छत्तीसगढ़ी लोक कथा
जोगी डीह
गाँव ले थोरिक धुरिया म लोगन मन के भीड़ दिखत रहिस l भीड़ सीधा साधा नारी परानी मन के रहिस l कुछू तड़क भड़क नई दिखत रहीस l भीड़ भाड़ म न ककरो अवाज न गोठ बात सुनावत रहिस l अावा जाही घलो धीरे -धीरे सुटुर- सुटुर,हलू -हलू l मंदिर घलो नोहय न घर न धरमशाला l मठ चबूतरा आय l घाम पानी ले बंचे बांचे बर झाड़ी -झिटी ले छवाये रहिस l जोगी डीह नाम धरागे l
उही मेऱ हालत डोलत टमरत छुवत एती ओती हाथ गोड़ लमावत मैनखे जेला जोगी बाबाजी कहय l ओकर जै नई बुलावत रहिस कोनो फेर अंतस ले सबके मन म जै जै के सुर समाये रहय l हाथ जोड़े बिनती करय सब l धुरिया ले कले चुप लोगन पाँव पळूटी करय l बड़ अचरज के
जघा l जोगी डीह धाम बरोबर मानता वाले जघा होगे l जेन जइसन मांगथे ओकर मानौती पूरा हो जाथे अइसे लोगन मन कइथे l
एक झन सियान गोठियावत रहिस l बतावत रहिस -जोगी डीह म आखरी वंस बांचे हे l जोगी बाबाजी अंधवा हे l नई देख सकय l भैरा घलो हे सुन नई सकय l कोंदा घलो हे बोल नई सकय l हाथ हे फेर लूलवा l गोड़ हे फेर लंगड़ा हे l आँखी हे फेर अंधवा lमुँह हे उहू टेंडगा l लरहा हे जीभ निकले रहिथे l
नाक हे तौन सोंडहा l चुंदी हे लट बंधाये l झूलफाहा जोगी बबा l ए ठौर म आये बिना ओला देखे बिना कोनो काम नई कर सकय l जदुहा नोहय
न बैगा गुनिया न टोनहा टमानहा l न चमत्कार न शिकार बड़ अदभुत जीव l
अंधवा आँखी ले देख लीस जेला देखिस मान ले ओकर काम पूरा होगे l जेला टमड़ के छू लीस मान ले ओकर यात्रा पूरा होही l जेखर दे कुछु चीज ला खा दीस मान ले ओकर घर मंगल ही मंगल l अउ बड़े बात
जोगी डीह म ओकरे सत्ता हे उही सरकार हे जेन नेंग धेग ला नई करही नई मानही कुपित हो जाथे l कोप के शिकार ले बांचे बर ओकर इही नियम ला मानथे l चबड़ चाबड़ करय्या मन मौनी हो जथे l चुगली चारी म बूड़े रहिथे तौन मन सरीफ सराफत हो जाथे l नियत खोट्टा मन के नियत बदल जाथे l चोरहा दोगला मन दानी मानी बन जाथे l रोगी ढोंगी ठीक हो जथे l कुछु चढ़ावा नही
मुतारीलाल साव
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