Wednesday, 4 September 2024

आलेख - लोक संस्कृति कमरछठ परब*

 *आलेख - लोक संस्कृति कमरछठ परब*

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                  हमर देश भारत म अलग-अलग राज के संस्कृति अउ कला के भरमार हावे येमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति,कला,भाखा,रीति-रिवाज,खान-पान अउ तीज तिहार के अलेगेच चिन्हारी हावे।छत्तीसगढ़ अपन रीति-रिवाज अउ कला संस्कृति के नांव ले पूरा देश मा अलगेच चिन्हारी बनाये जेहर काकरो ले नी लुकाय हे।हमर छत्तीसगढ़ म बारो महीना के अलग-अलग तीज तिहार ला अब्बड़ सुग्घर अपन परम्परा ले जुन्ना समे ले मनावत आवत हे।छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति म कमरछठ तिहार जेन ल हर बछर भादो के अँधियारी पाख के छठ के दिन मनाथें येकर अलगेच महत्तम हे।

          कमरछठ के दिन हमर महतारी अउ दीदी,बहिनी मन अपन लोग लइका मन के सुग्घर जिनगी जीये अउ उंकर बढ़ोत्तरी दिनों-दिन बाढ़े के खातिर उपास रहिथें।कमरछठ उपास बड़ कठिन सदाथे काबर के ये दिन उपसहीन मन जेन जघा म नांगर जोताय रहिथे वो जघा म नी रेंगय अउ बिना नांगर जोताय जघा ले उपजे धान के चाउंर जेन ल पसहर चाउंर कहिथे वोकरे पूजा म उपयोग करथें वोकरेच चाउंर ल रांध के परसाद के रुप म फरहारी करथें।अतकेच नी हे भलुक जेन जघा म नांगर नी जोताय अइसनहा जघा के मउंहा के पाना अउ वोकरेच मुखारी ला करथे कासी पउधा के अलगेच महत्तम बताये गे हावे।

           कमरछठ उपास जबर कठिन साधना के उपास हावे।बिहनिया बेरा ले पूरा सराजाम करे के तियारी करथें।कमरछठ उपास खातिर भइंस के दूध,दही,घी अउ वोकर गोबर के खास मानता रहिथे संगे-संग छै जात के भाजी जेन ह नांगर झन जोताय रहे अइसन जघा के भाजी जेन जघा म लमेरा जागे रहिथे उहीच भाजी ल उपयोग म लानथे।लइका मन के खिलउना माटी के चुकिया,डोंगा,बांटी भंवरा घलो बनाय रहिथे।

            कमरछठ उपास ल महतारी मन अपन लइका के उमर बढ़ोतरी वोकर खुशहाली जिनगी जिये के सेथी अउ नवा-नेवरनीन मन लइका पाये बर बजर कठिन साधना करथें। पूजा ल बड़का विधि-विधान अउ नियम-धरम ले करे जाथे।ये दिन के धार्मिक मानता के मुताबिक भगवान किशन के बड़े भाई बलदाऊ जेन ल हलधर घलो कहे जाथे वोकरे जनमदिन हरे तेकर सेथी वोकरो पूजा करे के विधान बताय गे हावे।कतको झन कमरछठ परब ल मनाय के पाछू गौरी माता ह कार्तिकेय ल बेटा के रुप म पाय रहिस वोकर गोसाईंन के नांव षष्ठी रहिस के तेकरे सेती कमरछठ उपास ल हलषष्ठी कहे गे हावे।

           छत्तीसगढ़ मा कमरछठ तिहार के अलगेच महत्तम हे। ये दिन महतारी अउ नवा-नेवरनीन मन महुआ के कोंवर डारा के मुखारी करथें अउ असनान करके तियार होके गाँव के बीच बस्ती म सगरी खनाय रहिथे सगरी ल फूल पान अउ काशी ले चारो मुड़ा ले सजाय रहिथे।उहाँ जाके सबोझन सकलाथें अउ अपन सरधा भक्ति पूजा-पाठ करथें। पूजा- पाठ बर मउहा के पाना,पतरी,दोना अउ मउहा फूल अउ मउहा के तेल जेन ल डोरी तेल घलो कहिथें ये जमो के अलगेच महत्तम रहिथे। कमरछठ के दिन भइंस के दूध दही चढ़ाए जाथे।येकर पाछू येहू कारन हे के इही दिन देवता मन मंत्र शक्ति ले भइंस के सिरजन करे रहिन।तेकरे सेती भइंस के दूध,दही अउ घी ल ही बउरे जाथे।

             कमरछठ के दिन गाँव के महाराज ह सबो उपसहीन मन ला कमरछठ तिहार के कहानी सुनाथे।पूजा होय के पाछू छुही/चंदन ल दोना म घोर के घर के लइका मन ला पीयंर पोथी जेन ह कपड़ा के बने रहिथे अपन लइका के पीठ म पोता करे के चलागत हे पीठ म पोता मारे के पाछू ये मानता हे के पीठ कोती अधर्म के वास होते अउ पोता लगे के पाछू अधर्म के नाश हो जाथे।अउ सगरी के पबरीत पानी ला पूरा घर में छिंचे जाथे। जेकर ले घर मा सुख समृद्धि के बढ़ोना बाढ़थे अइसे मानता हावे।कतको गुनीक मन के मुताबिक लक्ष्मी जी के जनम सागर ले होय रहीस वोकर सेती सगरी पूजा के विधान हे।

            पसहर चउंर के रांधे भात अउ छै जात के भाजी साग ल पूजा करे के बाद फरहारी करथें अउ पारा-परोस म एक दूसर घर घलो परसाद बांट के मिल-जूल के सुग्घर ढंग ले हमर लोक परब,लोक संस्कृति कमरछठ परब ल मनावत अउ सुख समृद्धि के संदेशा देवत रहिथें।

               *सबोझन ल जोहार हे*


*✍️डोरेलाल कैवर्त*  "*हरसिंगार*"

        *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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