Thursday, 23 May 2024

ममता के जीत के कथा आय: 'बन के चॅंदैनी'*

 *ममता के जीत के कथा आय: 'बन के चॅंदैनी'*


      छत्तीसगढ़ के साहित्य अगास के चिर-परिचित नाॅंव आय- सुधा वर्मा। जेन हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो भाषा म अपन लेखनी ले सरलग साहित्य सेवा करत हें। छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार म इॅंकर योगदान सदा दिन सराहे जाही। इॅंकर साहित्य लेखन ले जादा देशबंधु के साप्ताहिक 'मॅंड़ई' अंक के संपादन ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार खातिर इॅंकर योगदान ल सराहे जाही। काबर कि इॅंकर संपादन म नवा पीढ़ी के साहित्य साधक मन ल एक मंच मिलिस। प्रोत्साहन मिलिस। मैं खुद एक उदाहरण आंव। 'मन के पीरा' कहिके एक अग्रज ल खूब पढ़ेंव, जे दशक-डेढ़ दशक भर पहिली उॅंकर नाॅंव के पर्याय बन गे रहिस। वरिष्ठ अउ स्थापित साहित्यकार मन ल छपे के मौका मिलिस। दू दशक पहिली जब छत्तीसगढ़ी ल उपेक्षा के दृष्टि ले देखे जावत रहिस, तब आप संपादन के ए बुता ल आगू बढ़ाय। आज के बेरा म समाचारपत्र मन म छत्तीसगढ़ी साहित्य के कतको परिशिष्ट आवत हे। दूसर भाषा म कहि सकथन कि छत्तीसगढ़ी साहित्य के दिन बहुरे हे। सोशल मीडिया के प्रभाव के पहिली ले आपके ए उदिम चले आवत हे। जउन छत्तीसगढ़ राज बने के बखत ले सरलग चलत हे। मोर नजर म आपके पाॅंच दशक के लेखन अनभव ऊपर दू दशक के संपादन ह छत्तीसगढ़ी साहित्य बर भारी हे। ७० के दशक म आप के रचना (हिंदी) कादम्बनी जैसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका म छपिस। आप साहित्य के जादा ले जादा विधा म लिखेव। बछर २००७ म आपके लिखे छत्तीसगढ़ी उपन्यास 'बन के चॅंदैनी' छपिस, जेकर दूसरइया संस्करण एसो २०२४ म छपे हे।

        भारतीय जनजीवन म लोक मान्यता हवय कि मनखे सरग सिधारे पाछू चॅंदैनी बन के अपन हितु-पिरीतु ल सदा असीस देथे, अपन ॲंजोर ले हमर रस्ता चतवारथे। भले ए मान्यता के मूल म नान्हें लइका मन ल मन-बहलाव रहिथे। उॅंकर अंतस् म व्यापे दुख-पीरा ल हरे के उदिम रहिथे। खासकर दादी, नानी अउ महतारी के संदर्भ म ए मान्यता प्रचलित हे। लइका मन इॅंकरे ले जादा जुरे जउन रहिथे। मानसिक जुड़ाव ल जोरे रखे के अइसन उदिम  उॅंकर मानसिक संतुलन ल बिगड़न नइ देवय। ए उपन्यास म दुलारी अपन दू लइका ले दुरिहा हो तो जथे, फेर सुरता म उॅंकर मन बर ओकर ममता छटपटावत रहिथे। इही छटपटाहट ह चॅंदैनी के झिलमिल ॲंजोर ल रेखांकित करथे। दुलारी वरुन अउ वासु के मया के द्वंद्व म फॅंसे जिनगी के असल सुख बर वरुण के छल अउ धोखा ल बिसराय बर ओकर लइका मन ले छोड़ देथे। जे स्वाभाविक आय। बीते ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेत। फेर समय के संग महतारी के ममता उमड़े ल धर लेथे। इही तो नारी ल पुरुष ले अलग करथे। उपन्यास के कथानक समाज म देखे बर मिलथे। लेखक अपन तिर-तखार के घटना ल ही तो अपन लेखनी ले कागज-पत्तर म उतारथे। जेमा कल्पना ल मिंझार कुछ चटपटा स्वाद डार के कथानक ल विस्तार देथे। पाठक ल अपन चातुर्य ले बाॅंधे रखथे। 

       चरित्र के माध्यम ले सबो बात रखे नइ जा सकय। उपन्यास अउ कहानी म लेखकीय प्रवेश जरूरी होथे। लेखकीय प्रवेश ले कहानी - उपन्यास म लेखक अपन विचार ल सपूरन रख पाथे। पात्र ले सब ल कहलवाय म कसावट नइ आ पाय। संवाद बस ले कहानी अउ उपन्यास नाटक अउ एकांकी के श्रेणी म आ जथे। ए उपन्यास के रचनाकाल म (रचना मन के ऑंकड़ा मुताबिक) छत्तीसगढ़ी उपन्यास अपन शैशव अवस्था म रेहे हे। इही बात आय कि ए उपन्यास म लेखकीय प्रवेश के कमी नजर आथे। कथात्मक शैली दूसर कारण हो सकथे। उपन्यास कथात्मक शैली म लिखे ले लेखकीय प्रवेश के गुंजाइश खतम होगे हे, लेखन शैली चयन के अधिकार लेखक के होथे। 

        उपन्यास पैदल चाल के बड़े कहानी होथे, जेन म छोटे-छोटे कहानी मन वइसने जुरे रहिथे, जइसे छोटे-छोटे नदी मन बड़का नदी म सॅंघरत आगू बढ़थे‌। अउ विस्तार पाथे। ए उपन्यास के रफ्तार कहानी के रफ्तार ले आगू बढ़े हे। इही कारण आय कि नायिका हर दृश्य म उपस्थित दिखथे, जेकर प्रभाव म उपकथानक के जुड़ाव ले आने चरित्र उभर नइ पाय हे। पाठक के दिलो-दिमाग म सिरीफ दुलारी च ह रच-बस जथे। इही वजह से शायद ए उपन्यास के दूसरइया संस्करण के भूमिका म श्रीमती दुलारी चंद्राकर ह ए उपन्यास बर एक जगह 'लघु उपन्यास' शब्द ल बउरे हे।

       उपन्यास दुलारी के माध्यम ले नारी परानी संग होय धोखा अउ ओकर सपना ल पूरा करे के इच्छाशक्ति के बीच के संघर्ष ल बढ़िया ढंग ले उकेरे म सफल हे। कहूॅं नारी अपन संकल्प संग आगू बढ़य त कोनो बाधा ओकर रस्ता नइ रोक सकय। यहू बात के सीख उपन्यास दे म समर्थ हे।

       बाल मनोवृत्ति के चित्रण पाठक ल गुदगुदाय के अवसर नइ छोड़य। दू ठन संवाद देखव- 

   १. मैं स्कूल जाहूॅं, मोला बहुत पढ़ना हे।

   २. तैं मोर बाबू अस का?

        पहला कथन एक कोति लइका के संकल्प ल बताथे, उहें दूसर कोति लेखिका शिक्षा के महत्तम ल प्रतिपादित करे के पुरजोर उदिम करे हे।

        दूसर कथन अबोध बालक के ददा के दुलार नइ मिले ले ओकर तड़फ अउ कमी ले जिज्ञासा ल प्रकट करथे। भले वो नइ जानत हे कि अइसन प्रश्न करे नइ जाय।

         हमर समाज म भलमनसुभहा प्रकटे अउ असीस दे के परम्परा हे, एकर आरो उपन्यास म मिलथे- ...पढ़ के बड़े साहब बनबे। 

        राजिम मेला, राजीव लोचन मंदिर अउ कुलेश्वर महादेव के चित्रण के बहाना पुरातात्विक अउ सांस्कृतिक चेतना ल उजागर करना, डोंगरगढ़ म बम्लेश्वरी माता ले असीस ले के चित्रण जिनगी म अध्यात्म के सुग्घर समन्वय स्थापित करे गे हे।

        सरकारी नौकरी म बड़े साहब मन के तानाशाही रवैया के झलक देखे मिलथे, जब दुलारी के ददा अपन घरवाली के अंतिम संस्कार म नइ आवय। खबर मिले म कहिथे- साहब नइये त बंगला ल कइसे छोड़हूॅं? एक कोति रोजी-रोटी छिनाय के डर हे, त दूसर कोति छोटे कर्मचारी के ईमानदारी। भले अइसन चरित्र विरले होही, फेर नकारे तो नइ जा सकय। 

         दुलारी संग वरुण के बेवहार चालाकी पूर्ण हे। वरुण बर दुलारी वाकई म भोग के जिनिस लगथे। दुलारी के प्रति ईमानदार होतिस त अतका हिम्मत जुटा सकत रहिस कि घर वाला मन के तय करे रिश्ता ल सच्चाई बतावत ठुकरा सकत रहिस। बाकी सब ओकर ढोंग आय। ए पात्र के माध्यम ले लेखिका नारी मन ल सावचेत रहे के चेतवना दे हे। पुरुष प्रधान समाज म पुरुष अपन किए पाप (बुरा करम) के सच्चाई स्वीकार करे के साहस नइ रखय। ए बात गाॅंठ बाॅंध लव।

          नारी ह कब तक अपन जिनगी ल लइका के पाछू खपाही। ए मिथक ल टोरे के ईमानदार उदिम उपन्यास म करे गे हे। ए नारी के विद्रोह ल उजागर करथे। सिरीफ महतारी औलाद बर अपन जिनगी कब तक दाॅंव लगाही? वहू ल अपन सुख के रस्ता के म बढ़े के अधिकार हे। इही विद्रोह के चलत दुलारी वासु संग अपन नवा जिनगी के शुरुआत करे के ठानथे। सुखमय जिनगी जिऍं लगथे। खुशहाल जिनगी म तब मोड़ आ जथे, जब शिक्षा के नाॅंव ले दुलारी के चारों लइका संजोगवश मिल जथे। फेर वासु अउ लइका मन के आपसी मया-दुलार दुलारी के अंतस् के दुविधा ल नदिया के पूरा बरोबर बोहा देथे। जेन दुविधा म वरुण के धोखा के निशानी अउ वासु के निश्छल मया के चिन्हा महतारी के मया बीच बाधा परय।

       महतारी के निश्छल ममता के करुणा जमाना के आगू कइसे मजबूर होथे, ए दुलारी के कथन ले सहज अनुमान लगाय जा सकथे।

      ....चंदा म दाग हावय, मोरो परेम वइसने हावय चंदा कस।...किसना अउ नोनी बर जेन परेम हावय तेमा दाग हावय।...

       सिरतोन बिन बिहाये महतारी ल समाज स्वीकार नइ करय। ए नारी के जिनगी बर बड़का दाग आय। जे कभू छटय नहीं। लेखिका के उद्देश्य इही दाग ले बाॅंच के जिनगी के संघर्ष ल थोरिक कमती करे के हे। मान-सम्मान ले जिए के रस्ता सुझाथे।

      छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अइसे हे कि इहाॅं सामाजिक मान्यता ले इत्तर जिनगी जीना दूभर होथे। दुलारी वासु संग वैवाहिक जीवन इही सामाजिक बंधना म बॅंधाय बड़ खुशी-खुशी जी पाथे। 

      'बन के चॅंदैनी' उपन्यास कुल मिलाके नारी के दुख-पीरा, दुविधा अउ अंतर्द्वंद्व ऊपर ममता के जीत के कथा आय। जेकर भाषा सरल हे। संवाद पात्र के अनुरूप रचे गे हे। उद्देश्य पूर्ण हे। नारी ल स्वाभिमान के संग जिऍं बर संघर्ष करत नवा रस्ता गढ़े के सीख हे।

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उपन्यास: बन के चॅंदैनी

लेखिका: सुधा वर्मा

प्रकाशक: वैभव प्रकाशन रायपुर

प्रकाशन वर्ष: 2007 प्रथम संस्करण

                  2024 द्वितीय संस्करण

मूल्य: 200/-

पृष्ठ: 68

कॉपीराइट : लेखिका 

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पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

जिला बलौदाबाजार-भाटापारा छग

मोबा. 6261822466

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