नानपन के सुरता
हमर जिनगी में नानपन के गजब महत्व हे. बचपन वो उमर होथे जेमा कोनो फिकर नइ राहय.जिनगी ह राग -द्वेष ले दूरिहा रहिथे. बचपन म उछाह पाय के कतको साधन रहिथे. छोटे -छोटे चीज ले मन म उछाह भर जाथे। जादा सुविधा नइ राहय तभो ले लईका मन आस -पास के वातावरण ले अपन बर खुशी खोज लेथे. सियान मन के गजब दुस्मनी रहि वहू परिवार के लइका मन एक -दूसरा सँग सुग्घर मिल -जुल के खेलथे.
नानपन म हमन खूब खेलन -कूदन. पारा -मोहल्ला म सँगवारी मन सँग गिल्ली -डंडा, भौंरा, बाटी, बिल्लस, चोर-पुलिस खेल, दौड़ई, अँधियारी -अँजोरी, लुका -छुपी, रेस टीप, रिले रेस, कबड्डी,क्रिकेट, रस्सी खींच, लंबी कूद, बर पेड़ के जड़ ल धरके झूलना,फरिया के बाल बना के खेलना,रहचुली के सँगे- सँग तरिया म जाके तउँरना (तैरना) अउ बर पेड़ म चढ़के पानी म कूदे के अलगे मजा राहय . जब पानी गिरे त कागज के डोंगा बना के गली म बोहावन. पानी म भीगत-भीगत गली म गिद -गिद दउँड़न. दाई -दीदी मन सँग खेत -खार जाके किसिम -किसिम के भाजी -पाला सिल्हो के लावन. खेत म करमत्ता भाजी, मेंड़ म बोहार भाजी रहय वहू ल तोड़न. हमन तरिया -नदियां म जाके तउँरना सीखना नानपन म ही सिखथन.बचपन सीखे के सब ले बढ़िया उमर होथे. सँगी मन सँग तरिया जाके पहिली हमन घाट तीर -तीर तउँरे बर सीखथन. फेर धीरे धीरे अभ्यास ले गड्ढा डहर जाके तउँरे ल सीख जाथन. फेर उदिम करत -करत अइसन दक्ष हो जाथन कि तरिया ल ए पार ले वो पार तउँर के पार कर लेथन. महू ह अपन गाँव के दर्री तरिया, मतवा तरिया, खमर्री तरिया, चंडी तरिया, सरग बुंदिया तरिया के सँगे सँग खरखरा नदी के "दहरा घाट " म जाके तउँरव अउ अब्बड़ मजा आय. तरिया -नदियां म छुवउल खेले म नंगत मजा आय. तरिया -नदियां के तीर म बर अउ दूसरा पेड़ म चढ़ के पानी म कूदे के बाते अलगे राहय. मितान मन सँग मिल -जुल के तरिया -नदियां म तउँरना अउ पेड़ म चढ़के पानी म कूदे ले जउन खुशी मिलथे वोकर वर्णन करे बर शब्द ह कम पड़थे. तउँरे ले हमर शरीर के सुग्घर व्यायाम हो जाथे. येकर ले शारीरिक विकास होथे . हमर शरीर के सँगे -सँग मन म घलो स्फूर्ति आथे। पानी म तउँरे के गजब महत्व हे. विपरीत परिस्थिति म हमन तउँरना जानत हन त अपन जिनगी ल बचा सकथन. कोनो डूबत हे तहू ल बचा सकथन. नानपन म महू सँगी मन सँग खेत -खार डहर जाके पेड़ मन ले लाशा निकालंव . दाई - ददा अउ भैया - बहिनी मन संग गरमी म पैरी बिने ल जान। जउन दिन हवा - गरेर जादा चलय वो दिन जादा पैरी गिरय। बांस म घलो मारके पैरी गिराय के काम करन।
फेर वोला कोटेला म मारके बीजा ल अलग करन। फेर पैरी के बदला नून बदलय अउ बेचय घलो।
हमर परसार म ढेंकी राहय तेला चलाके मजा लेवन।येकर ले शरीर के घलो व्यायाम होवय। नानापन म अक्ति तिहार म पारा के लइका मन संग पुतरा -पुतरी के बिहाव रखन। नांदी अउ कागज के बाजा बनावन। सूपा, टुकनी ल पीट के बाजा सहिक बजावन। जब बछवा मन ल खेती किसानी बर तइयार करना राहय त कोप्पर म फांद के सिखोवय त हमू मन जाके वो कारज म सामिल होवन। भारा डोहरई के समय अपन मन बर छोटकुन भारा बंधवान अउ गिद- गिद डोहारन। कई घांव हपट के गिर जान फेर उठ के अपन काम म लग जावन।मिंजई बर दउंरी, बेलन,बैला गाड़ी म बइला मन ल हांकन। हमर बाबू ह जब सुरगी के सेठ मन के किराना सामान ल बैला गाड़ी म डोहारे बर जाय त महू ह नांदगांव चले जावंव।नानपन म सँगी मन ले खेले -कूदे ले सामूहिकता के भावना म बढ़ोत्तरी होथे. येहर जब हमन ह जिनगी म आगू बढ़थन त निक ढंग ले काम देथे. येकर सीख हमन ल नानपन ले मिले रहिथे.
ओमप्रकाश साहू "अंकुर "
सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़)
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