नक्सलवाद के भटकाव ल उजागर करत कहानी - अग्नि संस्कार
नक्सलवाद एक राष्ट्रीय समस्या हरे। निरंकुश शासन ले मुक्ति अउ शोषित, पीड़ित मन ल उंकर हक दिलाय खातिर नक्सलवाद आंदोलन के जनम होइस। रूस म लेनिन ह ये आंदोलन के जनमदाता हरे। पर रूस म येकर बाद गृह युद्ध चालू होगे मतलब रूस म नक्सलवाद फेल होगे। कारण जउन भी रिहिस होही। हमर भारत के बात करथन त आज ले 57 बछर पहिली चारू मजूमदार अउ कानू सान्याल ह ये आंदोलन ल चालू करिन। ये नक्सलवाद विचारधारा धीरे ले पं. बंगाल के संगे संग बिहार,झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना ,महाराष्ट्र ,छत्तीसगढ़ सहित आने राज्य म अपन पांव पसार लिस। हिंसक रसदा ल अपनाके शोषित, पीड़ित मन के हक बर लड़े के उद्देश्य ले चालू होय ये आंदोलन के अब दसा अउ दिसा ह बदल गे हावय। इही बात ल लेके एक बढ़िया कहानी के सृजन करे हावय व्याकरणविद्, संपादक, कहानीकार डा. विनोद कुमार वर्मा जी ह जेकर शीर्षक हावय- अग्नि संस्कार।
हमर छत्तीसगढ ह अपन कृषि अउ ऋषि संस्कृति बर जाने जाथे। छत्तीसगढ के सोर शांति अउ भाईचारा के सेति हावय। छत्तीसगढ़ म सद्भाव अउ सुमता के दीया जलथे। पर छत्तीसगढ़ म नक्सलवाद के कारण राष्ट्रीय स्तर म येकर पहचान नक्सली राज्य के रूप म होथे। बस्तर इलाका जिहां घोर जंगल हे अउ भोला- भाला आदिवासी मन निवासरत हे उहां ये समस्या ह सुरसा सहिक अपन मुंहू फइला के हजारों मन के जिनगी ल लीलत हे। नक्सलवाद के कारण वो क्षेत्र के चहुंमुखी विकास घलो नइ
हो पाथे। सड़क, स्वास्थ्य,शिक्षा जइसे जरूरी चीज खातिर तरसत हे आदिवासी मन। ये सबो समस्या के जड़ हरे नक्सलवाद। ये मन विकास बर रोड़ा अटकाथे। त इही बात ल उजागर करथे- "अग्नि संस्कार"ह।
कहानीकार ह लाल सलाम विचारधारा के मनइया राम प्रसाद के माध्यम ले कहानी ल आगू बढ़ाथे जउन ह कम्युनिस्ट नेता कामरेड सुखेन्दु के भाषण ल सुने खातिर बस म सफर करत हावय अउ केसकाल घाटी डहर ले गुजरत हावय। ये जगह कहानीकार ह केसकाल घाटी के हबहू वर्णन करे हावय।
कहानी के मुख्य पात्र कामरेड सुखेन्दु हरे जउन ह कम्युनिस्ट विचारधारा के रस्दा म चलत हावय। येहा आदिवासी मन म अब्बड़ लोकप्रिय हावय काबर कि गरीब मनखे मन के सुघ्घर मदद करथे। कहानी के खलनायक हावय- शुभगन। येहा खुंखार नक्सली लीडर हरे। शराब अउ शबाब के येला लत हे। अपन पद अउ ताकत के खूब फायदा उठाथे अउ जवान लड़की मन के अपहरन करके उंकर इज्जत ले खेलथे। ये आदत ल वोहा अपन शान समझथे। ये दृश्य अउ संवाद के माध्यम ले कहानीकार ह आज के नक्सलवाद आंदोलन के दसा अउ दिसा ल उजागर करथे कि कइसे शोषित, पीड़ित मन बर लड़े ल छोड़ के उल्टा खुदे पद अउ ताकत के दुरूपयोग करत हे। निरंकुश शासन मन जउन बेवहार आम आदमी मन ले करथे उही रसदा ल खुदे अपना डरे हावय त का मतलब अइसन नक्सलवाद आंदोलन के।
कहानी के नायक कामरेड सुखेन्दु वर्तमान म नक्सलवाद आंदोलन के भटकाव ले अब्बड़ दुखी हावय। एक बुजुर्ग कम्युनिस्ट ले गोठबात के माध्यम ले ये बात ल पाठक वर्ग ल बताय गे हावय कि कइसे शुभगन जइसे नक्सली लीडर मन भोली भाली लड़की मन के हीनमान करथे अउ भोला - भाला आदिवासी मन ल ढाल बना के अपन सुवारथ ल साधत हावय। लूटपाट अउ लाखो- करोड़ों के वसूली करके गुलछर्रा उड़ात हे। निर्दोष आदिवासी अउ पुलिस वाले मन के हत्या करत हे।
सच म आज बस्तर के आदिवासी मन नक्सली अउ फ़ोर्स के बीच म पिसावत हावय।जइसे दू गोल्लर के लड़ई म घास ह रौंदा जाथे वइसने दसा आदिवासी मन के हो गे हावय। दूनों डहर ले आदिवासी मन ल मरना हे।
कहानी के प्रमुख पात्र कामरेड सुखेन्दू
के बेटा अंकुश जउन ह 10 साल के हे। वोला कहानीकार ह शांति के संदेश देवइया अउ एक वीर बालक के रूप म चित्रित करे हावय। अंकुश ह अपन कामरेड पिता सुखेन्दु ल एक बात कहिथे " एकर ले अच्छा गांधी जी के अहिंसक आंदोलन रहिस जेमा जन जागरण के संगे संग स्वतंत्रता के आंदोलन ल जोड़े गे रहिस।" ये संवाद के माध्यम ले कहानीकार ह ये संदेश देवत हावय कि हिंसा ह कोनो समस्या के हल नोहे।अपन समस्या ल गांधी जी द्वारा बताय गे सत्य अउ अहिंसा के रसदा म चलके हल करवाना हे। फेर हिंसा ले हिंसा उपजथे। नक्सली मन खुदे एक दूसर ल मारत हे मुखबिरी के शक म। कहानी के मुख्य पात्र सुखेन्दु खुद हिंसा के शिकार हो जाथे जब खुंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर पांच संगवारी उंकरे घर आके गोली म दनादन भून डालथे।येमा वोकर पत्नी ह मर जाथे अउ तीन साल के बेटी पल्लवी ह घायल हो जाथे। त अइसन स्थिति म घर म छुपे वीर बालक अंकुश ह अब्बड़ सूझ बूझ ले काम लेथे। घायल अपन बहिनी पल्लवी के जिनगी के रक्षा करथे।त दूसर कोति अपन पिता, मां के हत्यारा मन ल मारे बर उदिम सोचथे।जिहां खुंखार नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर संगवारी मन शराब पीयत रहिथे वो कमरा के कपाट ल लगा देथे अउ चारों मुड़ा पेट्रोल छिड़क के आगी लगा देथे। अउ ये प्रकार ले हिंसा के रसदा ल अपनइया नक्सली लीडर शुभगन अउ उंकर संगवारी मन हिंसक ढंग ले ही मारे जाथे। माने जइसे करनी वइसने भरनी। बंभूर बोबे त आमा थोड़े फरही। बंभूर करा जाबे त कांटा ह खबखब ले गड़ही।
22 फरवरी 1954 म छत्तीसगढ़ के गांव फगुरम म जनम धरइया डा. विनोद कुमार वर्मा ह गहन संवेदना के कहानीकार हरे। आप मन के कहानी "मछुआरे की लड़की" राष्ट्रीय स्तर म अब्बड़ सराहे गिस।ये कहानी ल बस्तर विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम म सामिल करे गे हावय।
त अइसने एक ठाहिल कहानी हे -" अग्नि संस्कार"। ये कहानी ह पाठक वर्ग ल रोमांचित करथे। कहानी लंबा हे पर पाठक वर्ग ल आखिरी तक
बांध के राखे म सक्षम हे। कहानी के भाषा छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी मिश्रित हे। कहानी की शैली सरल,सहज हे।
ये कहानी ह आज के नक्सलवाद आंदोलन के पोल खोल के रख देथे त दूसर कोति नेतामन के दुहरा चरित्र ल घलो उजागर करथे कि अपन सुवारथ बर का नइ कर दिही। कहानीकार ह लिखथे कि कामरेड सुखेन्दु के भाषण के संबंध म एक बड़े नेता ह कमेंट करिस -" कामरेड यदि लाल झंडा ल छोड़ के हमर पार्टी म सामिल हो जाय त बस्तर संभाग के सबो विधानसभा सीट ल हमर पार्टी ह आराम से जीत लेही "। येकर माध्यम ले कहानीकार ह नेतामन के दोगला चरित्र ल उजागर करथे कि जेला पहिली कोयला समझथे वोहा जब उंकर पार्टी म आ जाथे त उही आदमी कइसे सोना बन जाथे।
एक पोठ कहानी खातिर आदरणीय डा. विनोद कुमार वर्मा जी ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे ।
- ओमप्रकाश साहू अंकुर
सुरगी, राजनांदगांव
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