Monday, 23 September 2024

बिलई* (नानकुन कहिनी)

 .                   *बिलई* (नानकुन  कहिनी)


                         - विनोद कुमार वर्मा 


       एक ठिन बिलई आहिस्ता-आहिस्ता दबे पाँव सड़क पार करत रहिस, मानो ओला कोई खास चीज के अगोरा हो। मैं भी अपने-आप म खोये सड़क म आहिस्ता-आहिस्ता रेंगत रहेंव। ओ समय मोला ये चिन्ता खाय जात रहिस कि शिक्षाकर्मी वर्ग -1 के चयन सूची म आज मोर नाम होही कि निहीं? अब तक तो जिला पंचायत के सूचना-पटल म चयन सूची घलो चस्पा हो गे होही।..... हे भगवान..... लिस्ट म एहू पंइत मोर नाम नि होही त बाबूजी के मायूस चेहरा अउ पत्नी के आशा भरी आँखी के सामना कइसे कर पाहूँ!.... घर म कुछु खास चीज तो है निही जेला बेचके दू बेटी अउ पूरा परिवार के परवरिश कर पाहूँ।..... कब तक हमन ला फाँका म दिन गुजारना परही? ब्राह्मण परिवार के हन त काकरो मेर कुछु मांगे म घलो अच्छा नि लगे। पड़ोस के कश्यप जी सब बात ला समझते त अपन घर के रांधे भात-साग ल घलो चुपचाप घर पहुँचा देथे! मोर नान-नान दुनों बेटी मन कई-कई दिन कश्यप जी के घर म आय के रद्दा जोहत रहिथें जेन दिन घर म लगभग फाँका के स्थिति रहिथे। कश्यप जी मोर दुनों लइका बर देवदूत के समान हे। जेन दिन स्कूल खुलिस ओ दिन मोर बर बड़ भारी रहिस!  घर के राशन खरीदे बर मोर करा फूटी कौड़ी नि रहिस त लइका मन के स्कूल ड्रेस, बस्ता, पेन-पेंसिल, छत्ता कहाँ ले खरीद के लानतेंव?...... सबेरे ले शाम तक न जाने कहाँ-कहाँ मैं भटकत रहेंव। शाम के घर आँय त देखथों कि दुनों लइका के स्कूल के सबो जरूरी सामान ओमन ला मिल गे हे! कश्यप जी दोपहर लइका मन ला स्कूटर म बइठार के लेग गे अउ स्कूल के सबो समान ला खरीद दीस!

        एही बेरा एक ठिन  बिलई मोर पैर ला छुवत-छुवत आहिस्ता-आहिस्ता कब निकल गइस एकर मोला भान नि हो पाइस। कश्यप जी थोड़े दूर ले सब देखत रहिन। ओमन जोर से चिल्लाइन- बेड़ा गर्क हो गे गुरू...... बिलई आड़ काट लिस हे! आज तो कुछु शुभ नि होने वाला!.....

        कश्यप जी के बात ल सुनके मोर जी धक् ले रहि गे! छाती धक्-धक् करे लगिस।...... जेन नौकरी के मोला सबले जादा जरूरत रहिस, ओहर तो अब गइस! ..... ओही समय मैं देखेंव कि एक मोटा-ताजा चूहा बिलई के आघू-आघू भागत रहिस.... अउ बिलई ह ओला झपट्टा मार के दबोच लिस!

      कश्यप जी बोलिस- ' यारा, चिन्ता झन कर, नि होही त देखबो न! मैं हौं न! ' - कश्यप जी कई साल ले एही बात ला कहत आत  हे अउ मैं सुनत आत हौं कि- ' मैं हौं न। ' - अउ ओकर बात ला सुन के मोर सोये हुए उम्मीद ह फेर जाग जाथे। 

          नाउम्मीद के जाल म उलझे निराशा म गोता खावत मैं जिला कार्यालय के तरफ पैदल रवाना होगें। मोर घर ले तीन किलोमीटर दूर जिला पंचायत के आफिस रहिस। 

....................


       दूसर दिन सबेरे कश्यप जी मिलिन त संशय भरे स्वर म पूछिन- का होइस ?

     मैं चिल्ला के बोलें- हो गइस यारा!

      कश्यप जी दउड़ के आइस अउ  मोला पोटार लिस। ओकर आँखी नम हो गे रहिस। थोड़े ही देर म कश्यप जी बोलिस- मिठाई खिलाओ यार! मैं शुगर पेसेन्ट हौं फेर आज तोर हाथ के मिठाई खाहूँ!...... कालि रेंगे के बेर बिलई ह तोर आड़ काट दे रहिस त मैं नाउम्मीद हो गे रहेंव!

        शर्मा जी आज मोला हैरत भरी नजर ले देखत रहिन मानों मैं दिल्ली के लाल किला फतह कर ले हौं। ओकर नम आँखी ला देख के मोर आँखी म आँसू आ गे।...... सरकारी नौकरी अउ रिश्वत के बारे म कश्यप जी के ख्याल अजीबो-गरीब हे कि सरकारी नौकरी अउ रिश्वत के चोलीदामन के साथ हे।...... फेर आज बिना रिश्वत के मोला नौकरी कइसे मिल गे-एहर एक प्रश्नचिन्ह  बन के ओकर आघू म खड़े हे। 

     थोड़े देर म कश्यप जी ला मैं बोलें- कश्यप जी, कालि बिलई मोर आड़ नि काटे रहिस बल्कि मैं बिलई के आड़ काटे रहेंव!..... मोर आड़ काटना ह बिलई ला शुभ होगे।..... तभे तो ओला भरपेट भोजन बर एक मोटा-ताजा चूहा मिलगे!...... अउ बदला म मोला मोर नौकरी! 


               -----------------------

No comments:

Post a Comment