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*ज़ेहर जइसन दिखथे अउ जइसन लागथे; वोहर बस, वोतकिच भर नई रहय...*
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*हाथी अउ चांटी/लघुकथा*
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हाथी अउ चांटी के मिल भेंट चलतेच रथे । ए पइत चांटी हाथी ल पुछिस - कस बाबू हाथी ,तँय कभु अपन बारे म सोचे हस ।
हाँ, बरोबर सोंचे हंव - हाथी जवाब दिस ।
"का सोंचे हस ,तँय ,चिटिक महुँ ल तो बता ।"
"येई कि दुनिया म सबले बड़खा मंय हंव ।"
"अउ कभु मोर बारे म सोचे हस जी ।"
"हां, बरोबर सोंचे हंव ।"
"का सोचे तँय मोर बारे म...? "
"बस, येई कि दुनिया म सबले छोटे तँय हस ।"
"बस, अतकिच सोंचे हस तँय ,मोर बारे म...!"चांटी हाँसत हाँसत कठ्ठल गय रहिस ।
फेर हाथी ल गुनान धर देय रहिस ।
*रामनाथ साहू*
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