कोठी मन घर म कतेक न कतेक जगहा अरसेले हें ।अब येमन के जरूरत तो बिल्कुल भी नई ये।येमन ल टोर देथेंन काय ! घर हर परछर हो जाही ।"
"तब धनबोड़ा हर कहाँ जाही?"राम गोसाईं गौटिन तड़प के कह उठिस।
*रामनाथ साहू*
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