Monday, 23 September 2024

पितर पाख-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 पितर पाख-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


भगवान गणेश भादो शुक्ल पक्ष के चतुर्थी ले चतुर्दशी तक ग्यारह दिन ले विराजमान रहिथे, लइका लोग संग सियान मन घलो खूब सेवा जतन करथे। गली गली खोर खोर सइमा सइमो करथे। भगवान गणेश के विसर्जन के बाद,कुँवार लगते ही पितर पाख हबर जथे।घरों घर बनत बरा सोंहरी अउ हूम धूप के खुशबू ले चारो मुड़ा महर महर ममहाय बर लग जथे। पितर पाख म मनखे मन अपन गुजरे पुरखा मनके मान गउन म दान दक्षिणा  अउ भजन कीर्तन करथे।संगे संग दीन हीन, ब्राम्हण अउ पास परोसी, ल भोजन घलो कराथे। पाख भर घरों घर म बरा सोंहारी चुरथे। कोनो अपन पुरखा ल एकक्म, त कोनो दूज तीज, त कोनो साते आठे के मानथे। पितर पाख के पन्द्रह दिन भर कखरो न कखरो घर माई पितर रहिबेच करथे। पितर पाख म गुजरे पुरखा आथे कहिके ये बेरा सिर्फ इंखरे पूजा पाठ होथे, भगवान मनके पूजा पाठ घलो बन्द रहिथे। हमर छत्तीसगढ़ म पितर लगभग सबे कोई मनाथे। चाहे वो अपन ददा दाई या पुरखा के सेवा जतन करे रहय या झन करे रहय, फेर पितर पाख म पुरखा मनके सुरता जरूर करथे। वास्तव म तो मनखे मन ल जीते जियत अपन ददा दाई के बढ़िया सेवा जतन करना चाही। कई झन करथे घलो, फेर कतको मन नइ घलो करे। कथे जेन मन अपन ददा दाई के सेवा जतन बढ़िया करे रहिथे, उन मन ल उँखर पितर मन आके बढ़िया आशीष देथे। अउ जेन मन नइ मानिस वो मन कतको पितर मान ले नइ पुन लगे। पितर पाख म पुरखा मनके सुरता के संगे संग उँखर गुण ज्ञान ल  अपनाय के घलो उदिम करे जाथे, उँखर अधूरा सपना ल पूरा करे के प्रयास घलो लइका मन करथे। पितर पाख म दान दक्षिणा के जबर महत्ता हे, कथे ये समय अपन पुरखा जे सुरता म दिए दान दक्षिणा अबड़ फलते फुलथे, अउ घर म गुण गियान अउ धन  रतन के बढ़वार होथे। पितर पाख म मनखे मन संग कौवा मन ल घलो रंग रंग के खाये बर मिलथे। कतको सियान मन तो कथे के पुरखा मन कौआ बनके छानी म आके काँव काँव करथे, तेखरे सेती तो छानी म खीर पूड़ी अउ उरिद दार ल घलो फेके जाथे। आजकल के मनखे मन  मन पितर वितर मनई ल कोसथे घलो, कि ददा दाई के सेवा जियत म होय,मरे म भूत प्रेत बर का मया? बात तो सही हे, तभो ले लगभग सबे मनात हे, महापुरुष मन ल तो घलो सुरता करके उँखर ज्ञान गुण ले सीख लेथन, का पितर मनई वइसने नइ हो सके, हो सकथे, फेर सोच सोच के फरक आय, जेन चलागन चलत हे, वो कोनो गलत नोहे, पर देख देखावा जादा बने घलो नही। पितर मनाये ले पुरखा मन के प्रति मया बने रइथे। मन म भाव भक्ति , अउ दान दक्षिणा के भाव घलो उमड़थे।पितर के बहाना पास पड़ोसी अउ गाँव भर मिलके खाना पीना घलो करथे, जेखर ले दया मया घलो बढ़थे। त पितर मनाय म कोनो हर्ज नइहे।तिहार बार मेल मिलाप अउ मया दया के परिचायक होथे, तेखर सेती सब मनखे एक साथ मिलके मनाथे घलो। वइसने पितर पाख घलो ये, जेन आदर सत्कार, अउ पाप पुण्य के सीख घलो देथे। अपन पुरखा ल दुख देके पितर मनाये म कुछु नइ मिले, पितर मनके आशीष पाय बर जीते जियत घलो उँखर सेवा होना जरूरी हे। खैर पितर पाख चलत हे घरों घर बरा , खीर,भजिया घलो चुरत हे। मनखे मन अपन पुरखा बर दतोन मुखारी लोटा म पानी अउ खीर पूड़ी घलो रखे हे। पितर मन आय हे की नही उही मन जाने , फेर मनखे मन बरोबर खीर पूड़ी झोरत हे, कौवा कुकुर घलो काँव काँव हांव हांव करत घूम घूम के खावत हे।  कौआ ले,एक ठन कहूँ मेर पढ़े बात सुरता आवत हे, कइथे कि कौआ मन भादो म प्रजनन करथे। ओमन ल वो समय जादा अउ पोष्टिक भोजन के जरूरत पड़थे। अउ पितर पाख भर छानी परवा म उरिद के दार के संगे संग खीर पूड़ी ओमन ल सहज म मिल जथे।  अउ दिखथे घलो, ये समय माई अउ पिला कौवा मन छानी म बड़ काँव काँव करत। उँखर पिला मनके बढ़वार ये बेरा पितर पाख के रोटी पीठा ले हो जथे। कौआ मनके के संख्या बढ़े ले, बर पीपर के बढ़वार ल घलो जोड़े जाथे। कहिथे कि बर अउ पीपर अइसन शापित पेड़ हरे जेन सिरिफ कौआ मनके मल म रहे बीज द्वारा जगथे। तभे तो उटपुटाँग जघा म नान्हे नान्हे बर पीपर जगे दिख जथे। जेला हमन जतन करके बढ़िया जघा लगाथन घलो, अउ सबला अइसन जघा म जगे बर पीपर ल बने जघा म उगाना चाही अउ ओखर जतन करना चाही। बर पीपर के पेड़ हमर बर कतका उपयोगी हे येला सबे जानथन। यदि अइसन बात हे, त कौआ मनके संरक्षक अउ बढ़वार जरूरी हे, काबर सिरिफ  पितर पाख के रोटी पीठा के भरोसा रहय। फेर पहली के सियान मन ये पाख म  अपन पुरखा मनके सुरता म,कौआ मन ल खीर पूड़ी खावत आवत हे, कोन जन अभिन के मन कतका दिन खवाही? यदि बर अउ पीपर के पौधा सच म उँखर मल द्वारा उत्सर्जित बीज म ही पनपथे, तब तो कौआ ल पुरखा माने म कोनो बुराई घलो नइहे। आज पुरखा मनके लगाये बर पीपर सहज दिखथे, नवा पीढ़ी ल घलो सिर्फ बर पीपर ही नही सबे पेड़ के बढ़वार अउ संरक्षण बर उदिम करना चाही। पितर ले मया बाढ़थे, पितर ले पुरखा मन के मान गउन होथे, पितर ले भुखाय ल घलो भोजन मिलथे, पितर म कौआ कुकुर अघाथे, त पितर मनाये म का बुराई हे। हॉं फेर उही बात कहूँ जीते जियत पुरखा मन के सेवा सत्कार जरूरी हे। तभे उँखर मरे के बाद हमर पितर मनई ह सफल होही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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