Monday, 23 September 2024

ज़ेहर जइसन दिखथे अउ जइसन लागथे; वोहर बस, वोतकिच भर नई रहय...*

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*ज़ेहर जइसन दिखथे अउ जइसन लागथे; वोहर बस, वोतकिच भर नई रहय...*


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 *हाथी अउ चांटी/लघुकथा*

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           हाथी अउ चांटी के मिल भेंट चलतेच रथे । ए पइत चांटी हाथी ल पुछिस - कस बाबू हाथी ,तँय कभु अपन बारे म सोचे हस ।


हाँ, बरोबर सोंचे हंव - हाथी जवाब दिस ।


"का सोंचे हस ,तँय ,चिटिक महुँ ल तो बता ।"


"येई कि दुनिया म सबले बड़खा मंय हंव ।"


"अउ कभु मोर बारे म सोचे हस जी ।"


"हां, बरोबर सोंचे हंव ।"


"का सोचे तँय मोर बारे म...? "


"बस, येई कि दुनिया म सबले  छोटे तँय हस ।"


"बस, अतकिच सोंचे हस तँय ,मोर बारे म...!"चांटी हाँसत हाँसत कठ्ठल गय रहिस ।


         फेर हाथी ल  गुनान धर देय रहिस ।


*रामनाथ साहू*


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