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*(पीतर पाख म आदि आचार्य चाणक्य ल सुरता करत...!)*
*तीरा- घिंचा/कहिनी*
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*भारत अउ चीन या चीन अउ भारत,खाली एशिया महाद्वीप भर के नहीं,ये तो सकल संसार बर घलव दु ठन महान राष्ट्र यें।फेर दुनों के नजरिया आन आन हे।आवव,कल्पना के दुनिया म ले,वो नजरिया मन के झलक देखी...*
जुद्ध के गोठ ल लेके वोमन म दु- दी बात तीरा- घिंचा हो गय रहिस।तब चाणक्य हर वोकर तीर ल उठ के सुर -सरी अगासगंगा मन्दाकिनी के तीर म चल दिस बइठे बर। चल अतेक तिरा -घिंचा म मन हर खराब हो गय हे, तउन हर बने लागही कहके।
अउ सिरतोन मन्दाकिनी के शीतल- जुड़ समीर हर वोकर मन ल परछर अउ प्रसन्न कर देय रहिस। मणि -मरकत ले सिरझे पखरा कुटी म बइठ के वोहर ,अपन पांव मन ल मन्दाकिनी के शीतल जल धार म डाल देय रहिस।शीतल जल के शीतलता हर सीधा माथा म उतरत रहिस।
फेर वोतकिच बेरा सुन -वू हर फेर आ गय अपन दाढ़ी ल खोजियात वोकर तीर म। सुन -वू के खँखोरी म वोकर अपन लिखे किताब 'सुन -ची ' हर चिपाय रहय अउ चाणक्य के 'चाणक्य- नीति' ल वोहर पढ़त रहय।
" एकदम बकवास..!" आते साथ सुन - वू हर चाणक्य ल कहिस।
"अरे बइठ येती.. मोरे असन।तब तोर अकल हर ठिकाना म आही।"चाणक्य हर सुन- वू ल एक परकार ले डंपटत कहिस।वोहर अपन आगी असन रिस ल अतेक दिन म बनेच कम कर डारे रहिस।
" अरे उठ, अभी बात हर पूरा होय नइ पाय रहिस हे।अउ तँय ये कोती भाग पराय ।अउ ये करा आके मंजा के बइठे हस।" सुन-वू हवा म ही कुंग- फू के मुद्रा बनात कहिस, "एकदम कचरा ये तोर लिखे हर।अइसन म कोई राष्ट्र , कोई जाति हर महान बनही ..?तँय कायर बनाय के पाठ पढोय हस, बाबू ! "
येला सुन के चाणक्य के एड़ी के रिस हर तरुवा म चढ़ गय।
सावधान..चाणक्य ! अइसनहेच रिसहा बेरा म एक पइत कुश के जरी म, मही रितो पारे रहे ,तउन ल आज ले घलव मनखे नइ भुलाँय यें ।
तब ले वोहर ,अब पानी ले बाहिर निकल के खड़ा हो गय।
"सुन - वू ,सुन ।कान खोल के सुन।छल छिद्र कपट ले कोई राष्ट्र बड़े नइ हो जाय। भले ही तँय ये भौतिक -पूँजी जोड़ लेबे,फेर आत्मिक अउ आध्यात्मिक शक्ति बिना सब सुन ये।
मोर 'चाणक्य -नीति' हर घलव युद्व के गोठ करथे फेर वोहर धर्म -युद्ध होथे। "
येला सुन के सुन- वू मुचमुचात भर रहिस।
"सुन -वू ,सुन आज जउन मनखे मन ल तँय सीखोय हस तेमन के कोई करा इज्जत नइ ये। कोई भी वोमन के विस्वास नइ करय। धरती म वोमन के कोई सम्मान नइ ये।येकर उलट मोर मनखे मन प्राण जाय फेर पन झन जाय.. म विश्वास करथें।आज भी अतेक दिन बीते के बाद भी वोदे, तीर म जउन परम् अउ दिव्य शान्ति म भरे बुद्ध बइठे हे न,तेकर दिव्य उपदेश ल मोर मनखे मन मानथें ।अउ तोर मनखे मन गला म वोकर चीन्हा भर ल धरे हें। "
चाणक्य अतका कह के पसीना च पसीना हो गय रहिस।
" आ थोरकुन ध्यान लगा ली ।मन हर ठंडा होही।तब फिर बात करबो।"चाणक्य कहिसअउ सिरतोन ध्यान के अतल गहराई म उतर गय। येती वोला अइसन करत देखिस तब सुन -वू अपन परम्परागत युद्ध- कौशल कुंग -फू के अभ्यास म लग गय। फेर अबले घलव वोहर चाणक्य के पीछा नइ छोड़े रहिस।
थोरकुन बेर बाद म चाणक्य के ध्यान भंग होइस।तब युद्ध मुद्रा बनात सुन -वू फिर वोकर तीर म पहुँच गय ।
वोकर उद्देश्य अपन बात चाणक्य करा मनवाना रहिस।
"तोर विचार जहर बाँटथे। मोर हर दया- मया ।तोर हर अविश्वास ये।मोर हर विश्वास के जमीन -धर्म ल कभु नइ छोड़े।"चाणक्य कहिस तब ले भी सुन - वू मुचमुचात रहिस।
अब तो चाणक्य घलव थोरकुन मुचमुचाय धर लेय रहिस। फेर थोरकुन बेर बाद म वो फिर कहिस- देख ग दउ सुन- वू , तोर गोठ ल मानने वाला मनखे ...राष्ट्र म मनखे मन कीड़ा - मकोड़ा यें। कतको मरें -वोमन बर रोवइया नइ येँ। वोमन करा अपन खुद के आजादी नइ ये। एक झन मनखे हर वोमन ल गरुवा- बछरू असन हाँक देत हे। हाँ... एक पइत आजादी के आवाज उठे रहिस ।तब वो आवाज ल अइसनहेच जंगल राज चलइया मन थ्येन -आनमन चौक म गोली -बारूद म भूंज देय रहिन।"
सुन -वू अबले घलव युद्ध मुद्रा के अभ्यास जारी च रखे रहिस।
" मोर पुस्तक हर युद्व ल घलव ,मनखे के भलाई बर बतावत हे।अउ तोर किताब म युद्ध अउ हिंसा हर मनखे के खाना- खरचा ये।"
चाणक्य थोरकून रुकिस तहां ल फेर कहिस-
जा हमन दुनों झन के किताब ल ये मन्दाकिनी म विसर्जन करके आ।काबर दुनों म हिंसा बर जगहा हे।
सुन- वू चाणक्य के देखउ म दुनों किताब ल धरके आ गय। फेर वोहर अपन किताब सुन-ची ल कँखोरी म दबा के बचा लिस अउ चाणक्य के किताब ल मन्दाकिनी म प्रवाहित कर दिस।
*( सुन - वू, चीन के युद्ध दार्शनिक ये।ओकर पुस्तक 'सुन -ची ' म युद्ध दर्शन हर लिखे भराय हे।)*
*रामनाथ साहू*
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