Monday, 23 September 2024

जनकवि -विश्वम्भर यादव "मरहा"

 10 सितंबर -पुरखा के सुरता :13 वीं पुण्यतिथि म विशेष


जनकवि -विश्वम्भर यादव "मरहा"


आलेख-

-ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’

[ सुरगी-राजनांदगांव ]


हमर छत्तीसगढ़ म जउन समय म हिन्दी लिखइया साहित्यकार मन के गजब जोर रीहिन हे।अइसन बेरा म कुछेक  रचनाकार मन  छत्तीसगढ़ी म साहित्य साधना करके अपन एक अलग चिन्हा छोड़िस वोमा


पं. सुन्दर लाल शर्मा, कोदू राम दलित, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र , मेहत्तर राम साहू, नारायण लाल परमार,विमल कुमार पाठक, दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिया, संत कवि पवन दीवान ,  मेहत्तर राम साहू,मुकुन्द कौशल, रामेश्वर वैष्णव, जीवन यदु,सुरेन्द्र दुबे ,विश्वंभर यादव "मरहा " के नांव सामिल हे ।दलित जी जइसे मरहा जी हा घलो हास्य- व्यंग्य के सुघ्घर कवि रिहिन हे । मरहा जी कवि सम्मेलन के मंच म छा जाय ।जइसे दलित जी के सही मूल्यांकन नइ हो पाइस वइसने मरहा जी के घलो उपेक्षा करे गिस । जउन ढंग ले मान -सम्मान के हकदार रिहिन वोहा नोहर होगे. मात्र एक हफ्ता स्कूल जवइया मरहा ला तो कुछ बड़का साहित्यकार मन कवि घलो नइ मानय। लेकिन ये जन कवि ह अपन छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले जउन  पहिचान बनाइस वोहा काकरो ले छुपे नइ हे ।


छत्तीसगढ़ के दुलरवा बेटा ,जन कवि विश्वंभर यादव "मरहा" के जनम दुर्ग शहर के तीर बघेरा गाँव मा 6 अप्रैल 1931 मा पहाती 4 बजे होइस । वोकर ददा हा सुग्घर भजन गावय ।साधारण किसान परिवार मा जनम लेवइया विश्वंभर


हा चन्दैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर काम करे के संगे -संग चन्देैनी गोंदा मा अभिनय करके अपन लोहा मनवाइस । वोहा 1944 ले रचना लिखे के चालू करिस ।दाऊ रामचंद्र देशमुख ले वोला लिखे के प्रेरणा मिलिस ।


ले देके अपन नांव लिखे बर सीखे मरहा हा सैकड़ों छत्तीसगढ़ी कविता रचिस । कतको कविता वोला मुँहखरा याद रिहिन।अपन रोजी रोटी बर मरहा हा बढ़ई के काम करे अउ सुग्घर ढंग ले कविता के सृजन करे ।शरीर ले वोहा भले दुबला पतला रिहिन पर वोहा अपन कविता पाठ के समय गजब सजोर नजर आय। धोती कुर्ता अउ गांधी टोपी पहन के वोहा


बुराई, भ्रष्टाचार, अत्याचार करइया मन ला ललकार के समाज सुधार अउ देश प्रेम ला जगाय के काम करय ।छत्तीसगढ़िया मन के सोसन करइया अउ छत्तीसगढ़ी भाखा के हीनमान करइया मन बर अलकरहा बिफर जाय ।सादा जिनगी जियइया अउ उच्च बिचार रखइया मरहा हा संत कबीर के समान कोनो शासक अउ नेता के सामने नइ झुकिस ।


सबले पहिली मरहा ला मेहा सुरगी के तीर मोखला गाँव म रामचरित मानस प्रतियोगिता म काव्य पाठ करत देखे रेहेंव ।वो समय मँय हा हाईस्कूल मा पढ़त रेहेंव ।मरहा के कविता ला सुनके हजारों नर- नारी के मन हा गदगद हो जाय । घंटा भर कविता पाठ करे के बाद जब वोहा बताय कि ले अब मेहा बइठत हंव तब श्रोता मन चिल्ला के कहय कि मरहा जी


अउ  कविता सुनाव । तो अइसन वोकर कविता के जादू राहय ।मरहा हा साल भर कवि सम्मेलन, कवि गोष्ठी अउ सभा म व्यस्त राहय ।वोहा 365 दिन मा मात्र 65 दिन घर म रहय ।छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन अउ छत्तीसगढ़ी ल राजभाखा बनाय बर आयोजित कार्यक्रम म घलो उछाह ले भाग लेवय ।


मरहा उपनाम अइसन पड़िस


 6 मई 2005  के बात आय। मंय ह  मोर कवि मितान दिलीप कुमार साहू अमृत ( सुरगी) के छोटे भाई हेमंत साहू के बराती गे रेहेंव । मोर संग रचनाकार संगवारी भूपेन्द्र कुमार साहू "सृजन"( कोटराभांठा) घलो गे रिहिन। खाना खाय के बाद समय के उपयोग करे के बारे म सोचेन।हम दूनों पूछत - पूछत मरहा के घर पहुंच गेन। मरहा जी ल पैलगी करे के बात गोठ -बात के सुरूआत करेंव। पहिली ले एक दूसरा ले परिचित रेहेन। गोठ बात ल मंय ह एक कागज म लिखत गेंव।


 मंय ह पूछेंव कि आप मन के “मरहा ” नाम कइस पड़िस  ।तब वोहा बताइस कि एक बड़का कार्यक्रम म माई पहुना चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख ह रिहिन अउ पगरईत संत कवि पवन दीवान जी ह करत रिहिन ।


मंच संचालन के कारज ल श्याम लाल चतुर्वेदी जी ह करत रिहिन  । तब विश्वंभर  यादव जी के शरीर ल देखके दाउ रामचंद्र देशमुख जी के मन म बिचार अइस अउ अपन बात ला पवन दीवान जी ल बताइस कि “मरहा ” उपनाम कइसे रही । अब्बड़ हाँसत दीवान जी ह येकर समर्थन करिन । उही दिन ले  विश्वंभर यादव जी के उपनाम "मरहा" पड़गे।


काव्य शिरोमणि ले सम्मानित होइस


एक घांव बिलासपुर के राघवेन्द्र भवन म राष्ट्रीय कवि  गोपाल दास नीरज जी के सम्मान म “नीरज नाईट “आयोजित करे गे रिहिस ।इही समय डॉ. गिरधर शर्मा जी ल मरहा जी के प्रतिभा के बारे म पता चलिस त वोहा एक हफ्ता बाद उही राघवेन्द्र भवन मा” मरहा नाईट ” के आयोजन रख दिस ।एमा लोगन मन के अब्बड़ भीड़ उमड़गे । मरहा जी ह घंटों काव्य पाठ करके सबके दिल जीत लिस ।मरहा के सम्मान मा उच्च न्यायलय बिलासपुर के न्यायधीश रमेश गर्ग जी हा किहिस कि ” पहिली संत कबीर जी के बारे मा सुने रेहेंव, पढ़े रेहेंव ।आज वोला मेहा मरहा के रुप मा साक्षात सुनत हंव ।”ये कार्यक्रम म मरहा जी ला “काव्य शिरोमणि ” के उपाधि ले सम्मानित करे गिस । गिरधर शर्मा जी हा मरहा के कविता के संकलन करके प्रकाशित करवइस अउ कविता ल जन जन तक पहुंचाय के सुग्घर उदिम करिस ।जब सुरगी मा कवि सम्मेलन होइस तब मरहा जी हा महू ला अपन दो ठन कविता संग्रह भेंट करे रिहिस ।ये दूनों कविता संग्रह ल एक झन मोर संगवारी हा पढ़े बर मांगिस तउन हा आज तक मोला नइ लहुंटाइस ।


   सम्मान -


मरहा जी ल काव्य साधना बर रायपुर, बेमेतरा, राजनांदगांव, सुरगी, कुम्हारी, जेवरा सिरसा, भिलाई, गुण्डरदेही, मगरलोड, मुजगहन, बालोद के कई ठन सभा समिति मन सम्मानित करिस । साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव ह मरहा जी ल बछर 2008 म साकेत साहित्य सम्मान ले सम्मानित करिस । येहा मोर सौभाग्य रिहिस कि महू हा उही साल मरहा जी के संग साकेत सम्मान ले सम्मानित होयेंव ।मेहा मरहा जी के संग सात बर कवि सम्मेलन मा काव्य पाठ करे रेहेंव । वोकर कविता हा आकाशवाणी अउ दूरदर्शन म

 प्रसारित होवत राहय ।


मरहा जी अब्बड़ अनुशासनप्रिय आदमी रिहिन । कोनो कार्यक्रम हा चालू होय मा देरी हो जाय नइ ते कोनो व्यवस्था ला कमजोरहा पाय ता आयोजक मन बर नंगत भड़के ।


शोषण करइया मन उपर गजब कविता लिखे हे –


साबर -साबर जइसे चुराके,


हक जमा लेव परिया मा ।


सुई जइसे दान करके,


कोड़ा देव तरिया ला ।


भ्रष्टाचार ला देखके वोहा अइसन कलम चलइस –


सिधवा मन लुलवावत हावय,


अउ गिधवा मन मेड़रावत हावय ।


कुकुर मन सुंघियावत हावय,


अउ खीर गदहा मन खावत हावय ।


दुवारी मा रखवारी करथय कुसुवा मन,


अउ भीतरे भीतर भीतरावत हावय मुसुवा मन ।


नवा नवा कानून बनाथे कबरा मन,


अउ बड़े बड़े पद मा हावय लबरा मन ।


दिनों दिन बाढ़त हावय झगरा मन,


भारत ला लीलत हावय दूसर देश के करजा मन ।


स्वार्थी मन के हाथ मा हावय,


भारत के सब बड़े बड़े दर्जा मन ।


दलाल मन सब मजा उड़ावय,


अउ भोगत हावय परजा मन ।


कब सुधरी हमर भारत के हाल हा,


दलाल मन ला कब पूछहू, कहां जाथे माल हा ।


वोकर कविता मा जन जागरण के स्वर देखे ला मिलथे –


गजब सुते हव अब तो जागव ,


अब्बड़ अकन अभी काम पड़े हे ।


अंग्रेज मन चल दिहिन तब ले ,


अभी अंग्रेजी मन के भूत खड़े हे ।


 


दिन अऊ रात इंहा भाषण देथय,


घुघवा मन ह बन के गियानी ।


हंस बिचारा लुकाय फिरत हे ,


देख- देख के उंकर मनमानी ।


 


मान मर्यादा नियाव ल छोड़ के ,


सब कटचीप मन सुख पावत हे ।


सत धरम म चल के सिधवा मन ,


जिनगी भर दुख पावत हे।


 


गॉव शहर म बंगला हे ,


घूसखोर बेईमान अउ गिरहकट के।


हरिशचन्द्र हावय आज के कंगला ,


रखवार बने हे मरघट के ।


 


जगा – जगा बने हावय अड्डा ,


चोर फोर अऊ हड़ताल के ।


अइसन म हे कउन देखइया ,


दीन दुखी कंगाल के ।


भेदभाव ल छोड़, देश के काम म लगव ,


सुतत – सुतत रात बितायेव, अब तो जागव।


 


मरहा जी ल अपन भाखा छत्तीसगढ़ी ले गजब लगाव राहय ।मरहा के कहना राहय कि -” हमन छत्तीसगढ़ मा बोलन, लिखन अउ पढ़न तभे हमर भाखा हा पोठ होही ।”


नवा लिखइया मन ला वोहा काहय कि -” रचना ला शब्द ले अतेक जादा झन सजावव के ओखर चमक उतर जाय ।जमीन मा रहिके जमीन के बात करना चाही ।”


एक घांव सुरगी म कवि सम्मेलन होइस ।येमा मरहा जी ला विशेष रुप ले आमंत्रण करे रेहेन ।कार्यक्रम सुरू होय से पहिली कवि मन के बइठक बेवस्था मोर घर म रिहिस ।ये कवि सम्मेलन मा डोंगरगॉव के तीर मा बसे गाँव माथलडबरी के आशु कवि तिलोक राम साहू बनिहार जी ह घलो आमंत्रित रिहिस ।बड़े भइया कवि महेन्द्र कुमार बघेल मधु जी (कलडबरी) के संग बनिहार जी हा हमर घर पहुंचिस । मरहा जी, निकुम के गीतकार भैया प्यारे लाल देशमुख जी अउ  दुर्गा प्रसाद श्याम कुंवर जी ह पहिली ले हमर घर पहुंच गे रिहिन । मोर बाबू जी मेघू राम साहू जी संग सुग्घर ढंग ले कवि मन गोठियात बतात रिहिन ।इही बीच मा पहुंचे बनिहार जी हा आतेसात मोर बाबू जी ला देखते -देखत कई ठक कविता सुना डारिस ।बाबू जी हा हाव- हाव काहत सुनत गिस ।पर बनिहार जी हा कविता सुनाय के


चक्कर मा अतिरेक कर डारिस ।ये बात ह मरहा जी ला पसन्द नइ आइस अउ भड़क के बनिहार जी ल टोकिस ।


अइसने बछर 2009 म मोखला म आयोजित साकेत के वार्षिक सम्मान समारोह म सोमनी के बस स्टेन्ड ले मोखला लाय के जिम्मेदारी मोर रिहिस हे ।मरहा जी हा बघेरा ले फोन करिस कि  अंकुर मंय ह  अब मोखला बर निकलत हंव । मेहा थोरकुन ये सोच के देरी कर डारेंव कि मरहा जी ल सोमनी आय म समय लगही ।लेकिन वो दिन मरहा जी ल दुर्ग आतेसात सोमनी बर बस मिलगे ।जब मेहा अपन गाड़ी म मरहा जी ला लाय बर पहुंचेव ता ये देख के मेहा दंग रहिगेंव के मरहा जी दंगर& दंगर पैदल रेंगत भर्रेगॉव पुल के तीर पहुंच गे राहय ।मेहा अकबका गेंव । सबले पहिली मेहा मरहा जी ला देरी मा पहुंचे बर मांफी मांगत पैलगी करेंव खुश राहव जरूर किहिस।पर मरहा जी के रिस ह तरवा मा चढ़गे रिहिस । वोहा किहिस मोर जांगर म अभो ताकत हे।वोहा मोर गाड़ी मा नइ बइठ के तुरतुर -तुरतुर रेंगे ला धर लिस ।फेर मेहा मरहा जी के तीर मा जाके फेर केहेंव कि ले बबा मोर गलती ल माफी देवव अउ गाड़ी मा बइठ जावव ।तहां ले मरहा जी हा गाड़ी मा बइठिस । फेर मध्य हऊंकर घर के हाल चाल पूछेंव अउ


मोर घर के हाल चाल मरहा जी ह पूछिस ।मेहा मने -मन सोचेंव बनिस ददा मोर काम हा ।काबर कि मरहा जी के रिस ला तो मेहा दू तीन बेर कार्यक्रम मा देख चुके रेहेंव ।


स्वाभिमानी मनखे


गरीबी के बावजूद वोहा कभू अपन स्वाभिमान ल नइ बेचिस ।


आयोजन म घलो नेता मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।कतको विसंगति उपर जमगरहा कविता सुनाके सुधार के बात करय अउ लोगन मन म जन -जागृति फैलाय के काम करिन ।अइसन जन कवि हा 10 सितंबर 2011 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के परम धाम म पहुंच गे । जन कवि मरहा जी ल शत् शत् नमन हे । 


      ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

      सुरगी, राजनांदगांव

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