शुभस्य शीघ्रम्
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मानुस के चित्त अबड़ेच चंचल होथे।वोकर मन एक पल तको थिरबाँव नइ राहय।नाना प्रकार के विचार अउ इच्छा हरदम जागत रइथे अउ इँकरे सेती मनखे हा अनेक प्रकार के कारज करत रथे।एमा कुछ शुभ (अच्छा) होथे अउ कुछ अशुभ(बुरा) होथे।
ये तो तय बात हे के कर्म के फल मिलके रहिथे।शुभ कर्म के शुभ नतीजा ,अशुभ कर्म के अशुभ नतीजा।
महापुरुष मन एक बात अउ बताथें के मनखे के इच्छा मतलब मन तको बदलत रहिथे।समय के धुर्रा मा कोनो विचार दब जथे नहीं ते गँवा जथे तहाँ ले वोला खोजना मुशकिल हो जथे।तेकरे सेती कहे गेहे कि-शुभ काम ला जतका जल्दी हो सके कर लेना चाही।वोला काली करहूँ--परसो करहूँ सोचके टालत रहना नइ चाही।काली कभू नइ आवय ।पानी के फोटका कस मनखे के जिनगी के का ठिकाना? संत कवि कबीर दास जी अइसने सुकर्म मन बर कहे हें-
काली करे सो आज कर,आज करे सो अब।
पल में परलय होत है,बहुरि करेगा कब।।
अइसनहे तइहा के त्रेता युग मा शुभ कारज ला जतका जल्दी हो सके तड़फड़ कर लेना चाही के शिक्षा देवत ,युद्धभुमि मा अपन अंतिम साँस लेवत महापंडित लंकापति रावण हा लक्ष्मण जी ला कहे रहिस--
"शुभस्य शीघ्रम,अशुभस्य काल हरणम्"।अर्थात शुभ कर्म ला जतका जल्दी हो सके कर लेना चाही अउ अशुभ कर्म ला जतका जादा ले जादा ओ सके टालते रहना चाही।अशुभ विचार --अशुभ कर्म ला टालत रहे ले वो हा एक न एक दिन जरूर टल जथे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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