कहिनी // *चुनई के अगोरा* //
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गाँव बहेरा कुम्हड़ पहार के कोरा म सुग्घर बसे हावे।गाँव के तीरेच म सोन नदिया खल-खल धार बोहावत हावे अइसे लागत रहे जइसे कोनों सुग्घर गीत गावथे।नदिया म बारो महीना पानी रहेच रहे,जेठ बइसाख थोरिक कम हो जावे सुरुज नरायन जम्मो पानी ल पी डारे जइसे लागे।गाँव के मनखे म जबर *सुमता के डोर* लामे रहे तेकर सेथी जेठ अऊ बइसाख के महीना म पानी के करलाई झन होही कहिके जुरमिल के कच्चा बंधानी बांध डारे जेकर ले गरमी के दिन म पानी के बेवस्था हो जावत रहिस।नदिया के दूनों तीर म बारी-बखरी लगे रहे जिहां साग-भाजी जगावंय,कुसियार अऊ बीही के घलो बारी रहिस।टेंड़ा ले बारी के साग-भाजी म पानी पलोवंय।जेकर ले गाँव म बारो महीना आरुग अऊ तुरतेच के साग-भाजी के कोनों कभू कम नी होइस।
बहेरा गाँव म मंगतू रऊत अऊ महमूद के संग *जून्ना मितानी* रहिस।मंगतू रऊत घर म गाय-गरुवा राखे रहिस अऊ महमूद ल छेरी पोंसे के बड़ सउंख रहिस।महमूद के गोसाईंन रुबिया बीबी तुरकीन के बूता करे।गाँव के माईलोगन मन के हाथ म चूरी पहिराय अऊ लइका मन बर छोटे-छोटे प्लास्टिक के सादा अऊ करिया रंग के चूरी घलो धरे रहय।मंगतू रऊत अपन के गाय गरुवा अऊ महमूद अपन के छेरी चराय बर गाँव के तीर कुम्हड़ पहार कोती रोज जावें। *संझवाती पहावत* घर आ जावत रहिस।मंगतू अऊ महमूद के मितानी गाँव म *अलगेच चिन्हारी* रहिस।दूनों के घर कुछू कामचीत होतीस त एक दूसर ल नेवता देहे बर नी भुलातीन अऊ ओमन तो एक दूसर ल *करेजा के मंगनी* घलो देवत रहिन।
महमूद होरी तिहार म रंग खेले मंगतू घर खचित आबेच करे अऊ मंगतू घलो महमूद घर ईद के सेवई खाय जाये बर कभू नी भूलावै।मंगतू के दुलवरीन नोनी पवांरा महमूद के लइका रेहान ल राखी बांधे जावे येती रेहान घलो राखी के *मया के चिन्हा* कुछू न कुछू देबेच करे।ओमन दूनों के मितानी के मया ह *तुमा नार* बरोबर लामे रहय।दूनोंझन के मितानी बीच धरम के कोनों किसीम के अड़गा नी आवत रहिस।दूनों के मितानी गजब के मान रहिस।सुख-दुख,परे-लरे म एक दूसर के मदद करे बर *तुरतेच कूद परंय*।
गाँव के पंचइत चुनई के बेरा एक कोती लकठियावत घलो रहिस।गाँव के मनखे मन पंच अऊ सरपंच बने बर *जोखा जमावत* रहिन।काकरो कहे बोले म महमूद ह मंगतू रऊत के वार्ड ले पंच पद के चुनाव लड़े खातिर बिचार कर डारिस।एकर बर के मंगतू रऊत अऊ ओकर गोसाईंन करके दू बोट मिलबेच करही अऊ संगे-संग अपन पारा के बोट घलो देवाबेच करही कहिके सोच डारे रहिस अऊ सबो घर के बोट घलो के अंदाजा लगा डारिस काकर बोट मिलही अऊ काकर नी मिले,अंदाजा म महमूद ल लागिस के चुनाव जीत जाहूं।उहीच वार्ड ले पंच बने बर मंगतू के पठियरा कका भुलऊ रऊत *जोमियाय* रहिस।भुलऊ इही आस लगाय रहिस ये वार्ड मोरेच आय चुनाव महिच जीतहूं।
चुनाव के *बिगुल फुंका* गिस,जम्मो अपन-अपन चुनाव के जोखा जमावत तियारी म लगे रहिस।गाँव के पंचायत चुनाव म पंच बने बर अपन-अपन वार्ड ले फारम भरिन।महमूद पंच बने बर फारम भरिस अऊ भूलऊ रऊत घलो उहीच वार्ड ले अपन फारम भरिस जेन वार्ड ले महमूद भरे रहिस।सबो अपन-अपन केनवासिंन म तुरतेच भींड़ गीन।कोनों भिथिया म गेरु अऊ मसरइल रंग ले लिखत रहिन,कोनों पांपलेट चटकावत रहिन,कोनों घरो-घर जाके हाथ जोर के बोट मांगत रहिन।भिथिया के लिखई अऊ पापंलेट पढ़े ले अइसे जनावत रहिस चुनाव के बेरा सुख-दुख के संगवारी,सइताधारी अऊ समाजसेवी मन के *पूरा बाढ़े* असन रहिस,सबो *बिल भितरी ले बहिरियावत* दिखे बर धर ले रहिस।
एती मंगतू *धरम संकट* म परगे रहिस एक कोती ओकर कका अऊ दूसर कोती मितान *असमंजस म परगीस*,अपन बोट कका ल देवै के मितान ल देवै।एती महमूद ह अपन मितान मंगतू मन के बोट के आसरा करे रहिस अऊ ओती भूलऊ घलो अपन भतीजा के ऊपर बिसवास करे रहिस।भतीजा के ऊपर बिसवास नी करही त काकर ऊपर करही।गुनीक मन कहू हे *" बिसवास अऊ मया दूनों येके बरोबर आय कोनों ल जबरजस्ती नी करे जा सके। "*।बोट के दिन घलो लकठियाईच गीस एती मंगतू ल गुनासी आवत रहिस के अब काय करंव। मंगतू ल मरना होगे रहिस बोट ल कका ल दे देथंव त मितान के जीव दुख पाही एती जनम-जनम के मितानी ऊपर धोखा होही अऊ मितान ल बोट देवत हौं त कका के जीव दुख पाही काबर के कका बाप बरोबर होथे।तिही पाय के मंगतू ल गुनान धर ले रहिस।
एक दिन मंगतू अपन गोसाईंन ले पूछिस,बोट के दिन लकठियाईच गे हावे अब बोट देहे बर कइसे करबो।कका ल बोट देबो के मितान ल देबो,कका ल बोट देबो त मितान के जीव दुख पाही अऊ मितान ल बोट देबो त कका के जीव दुख पाही।ओकर गोसाईंन सोचिस अऊ कहिस के हमन के दू बोट हावे एक बोट कका ल दे देबो अऊ एक बोट मितान ल।ठीकेच कहत हावस!मंगतू अपन गोसाईंन ल कहिस।अपन गोसाईंन ल चेताईस के तैं कका ल बोट देबे अऊ मैं अपन मितान ल दे देहूं।बने सुग्घर सलाव देवत हौ जी! गोसाईंन ह मंगतू ल कहिस।
चुनाव के दिन आइस बिहनिया बेरा ले गाँव गली म *चिहुर परगे*।मनखे मन के आवाजाही गली-खोर म *सेरी-डोरी* लगे रहे।मंदहा मनखे मन के *तिहार लहुटे* रहिस,ओमन के रेंगना घलो देखे के लाइक रहे,कोनो नाली तीर अचेत फेकांय रहे।मंदहा मनखे चुनाव म खड़े जम्मो उम्मीदवार मन करा रुपिया-पईसा ठग-ठग के मांगत रहिन अऊ कहत जावैं बोट ल तुहींच ल देबो फरक नी परे।येदे अँगरी ल देख न अभी बोट नी डारे हंव खाय-पीये बर दे तंह ले बोट देहे जाहूं अइसे कहत जावैं।उम्मीदवार मन घलो काय करें !ले भई चल धर एक नंबरी अऊ बोट मोहिच ल देबे। *मुड़ी मुड़ाबे त छुरा ल थोरे डराबो*।हार के डर ह काय नी करे।सबो जीते के उम्मीद म आस लगाय हावें।
येती कका भूलऊ अऊ महमूद के जीवरा घलो अइसनहे करत रहिस।मंगतू अऊ ओकर गोसाईंन सलाव होय के मुताबिक अपन कका अऊ मितान के चुनाव के मिले छापा म दूनोंझन एककठन बोट डारिन।येती बेरा घलो होवत रहिस अऊ समे के मुताबिक बोट देवई खतम होगिस।थोरिक बेरा म गिनती होय धरिस सबो उम्मीदवार मन के जीव धुकुर-पुकुर करत रहिस।जीतबो के हारबो कोनजनी काय होही कहिके।बोट के गिनती घलो सिरागे,थोरिक बेरा म सोर सुनाईस के एक बोट ले भूलऊ रऊत जीतगे अऊ महमूद हार गे।चुनाव के हारे ले ओकर *बया भूलागे* अऊ *मुड़ी ऊपर गाज गिरगे*। महमूद खांद के टांगा ल अपन गोड़ म कचार डारिस।
येती जीतइया मन खुशी मनावत रहिन,ओमन के हितवा मन रंग-गुलाल आँखी मुहूंँ म चुपरावत रहें,फूल के माला पहिरावत रहिन,कतको झिन बाजा-रुंजी संग नाचत कुदत रहिन अऊ कोनों फटाका फोरत नारा घलो लगात रहिन।हरइया उम्मीदवार मन *मुहूंँ ओरमाय* अऊ *आँसू ढरकावत* कलेचुप अपन घर भीतरी खुसर गे।घर अइसे जनावत रहिस जइसे घर ले *मुरदा निकले* हे ।मंगतू ल अपन कका के जीते के उछाव मनावत नी बनत रहिस अऊ.न तो अपन मितान के हारे के दुख म संघरा होवत बनत रहिस। *का हाँसे के का रोवै* ।मनेच मन म मितान संखा करत होही के हमन बोट नी देहे होबो।मंगतू सोचे बर धर लीस! *असमंजस म परे रहिस* ओकर हाल के कोनों ठिकाना नी रहिस।
चुनाव के दुसरइया दिन महमूद ल *आभा मारत* रहिन अऊ कहे देख तोर मितान ह तोला बोट नी देइस का! देहे रहितिस त तैं एक बोट ले थोरे हारते,*आइना कस झलकत* हे।महमूद के मन ल कतको झिन *भरमावत* जावत रहिन।महमूद *गुनमुन-गुनमन* करे लागिस।कतको झिन दूनों के मितानी म *जहर घोरे* के उदीम करत रहिन फेर ओमन के उदीम म *पानी फिर गे*।महमूद सइताधारी रहिस अतेक जल्दी अपन मितान ऊपर भरोसा थोरे टोर देही।ओकर मन तरी-तरी *जर के खोहार* होवत रहिस। *चुर-चुर के रहिगे* तेकर सेथी मोला चुनावेच नी लड़ना रहिस दूसर के भपकी म बोजा गेंव।चुनाव ह एक दूसर ल जोड़े के काम नी करे भलुक एक दूसर के बीच बैरी के डांड़ खींच देथे।सियान मन कहे हावें " *छोटे-छोटे गलती ले बच के रहना चाही काबर के मनखे पहार म नइ भलुक पखरा म हपटथे*। " मया ल घलो *दूरिहा अरझा* देथे फेर मंगतू अऊ महमूद के मितानी के गठजोर जबर ठोसहा रहिस जेन ह *टोरे म घलो नी टूटिस*।दूनों के मितानी *अजर-अमर* होगे।
✍️ डोरेलाल कैवर्त " *हरसिंगार* "
तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)
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