Chandrahas Sahu धमतरी: डर्टी गर्ल
चन्द्रहास साहू
मो 8120578897
एक झन टूरा आय ओहा ।
एक झन टूरी आय यहुॅं हा ।
टूरा वइसने रिहिस जइसे आने टूरा मन रहिथे नान्हे चुन्दी वाला कुरता जिंस के पेंट अउ गोड़ मा चमकत बूट।
टूरी घला वइसने रिहिस जइसे आने टूरी मन रहिथे कुरता फ्राक लम्बा चुन्दी लाल फीता दू बेनी गथाएं अउ टुटहा चप्पल पनही।
टूरा के चेहरा दमकत रिहिस।
टूरी के चेहरा घला दमकत रिहिस अपन पुरती।
टूरा चूक ले पावडर लगाये रिहिस।
टूरी घला पावडर लगाये रिहिस- चोरोबोरो।
टूरा काजर अंजाये रिहिस- चूक ले।
टूरी घला काजर अंजाये रिहिस-चोरोबोरो,लिपिस्टिक घला चोरोबोरो।
टूरा ला ओखर दाई तियार करे रिहिस।
टूरी ला घला ओखर दाई तियार करे रिहिस।
टूरा बारा बच्छर के।
टूरी घला बारा बच्छर के।
टूरा मोर परोसी आय नवा कॉलोनी के बंगला वाला घर के ।
टूरी घला परोसी आय जुन्ना घर के खाल्हे बस्ती के ।
आज इतवार आय। दूनो कोई गंगरेल जावत हावय अपन - अपन गाड़ी मा। मंदिर मा दूध पियईया दाई असन बइठे अंगारमोती दाई । तभे तो दुनिया- दुनिया के माइलोगिन मन आथे कोरा हरियाये बर। धजा- पताका ले साजे मंदिर । मंदिर मा झूलत घंटी - घन्टा अउ उहा ले आरो आवत ठिन ठिन...ठनन -ठनन ...अब्बड़ सुघ्घर। दाई के पाॅंव पखारत, जलरंग - जलरंग करत अथाह बाॅंध । सुरुज अंजोर पानी मा परथे तब अब्बड़ सुघ्घर दिखथे। लहर - लहर लहरावत पानी । .......अउ ओमा खलबिल - खलबिल करत, उबुक- चुबुक होवत मछरी । नजर भर देख ले पानीच पानी। ओमा तौरत डोंगा अउ पानी जिहाज जइसन डोंगा दूर- दुरिहा मा धुन्धरहा दिखत पहार- परबत जंगल- झाड़ी । अगास टंगाये हावय ओमा।
सुघ्घर गार्डन। गार्डन मा मनभावन रिकम- रिकम के फूलपत्ती पेड़ - पौधा । पथरा ला रच के बनाये नदी पहार के सुघराई ..अब्बड़ सुघ्घर। फिसल पट्टी,भांवरी, झूला, चढ़े- उतरे खेले के लोहा के जिनिस। गदबदावत लइका मन अउ गमकत गंगरेल।
"ऐ..ऐ... डर्टी गर्ल ...!''
टूरा आवय देखते साट आरो करिस।
टूरी घला अब चिन्ह डारिस।
पाछू दरी देवदुत बनके आये रिहिस इही टूरा हा।
डोकरी दाई के पहिराए ताबीज़ मा हाथ मड़ाइस अउ मंतर पढ़ीस।
"अन्नपूर्णा दाई अपन नानचुन परी बेटी ला जेवन करा, खाना दे । बेटी लांघन हावय ।''
जोर - जोर ले चिचियाबे ताहन देवदूत ला पठोही अन्न्पूर्णा दाई हा । अइसना तो केहे रिहिस टूरी के डोकरी दाई हा। जब लांघन रहिथे तब इही मंतर ला चिचियाथे। आज सिरतोन मंतर काट करिस । टूरी मंतर पढ़ीस। टूरा हा अब मटर पनीर अउ सोहारी के प्लेट ला धर के आइस अउ टूरी ला दे दिस ।
... अउ टुरी हा । बदला मा झूलना झुलावत हावय टूरा ला। ससन भर झूलना झुलिस टूरा हा। ... अउ टूरी के पारी आइस तब कान मा आरो आइस ।
"व्हाट आर यू डूइंग माई लिटिल किंग ? ये हमारे सोसायटी के बराबर के नही है। किप डिस्टेंस फ्रॉम डर्टी गर्ल ..।''
टूरा के मॉम रिहिस । टूरा ला बरजिस अउ चेचकारत लेग गे। टूरी भलुक आखर ला नइ जानिस फेर भाव ला समझ गे।
"ऐ.. ऐ...डर्टी गर्ल !''
टूरी आरो ला सुनिस । छिन भर के सुरता ले निकलिस अउ टूरा के तीर मा अमरगे।
टूरा फेर झूलना मा बइठ गे अउ टूरी ला झुलाये बर आरो करत हावय।
"ओ दिन के मटर पनीर सोहारी सुघ्घर लागे रिहिस । आज घलो लाने हस का मोर बर देवदूत बनके ?''
टूरी पुछिस जीभ ले होठ ला चाटत ।
नो ..आई हैव....। टूरा अंग्रेजी छोड़के छत्तीसगढ़ी मा गोठियाइस। छत्तीसगढ़ी भाखा सीखोये रिहिस न काम वाली बाई हा।
" नही ..नइ लाने हंव।''
"झूलना झूला न !''
टूरी झूलना झुलाये लागिस।
टूरी झुलावत हावय अउ टूरा झूलत हे चुई.. चुई..सुई...सुई...सरर...सरर..झूलना ले आरो आवत हावय। दूनो के गोठ बात हा.. हा.. ही..ही..।
"तोर बाबू का करथे ।''
टूरी किहिस।
"मोर डैडी झिल्ली के बुता करथे । बड़का बड़का फैक्ट्री हावय सड़क तीर मा, पालीथिन प्लास्टिक खुरसी मेज दरवाजा ड्रम बनाये के। ''
टूरा बताइस अउ पुछिस घला।
"तोर बाबू का करथे ?''
"मोरो ददा हा झिल्ली के बुता करथे। बड़का बड़का हुंडी हावय जुन्ना झिल्ली टूटहा प्लास्टिक खुरसी मेज दरवाजा अउ ड्रम के।''
टूरी बताइस अउ पुछिस घला।
"तोर दाई का करथे।''
"मोर मॉम हा बुता करथे। फोरव्हीलर गाड़ी मा जाथे पर्स टिफिन धर के।''
टूरा बताइस अउ फेर पुछिस चटाक ले।
"...अऊ तोर दाई हा ?
" मोर दाई हा घलो फोरव्हीलर.... टूटहा ठेला मा जाथे कमाये बर। दाई हा ठेला ढूलावत- ढूलावत थक जाथे तब कभू- कभू ददा हा मोला अउ दाई ला बइठार के ठेला ला ढ़केलथे।
"स्कूल जाथस ?
"हा। अब्बड़ बड़का हावय हमर स्कूल । बड़का बिल्डिंग, बड़का क्लासरूम, बड़का टॉयलेट अउ बड़का खेल मैदान।''
"..अऊ तेहा ?''
"हंव, अब्बड़ बड़का हावय मोरो स्कूल हा।बड़का बिल्डिंग खपरा वाला । परेवा गुटूर - गुटूर करत रहिथे । बड़का हाल, छेटवी ले आठवी तक एक संघरा बइठथन । टॉयलेट छोटे अउ मैदान बड़का जिहा आमा अमली के पेड़ हाबे अउ......।''
टूरी बताइस अउ पुछिस।
"बड़का होके का बनबे ?''
डैड कहिथे प्लास्टिक के चार फैक्टरी ला चालीस ठन बढ़ाबे अउ चालीस हजार नौकर चाकर राखबे। अइसने सपना हावे डैडी के।''
"तेहां का बनबे ?''
टूरी बताइस
"मोर ददा कहिथे चार आखर पढ़ ले । रांध गढ़ के चार झन ला खवा लेबे । माइके ससुरार के चार झन के आगू अपन नाव के अंजोर बगराबे अइसना सपना देखथे ददा हा।''
टूरी बताइस अउ पुछिस।
"तोर घर कोन- कोन हावय ?''
"मे, डैडी अउ मॉम।''
"बस.. तीने झन......।''
हो हो ....टुरी हाॅंसे लागिस। पुछिस।
"तोर घर ?''
"मे, दू झन मोर बहिनी, मोर भाई ,कका -काकी, ओखर बेटी -बेटा, डोकरी दाई अउ डोकरा बबा...। टोटल छब्बीस झन। ''
अंगरी मा गिन के बताइस टूरी हा।
"तोर डोकरी दाई हा नरी मा नइ बांधे हे ताबीज। तोर भूख भगाये बर... ? अन्न्पूर्णा दाई के मंतर... अउ कभु- कभु देवदूत ला भेज के जेवन पठो देथे.....। पाछू दरी आये रेहेस न तेहा मटर पनीर धर के ।
"अरे मोला खाये ला नइ भाइस तब कुकुर कर फेके ला जावत रेहेंव। तोला देख पारेंव अउ तोर आगू मा डार देंव।''
टूरा किहिस चटाक ले।
"त... देवदूत...?''
टूरा के चेहरा ला देखत रिहिस टूरी हा।
"देवदूत नइ होवय, सब अंधविश्वास आय ।''
टूरा किहिस।
"तोर डोकरी दाई अउ डोकरा बबा नइ हे का ..? ओखरे सेती अइसना काहत हस। कहाॅं गेहे ?''
टूरी पुछिस।
"मोर डोकरी दाई अउ बबा हा महारानी अउ महाराजा बनगे हे। बड़का - बड़का हाथी- घोड़ा, नौकर -चाकर, तलवार - तोप, बंदूक -भाला सब हावय। खाइ - खजाना, पिज्जा - बर्गर, इडली - डोसा, काजू -बादाम, खोवा- जलेबी सब मिलथे उहाॅं । टीवी के रामायेन सीरियल मा देखे हस बड़का-बड़का महल बिल्डिंग ला, वइसने हावय मोर डोकरी दाई बबा के घर हा।''
टूरा गरब मा फुलत रिहिस।
"तेहां देखे हस जम्मो ला ?''
टूरी पुछिस।
"नही ... मॉम बताथे ।''
"का नाव हावय ओ राज के ?''
"वृद्धाश्रम राज नाव हावय । जब बड़का होहु न तब मॉम डैड ला उही राज मा पठोहूं। वृद्धाश्रम राज के मॉम हा महारानी रही अउ डैड हा महाराजा रही।''
टूरा जइसे भीषम किरिया खावत किहिस।
झूलना अपन गति मा फेर बाढ़गे। हवा मा तौरे लागिस टूरा संग।
टूरी गुनत रिहिस चाहे कही हो जावय मोर डोकरी दाई बबा ला कोनो राज नइ पठोवंव। हाथी- घोड़ा, राज- पाठ मिलही तभो ले......अपन ले दुरिहा नइ करो।
झूलना फेर अपन गति मा चलत हावय।
"व्हाट आर यू डूइंग माय लिटिल किंग । ''
टूरा के दाई आइस बंबियावत। टूरा ला बरजिस, खिसियाइस।
" दिस पिपल आर नॉट इक्वल टू अवर सोसायटी। मत खेला करो इन लोगो के साथ। न संस्कार ,न तमीज ...हुं....रियली डर्टी गर्ल ...।''
मुॅॅंहू बिचकावत किहिस मॉम हा।
टूरी डर्रागे टूरा के मॉम के बरन ला देख के। दउड़त अपन डोकरी दाई करा गिस अउ पोटार लिस। वहुं हा झिल्ली बिनत रिहिस आने डर्टी गर्ल मन संग ।
चन्द्रहास साहू
द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब के पास
श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़
493773
मो. - 8120578897
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: *डर्टी गर्ल: लघु समीक्षा*
छत्तीसगढ़ के नैसर्गिक समाज में उच्च नीच का भेदभाव पहले कभी नहीं रहा। किंतु विगत कुछ वर्षों में आर्थिक असमानता के परिणाम स्वरूप यहां के मूल निवासियों में भी आर्थिक भेदभाव की भावना दिखने लगी है, ऐसा कथाकार का मानना दृष्टिगोचर होता है। कहानी शुरुआत से ही अपनी कथ्य-शैली के कारण पाठक को न केवल बाँध कर रखती है बल्कि उसको आगे पढ़ने के लिए उत्सुक बनाये रखती है। यहाँ एक अलग तरीके का प्रस्तुतिकरण देखने को मिलता है। कहानी का शीर्षक और उस शीर्षक की बार बार होने वाली पुनरावृत्ति कथ्य के रहस्य का निर्माण कर पाठक को किसी न किसी अनुमान के प्रति उलझाये रखते हैं। कहानी की शुरुआत में तो यह उलझन गहरी और कड़ी लगती है। कहानी के केंद्रीय पात्र दो बच्चे है जिनका बोध उनके अबोध पर हावी है। वर्तमान कालखण्ड के बड़ों के आइ....... की पृष्ठभूमि पर बालमन का सुंदर चित्रण करती इस कहानी में कई आधुनिक तत्व हैं जिनपर विस्तृत समीक्षा में ही चर्चा सम्भव है। कथाकार चन्द्रहास साहू को बधाई। और वे इसके हकदार भी हैं।
डॉ चन्द्र शेखर शर्मा
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समीक्षा
ओम प्रकाश अंकुर: समाजिक विसंगति ल उजागर करत कहानी - डर्टी गर्ल
युवा कहानीकार चंद्रहास साहू जी के अपन एक अलगेच शैली हे जेकर खातिर उंकर कहानी ह पाठक वर्ग म उत्सुकता जगाथे कि येकर बाद कहानी म का मोड़ आही। कहानी के उद्देश्य ल बिना कहे बता देथे। चंद्रहास साहू अपन कहानी म ठेठ छत्तीसगढ़ी के संगे संग पात्र के अनुसार हिंदी अउ अंग्रेजी शब्द मन के प्रयोग सहज भाव ले करथे । अइसने पाग म सनाय कहानी हे - डर्टी गर्ल।
कहानीकार ह महानदी अउ अंगारमोती मंदिर के माध्यम ले प्रकृति के सुघ्घर चित्रण करथे। अंगारमोती दाई के प्रति लोगन मन के आस्था अउ मंदिर परिसर म लगे नाना प्रकार के दुकान के संगे संग गार्डन ठउर के सजीव चित्रण देखे ल मिलथे जेहा कहानी बर सुघ्घर वातावरण तइयार करथे।
हमर समाज म अमीरी अउ गरीबी के कत्तिक खाई हे। गहरा के बात करन त कुवां ले जादा गहरा नजर आही। ये कहानी के माध्यम ले कहानीकार इही गहरा ल उजागर करथे कि धनवान मनखे मन के जीवन शैली कइसे रहिथे अउ गरीब मनखे मन कइसे सुविधा बर तरसत रहिथे।
धनवान मनखे अपन लईका ल बड़का प्राइवेट स्कूल म पढ़ाही पर दाई - ददा बर घर म जगा नइ हे। दाई -ददा ल वृद्धाश्रम म छोड़े हावय। जइसन करनी तइसन भरनी कहे गे हावय। वो धनवान मनखे के लईका के माध्यम ले ये कहलवाना कि मोर दाई -ददा ह जब डोकरा - "डोकरी हो जाही त महू ह जिहां अभी हमर डोकरा बबा अउ डोकरी दाई रहिथे उंहचे पठोहू। "येकर माध्यम ले कहानीकार संदेश देवत हावय कि जइसन बोहूं वइसने तो पाहू। बंभरी जगाबे त आमा थोरे पाबे। आज समाज म कतको धनवान मनखे मन के अइसने हाल - चाल हावय। अपन लईका ल बढ़िया से पढ़ाही। सबों किसम के सुख -सुविधा दिही। अउ उही लईका ह हमर भारत देश म बने नौकरी नइ मिलत हे कहिके विदेश कोति अपन पांव ल पसारथे अउ धीरे ले उंहचे के हो जाथे। दाई-ददा मन कलपत रहि जाथे कि-" मोर दुलरवा बेटा तंय ह हमर भारत देश के कोनो भी प्रदेश म नौकरी कर ले रे! तोला नइ रोकंव। पर बेटा ल तो विदेश के चस्का लगे हावय। जाना हे सात समंदर पार इही होगे हावय आज के नवाचार। ये कोति दाई - ददा मन होगे हे लाचार।
कहानी के प्रमुख पात्र एक टुरा अउ टूरी हावय। दूनों के उमर बारह बछर हावय।टूरा धनवान घर के हरे त टूरी ह गरीब घर के। टूरा घर एकल परिवार हे त टूरी घर संयुक्त परिवार हे।टूरा ह कान्वेंट स्कूल म पड़थे त टूरी ह सरकारी स्कूल म। इहां कहानीकार ह अमीर अउ गरीब मनखे मन के रहन -सहन अउ उंकर बेवहार ल सुघ्घर ढंग ले पिरोय हावय। धनवान मनखे मन अपन लईका ल गरीब मनखे के लईका मन संग खेलन नइ दय। येला अपन शान के खिलाफ समझथे. ये सब के पोठ वर्णन कहानीकार ह करे हावय।
कहानी सुघ्घर शैली म लिखे गे हावय। पात्र के अनुसार भाषा के उपयोग करे गे हावय। कहानी छत्तीसगढ़ी भाषा के पाग म बने सनाय हे जेकर महक सुघ्घर ढंग ले ममहावत हे। कहानीकार ह टूरा के दाई बर अंग्रेजी भाषा के उपयोग करे हावय। वोकरे संवाद के माध्यम ले कहानी के शीर्षक - 'डर्टी गर्ल ' ह चरितार्थ होथे। ये कहानी ह धनवान मनखे मन गरीब मनखे मन बर कइसे हीन भावना लाथे अउ अपन बेवहार ले पीरा पहुंचाथे वोकर सच्चाई ल उजागर करथे।
भाषा सरल, सहज अउ सरस हे। कहानी म कोनो प्रकार ले रूकावट नजर नइ आय अउ महानदी के धार कस कल - कल करत आगू बढ़थे।नवा पीढ़ी के कहानीकार चंद्रहास साहू ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे कि नवा ढंग ले कहानी के शीर्षक दे हावय अउ सुघ्घर सामाजिक ताना - बाना बुनके कहानी के शीर्षक ल सार्थक करे हावय।
ओमप्रकाश साहू" अंकुर"
सुरगी, राजनांदगांव
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सच म बाल मन, मन के सफ्फा रहिथे। लइका मन मन म कोनो किसम के भेद राखॅंय न भेदभाव ल जानॅंय। सब ल बरोबर जानथें। सबो ल अपने सहीं मानथें अउ समझथें। मन ले मन मिलथे अउ संघरा खेलथें कुदथें अउ गोठियाय लगथें। दुनियादारी ले दुरिहा रहिथें। अइसनहे बालपन के गोठ ल समोय अउ समाज के तथाकथित पढ़े-लिखे सुसभ्य कहावत लोगन ल चेतवना देवत कहानी आय डर्टी गर्ल।
ए कहानी आर्थिक रूप ले समाज के वर्ग भेद ऊप्पर व्यंग्यात्मक शैली म लिखे गे कहानी आय। जेमा बिल्कुल सरल सहज भाषा म समाज अउ बेवस्था ऊपर टंट मारे म कहानीकार सफल हे। दूनो लइका पात्र मन के गोठ बात जीवंत हे। एकदमेच सहज हे, सरल हे। बालमन के सुग्घर छाप घलव देखब ल मिलथे।
कहानी के शुरुआतेच म टुरा अउ टुरी के रूप वर्णन ह आर्थिक विषमता ल दरसाय बताय बर काफी हे। जे ए कहानी के मूल कथानक आय।
गंगरेल बाँध जउन छत्तीसगढ़ बर कोनो बरदान ले कमती नइ हे, इहाँ के फोटू(चित्रण) बिल्कुल हुबहू हे। उहाँ ले आय मनखे के आँखीं आँखी म झूल जही। अउ जेन पाठक उहाँ नइ गे हे तेकर मन एक पइत गंगरेल जाय के करही। ए कहानीकार के भाषा अउ चित्रण कुशलता के कमाल आय। अंगारमोती के महत्तम ल उकेरई ह साँस्कृतिक अउ सामाजिक मान्यता ल सहेजे के दिशा म कहानीकार के जुड़ाव ल बताथे। लोक ले जुरे मान्यता ल स्थापित करे म कहानीकार संवाहक बने हे। इही ह कहानी के अपन बेरा अउ परिस्थिति के आरो देथे। कल्पना के गहिर सागर ले निकाले कोनो मनगढ़ंत बात नोहय के, सबूत आय।
संवाद मन पात्र के संग नियाव करत उँकरेच बर लिखे गे हवय। अँग्रेजी शब्द मन ल बउरना (प्रयोग म लाना) कहानी म लालित्य लाय हे।
सहज अउ सरल भाषा म कहे गे ए संवाद ल देखव-- "....अब्बड़ बड़का हावय मोरो स्कूल ह....बड़का हाल हे जेमा छेटवीं ले आठवीं तक सँघरा बइठथन।..."
ए संवाद सरकारी स्कूल के बेवस्था ऊपर टंट मारे गे हे। आज भले अइसन स्थिति कमतीयागे होही। फेर नकारे तो नइ जा सके।
समाज के गरीब तबका के सपना अउ सोच ल देखव जे ह सोला आना सिरतोन आय।
" मोर ददा कहिथे चार आखर पढ़ ले। राँध गढ़ के चार झन ल खवा लेबे। ....अपन नाव के अंजोर बगराबे अइसना सपना देखथे मोर ददा ह।"
अभाव म जिनगी जियत मन बहलाव के गोठ करत डोकरी दाई के देवदूत आय वाला भरम ल टोरत टुरा के गोठ अंधविश्वास के जड़ी ल उखाड़ देथे।
"अरे मोला खाय ल नइ भाइस तब कुकुर कर फेके....तोर आगू म डार देंव।"
"कोनो देवदूत नइ होवय।"
अवइया बेरा के फोटू खींचत ए संवाद सब के चेत ल हजा दिही फेर एकर नजरअंदाज करई घलव सही नइ होही। समाज ल सावचेत करे के उदिम म लिखे संवाद देखव-
"वृद्धाश्रम राज नाव हावय। जब बड़का होहूँ न तब मोर मॉम डैड ल उही राजम पठोहूँ....।"
इही संवाद म लुकाय संदेश ह कहानी लिखे के मूल लागथे।
गार्डन के झूलना म बइठना अउ झूलत झुलावत गोठ बात करना सरल अउ सहज चित्रण आय।
कहूँ सास-ससुर ल वृद्धाश्रम म छोड़ के मजा उड़ावत जिनगी जिएँ के उदिम करइया बहू अभाव म जियत मइलाहा कपड़ा लत्ता अउ सँवागा देख के कोनो टुरी ल डर्टी गर्ल कइही। त अइसन सोच पाठक ल गुने बर मजबूर करथे कि असली म कोन डर्टी गर्ल आय। सच म कहानी अपन ए नाँव/शीर्षक के संग अपन उद्देश्य ल पूरा करथे।
सामाजिक अउ आर्थिक विषमता के संग शिक्षित मनखे के अंतस् कतेक साॅंकुर हो जथे, ए कहानी म देखे मिलथे। चाहे गरीब मजदूर के लइका के प्रति मन म उपजे हीन भाव होवय ते अपने दाई ददा ल वृद्धाश्रम भेजे के। संगे संग आम आदमी के गोठ बात म शामिल ॲंग्रेजी शब्द मन ल कहानी म बउरना उपयुक्त हे। व्यंग्यात्मक शैली के सुग्घर कहानी डर्टी गर्ल बर चंद्रहास साहू जी ल नंगत अकन बधाई अउ सुग्घर सुग्घर कहानी लिखत रहय इही शुभकामना देवत हँव।
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह(पलारी)
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