Monday, 23 September 2024

सात भांवर के बरे - बिहाय/कहिनी

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*सात भांवर  के बरे - बिहाय/कहिनी


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 *"सरपंचीन काकी,येहर मार मार के मोर पीट ल फटो  देय हे।फेर वोहर मोला चिटिक** *घलव नइ जनाइस ये। "चंपा कहिस।*

*"तब फेर..?"*



        


         नावा- बहु हर, अपन गोसांन ल पीट दिस हे रे..!नावा ...बहु हर अपन गोसांन ल पीट दिस हे रे..!! बबा रे..!

 गांव भर म हल्ला  मात गय रहे।


        येहर सच रहिस।सिरतोन म चंपा हर अपन सात- भांवर के बरे -बिहाई,अपन गोसांन.. अपन मालिक बोधराम ल पीट देय रहिस।



"घोर कलिजुग..!ये धरती म पाप हर उपलाईच गय न।"

" देखइ तो धुरिहा, कान म सुने नइ रइबे,तइसन -तइसन जिनिस मन अब सुनई परत हे।"

"कुछु भी हो जाय ,तभो ले दई..!अइसन करे के  काम  नइ होय।"

"अरे,एकर हिम्मत ल तो देख ।"

"जेकरे  अन्न ल खावत हे, जेकर वस्तर ल पहिनत  हे, जेकर छ्या म जुड़ावत हे, तउन ल मार दिस- भई!"

" अइसनहेच मन ल माटी तेल छींच के काड़ी मारत होंही.. अब जा कहके। "

" हाँ..रोज न रोज गजट म अइसन कछु न कछु छपेच रइथे ।"


        अउ येती पागा -वाला मन अलगे बइठे हें-

"अइसन पत्तो  के घेंच ल तरी आड़ा उपर आड़ा करके चीप देय के काम आय।"

"टुरा उप्पर..जनम दिन बर दागी लगा दिस।"

"बने देख ताक के नइ माँगथे जी, मनमोहना ।"

"ये मनमोहना, कहाँ ले, का बहु ले आनिस।"

"येकर देखा -सीखा अउ आन मन घलव अइसन करिहीं ।"

"कुछु रोक -रुकावट करो भाई, अइसन हर नइ बनत ये।"

"अरे विरज ,तँय काबर हदर मरत हावस।देखत तो रह।अभी बहुत कुछ होही।"

" ड*की .. हर ...ड*का ल मारही।बाबू अभी बोकरा- भात चुरही।चाहे मनमोहन देय ,चाहे वोकर समधी देय।"

"बुलाव मनमोहना ल..,अभी।"


       झमाझम  गुड़ी जुरे हे।तिल राखे के जगहा नइ ये । सरपंच -पति हर गुड़ी के अध्यक्षता करत हे। वोहर ,ये खबर ल सरपंच गायत्री के काने म नइ जान देय ये। चंपा के दई अउ ददा थर ..थर कांपत  हें ।

"कइसे जी,मनमोहना। ये काय सुनत हन भइ..!"सरपंच -पति पुछिन।

"अब मंय का  बतावंव, सरपंच साहब..!"

"हं..!तोर समधी का कहत हे।"

"अउ मंय , हमन का कइबो , महराज..!"

"तब तुमन ल ,हमर ये करा के फैसला मंजूर ....सरपंच -पति के गोठ हर पूरे नइ पाय रहिस, के वो जगह म असली सरपंच-गायत्री आ खड़ा होइन।

"तँय इहाँ कइसन..!" सरपंच पति कहिस।

"तुँ इहाँ कइसन.. ?"गायत्री थोरकुन  रिसहा मुस्कुरात  कहिन । सरपंच पति रिस म उठिस अउ वो जगहा ल परा गय।


"नावा बहुरिया चंपा  हर ,अपन गोसांन,बोधराम ल पीट देय हे, आना।अतकेच मंय सुने हंव।" सरपंच गायत्री कहिन।

"कइसे चंपा ,काबर पीट देय नोनी।"सरपंच गायत्री लटपट अपन हाँसी ल रोके सकत रहिन।

"..."

"वोहर तोला पीटिस...?"

"..."

"अइसन चुप रइबे ,तब थोरहे बन ही।डरा झन अउ बता,वोहर तोला पीटिस?"

"हाँ...!"

"अउ बलदा म तहुँ ,पीट देय वोला।"

"नहीं...बिल्कुल भी नहीं।"

"तब काबर पीटे,तँय वोला।"

"  सरपंचीन काकी,येहर मार मार के मोर पीट ल फटो  देय हे।फेर वोहर मोला चिटिक घलव नइ जनाइस ये। "चंपा कहिस।

"तब फेर..?"

"येहर आज दारू पी के आय रहिस हे, तेकर  सेथी येला दु रहपट लगा पारेंव ।"चंपा सरपट कहिस।


            अब तो येती सरपंच गायत्री के आंखी ल अँगरा बरसे के शुरू हो गय रहिस-मार येला, अउ मार...! मोर आगु म मार...!!


        बोधराम तरी मुड़ी कर के बइठे रहिस ।

"अउ आन दिन ल ,अउ अइसन कुछु करही तव फेर लगाबे,डराबे झन! मंय हंव न...।"सरपंच गायत्री फेर दहाडिस ।

"कइसे दाउ साहब, तोर का कहना हे। गुड़ी तँय जोरे हस न ..?"वो बोधराम ल फेर पुछिन।

"मंय  कहाँ जोरे हंव,काकी। ये गुड़ी तो अपने आप जुरे रहिस।" बोधराम कहिस, "बोकरा -भात लागही, कहत रहिन।"


          सरपंच -गायत्री मुड़ ऊँचा कर के देखिन-कहाँ  हें गुड़ी वाले मन कह के।फेर वो करा तो कनहुँ नइ  दिखत रहिन अब।


           पीटिस तब मोला तो पीटिस...!अउ मोला कुछु भी तकलीफ नइये,काकी... कहत बोधराम सरपंच -गायत्री के डेरी गोड़ ल धर डारिस।


         जेवनी गोड़ ल तो चंपा हर पहिलीच के धर डारे रहिस।

"फेर दाउ, दारू झन पीबे। नहीं त चिखीच डारे हस न, महाप्रसाद ल चंपा के हाथ ले ..." सरपंच गायत्री बोधराम ल खर खर आशीर्वाद देत कहिन।



*रामनाथ साहू*




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