Monday, 23 September 2024

अग्नि संस्कार : बड़े केनवास म बने विचारणीय कहिनी*

  *नक्सली पृष्ठभूमि म एक नन्ही-नौनिहाल के व्यथा अउ संघर्ष के अनकही कहानी* 


          छत्तीसगढ़ी कहानी *: अग्नि संस्कार* 


                 - डा विनोद कुमार वर्मा

                             

                           ( 1 )


बस्तर संभाग म केशकाल घाटी बहुत प्रसिद्ध हे। कांकेर ले निकले के बाद बस्तर पठार के चढ़ाई शुरू हो जाथे। सड़क ह गोल-गोल घुमत साँप की तरह लहरावत उपर चढ़थे त हवा के मनोरम झोंका अउ पहाड़ी ले दिखत हरियाली मन-प्राण ला मोह लेथे। बस म बइठे रामप्रसाद ल इंतजार रहिस कि कब बस ह  घाटी ला पार करके केशकाल पहुँचे अउ अपन संगवारी मन सो भेंट हो, जेमन कामरेड सुखेन्दु के स्वागत बर उहाँ इकट्ठा होहीं! ओहर अपन बेग म लगभग 300 लाल झंडा ला ले के सफर करत रहिस। झंडा लाने के जवाबदारी ओखरे रहिस। बेग बस के उपर म रहिस। ओला दू बात के डर घलो लगत रहे कि कहीं बस ह घाटी ले नीचे गिर गे त सैकड़ों फीट नीचे गिरे म का कोनो बच पाहीं? बस सकरी घाटी म 80 -100 के स्पीड म लहरावत भागत रहे। एही कोई सबेरे पाँच बजती बेरा रहिस। उषा के लालिमा,पूर्वी क्षितिज म पहाड़ के पीछे हल्का-हल्का नजर आवत रहिस। हल्की ठण्डी-ठण्डी हवा के पहाड़ ले टकराय के कारण आत्मा ला तृप्त कर देने वाली शंखनाद जइसन ध्वनि अउ कान म मधुरस घोलत पक्षी के कलरव के आवाज मानों दूर मंदिर म घंटी बजे अहसास करावत अनाहत नाद जइसन पारलौकिक लगत रहिस। रात्रि के अंतिम पहर ला विदा देत,भोर के निस्तब्धता ला तोड़त ये अनाहत ध्वनि कोई घंटा के आघात द्वारा नहीं, बल्कि प्रकृति द्वारा स्वमेव सृजित किये गे रहिस। खिड़की ले अपन हाथ ला बाहर निकाले, प्रकृति के सौंदर्य अउ हवा के झोंका ला महसूस करत रामप्रसाद के अंतस ह काँप गे जब देखिस कि पुलिस वाला मन बस ला रोक ले हें! ओकर दूसरा डर एही पुलिस तो रहिस। ओमन हल्का-फुल्का पूछताछ अउ सवारी मन के आधार कार्ड आदि देखे के बाद बस ला जाय के परमिशन दे दिन। कहूँ रामप्रसाद के बैग ल चेक करतिन त आज वोकर फजीहत हो जातिस अउ शायद ओला रोक घलो लेतिन! जाँच के बहाना पुलिस ला मनमानी करे से कोनो रोक पाय हे का?

          दिन के लगभग 09 बजती बेरा। 

         केशकाल म जुलुस के शक्ल म हजारों के भीड़ अउ चारों कोती लहरावत लाल झंडा देख के अइसे लगत रहे मानो आजादी के जश्न हो! लाल सलाम के नारा अउ कामरेड सुखेन्दु के जयकारा ले आसमान गूँजत रहिस। एक साल ले उपर जेल म रहे के बाद सुप्रीम कोर्ट ले कामरेड सुखेन्दु ला दुनों केस ले दू दिन पाछू बरी कर दिये गिस हे। कामरेड के उपर एक केस देशद्रोह के सीबीआई ठोंके रहिस  त दूसरा मनी लाँन्ड्रिग के केस ईडी के चलत रहिस। कामरेड के 2022 म छपे बहुचर्चित पुस्तक ' नक्सलवाद और क्राँति ' के उपर केन्द्र सरकार द्वारा लगाये प्रतिबंध ला घलो सुप्रीम कोर्ट ये तर्क देवत खारिज कर दीस कि व्यक्ति के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ओकर मौलिक अधिकार हे अउ बिना वाजिब कारण के पुस्तक उपर प्रतिबंध लगाना गैरकानूनी हे।

.          हजारों की संख्या में आदिवासी मन के स्वस्फूर्त भारी भीड़ ला देख के कामरेड के लोकप्रियता के सहज ही अंदाजा लगाये जा सकत हे। पुलिस बल के भारी व्यवस्था के बावजूद स्वनियंत्रित भीड़ के कारण कानून-व्यवस्था के स्थिति सामान्य रहिस अउ कोई अप्रिय घटना नि होइस। तीन घंटा के रैली के बाद केशकाल म एक सभा होइस। कामरेड सुखेन्दु ह  भाषण के शुरूआत हिन्दी म करिस- ' अभिव्यक्ति की आजादी हमारा मौलिक अधिकार है। उसे छिनने की कोशिश जब-जब दुनिया के किसी भी देश में की गई, तब-तब खूनी क्राँति से तख्ता पलट हुआ है! सरकार को यह बात नहीं भूलनी चाहिए। जैसा पिछली सरकार का रवैया था वैसा ही इस सरकार का रवैया भी है! हमें सतर्क रहना होगा और अपना ज्यादा से ज्यादा ध्यान सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना होगा। '

       कामरेड के आधा घंटा के भाषण म खूब ताली पड़िस अउ अन्त म भाईचारा और शाँति के अपील के साथ भाषण ला समाप्त करिस। सीबीआई अउ पुलिस अधिकारी मन के तिरछी नजर कामरेड के भाषण उपर रहिस फेर ओमन ला भाषण म थोरकुन भी भड़काऊ बात नजर नि आइस। एही बेरा एक बड़े पुलिस अधिकारी ले फोन म गंभीर वार्तालाप करत एक बड़े नेता ह कमेंट करिस- ' कामरेड यदि लाल झंडा ला छोड़ के हमर पार्टी म शामिल हो जाय त बस्तर संभाग के सबो विधानसभा सीट ला हमर पार्टी ह आराम से जीत लेही! '


                           ( 2 )


           कामरेड सुखेन्दु एक गैर राजनैतिक कम्युनिस्ट विचारधारा के पोषक जमीनी सामाजिक कार्यकर्ता रहिस। केशकाल ले लगभग 19 किलोमीटर दूर विश्रामपुरी के पास एक सुदूर गाँव म एक छोटे से फार्म हाउस म कामरेड अपन छोटकुन परिवार सहित समाजसेवा के काम ल संजीदगी ले अंजाम देवत निवासरत रहिस। ओकर  घर म टीवी, एसी, कुलर कुछु भी आधुनिक सुख-सुविधा के समान नि रहिस न ही फार्म हाउस म मोबाईल के नेटवर्क रहिस। ' सादा जीवन उच्च विचार ' के कहावत ल चरितार्थ करत जनसेवा बर समर्पित ओकर बंजारा कस जीवन- कभू इहाँ त कभू ऊहाँ, कामरेड ला घर म रहे के मौका कम ही मिले। बस्तर के आदिवासी अंचल म कोई भी प्राकृतिक दुर्घटना होतिस या कोई हिंसा म मारे जातिस त सबले पहिली सहायता बर कामरेड सुखेन्दु ही पहुँचे। पीड़ित मन-ला लाखों रूपया के मदद घलो करे। अनेक बार पुलिस द्वारा मारे गये निर्दोष आदिवासी मन के आवाज ला सरकार तक पहुँचाय बर ओला आंदोलन के सहारा लेना परिस अउ जेल घलो जाना परिस! कामरेड नक्सली पीड़ित परिवार के घलो मदद करे। ओखर नानकुन फार्म हाउस ले कुछु खास आमदानी तो रहिस निही, फेर लाखों रूपिया कहाँ ले सहायता देहे बर पावय, एला कोनो नि जान पाइन। ए बात सरकार ला खटके-तो-खटके, स्थानीय नक्सली नेता मन ला घलो खटके! एक बात अउ, देश भर के बड़े-बड़े कम्युनिस्ट अउ टाप नक्सली लीडर मन बेरा-बेरा म कामरेड ले परामर्श लेहे बर गोपनीय तरीका ले रात-विकाल  ओकर घर घलो आवँय। एला सरकार जानत रहिस। एकरे सेथी सरकार घलो ओकर ले खौफ खाय! कुल मिला के कामरेड के जीवन देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकाँता के कहानी कस रहस्यमय रहिस। जतेक ओकर बारे म जाने के प्रयास सरकार या आन कोई करें, ओतेक रहस्य ह गहरावत जाय! 

         जेल ले एक साल बाद छूट के जब कामरेड घर आइस त अपन पत्नी, दस साल के बेटा अंकुश अउ तीन साल के बेटी पल्लवी ल देखके ओकर अश्रुनयन लगातार बहे लगिस जइसे बारिस के मौसम म बिना रोक-टोक पानी गिरत रहिथे। एला देखके ओला छोड़े आय सैकडों कार्यकर्ता मन के आँख भीग गे। भारी मन ले सब ला विदा करत कामरेड कहिस- अभी एक माह तक मैं काकरो-सो नि मिलों। मैं अपन परिवार के साथ कुछ समय बिताना चाहत हौं! सबो ला जय जोहार!


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          कामरेड के घर रेल के डब्बानुमा ईंट,मिट्टी अउ लकड़ी के बने रहिस। कुल चार कमरा। एक ड्राइंगरूम, दू बेडरूम अउ चौथा कमरा रसोई। कमरा के छत्त लकड़ी के पटाव के बने रहिस अउ पटाव ले छै फीट उपर खपरा के छाजन जेकर पानी के ढाल कमरा मन के दूनों बाजू म रहिस। तीसरा कमरा ले पटाव म चढ़े के लकड़ी के सीढ़ी रहिस।तीसरा कमरा के पटाव के उपर एक रोशनदान रहिस जेहर भीतर ले खुल जाय। वहीं मोटा रस्सा के सीढ़ी फंसे रहिस जेला रोशनदान ले नीचे गिरा के आपात स्थिति में बाहर निकले जा सकत रहिस। ड्राइंगरूम याने पहला कमरा के गतिविधि के निरीक्षण करे बर एक हिडन लेंस लगे रहिस जेकर सहायता से पटाव के उपर ले ड्राइंगरूम के गतिविधि मन के गुपचुप रूप से निरीक्षण किये जा सकत रहिस अउ साथ ही बातचीत ल सुने जा सकत रहिस। घर म एक लाइसेंसी बंदूक भी रहिस। कामरेड के घर निर्जन स्थान म बने रहिस 

त कई प्रकार के खतरा घलो रहिस। फार्म हाउस के गेट म दू वॉचमैन के लगातार ड्यूटी रहे अउ बिना परमिशन के फार्म हाउस के भीतर कोनो भी नि आ सकत रहिस। बाबूजी से मिले बर जब भी कोई बड़े आदमी आय तब कामरेड के पुत्र अंकुश अक्सर पटाव म चुपचाप चल दे अउ ड्राइंगरूम म बाबूजी के संग बातचीत-बहस ला सुने। पटाव म लगभग अंधेरा रहे मगर अंकुश ला डर नि लगे बल्कि ओला एकर आदत पड़ गे रहिस। अभी एक साल तक बाबूजी जेल म रहिस तब पटाव के रोशनदान ले रस्सी के सीढ़ी के मदद ले नीचे उतर के फार्म हाउस म घुमे चल दे अउ फेर वोही रास्ता ले भीतर घलो आ जाय। ए बूता ला वोहा तब करे जब दोपहर मम्मी सोवत रहे। रोशनदान ले घर के बाहर जाय के ओकर कारनामा न मम्मी ला मालूम रहिस न बाबूजी ला! 

         जेल ले छूटे के बाद बाबूजी के पूरा समय अपन परिवार के बीच शाँतिपूर्वक बीतत रहिस। एही बीच एक दिन बाबूजी करा अंकुश ह प्रश्न करिस- बाबूजी, रूस म अहिंसक क्राँति के बाद सन् 1917 म राजतंत्र के खात्मा होगे अउ लेनिन ह साम्यवादी आंदोलन ल जमीन म उतार के नया व्यवस्था कायम करिस। फेर ओकर जीते-जीयत अउ सन् 1924 म मृत्यु के बाद घलो कई साल तक देश ह गृह युद्ध ले जूझत रहिस, जेकर कारण लाखों सैनिक अउ नागरिक मन मारे गिन त लेनिन के लाल क्राँति के का फायदा होइस? 

     बाबूजी अंकुश के प्रश्न सुन के आश्चर्यचकित रह गिस। बाबूजी पूछिस- ए सब तोला कइसे मालूम?

        ' आपके जेल जाय के बाद आपके पुस्तक ' नक्सलवाद अउ क्राँति ' ल मैं 10 बार पढ़ चुके हौं? ' -अंकुश के उत्तर सुनके कामरेड चौंक गे!

      '  रूस म गृह युद्ध के जिम्मेदार लेनिन नि रहिस बल्कि एकर जिम्मेदार राजतंत्र के समर्थक अउ कुछ विदेशी तत्व के समर्थक मन रहिन! ' बाबूजी उत्तर दीस।

      ' बाबूजी,बिना जनजागरण के कोनो विचारधारा ला थोपे ले अइसनेच जनहानि होही! रूस के जनता ओ समय साम्यवादी क्राँति बर तैयार नि रहिस। तभे गृहयुद्ध म 10 साल के भीतर 40 लाख नागरिक मारे गिन! अउ करोड़ों हताहत होइन। एकर ले अच्छा गाँधी जी के अहिंसक आँदोलन रहिस जेमा जनजागरण के साथ स्वतंत्रता के आंदोलन ला जोड़े गे रहिस। भारत के आजादी के लड़ाई अउ आजादी के बाद सांप्रदायिक गृह युद्ध जइसे विकट स्थिति म घलो  रूस के तुलना म बहुत कम बर्बादी  होय रहिस! '- अंकुश के जवाब ले बाबूजी निरूत्तर हो गिस। अंकुश के स्मरण शक्ति अत्यन्त तेज रहिस। एक बार जेला पढ़ लेतिस फेर ओला नि भूले। पढ़े म घलो बहुत होशियार रहिस अउ कई बार ओकर स्कूल के शिक्षक मन घलो ओकर तर्क ले निरूत्तर हो जाँय। बाबूजी साम्यवादी आंदोलन अउ व्यवस्था के पक्षधर रहिस फेर 10 बरस के अंकुश के विचारधारा ओकर ले मेल नि खात रहिस। 


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06 जून गुरुवार

      धुप अंधियारी रात। कामरेड सुखेन्दु ला जेल ले छूटे पन्द्रह दिन गुजर गे रहिस। छत्तीसगढ़ के महिला मन वट-सावित्री अमावस-व्रत के पूजन-अर्चन कर पति के मंगलकामना करत रहिन। ओती रात के 12 बजे ले कामरेड सुखेन्दु के घर म बड़े-बड़े लीडर मन के गोपनीय बैठक होत रहिस। ए समय ओमन करा न कोई हथियार रहिस न कोई मोबाईल फोन! सरकार द्वारा ओमन ला ट्रेक कर पाना मुश्किल रहिस। अचानक रात के तीन बजे अंकुश के नींद खुल गे। ओहर मिटिंग के बातचीत ल सुने बर तुरते पटाव के उपर चल दिस। उहाँ हिन्दी म गोठ-बात होवत रहिस। 

          ' कामरेड सुखेन्दु, अब आंदोलन का बागडोर आप संभाल लें! आप युवा हैं, समझदार हैं- आप संभाल सकते हैं। मैं अब सत्तर का हो गया हूँ। मैं अब इससे मुक्त होना चाहता हूँ। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के पास एक फार्म हाउस है जहाँ दो दिनों में आपके रहने का इंतजाम हो जायेगा। आपका अब यहाँ रहना ठीक नहीं है। आपको यहाँ पुलिस के साथ-साथ स्थानीय नक्सलियों से भी खतरा है! '

      जवाब में कामरेड सुखेन्दु बोलिस- यह आंदोलन अपने उद्देश्यों से पूर्णतया भटक गया है गुरुदेव! शुभगन जैसे अनेक दुर्दांत नक्सली पैदा हो गये हैं जो आतंक फैलाने के लिए निर्दोष आदिवासियों और पुलिस वालों की गाजर-मूली की तरह काटकर  हत्या कर रहे हैं! शुभगन तो लड़कियों का अपहरण भी कर रहा है! यह मुझे स्वीकार्य नहीं है। मेरा बस चले तो मैं उसे गोली मार दूँ! ऐसे नक्सलियों के खिलाफ आप कोई एक्शन क्यों नहीं लेते गुरुदेव ? '

       ' सुखेन्दु बाबू, एक्शन लूँगा तो ऐसे अनेक नक्सली लीडरों को गोली ही मारना पड़ेगा! मैं नहीं चाहता कि चारु मजुमदार और कानू सन्याल द्वारा 57 साल पहले शुरू किया गया यह आंदोलन इस तरह कमजोर पड़कर खत्म हो जाय! '

      ' अब आप लोग जानें मगर शुभगन के खिलाफ तो आपको एक्शन लेना ही चाहिए! '- कामरेड सुखेन्दु अत्यन्त दुःखी मन से बोलिस। 

     ' ठीक है, सप्ताह भर के भीतर कुछ करता हूँ! उसका जीवित रहना ठीक नहीं है! या तो सरकार को गुप्त रूप से उसके लोकेशन की सूचना भिजवा दूँगा या फिर मैं ही कुछ करूँगा!' - गुरुदेव बोलिस। 

          '  सरकार को सूचना भिजवाना ठीक नहीं होगा गुरुदेव! इससे उसके अन्य नक्सली साथी भी पकड़े या मारे जा सकते हें! '- उहाँ उपस्थित एक अन्य कामरेड तुरते बोलिस।


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15 जून इतवार 

         कालि फादर्स डे म बाबूजी ला का गिफ्ट देना हे- एही सोचत-सोचत रात 10 बजे अंकुश के नींद पर गे। रात 12 बजे वॉचमैन घर के दरवाजा ला खटखटाइस। 

       दरवाजा खोले के बाद वॉचमैन सुखेन्दु बाबू ले डरत-डरत बोलिस- ' पाँच-छै रायफलधारी आदमी मन आय हें अउ आप करा मिले के जिद् करत हें! '

        ' कोई नाम-गाँव बताईन ? '

        ' एक झिन अपन नाॅव शुभगन बतावत रहिस! '- वॉचमैन बोलिस। 

      ' ठीक है मगर ओमन ला कहि देबे कि आधा घंटा ले जादा मोर करा समय नि हे! आधा घंटा बाद ओमन इहाँ ले चल दें। ' - कामरेड सुखेन्दु मन मार के बोलिस। 

       पाँच-छै रायफलधारी मन के ड्राइंगरूम म आय ले खटपट के आवाज म अंकुश के नींद खुलगे अउ बातचीत सुने बर ओहा तुरते पटाव म चढ़ गे!

       ' शुभगन! तैं नक्सली मन के छत्तीसगढ़ के सबले बड़े लीडर हस। शराब पी के रात के 12 बजे मोर घर आना का वाजिब हे? ' सुखेन्दु बाबू बोलिस। 

       ' सुखेन्दु बाबू, छत्तीसगढ़ म नक्सली आंदोलन ला मैं बचा के रखे हौं त मोला एक-दू ठिन चीज के छूट तो मिलना चाही!'

     ' का छूट मिलना चाही? '- सुखेन्दु बाबू गुस्सा म बोलिस। 

     ' शराब अउ लड़की! दुवे ठिन के लत हे मोला। एकर छूट तो मिलना चाही! '- शुभगन के वक्र हँसी ला देख के सुखेन्दु बाबू के अंतस म आगी लग गे। 

        ओही बेरा दू नक्सली मन 14 साल के एक लड़की ला पकड़ के घर के भीतर लाइन! सुखेन्दु बाबू झपट के लड़की के हाथ ला पकड़ के अपन पास खींच लिस। लड़की हिरनी की तरह काँपत रहिस। सुखेन्दु बाबू दूध बेचइया के लड़की ला देखते ही पहिचान गिस। कभू-कभू ये लड़की दूध देहे बर कामरेड के फार्म हाउस म घलो आवय। 

        शुभेन्दु बाबू के आँखी गुस्सा म लाल होगे। ओहा चिल्ला के शुभगन ला बोलिस- अगर तुमन ए लड़की ला छुये के भी कोशिश करिहा त मैं तुमन ला गोली मार दूहूँ! '

       ' तैं तो शुरु ले मोला मरवाना चाहत रहे कॉमरेड! मैं सब जानत हौं। तैं मोला का मारबे, अब तैं गोली खा! मैं तो तोला मारे के प्लान से ही आय हौं। ओ दिन मिटिंग म तुमन का डिसीजन ले हा, एहा मोला मालूम हे! '

          एकर बाद शुभगन के रायफल ले एक के बाद एक चार गोली निकलिस!..... दू गोली कामरेड के सीना म अउ दू गोली लड़की के सीना म लगिस! गोली चले के आवाज सुन के कामरेड के धर्मपत्नी अपन तीन बरस के लड़की ला गोदी म उठाय दउड़त आइस। शुभगन के राइफल ले फेर गोली चलिस अउ फेर सब कुछ खत्म! 

      थोड़े देर के निस्तब्धता के बाद शुभगन अपन एक साथी ले बोलिस- ' घर के भीतर जा के चेक कर, कोनो भी मिलहीं त गोली मार के खतम कर दे! '

     ' घर के भीतर कोनो भी नि हे कामरेड! ' - घर के भीतर जाँच करे के बाद ओकर साथी बोलिस। 

     ' ठीक हे ये सबो लाश मन ला कमरा के अंदर ढकेल दे अउ दरवाजा खींच के बन्द कर दे। मैं एमन के शकल नि देखना चाहत हौं! साले मुझको मरवाने चले थे!शुभगन कोई कीड़ा-मकोड़ा है जो मर जायेगा!.....चलव शराब पार्टी शुरू करव रे! आज जश्न मनाय के दिन हे!..... बाकी बात ला बाद म सोंचबो। '


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नक्सली मन के कृत्य ला दू आँखी ह पटाव ले चुपचाप देखत रहिस। पूरा परिवार के मृत्यु ला एक साथ देखना कतका पीड़ादायक होथे एला 10 बरस के अंकुश ले जादा कोन महसूस कर पाही! फेर ओहा जानत रहिस कि नक्सली मन करा एक बेरा आमने-सामने लड़ पाना संभव नि हे। एकर बावजूद बदला लेहे के भावना ले ओकर पूरा शरीर काँपत रहे! ..... मौत के बदला मौत!..... का करौं?....

का करौं?...... बदला लेहे के विचार तेजी से ओकर दिमाग म घुमत रहिस। एकाएक ओकर आँखी म चमक आ गे!..... अब अपन परिजन के मौत ला भुला के अंकुश ह बदला लेहे के योजना म धीरे-धीरे आघू बढ़ लगिस!

         थोरकुन देर बाद अंकुश पटाव ले आहिस्ता-आहिस्ता नीचे उतरिस। कमरा म माँ-बाबूजी के खून ले लथपथ शरीर ला देखके आँख म आँसू आ गे।  फर्श म चारों कोती खून बिखरे रहिस। अंकुश धीरे-धीरे रेंगत दरवाजा कोती गीस अउ धीरे से सांकल ला लगा दीस। अब नक्सली मन के बेडरूम म घुसे के संभावना खतम हो गे। 

     एकर बाद पेट्रोल भरे जरीकेन ला खोजिस। ओहा जल्दी मिल गे। ओमा पाँच लिटर पेट्रोल भरे रहिस। दरअसल पास म पेट्रोल पंप नि होय के कारण मोटर साइकिल म भरे बर घर म पेट्रोल के स्टाक करके बाबूजी रखँय। कई बार रात-बिकाल के कहूँ जाना पड़े त पेट्रोल पम्प घलो बन्द हो जाय तब एही पेट्रोल ह  काम आवय। रसोई ले एक माचिस के भरे हुए डिब्बा अउ पल्लवी के खिलौना के संग रखे पिचकारी ला घलो धरिस। फेर पटाव म चढ़ के रोशनदान के रस्ता रस्सी के सीढ़ी के सहारा म धीरे-धीरे नीचे उतरिस। पेट्रोल,माचिस अउ पिचकारी ला जमीन म मढ़ा के आहिस्ता-आहिस्ता मुख्य दरवाजा के तरफ बढ़िस अउ मुख्य दरवाजा के सिटकिनी ला बाहिर पार ले लगा दीस। नक्सली मन के शराब पी के बक-बक करे के आवाज बाहर तक सुनात रहिस। अब एक तरह से नक्सली मन एक कमरा म धंधा गे रहिन,न बाहर जाय के रस्ता रहिस न अन्दर घुसे के रस्ता! दुनों कोती उल्टा सिटकिनी लगे रहिस। एकर बाद पिचकारी के सहायता ले पेट्रोल ला घर के सामने कमरा के सबो कोती छिड़क दीस।...... घर म आगी लगाय के पहिली माँ-बाबूजी अउ बहिनी पल्लवी के फेर सुरता आइस अउ ओमन ला देखे के इच्छा बलवती हो गे। छोटे बहिनी पल्लवी ले अंकुश बहुत प्यार करे। बाबूजी जेल म रहिस अउ माँ घर के कामकाज म व्यस्त रहे त ज्यादातर समय पल्लवी के देखरेख अंकुश करे। पल्लवी के हर छोटे-बड़े आवश्यकता अउ मांग ला अंकुश पूरा करे के कोशिश करे। 

           अपन माँ-बाबूजी अउ बहिनी पल्लवी के अंतिम दर्शन करे बर अंकुश एक बार फिर मोटा रस्सी के सीढ़ी चढ़ के पटाव के रस्ता घर के भीतर कमरा म दाखिल होइस। एही बेरा पल्लवी के कराहे के आवाज सुनाई परिस- ' भैया, पानी.... पानी... पा.... '  पल्लवी के आवाज सुन के अंकुश के पुरा शरीर रोमांचित हो गे!..... हे भगवान बहिनी म अभी जान बाकी हे!.... ओकर खुशी के ठिकाना नि रहिस। कुछ समय बर माँ-बाबूजी के मृत्यु के पहाड़ कस आघात ल घलो भूल गे अउ अब ओकर सारा ध्यान ए बात म केन्द्रित हो गे कि बहिनी के जान ला कइसे बचाये जाय!

        पल्लवी ला पानी पिलाइस अउ अपन पीठ म घोड़ा कस लाद के एक धोंती म अपन शरीर से पल्लवी ला कस के बाँध लिस। माँ-बाबूजी के खून ले लथपथ शरीर ला देखिस, दुनों के पैर ला छुइस अउ अपन आँसू ल सकेल के धीरे-धीरे पटाव उपर चढ़िस। रोशनदान ले उतरे के पहिली उपर ले एक बार अउ अपन माँ-बाबूजी के चेहरा ला देखिस। एहा अंतिम दर्शन रहिस। रोशनदान म बंधे मोटा डोर के सीढ़ी ले बहिनी के भार ला संभाले अंकुश धीरे-धीरे नीचे उतरिस। नीचे उतर के माचिस के एक तीली ला जलाइस अउ मकान के उपर फेंक दीस। पूरा मकान म पेट्रोल के छिड़काव के कारण आग फैले म मिनट भर घलो नि लगिस। मकान धू-धू कर जले लगिस। अंकुश पूरा ताकत लगा के दउड़त फार्म हाउस के गेट तरफ भागिस। उहाँ पहुँच के पाछू पलट के देखिस त मकान हा आग के गोला बन चुके रहिस। माता-पिता के मृत्यु म अंतिम संस्कार के समय बड़े लड़का  अग्नि संस्कार ला करथे। मगर आज के अग्नि संस्कार एकदम भिन्न रहिस। अइसने अग्नि संस्कार आज तक कोनों नि करें होहीं! अंकुश अपन आँसू ला पोंछिस अउ वापस मुड़िस त देखथे कि दुनों गार्ड मृत पड़े हें!..... धू-धू करके जलत मकान ले नक्सली मन के चीखे-चिल्लाय के आवाज आवत रहिस। आज नक्सली मन के जीवित अग्नि संस्कार ला देख के अंकुश ह सुकुन भरे लंबा साँस लिस, भगवान ला धन्यवाद दीस अउ पुलिस थाना के तरफ दौड़ लगा दीस। विश्रामपुरी पुलिस थाना उहाँ ले पाँच किलोमीटर दूर रहिस। अंकुश ए बात ला समझ गे रहिस कि पाँच किलोमीटर के फासला ला पार कर पाही तभे बहिनी के जान बचही, अउ कहूँ ले सहायता मिलना रात के समय मुमकिन नि रहिस।


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           तीन दिन के बाद एक समाचार अखबार मन मा प्रमुखता ले प्रकाशित होइस-


         15 जून को देर रात्रि सशस्त्र 6 नक्सलियों ने सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और कम्युनिस्ट लीडर शुभेन्दु अधिकारी और उनकी पत्नी की गोली मारकर उनके निवास में ही सुनियोजित तरीके से हत्या कर दी है। वहाँ एक लड़की भी मारी गई। इससे पहले उन्होंने फार्म हाउस की सुरक्षा के लिए तैनात दोनों गार्ड की हत्या की। इस हत्याकांड में शुभेन्दु अधिकारी के 10 वर्षीय पुत्र अंकुश और तीन वर्षीय पुत्री पल्लवी आश्चर्यजनक ढंग से बच गये हैं! इस घटना की जानकारी देर रात्रि विश्रामपुरी थाने को शुभेन्दु अधिकारी के पुत्र अंकुश ने ही सर्वप्रथम दिया जो अपनी घायल छोटी बहन को लेकर पुलिस थाने तक भागते हुए पाँच किलोमीटर पैदल चलकर पहुँचा था। उसने यह भी बताया कि उनके घर में हुए अग्निकांड में सभी नक्सली मारे गये हैं। पुलिस को जानकारी देने के बाद अंकुश बेहोश हो गया। दोनों भाई-बहन अभी रायपुर के रामकृष्ण केयर हास्पिटल के आईसीयू में भर्ती हैं और खतरे से बाहर हैं। डाक्टरों ने अभी बयान लेने से पुलिस वालों को मना कर दिया है। 

         प्राप्त जानकारी के अनुसार अग्निकांड में मारे गये नक्सलियों में छत्तीसगढ़ के टाप मोस्ट नक्सली लीडर शुभगन भी शामिल है जिसके जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर छत्तीसगढ़ शासन का एक करोड़ का ईनाम घोषित है जबकि उसके शेष पाँच साथियों पर दो करोड़ का ईनाम घोषित है। विस्तृत जानकारी की अभी प्रतीक्षा है।


 *Chhattisgarhi Story written by-*


डाॅ विनोद कुमार वर्मा 

व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक 

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


मो- 98263 40331

ईमेल- vinodverma8070@gmail.com

[9/9, 11:02 AM] +91 98261 60613: डॉ विनोद कुमार वर्मा के 

कहानी " अग्नि संस्कार "


आगी ले बागी तक 

बागी के माटी तक 

गोली के बोली 

सिरतों आय 

नोहय ठिठोली 

लाल सलाम!!!


बस्तर के धरा के नाँव नक्सली धरा के नाँव ले   जाने जाथे l काली ले आज तक अभी तक लगे आगी गुंग्वावत हे, बरत हे,बुतावत हे,भभकत हे l आखिर लड़ाई काबर? नक्सली मन इंसानियत ल भुंजत हे lभुंजावत हे! सिधवा मन l रोटी कौन सेंकत हे? मिलत का हे l

समाज सेवा अउ नेक धरम करम करय्या मन म डर l

इंसाफ के तराजू के काँटा अटक गे हे बीच म l बागी के ऊपर दाग लगे हे बेदाग पीढ़ी घलो ओकर दंश ला झेलत हे दागी हो के जियत हे मरत हे त ओकर आगी माटी होही या  फेर माटी आगी असन बागी पैदा करही l

     पोठ कहानीकार विद्वान डॉ विनोद वर्मा जी के कलम सपाट बयानी ले  दिन अउ दिनांक सहित सोज सोज 

बागी के काठी माटी तक के घटना "अग्नि संस्कार " कहानी के रूप म प्रस्तुत होये हे l 

  कथानक आघू बढ़त गे हे l पात्र के चरित्र परिचय अपने आप होवत गे हे l नक्सली मन ला कामरेड समाज सेवी कार्य करता मन ले घलो खतरा हे l 

कामरेड होना गलत नई हे फेर उंखर जीना खतरा ले बाहिर हे l सरकार के फरमान "पकड़ो " बस l नक्सली मन के काम हे " रोको , घुसने मत दो l" 

आखिर अभिव्यक्ति  और  सादगी  संदेह म कैद हाबय  l 

शुभेन्दु मुख्य पात्र है ओकर जीवन के घटना  ले ओकर होनहार बेटे अंकुश के सोच अउ विचारधारा  साहित्य ले प्रभावित हे l आखिर हिंसा के सामने झुकना नहीं सामना और 

नतीजे ल अंजाम देना हे l जारी है टी वी, रेडिओ ले समाचार के प्रसारण l अइसन घटना होवत हे l होवत रही -अंत नई होही का?पल्लवी के बचना  इहे ले कहानी म मोड़ हे l किशोर अंकुश के माता पिता  ल लोभ लालच  अउ जिन्दा जला दे जाथे ल ओइसने हे नक्सली मन के तम्बू म आगी ढील देथे l आग से जलाना अंत करना l "अग्नि संस्कार "कहानी दो दृश्य ला देखाथे l 

   समसामयिक समस्या अउ उद्देश्य परक कहानी के भाषा शिल्प मिश्रित जरूर हे फेर स्पष्ट हे l

बहुत बढ़िया कहानी ज्वलंत मुदा पर आधारित हैं l

बहुत बहुत बधाई 

डॉ विनोद वर्मा जी 

🙏🌹👌

मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

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*अग्नि संस्कार : बड़े केनवास म बने विचारणीय कहिनी*      


   

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          नक्सल समस्या हर न केवल हमर प्रदेश के, येहर तो  हमर पूरा देश के, पिरकी ले घाव बनत बनत, अब तो नासूर बन गय समस्या ये।एकर इलाज करे बर, अब बड़का अपीसन बड़े शल्यक्रिया करे के जरूरत आ परे हे। दु चार वामपंथी विचारधारा के विचारक मन के हाथ ले, ये जो विषबेल लगाए गय हे, वोहर तो अब अतेक फर फूल गय हे, वोकर जरी अतेक पोठ हो गय हे कि   वोला उखाड़ फेंके बर, बहुत बड़े कार्य योजना और मनोबल के जरूरत हे। दुख के बात ये हे कि भारत के उदारवादी संविधान व्यवस्था म, अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के नांव म, अपन कछु भी विचार ला रखे के, सब मनखे मन ल,  बताय के  आजादी हे।बस, येई आजादी के फायदा उठाके चारु मजूमदार और कानू सान्याल जइसन अराजक विचारक मन बंगाल के नक्सलवाड़ा गांव  में जउन भी कर धर दिन हें। वो अराजक अलोकतांत्रिक अउ मानवता बर अनुपयोगी विचारधारा हर, चीन के माओवादी विचार धारा ल अपन म अउ समो के सिद्धांतहीन होके पूरा के पूरा भटक के, आज ये तांडव नृत करत हे,ये रकत होली खेलत हे। ये सबो के गहरी पड़ताल करत हे डॉ. विनोद वर्मा के कहानी - अग्नि संस्कार।

लेखक हर संवेदना के अतल गहराई म उतर के ये कहानी ल सिरझाय हे। कामरेड सुखेन्दु के ओढहर म,वोहर सबो नक्सली माइंड के कच्चा चिट्ठा खोलत हे। कामरेड सुखेन्दु जइसन सिद्धांतवादी मनखे के जउन हाल होइस,वोहर वोई नांग सांप असन जहरीला  विचारधारा के साथ देय के फल ये।तँय  हिंसा  के सहारा लेके कुछु सिद्ध करना चाहबे तब  वो क्रिया के उलट प्रतिक्रिया जउन हर हिंसा ही होही, वोला तोला झेले   बर  लागही। अउ सुखेन्दु वोई प्रतिक्रिया म  बलि चढ़ गिस। फेर वोकर पूत अंकुश हर कम उम्मर म ही पाक पोठा के अपनी परिपक्वता के परिचय देत कहथे - "एकर ले अच्छा गाँधी जी के अहिंसक आँदोलन रहिस जेमा जनजागरण के साथ स्वतंत्रता के आंदोलन ला जोड़े गे रहिस। भारत के आजादी के लड़ाई अउ आजादी के बाद सांप्रदायिक गृह युद्ध जइसे विकट स्थिति म घलो  रूस के तुलना म बहुत कम बर्बादी  होय रहिस!" कथाकार समकालीन अवसरवादी राजनीति के नाड़ी टमड़त, जब राजनेता के अंतस के गोठ ल कहथे तब झीरम घाटी हर आँखी म झूले लागथे - "कामरेड यदि लाल झंडा ला छोड़ के हमर पार्टी म शामिल हो जाय त बस्तर संभाग के सबो विधानसभा सीट ला हमर पार्टी ह आराम से जीत लेही!"


          कहानी के घटनाक्रम नाटकीय लागथे।दस बच्छर के अंकुश के परिपक्वता हर, पाठक मन के गला नई उतरे।फेर वोहर जउन भी 'अग्नि संस्कार ' करिस, वोहर करुण होत भी बड़ सुंदर अउ आवश्यक रहिस।चल एइ बहाना म दु चार अलोकतांत्रिक घास पात मन सफ्फा तो होइन।


      विराट केनवास म बगरे बड़ सुंदर अउ वैचारिक रूप ले  झकझोरने वाला कहिनी हे -अग्नि संस्कार ।



*रामनाथ साहू*


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छत्तीसगढ़ जइसन लोक संस्कृति, लोक परम्परा,  धनधान्य संग वन्य सम्पदा अउ खनिज के धनाढ्य राज ल पीरा पहुँचे के कोनो बात हे त वो नक्सली समस्या आय। जेकर ले बस्तर क्षेत्र के रहवइया मन के जी धुकुर-पुकुर होवत रहिथे। कब कति मेर जिनगी दाँव म लग जही एकर कोनो ठिकाना नि हे।  इही नक्सली दंश ऊपर डॉ. श्री विनोद कुमार वर्मा के लिखे कहानी 'अग्नि संस्कार' अपन सशक्त भाषा शैली अउ प्रवाह ले पाठक ल मिल्की मारन नइ देवय। ए मँजे हुए लेखनी के कमाल आय कि अतेक लम्बा कहानी म घलव कोनो झोल नइ हे। वर्णनात्मक भाषा शैली म केशकाल घाटी के मनोहारी चित्रण हे, उहें कामरेड सुखेन्दु ले जुरे जानबा अउ कामरेड अउ नक्सली के बीच के संघर्ष घलो चित्रित हे। 

      ए सच आय, जे ल मालूम रहिथे कि ओकर करनी गलत हे, उँकर मन म डर खच्चित हमा जथे। जइसे कामरेड सुखेन्दु के सभा म जावत रामप्रसाद के मन म रहिस।

    हमर इहाँ के संविधान ले मिले अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के आड़ म कतको अकन गड़बड होवत हे। अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के बहाना बहुत झन मन एकर गलत फायदा उठावत हें। कामरेड/वामपंथी विचारधारा के लोगन मन अपन भीतर के महत्वाकांक्षा के चलत आम आदमी संग खिलवाड़ करे धर ले हें। ए विचारधारा के संग देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ जंग छेड़े गे हे। जब संविधान बन गे हे तब एला कमजोर करे के उदिम काबर? संविधान के मुताबिक चले म का के तकलीफ? मोला लगथे कि वैचारिक बदलाव के चलत ही ये विचारधारा दू फाड़ म बँट गिस। तभे तो कामरेड अउ नक्सली के जम नइ पावय। तभे तो कामरेड सुखेन्दु कहिथे- "....नक्सली लीडरों को गोली मारना पड़ेगा।"

       आखिरकार खुद सुखेन्दु नक्सली लीडर के गोली के शिकार बन जथे।

       ए विचारधारा के मनइया मन के महत्वाकांक्षा ह एला बाँटे के बुता करिन। बड़े नेता बने या राजनीति/सत्ता म साथ धा भागीदारी बर मूल उद्देश्य ल ताक म रख दिन। इही महत्वाकांक्षा के चलत आज लोकतंत्र ल कभू-कभू लकवा होगे कहे जनाथे। विकास के जम्मो योजना धरे के धरे रही जथे। 

      वामपंथी विचारधारा के लीडर अउ नक्सली दूनो आज अपन उद्देश्य ले भटके हे कहे जा सकत हे। राजनीति के चस्का ले आरुग नइ हे। आरुग रहितिस त लाल झंडा छोड़ पार्टी म शामिल करे के खुल्ला ऑफर नइ दे जातिस। ए तो होइस कहानी के कथानक के गोठ।

      घुमंतु जइसे घुमइया कामरेड सुखेन्दु तिर लाखों रुपिया आना ए साफ बताथे कि दाल म कुछ काला हे। कहूँ न कहूँ ले साहमत मिलथे। ए विचारणीय हे। 

       कहानी नक्सली मन के भटके के गवाही देथे। जनता ले छुपे भी नइ रहिगे।

       आज नक्सली समस्या प्रायोजित समस्या होगे हे। जेला सिरिफ राजनीतिक इच्छाशक्ति ले ही खत्म करे जा सकथे फेर बिलई के घेंच म घंटी कोन बाँधही? 

      कहानी म आय दिन तिथि अउ जघा के नाँव एला सिरतोन घटना ऊपर आधारित कहानी बनाथे। फेर दस बछर के अंकुश के प्रत्युन्नमति अउ बड़े-बड़े सुरमा नक्सली मन के आगू उन ल पेट्रोल ले मारे के सोचना, बालपन म ही भारी भरकम विचारधारा ले भरे किताब ल घेरी पइत पढ़ना, अकल्पनीय हे। लेखक अपन कल्पना ले अपन इच्छित पात्र ले ओ सब करा सकथे, जेकर ओ कल्पना करथें। 

      भाषाई दृष्टि ले संवाद बढ़िया गढ़े गे हे। संवाद के छोड़ अउ कतको जघा के हिंदी शब्द मन के छत्तीसगढ़ी रूप ले लिए जाही त कहानी अउ प्रभावी बन जही।

     शीर्षक 'अग्नि संस्कार' भारतीयता ल समेटे हावय। कहानीकार के चातुर्यता आय कि ओमन अइसन विपत के घड़ी म घलव अपन पात्र (सु) के करनी ल नवा दृष्टि संग परोसथे। इही लेखक के सामाजिक सरोकार ल रेखांकित करथे।

     छत्तीसगढ़ के नक्सली मन के असल मुद्दा के भांडाफोड़ करत अउ आपस म बँटे विघ्नसंतोषी लोगन के पाटा म पिसावत आम बस्तरिया के पीरा के सुग्घर कहानी बर बहुत बहुत बधाई💐🌹💐


पोखन लाल जायसवाल

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