Monday, 23 September 2024

सरई चन्द्रहास साहू

 सरई

                                      चन्द्रहास साहू

                                  मो 8120578897


सुरुज देव आज वोकर गप्पा मा उतरगे हावय। सिरतोन तो आवय गाँव के मोटियारी संग सियान के टोली उत्ती कोती जाथे तब लाल सुरुज के गोला अइसना तो दिखथे।

दल के जम्मो कोई लुसुर-लुसुर रेंगत हाबे सुरुज ला बोहो के। अउ अंजोर बगरावत हाबे गाँव के गरीबी ला टारे बर। रोज संकल्प के संग जाथे पैडगरी रद्दा मा जंगल कोती अउ टुकनी भर उछाह भरके लहुटथे बनवासी मन। रत्नगर्भा छत्तीसगढ़ के कोरा मा जम्मो जिनीस तो हाबे लोहा तांबा हीरा मोती चार तेंदू महुआ फेर सबले जादा कीमती हाबे इहां के मोटियारी मन। तभे तो शहरिया कोचिया मन ले डर  लागथे कटाकट जंगल के रहवासी मोटियारी मन ला। ...अउ डर लागथे मानवता के बैरी "भीतर वाला'' मन ले। 

मंगलदई लोकटी अयतिन फुग्गा सोनारिन अउ सरई जम्मो मोटियारी मन के दल आवय। जम्मो कोई के रेंगे ले सिरतोन उत्ती कोती गमके लागथे। जंगल पहार गुनगुनाए लागथे करमा ददरिया के सुर ताल मा। कुलकत नदिया-नरवा मांदर बजाथे अउ पपीहा कोइली मंजूर मन संगीत देथे।..... ये बस्तर के जंगल आवय पेड़ पौधा घला मया पाके मया लहुटा देथे अपन उत्पाद के रूप मा।

             मोटियारी सरई सिरतोन सरईरुख कस पोठ हाबे। कतको दुख पीरा सहिस फेर नइ टूटिस भलुक अउ खिलखिलाए लागिस। चाकर माथ, घुंघुरालू चुन्दी, पीठ मा झूलत बेनी, आँखी मा काजर अंजाये, मुहूँ मा मुहरंगी अउ लचकदार कोंवर सरई डारा बरोबर कनिहा।  ये जंगल के जम्मो मरम ला जानथे सरई हा। ...... अउ उही तो आवय अगुवा जंगल जाए बर। तिड़ीक- बिड़ीक जम्मो रद्दा मुँहअखरा  याद हाबे। कोन रद्दा डोंगरी पहाड़ जाथे अउ कोन रद्दा जंगल के दाहरा मा समाथे। जम्मो कोई बघवा मार रद्दा मा जाए बर तियार होगे अब।

जंगलदाई घला अघा जाथे अपन मयारूक बेटी मन ला अपन अंगना मा पाके। सरई अउ वोकर टोली मन ला देख के गमके लागथे। डोकरी दाई,नानी हा खई-खजाना देथे वइसना जंगल के रुख - राई मन घला अपन उत्पाद ला खई-खजाना बरोबर देये लागथे। मामी चार - चिरौंजी हा पांव परथे। सीताफल मोसी हा सरई ला देखते साठ अपन पाका -पाका मीठ वाला डारा ला नवा देथे। काकी परसापान अपन पत्ता ला दे देथे। नान्हे बांस करिल अउ बोड़ा पिठैया चढ़े बर अतलंग लेथे। कभु मंदरस घला टपक जाथे तब रसवंती आमा घला रुंगरूंगाये रहिथे सरई अउ वोकर टोली मन ला मान देये बर। सिरतोन जम्मो रुख-राई नत्ता गोत्ता बनगे हाबे।

मंगलदई एक लबेदा मारथे आमा रुख मा अउ जम्मो कोई मीठ आमा चुहके लागथे।... अउ वोती मीठ तेंदू तो घेक्खर कका आवय। ठाड़े हाबे बोकबाय, उसनिंदा। जगाये लागिस सरई हा। कान मा कुछु फुसफुसाइस तेंदू के अउ काबा भर पोटार लिस रूपषोडशी  सरई हा। लजागे तेंदू रुख हा अउ पत्ता ला हलाके हाँसे लागिस खुलखुल-खुलखुल निपोरचंद हा  फेर तेंदू फर एको नइ गिरीस। एक बेर, दू बेर अउ हलाए लागिस फेर वो तो घेक्खर हाबे। अभिन इतरावत हे। 

"ये सरई ! ये ले पथरा तेंदू रुख के जर करा कचार तब गिरही तेंदू फर हा।''

सोनदई आइस बड़का पथरा ला धरके  अउ जर मा पटके ला किहिस तेंदूरुख के। सरई भलुक पोठ हाबे फेर निर्दयी नइ हाबे।

"तेहां कचार पथरा ला वो ! मेंहा भलुक नइ खाहूं फेर नइ कचारो।''

सोनदई अब ताकत भर पटके लागिस पथरा ला तेंदू रुख के जर मा ....फेर तेंदू तो घेक्खर आवय वोला तो सरई के मया चाही।

"अब मान जा मोर कका ! अपन बेटी मन ला अपन गुरतुर तेंदू नइ खवाबे का....?''

सरई पोटार लिस अउ फेर हलाये लागिस। ... सिरतोन हवा के झोंका आइस अउ तेंदू गिरे लागिस रतबिद-रतबिद। जम्मो कोई खाइस घला अउ बिनके टुकनी भर के लेगिस घला।

अब जम्मो कोई लहुटे लागिस। चार तेंदू ले भरे टुकनी संग। आज लखनपुरी के बाजार घला हाबे। झटकुन घर जाके बाजार-हाट के तियारी करही जम्मो कोई।

                        लखनपुरी के बस स्टैंड मा दाई पसरा लगाथे सबरदिन अउ वनोपज ला बेचथे । बेटी सरई हा बाजार हाट मा किंजर के बेचथे।

                        आज शनिचरी बाजार आवय लखनपुरी के। महुआ चार लासा अउ लाख ला धमतरी कांकेर कोरर  रायपुर बिलासपुर के शहरिया कोचिया करा बेच डारिस सरई हा अउ अपन पसरा मा जाके तेंदू बेचत हाबे। ....अरे हा आज देवगुड़ी मा देव परघानी घला हाबे। वोकरे सेती जम्मो जिनिस ला झटकुन बेंच के देवगुड़ी जाही सरई हा। देवगुड़ी मा वोकर देवता आही आज सौंहत। बीस रुपिया भाग मा बेचत हाबे तेंदू ला तभो ले लेवाल नइ मिलत हाबे। 

"दंतेसरी दाई, आंगा महाराज ! झटकुन ग्राहक पठो। झटकुन बेचहुँ जम्मो जिनिस ला तभे तो तोर दरस करे बर जा सकहूं महतारी।''

सरई फुसफुसाये लागिस। दूनो हाथ जोर के सुमिरन कर डारिस अब। मंदिर ले तुरही के आरो आये लागिस।

तुर्र...... तुर्र तुर

अउ

दड़दिम - दड़दिम

मृदंग के आरो। 

धींग तडांग धिंग

मांदर बाजे लागिस। अब सरई के जी मिचलाए लागिस।  शरीर भलुक बाजार मा हाबे फेर मन हा देवगुड़ी मा टंगागे अब। मन हिरनी बनगे। धड़कन बाढ़गे। काया मा लाखो करोड़ो चाटी रेंगत हाबे अइसे झुरझुरी समागे।

दड़दिम - दड़दिम

तुर्र...... तुर

मृदंग अउ तुरही के जस आरो आथे तस सरई के हाथ गोड़  कांपे लागथे। टोंटा मा कुछू जिनिस अटकगे हाबे अइसे लागथे। जम्मो काया मा गुदगुदी हो जाथे अउ रुआ ठाड़ हो जाथे।

थोकिन आगू चार तेंदू बिक जावय अउ पइसा मिले के मोह रिहिस फेर अब तो माटी लागत हाबे जम्मो जिनिस हा। कोनो ला फोकट मा घला दे दिही।

"सबो ला कतका मा देबे ?''

उदुप ले शहरनीन कोचनीन के आरो सरई के कान मा पड़ीस । जइसे सिरतोन मा दंतेसरी दाई पठोये हाबे।

"लेग जा जम्मो ला तोर मन से देबे पइसा कौड़ी ला।''

"दू सौ चालीस रुपिया दुहुं जम्मो के।''

"हांव!''

सरई हुंकारू दिस अउ जम्मो पसरा ला समेटे लागिस। शहरनीन कोचनिन घला अचरज मा परगे आज। दू रुपिया बर जोम देवय सरई हा अउ आज ...?

"तोर तबियत बने तो हाबे न नोनी सरई ?''

"ह.... हाँव मोला का होही ?''

मोटियारी सरई बनावटी हाँसी हांसे लागिस अउ पइसा ला झोंकते साठ मंदिर कोती जाए लागिस।

अब्बड़ सइमो-सइमो करत हाबे बाजार। जावय तो कइसे ? भीड़ के बीच जौन कोती रद्दा दिखिस जाए लागिस। साग भाजी के बड़का पसरा, टिकली फुंदरी के दुकान। सुपा झेंझरी बेचइया अउ ओरी- ओरी बइठे लांदा सल्फी बेचइया दाई मन। कुकरी लड़ावत शहरिया गवइया मन। सब ला देखिस ते भीड़ के बीच समुंदर मा हबरगे हावंव अइसे लागत हाबे। आज तो सरई ला अइसे लागत हाबे जइसे कोनो मंतर जानत रहितेंव अउ चिरई बन के उड़िया जातेंव। 

मंदिर के तुरही कान मा परत हे अउ मन फेर दउड़े लागिस।  फेर ये पारी मन के संग गोड़ घला दउड़त हाबे।

                       तरिया तीर के मैदान आवय। पार मा शीतला दाई बिराजे हाबे। इही मैदान मा गाँव भर के दाई दीदी बहिनी डोकरा छोकरा जवनहा सकेलाये हाबे। देव परिक्रमा के नेवता पाके गाँव के जम्मो देवी देवता मन आए हाबे। हिंग्लाजिन माता पदमादेव झारिन माता भैरम देव धावड़ा वीर दंतेसरी दाई अउ आंगा देव जम्मो देवी देवता सकेलाए हाबे अपन धजा पताका डांग डोरी ले। गायता पुजारी मांझी चालकी जम्मो कोई देवधामी के हियाव करत हाबे। सादा नवा धोती अउ नरी मा गोंदा फूल के माला सौहत सरग ले देवधामी उतरगे अइसे लागत हाबे। जम्मो कोई देवी देवता ला देखत हाबे। देवी मन घला रनभन रनभन खेलत हाबे,झुपत हाबे....सब मगन हाबे फेर सरई के आँखी कोनो ला खोजत हे। 

........अउ तुड़बुड़ी मांदर मृदंग अउ तुरही के आरो उदुप ले बाढ़गे भीड़ कोती ले जयकारा आए लागिस। 

"गप्पा  दाई की जय !''

"बूढ़ी माई गप्पा  दाई की जय !''

बड़का टुकनी मा आसन लगा के आवत हाबे गप्पा दाई हा। सरई एड़ी ऊंचा-ऊंचा के देखत हाबे फेर कहा दिखही अतका भीड़ मा ?

... अउ दिखीस तब अइलाये फूल फेर खिलखिलागे। 

चार झन मनखे बोहो के आवत हे  गप्पा दाई के पालकी ला। गाँव के जवनहा हा धरे हाबे गप्पा दाई के बरन ला। लाली लुगरा पहिरे,  मुड़ी मा चांदी के मुकुट, आँखी मा काजर हाथ मा अइठी चूरी पहिरे गोड़ मा पैजनिया आल्ता माहूर लगाए । नरी ले छाती मा झूलत गोंदा फूल के बड़का गुच्छी। बाजा के धुन संग हालत डोलत  मुड़ी। बाजा के धुन बाढ़थे मुड़ी के डोलना  बाढ़ जाथे। बाजा अतरथे डोलना कमतिया जाथे। अब डोली ले उतरिस जवनहा हा अउ एक हाथ मा फरसी दुसर हाथ मा हुमदानी ला धर के रनभन रनभन नाचे लागिस। सिरतोन अब्बड़ सुघ्घर नाचत हाबे गप्पा दाई के बरन धरे जवनहा लखमू हा। बाना लिए डांग डोरी धजा पताका संग जम्मो  देवी देवता नाचे लागिस, खेले लागिस अब ससन भर । जम्मो कोई देखे लागिस। सरई के नजर तो लखमू मा गड़े हाबे। मिलखी घला नइ मारत हाबे।  देवता के अइसन खेल सिरतोन जम्मो कोती जयकारा होये लागिस। 

"गप्पा  दाई की जय !''

हिंगलाज माता की जय

दंतेसरी दाई की जय 

आँगा देव की जय

पुजारी हा कांटा लगे लोहा के सांकड़ ला पीठ में मारत हे लहू के निकलत ले। डर अउ उछाह के रंग दिखत हाबे जम्मो कोती। फेर सब ले बड़का भक्ति अउ शक्ति के भाव दिखत हे। 

अब शांत होगे देवधामी मन। 

                  जम्मो देवी ले बड़का देवी आवय गप्पा दाई हा। कोनो सेठ के मनौती पूरा होये रिहिन तब लखमू के मुड़ी मा साजे चांदी के मुकुट अउ नरी के मंगलसूत्र देये रिहिन। बड़का आसन मा गप्पा दाई ला बइठारिस शांत कराइस अउ अब भेंट करे के आसन मा बइठारिस लखमू ला।

गाँव मा सुख समृद्धि लाने बर अउ अलहन ले बाचे बर सुमिरन करत हाबे लखमू हा। कोनो हा नरियर फूल पान दूबी मा भेंट करत हाबे तब कोनो हा रुपिया पइसा चाउर दार के भेंट करत हाबे। कोनो अपन दुख ला बतावत हाबे तब कोनो अलहन ले बांचे के उदिम करत हाबे। जवनहा लखमू आँखी मूंदे-मूंदे तुड़बुड़-तुड़बुड़ कुछू बोलत हाबे हल्बी गोंडी छत्तीसगढ़ी भाखा मा मिंझरा। भाखा भलुक कुछु समझ नइ आवत हे फेर सबके दुख दूर होवत हाबे।

               सरई करा घला जब्बर दुख हाबे। छाती मा पथरा लदकागे हाबे। न कुछु बता  सकत हाबे न कुछु  पूछ सकत हाबे। 

घर ले लाने चंदेनी गोंदा फूल के माला ला निकालिस अउ लखमू के मुड़ी मा डार के डंडासरन होगे।

तरी-तरी दंदरत सरई के आँखीं मा सिरतोंन इंद्रावती  के पूरा आगे। हिचकी मारे लागिस, सुसके लागिस। 

"ये बूढ़ी माई गप्पा देवी ऊपर भरोसा राख। तोर रद्दा मा कांटा अब्बड़ हाबे। भरोसा राखबे तेंहा अबिरथा नइ जावय। परीक्षा के घड़ी हाबे तोर बर। तोर मनोबल ले ये परीक्षा मा सफल हो सकथस। मन ला पोठ राख।''

आँखी ला मूंदे मूंदे किहिस बूढ़ी माई गप्पा देवी के बरन धरे लखमू हा।

आँसू पोछत उठीस सरई हा अउ भीड़ ले दुरिहा मा जाके ससन भर रो डारिस दंदर-दंदर के।

                    सिरतोन कतका सरल अउ सोज दिखत हाबे सरई के जिनगी हा वोतका सोज नइ हाबे।

                      बस्तर जिहाँ प्रकृति के सुघ्घर चित्रकारी दिखथे हरियर  पियर लाली गुलाबी जम्मो रंग तो हाबे बस्तर मा। फेर सबले बड़का रंग लहू के रंग होगे हाबे अब। सब रंग फिक्का परगे हाबे लहू के रंग के आगू मा। जल जंगल जमीन के नाव मा प्रकृति के, मानवता के, संवेदना के,मया दुलार के अउ भाईचारा के भादो उजाड़ करत हाबे  आदिवासी के हितवा कहवइया करिया ओन्हा वाला मन। आम जनता ला मोहरा बनावत हाबे। अउ वो कोन आवय सब जानथे-भीतरी वाला, जंगल वाला आने आने नाव हाबे ......। वोकर सदस्य मन ओसरी पारी ये जंगल गाँव सुकुरपाल मा महीना पंद्रा दिन मा आथे अउ दारू कुकरी बोकरा भात के दावत उड़ाथे। नाच गा के मनोरंज करथे बंदूक के नोक मा

जल जंगल जमीन अउ अधिकार के गोठ गोठियाके चले जाथे। 

              उही दल के मोटियारी सोमली हार्डकोर कमांडर होगे हाबे अब। सरई लखमू के संग पढ़े हाबे ननपन मा। गाना बजाना मा सुघ्घर रिहिन सामली हा। ताली बजइया हाथ काकर आवय नइ जान सकिस अउ  बहकावा मा आके भीतरी वाली बनगे। गाँव आथे अउ जम्मो कोई ला भरमाथे अपन चिक्कन गुरतुर गोठ मा। कतको झन मन वाेकर बहकावा मा आके जिनगी ला खुंवार कर डारिस अउ कतको झन पुलिस के गोली खा डारिस। सामली के नीयत तो लखमू ऊपर गड़े हाबे। अपन संग जंगल जाए बर कहिथे। 

अतकी भर रहितीस ते संवास लेतिस सरई हा। सामली हा लखमू संग बिहाव करहू अइसे अड़े हाबे। इही दुख हा घुना कीरा बरोबर खावत हाबे सरई ला। लखमू घला सरई ले मया करथे संग जिए मरे के किरिया घला खाए हाबे फेर सामली तो दुनो के मया मा झोझा परगे हाबे। सामली तो सोज्झे सुना दे हे लखमू मोर आवय पोगरी। मोर नइ हाेही ते काकरो नइ हो सके। वोकर कोती आँखी घला उठा के देखबे ते आँखी ला कोचक दुहूँ। अवइया  मड़ई के रात मा देख लेबे रे सरई। तेंहा लखमू ला भुला दे नही ते ......?

कोन जन दंतेसरी दाई! का करही बैरी सामली हा। तही बचा वो मोर बूढ़ी दाई अब तोरे आसरा हाबे वो।

गोठ ला सुरता करके सरई के जी घुरघुरा जाथे। अपन इष्टदेव ले अरजी बिनती करे लागिस सरई हा। अब्बड़ मनौती मना डारिस देवी देवता ले, सामली ले घला फेर वोकर आँखीं मा लहू उतरगे हाबे। करिया ओन्हा पहिरे खांध मा बंदूक लटकाये सौहत यमराज लागत रिहिन सामली हा। नारी परानी के अंतस अब्बड़ कोंवर होथे। मया दुलार के महत्तम ला जानके गोरस पियाथे,जीवन देये के सौभाग्य मिलथे नारी मन ला फेर सोमली अउ वोकर कारनामा  ?  दंतेवाड़ा के पुलिस जवान के गाड़ी ला बम बारूद ले उड़ा देये रिहिन। बाजार हाट मा मुखबिर समझ के सरपंच के नरी ला रेत दे रिहिन। अइसन नारी के बरन ....? सरई के रुआ ठाड़ होगे गुनत-गुनत जम्मो ला। रोये लागिस। फेर  रोये मा बुता नइ बने सरई। पोठ बने ला लागही सति सावित्री हा सत्यवान ला लान डारिस अपन मया अउ पतिव्रता के धरम मा। तब तेंहा काबर नइ लान सकबे..? सरई के अंतरात्मा ले गोठ निकलत हाबे। 

हा मेंहा लखमू ला अपन ले अलग नइ कर सकंव।  

                    मड़ई मा सबके अंतस हरिया जथे। गाँव भर उछाह मा मगन होके नाचथे गाथे।  देवधामी ले आसीस लेके मनौती मनाथे धन्यवाद देथे। बाजार हाट करके अपन जरूरत के जिनिस बिसाथे। गाँव गमकत हाबे।  सब मगन हे। लखमू घला अपन जोरा जारी मा हे। आज देव बिराजही-गप्पा देवी बूढ़ी माई हा। लखमू अब्बड़ उछाह मा रहिथे। देवी बनके सबके दुख हरथे तेकर सेती। कभू अपन उछाह बर नइ मांगिस दाई ले फेर जम्मो के उछाह बर अब्बड़ उपास धास रहिथे। लखमू अपन सवांगा मा निकलिस मड़ई के देव परघानी मा तब सब गमके लागिस। फेर सरई के चेहरा मुरझागे हाबे। न संग छोड़त हाबे लखमू के न मिलखी मारत हाबे एक पल सरई हा।

दिन तो बुलकगे फेर संझा अउ रात  ... ? गजब संसो होगे सरई ला। 

           संझा के बेरा लखमू संग मड़ई किंजरत रिहिस सरई हा कि पान बिसाये बर ठेला मा गिस अउ गवागे लखमू हा। अब्बड़ खोजिस फेर नइ मिलिस। .....अउ जानबा होइस तब  ? जंगल के रद्दा मा चल दिस। अपन घर के गप्पा देवी के गोड़ मा माथ नवाके। 

              जन अदालत लगे हाबे आज जंगल भीतर। लखमू ला मुखबिर कहिके धर के लाने हाबे। जंगल मा आधा बस्ती आगे हे। दू ठन सरई रुख मा बंधाए लखमू छटपटावत हे। 

"मोर जान जब तक रही तब तक सरई ला मया करहूं। ... अउ कोनो मुखबिरी नइ करे हंव। तुंहर नियत मा खोंट हाबे आदिवासी के हितवा बनके जम्मो ला लूटत हावव। न कभू झुके हंव अनित के आगू मा। न कभू झुको।''

लखमू किहिस सोज्झे। अगिन बरसे लागिस सामली के। डीठ सामली कभू नही नइ सुने हाबे आज कहां ले सुन लिही। बंदूक ला लोड करके निशाना साधे लागिस। अंधियार मा ठाड़े सरई के जी धक्क ले लागिस। 

"का दिन देखावत हस दाई दंतेसरी ! जिनगी भर जौन तोर सेवा बजावत हे उही हा जन अदालत मा ठाड़े हे। तेंहा जम्मो ला जानथस तोर बेटा ला बचा ले, मयारूक बेटा ला बचा ले।''

सरई सुमिरन करिस। कांपे लागिस गोड़ हाथ हा। तभे बिजली के फुर्ती संग कनिहा मा खोंचाये फरसी मा गिस सरई के हाथ हा। गप्पा दाई के फरसी ला दिन भर धर के किंजरत रिहिन न। पोठ सरई आज कंकालीन माई बनगे अउ सामली के घेंच मा फरसी ला टेंका दिस। जम्मो कोई डर्रागे। सामली ला लात मा मारके गिरा दिस अउ छाती मा बइठगे सरई हा। चेला चंगुरी मन अकबकागे। गाँव वाला मन डर के मारे कुछू नइ कही सकत रिहिस तौनो आज उमिहागे सरई ला देखके। भीतरी वाला मन आज भागे लागिस जान बचाके।

"लखमू हा मोर आवय पोगरी । जीते जीयत मोर ले कोनो नइ नगा सके । .... अउ लखमू घला किरिया खाएं हाबे संग जिये अउ संग मरे के। तेंहा मया करथो कहिके ढोंग लगाथस सोमली। मया के महत्तम ला जानतेस तब आज मारे बर नइ अगुवाय रहिते। मया मा पाना ही नही भलुक समर्पण के भाव होथे अउ काकरो जान लेना तो कब्भू उचित नइ हे।'' 

सरई किहिस अगियावत। 

"सिधवा लखमू के का गति करत रेहेस रे दुख्खाही कीरा परके मरबे।''

"तोर लाश मा कुकुर मुतही रे। अपन माटी अपन नत्तागोत्ता संग गद्दारी  करत हस।''

गाँव के सकलाये मनखे मन अब सामली ला दुतकारे लागिस। कोनो कोनो तो दू चार थपरा  मार घला दिस। बंदूक के डर नइ रिहिस आज कोनो ला। ... अउ भीड़ के मनोबल  के आगू मा चार झन कुकुर मन कतका भुकही। सोमली मन ला सरई रुख मा बांध के दू दू कोड़ा मारे आज डांड दिस आज के जन अदालत मा।  

चाकर छाती वाला अउ पोठ सरई अपन पोठ मनोबल ले लखमू ला पा डारिस। भीड़ मा गप्पा देवी बूढ़ी माई के जयकारा होये लगिस।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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