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*नीच भाखा/नान्हे कहिनी*
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*गांव- देहात म,आज ले भी घर में अवतरे नावा बाबू लइका ल ' नंगरिहा (नांगर जोतइया) आइस हे' अउ नोनी पिला ल 'पनिहारिन (पानी लनइया) आइस हे'...अइसन कहे के अपन ठेठ फेर बड़ मीठ अंदाज हे; फेर आधा शहरी आधा देहाती दाऊ (तईहा के दाऊ; अब कहाँ के?) के मन आही, तब न...*
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दाऊ हर रहिस ,खाँटी गांव के मनखे । फेर वोकर पूत अउ वंशावली मन धीरे-धीरे पता नइ चलिस, कब न कब के शहरी हो गय रहिन । अउ अब कभु -कभु ये गंवई वाला घर म वोमन आँय । फेर जब फसल हर लुवा -मिसा जाय, तब कुटा-अधिया ल सँकेले बर, वोमन जरूर- जरूर आंवय ।
अब वोमन के भाखा हर , गांव रहईया वोमन के नौकर -चाकर , पौनी-पसारी मन ल समझ नइ आय ।
ए पइत शहर ले गांव आय दाउ के छोटकी बहुरिया के देहें हर, रात में उसल गय । वइसे शहर हर तिरेच म रहिस अउ आजकल मोटर के जमाना। फेर भगवान के लाख -लाख असीस !बिना विघ्न -बाधा चीरा -फोरा के वोहर घर म ही सुफल हो गय ।
विहना परऊ पहटिया येला सुनिस तब मुचमुचात छोटे दाऊ ल जोहारिस अउ पूछ बईठिस - का पहुना आय हे दाऊ जी, नँगरिहा ये के पनिहारिन...?
येला सुनिस तब छोटे दाऊ हर गुस्सा म भभक गय । वोहर वोकर गोठ के कोई उत्तर नई दिस ।
परऊ घलव सहम गय अउ कुछु अल्हन, होंनी -बदी के डर ले चुपे-चाप गाय-गरु ल ढील, पहट ल ले चलिस ।
अब तो येती छोटे दाऊ हर भभकत कहत रहिस...ये साले गांव -गंवार नीच लोगों की भाषा भी इतनी नीच और ठेठ होती है । मेरे घर आया नया मेहमान अगर लड़का है ,तो वह नँगरिहा होगा । बड़ा होकर सीधा हल ही चलाएगा और लड़की हुई तो पनिहारन , सीधी पानी ही ढोयेगी बड़ी होकर , इन नमकहरामों के अनुसार...
वइसे छोटे दाऊ घर 'नँगरिहा' ही आय रहिस , वो दिन ।
*रामनाथ साहू*
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