Monday, 23 September 2024

नीच भाखा/नान्हे कहिनी*

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   *नीच भाखा/नान्हे कहिनी*

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          *गांव- देहात म,आज ले भी घर में अवतरे नावा बाबू लइका ल ' नंगरिहा (नांगर जोतइया) आइस हे' अउ नोनी पिला ल 'पनिहारिन (पानी लनइया) आइस हे'...अइसन कहे के अपन ठेठ फेर बड़ मीठ अंदाज हे; फेर  आधा शहरी आधा देहाती दाऊ (तईहा के दाऊ; अब कहाँ के?) के मन आही, तब न...*



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           दाऊ हर रहिस ,खाँटी गांव के मनखे । फेर वोकर पूत अउ वंशावली मन धीरे-धीरे पता नइ चलिस, कब न कब के शहरी हो गय रहिन । अउ अब कभु -कभु ये गंवई वाला घर म वोमन आँय । फेर जब फसल हर लुवा -मिसा जाय, तब कुटा-अधिया ल सँकेले बर, वोमन जरूर- जरूर आंवय ।


            अब वोमन के भाखा हर , गांव रहईया वोमन के नौकर -चाकर , पौनी-पसारी मन ल समझ नइ आय ।


            ए पइत शहर ले गांव आय दाउ के छोटकी  बहुरिया के देहें हर, रात में उसल गय । वइसे शहर हर तिरेच म रहिस अउ आजकल मोटर के जमाना। फेर भगवान के लाख -लाख असीस !बिना विघ्न -बाधा चीरा -फोरा के वोहर घर म ही  सुफल हो गय ।


            विहना परऊ पहटिया  येला सुनिस तब मुचमुचात छोटे दाऊ ल  जोहारिस अउ पूछ  बईठिस - का पहुना आय  हे दाऊ जी, नँगरिहा ये के पनिहारिन...?


          येला सुनिस तब छोटे दाऊ हर गुस्सा म भभक गय । वोहर वोकर गोठ के कोई उत्तर नई दिस ।


            परऊ घलव सहम गय अउ कुछु अल्हन, होंनी -बदी के डर ले चुपे-चाप गाय-गरु ल ढील,  पहट ल ले चलिस  ।


            अब तो येती छोटे दाऊ हर भभकत कहत रहिस...ये साले गांव -गंवार नीच लोगों की भाषा भी इतनी नीच और ठेठ होती है । मेरे घर आया नया मेहमान अगर लड़का है ,तो वह नँगरिहा होगा । बड़ा होकर सीधा हल ही चलाएगा और लड़की हुई तो पनिहारन , सीधी पानी ही ढोयेगी बड़ी होकर , इन नमकहरामों के अनुसार...


            वइसे छोटे दाऊ घर 'नँगरिहा' ही आय रहिस , वो दिन ।



*रामनाथ साहू*



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