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*आँच/नान्हे कहिनी*
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पनखत्ती तरिया म पुरइन पान मन गझाय रहिन । नील बरन जल बीच हरियर बरन पुरइन पान । अउ हरियर बरन पुरइन पान बीच म झाँकत गुलाबी बरन कमल दल । तरी म तउरत मछरी अउ ऊपर म गुन...गुन करत भंवरा ।
ये सब ल देखत ऊपर चढ़त सुरुज , एक निमिष बर , ठीक मुड़ ऊपर ठाढ़ हो गय । इहाँ तरिया के सबो कमल -दल मन रिग- बिग ले अउ चिलक उठिन ।
ठीक वोतकी बेरा सँवरे-पखरे नोनी हर, पानी लाने बर गगरी धर के वो तरिया म आइस।
अब तो उहाँ के वो सब कमल-कमलिनी, कुमुद-कुमुदनी मन झुरमुराय के शुरू हो गय रहिन ।
तरिया के पानी हर घलव डबके के शुरू हो गय रहिस ।
*रामनाथ साहू*
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