संस्मरण ( आशा सप्रे मैडम)
जगन्नाथराव दानी स्कूल के स्वर्णिम जयंती वर्ष सन 1996 -97 म मनायगीस । एक पुस्तक निकालत रहिन है जेखर बर मोर से कुछ संस्मरन मांगे गीस। आशामानव मैडम मोर से बार- बार काहय कुछ दे दो, इस स्कूल से शिक्षा प्राप्त करके तुम आज इस मुकाम तक पहुंची हो।" मोर दिल दिमाग म एके घटना बार बार आये तेने ल मैं लिख के भेज देंव। शिक्षक परिवार के बेटी होय के कारण जेन घटना के हमन साक्क्षी रहेन सही म अइसना होना नहीं' चाही।
में ह छठवीं पढ़े बर जुलाई 1967 म दानी स्कूल म भर्ती होयेंव । तरिया के तीर म स्कूल रहिस हे, मछरी पकड़त मनखे दिख जाये, बड़ेजन मैदान सबो ह मोर मन ल मोह डरिस। 1970 में आठवीं से निकले के बाद उंहेंच्च के उच्चतर मा. शाला म भर्ती हो गेंव ।
घटना सन 1971 के आय। जब मैं ह दसवी म पढ़त रहेंव । इमर स्कूल म आशा सप्रे मैडम भौतिक शास्त्र के शिक्षिका रहिस है। दिसम्बर के छुट्टी म मैडम ह एक्स्ट्राक्लास ले के कोर्स पूरा करे के बात करीन त हमन मान गेन । सुबह नौ बजे ले बारह बजे तक पढ़ाई होवत रहिस है, कुछ प्रेक्टीकल घलो करेन। एक दिन मैडम ल आये म कुछ देर होगे। बहुत अकन लड़की मन पास के श्याम टॉकिज म सिनेमा देखे बर चल दिन। हमन 15- बीस झन खड़े रहेन । मैडम आते ही केमिस्ट्री लैब म बइठ गे। हमन घबरा के एक एक करके अन्दर आ -आ के बइठत गेन । मैडम ह चुप बइठे रहिस है, थोरिक देर में पूछथे के बाकी लड़की मन कहाँ हें। हमन कहेन घर चल दीन | मैडम कहिस के मोला आये म 15 मिनट के देरी होगे त तुमन रुक नइ सकेव । पढ़ाई एक तपस्या होथे । जुन्ना समय म लइका मन गुरुकुल जाके सालों पढंयलं। यैं ह अपन छुट्टी म तुहंर नुकसान झन होवय कहिके पढ़ाये बर आवत हंव। तुंहर तुहर कोर्स पूरा होवय एखर जवाबदारी मोर नोहय तुहंर आये । तुमन ल पढंना हे त पढ़व नहीं पढ़ना हे त काली ले पढ़ाये बर नइ आवंव | मैडम के आँखी म आँसू आगे। चश्मा के बाहिर आँसू बहे ले लगगे। मैडम ह चश्मा ल उतार के रुमाल ले आँसू पोछत बइठ गे। बहुत जुवर ले सब चुपचाप बइठे रहिन हें। हमर क्लास के एक झन लड़की उषा अग्रवाल ह उठ के "सॉरी मैडम "बोलिस अउ मैडम से पढ़ाई शुरु करे बर बोलिस।
बहुत देर के बाद मैडम ह उखड़े मन ले पढ़ाना शुरु करिस। कक्षा खतम होवत ले सबके मन उदास रहिस हे। आखरी तक मैडम के चेहरा म मुस्कुराहट नइ अइस। हमेंशा मुस्कुरावत चेहरा ह मुरझा गे रहिस हे। ये बात ह मोर दिल ल छू लिस। ये घटना ल मैं आज तक नइ भुलाये हंव। उही कैंम्पस के महिला कालेज ले एम.एस सी करेंव फेर कभी भी गोल नहीं मारेंवःहर दिन क्लास के कोनो लड़की रहे या न रहे मैं जरुर अपन क्लास के दरवाजा म सर मैडम के इंतजार म खड़े राहंव। । जब तक ओमन नइ काहंय के आज क्लास नई होवय तब तक मैं वापस.नइ आवंव।
यह बात ल मैं अपन बेटा ल भी सिखायें। 1978 म मैं एम एस सी करके निकलेंव। सरकारी नौकरी म घलो आ गेंव। 'फेर ये घटना ल मेरें कभू नइ भुलायेंव। अइसना मेहनत करइया शिक्षक मैं आज तक नइ देखेव। सब ट्यूशन बर भागत हावंय लइका बर कोनो नइ सोचय।
सुधा वर्मा, 1996
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