Saturday 4 May 2024

कहानी: .......तोर अगोरा मा !

 कहानी: .......तोर अगोरा मा !

                      

                                चन्द्रहास साहू

                             मो- 8120578897


तन ले भलुक सांवरी रंग हाबे फेर मन ले उज्जर हावय। कद काठी ले भलुक बुटरी हाबे फेर कदम पोठ उठाथे। आँखी मा जलरंग करत आँसू हाबे फेर सपना समंदर ले गाहिर हाबे। काया दुबर-पातर फेर अंतस ले पोठ हाबे। ...... फेर कतको पोठ हो जावय जिनगी मा भांवर उठथे तब बुध पतरा जाथे। आगी कस अंगरा मा घला राख के परत चढ़ जाथे। बस अइसनेच तो हाबे वोकर जिनगी हा। 

          मोटियारी अहिल्या के गोठ करत हॅंव मेंहा। वोकरो जिनगी मा भांवरी उठे हाबे। कोनो न देखिस, न गुनिस, मनन नइ करिस। नित-नियाव नइ करिस सोज्झे फैसला होगे। 

"तोला जिए के अधिकार नइ हाबे अहिल्या जा पथरा हो जा।'' 

                 अहिल्या के आँखी मा अंधियारी छागे। लहू के संचार बाढ़गे। रुआ ठाड़ होगे। धक ....धक..... धड़कन चले लागिस। अंधियारी आँखी मा बिजली चमकीस अउ बुतागे। ...धड़ाम होगे। जझरंग ले गिरगे पथरा लगे दुवारी मा "पथरा'' हा। जियत-जागत मनखे सिरतोन पथरा बनगे। मुहूँ ले बक्का फूटे न आँखी ले आँसू गिरे। कतका रोही बपरी हा ...? एक-एक आँसू के हिसाब लिही ते समुंदर के खारो पानी कमती हो जाही। एक-एक पीरा के हिसाब लिही ते पोथी  कमती हो जाही। एक-एक दरद ला जोड़ही ते दुनिया कमती पड़ जाही।

           अइसने तो एक बेरा अउ होए रिहिन। मनचलहा इंद्रदेव हा बहिरूपिया बनके आए रिहिन लार टपकावत। बिचारी अहिल्या देवी का जानही.....? गोसइया के भोरहा मा अपन मया ला दे दिस इंद्र देव ला। .... अउ गोसइया ला जानबा होइस तब ....? जम्मो के दोषी देवी अहिल्या होगे। 

"जा पथरा बन जा......।'' 

डांड़ दे दिस। सौहत पथरा बनगे देवी हा। 

तब अउ आज में का बदलिस नारी के जिनगी हा ? आज वइसने यहू अहिल्या होगे।

"जा पथरा बन जा......।'' 


                  टूरा मन कहांचो किंजर लेवय काही पहिन लेवय सब आजादी फेर टूरी मन बर पहरेदारी ? 

जम्मो तन ढंके राहय, अदब मा राहय। ... अउ थोकिन उघरा होगे तब गिधवा के का कमती ?  जंतु वैज्ञानिक मन भलुक गिधवा ला विलुप्त होवत प्रजाति कहिथे फेर अपन प्रयोगशाला ले  बाहिर निकल के तो देखो साहब ! मरी खवइया मन भलुक कमती होगे फेर जियत खवइया मन बाढ़गे हाबे। तभे तो फ्रीज मा पैंतीस कुटका मा बेटी मन मिलत हाबे, रोड मा घसीटत लेगत हे। छिहीबिही होगे जियत बेटी हा। मांस हाड़ा अउ लहू के रंग मा रंगाये सड़क होगे हे। कोनो माइक्रोस्कोप ले तड़प सुसकन ला देख सकथे का ? ....नही। अहिल्या भलुक भाव शून्य होगे हे फेर मन मा बादर गरजत हाबे।

अहिल्या एक दिन जींस टॉप पहिर के शहर ले का आइस दाऊ पारा के जवनहा के आँखी लहुटगे। दाऊ के बड़का टूरा हा अहिल्या ला रौंद डारिस।

"तोर गलती हाबे अहिल्या ! ..... सिरिफ तोर।''

परोसी सोज्झे कहि दिस। .... अउ पंचायत मा पंच परमेश्वर मन घला इही बला लगावत हाबे। आज जम्मो कोई गाँव के एकता चौक मा सकेलाये हावय दाऊपारा अउ खाल्हे पारा के माते झगरा ला देखे बर।

                 अहिल्या खाल्हे पारा के बढ़ई के टूरी आवय अउ भानू हा बड़का दाऊ के टूरा आवय। बड़का दाऊ भलुक भैरा हाबे फेर कोनो भैरा कहि दिही वोतकी मा खंडरी उधेड़ दिही। छोटका दाऊ घला सांय - सांय करत हाबे आज। खाल्हे पारा के अगवा बने हाबे बोचकू माहंगू अउ गंगू हा।

"हमर भुईयां मा जम्मो ला जिए के अधिकार हाबे एकर मतलब अब गाँव गंवई के टूरी मन जींस टॉप पहिरके थोड़े किंजरही ? अइसन मा हमर संस्कृति के नाश नइ हो जाही ..? ये टूरी अहिल्या ला शहर के हवा लगगे हावय। जींस टॉप पहिर के गाँव मा किंजरत हाबे तब देखइया के का गलती ?''

मंझला दाऊ बइटका के मूल गोठ ला चतुराई ले किहिस।

"कोनो हा रोटी ला झुलात रेंगही तब कोनो कुकुर हा झपट्टा तो मारबे करही ? ...... येमा कुकुर के का दोष ....?''

बड़का दाऊ अब मंझला के गोठ मा पॉलिश लगाइस।

"तोर बेटा भानू हा कुकुर हो सकथे दाऊ ! फेर हमर बेटी बहिनी अहिल्या हा रोटी नइ हो सके कि कोनो कुकुर देखही अउ झपट्टा मार लिही।''

गंगू किहिस।

दाऊ रखमखागे। 

"जबान सम्हाल के बात कर गंगू ! हमर जूठा-काठा मा पलथो तुमन तब कुकुर तुमन होए।''

"मेंहा मानथो तुहर घर के बनी भूती ले खाल्हे पारा के गुजारा चलथे। तुहर जूठा-काठा ला खा घला लेथन फेर ऐकर मतलब  हमर परवार के नोनी बाबू के इज्जत ला तुहर घर के खेलउना नइ बनावन दाऊ ! ..... अउ हमर बेटी कोती गंदला नजर ले देखबे ते तुहर आँखी ला कोचक देबो। अब जमाना बदलगे दाऊ.....! तेंहा चार मुटका मारबे ते महूँ हा दू मुटका मार के मरहू फेर हार नइ माने खाल्हे पारा के मन घला।''

बोचकू किहिस अपन लुहंगी मा गठान पारत।

"नइ होवन देवन अइसन अनित।''

अब खाल्हे पारा के जम्मो कोई चिल्लाए लागिस।

"शहरी स्टाइल मा पहिर-ओढ़के के गली-गली किंजरत रिहिस अहिल्या हा। दाऊ के टूरा के नियत डोलगे ते का होइस...? वोकर तन ला छू दिस ते खीया थोड़े गे ? हमर दाऊ बेड़ा मा तो सबर दिन अइसन होवत आवत हाबे कोनो टूरी संग दिल लग जाथे ते ठठ्ठा कर लेथन।''

दाऊ फेर किहिस अपन मइलाहा सोच ला उजागर करत।

"सबर दिन हमन ला जानवर समझे हस फेर हमू मन मनखे आवन दाऊ ! अउ हमू मन अब तुहर बेटी बहिनी संग ठठ्ठा करबो तब कइसे,...... बनही का ?''

माहंगू किहिस अब अगियावत।

दाऊ ला मिर्ची लाग गे।

"हमर गाँव मा अइसन नइ होवन देवन।''

दाऊ पारा के युवा मन गरियाए लागिस। एक कोलिहा नरियाइस अउ जम्मो कोती हुंवा-हुंवा। 

अहिल्या हा नवा फैशन के ओन्हा पहिरके किंजरथे उही गलती हावय। गाँव के इज्जत बचाना हाबे तब पाबंदी लगाए ला लागही।

"टूरी मन का पहिरही, का नइ पहिरही के नियांव होवत हाबे पुरुष मन के बइटका मा। ये भारत हा दुनिया के सबसे बड़का लोकतंत्र के भुईयां  आवय अउ जम्मो कोई ला अपन सुभित्ता अनुसार सब पहिरे के आजादी हाबे।.....अउ इही बस्ती मा दाऊ के बेटी मन अपन मन से ओन्हा पहिर सकथे तब हमर खाल्हे पारा के बहिनी मन काबर नइ पहिर सकही ? टूरी मन का पहिरही का नइ पहिरही के नियाव ले जादा बड़का गोठ आवय अहिल्या के तन संग काबर खेलिस दाऊ के टूरा भानू अउ उकर संगवारी मन ? एकर नियाव होना चाहिए पंच परमेश्वर हो।''

खाल्हे पारा के सियान गैंदलाल किहिस। जइसे सिरतोन मा जम्मो कोई आज के नियाव के मूल गोठ ला बिसरगे हाबे। अहिल्या के अनाचार होए हे तेकर नियाव करे बर सकेलाएं हाबे जम्मो कोई अउ होवत हाबे टूरी का ओन्हा पहिरही तेखर। 

"अहिल्या ला बलाके  हियाव-नियाव करो तब बनही जी !  .....अउ दाऊ के टूरा भानू ला घला बलावव।''

खाल्हे पारा के सबले बड़का सियान किहिस।

अहिल्या अपन दाई के तीर मा अब बेसुध बइठे हाबे।

"अहिल्या हा भलुक ये बइटका मा आही फेर दाऊ के टूरा हा अपन इज्जत उतारे बर नइ आवय।''

अब बड़का दाऊ हा किहिस।

"दाऊ के कुकरा होवय कि टूरा अब्बड़ जल्दी नजर लागथे। मोर होनहार बेटा ला नजर लगगे। अपन मोह फांस मा फंसा डारिस ये टूरी हा। रुपिया पइसा धन दौलत ला देख के लूटे के उदिम करत हाबे। तन ला बेचके मजा उड़ावत हाबे ये बेसिया हा। आज मोर बेटा फंसगे मोह जाल में, काली तुंहर बेटा मन फंस जाही......! अइसन टूरी ला तो गाँव मा घला नइ रहना चाही। बचाओ ये गाँव ला।....बचाओ ये गाँव के जवनहा मन ला।''

दाऊ कोती ले बड़का सियान किहिस।

"हाव ! सिरतोन कहात हाबे बबा हा।''

"भगाओ.... भगाओ.....!'' 

आरो आए लागिस। जम्मो कोई अब एक सुर होगे।

"कहां जाही बपरी हा ? वो तो अपन रद्दा मा रेंगत रिहिस अउ ....। गाँव ला छोड़ही ते दाऊ के टूरा हा छोड़े। अहिल्या इहिंचे जिहि इहिंचे मरही। ... अउ कोन निकालही मोर लइका ला देखथो मेंहा।''

खाल्हे पारा के  सियान बबा किहिस। 

बबा के भीष्मप्रतिज्ञा ला सुनके बइटका मा अब जम्मो कोई कांव-कांव हांव-हांव करे लागिस। एकता चौक मा बवाल होगे। नित-नियाव के जगा गारी- बखाना चलत हाबे। मार कांट बर उमिहावत हावय। ..... अहिल्या अउ वोकर दाई अब उदास रोवत  अपन घर चल दिस।

                   सिरतोन पहिली पंच परमेश्वर बनके गाँववाला मन नित-नियाव कर लेवय फेर अब जब ले एकता चौक के नाव धराये हाबे तब ले एको नियाव नइ होए हाबे। कभु ऊंच-नीच, कभु जाति-धर्म, पंत अउ अब तो राजनीति के नाव मा मार पीट हो जाथे चौक मा। जिहा सर्वसम्मति ले चुनई होवय उही अब बिन कछेरी अदालत जाय बिना नइ होवत हाबे। 

"अहिल्या तहु चल कछेरी.....?''

सियान किहिस अउ रद्दा मा रेंगे लागिस। थाना अमरे नइ रिहिस अउ उदुप ले गाँधी चौरा मेर अमरगे दाऊ हा। वोकर संग गाँव के बड़का सियान पलटू राम घला रिहिस - शांति दूत बनके आए रिहिन।

"कहां थाना-कछेरी जाथो दीदी ! जम्मो पुलिस वाला मन तो दाऊ के भक्त आवय। कोन सुनही तुंहर गोठ ला ?''

"कोनो तो होही भईया ! ये गरीबीन के सुनइया। दुख ला बताबो ते कोनो तो नियाय करही...।''

अहिल्या के दाई किहिस।

"ये सब तो आम बात आय बहिनी ! बड़े घर के लइका मन जवानी के जोश मा अइसन सब कर डारथे। येहां कोनो बड़का गोठ नोहे आज के बेरा मा।''

दाई के आँखी अगियावत रिहिस। बोले बर अब्बड़ रिहिस फेर गोठ मुहूँ मा रहिगे।

"टूरी मन तो बोझा ढोये बर आए रहिथे बहिनी ! ये दुनियां मा। मुड़ी ऊपर घर भर के बोझा- पानी, लकड़ी, घास के बोझा अउ पेट भीतरी लइका के।'' 

"सबो ला सहे ला सीख वो ! नानकुन गोठ बर दोरदीर -दोरदीर थाना झन जा। पेट मा जौन बोझा हाबे तेकर उतारे बर जौन कीमत मांगबे देये बर तियार हावन।''

मूल गोठ ला दाऊ किहिस पल्टू राम के पाछू।

"बढ़िया बइदराज करा लेगबो। ऊंचा-ऊंचा जड़ी बूटी खवाबो  अहिल्या ला....तहान न रही बांस न बनही बांसुरी।

"अब बइदराज मन के दुकान बंद होवत हे दाऊ ! अब बड़का नर्सिंग होम मा अइसन बुता होथे। भलुक जादा पइसा लेथे फेर सादा ओन्हा पहिरइया मन येला सुघ्घर करथे गारंटी के साथ। अहिल्या ला नर्सिंग होम पठोबो।''

पल्टू राम किहिस।

"...... अउ सुन !,  बुता के नागा होही तेकर सेती सौवा के कड़क एक बंडल  के लेग जाबे। समुंदर ले एक लोटा पानी निकालबे ते थोड़े कमती हो जाही ...?  ....अउ हमू मन गरीब के मुहूँ मा थूक देन कहिके भुला जाबो ।''

दाऊ मेंछा मा ताव देवत छाती फुलोवत अहिल्या के कोख के बोली लगाए लागिस।

"हाव, दाऊ बने काहत हे। मान जा।''

सियान पल्टू राम फेर किहिस

"तोर बेटी के संग अइसने होतिस तब मान जातेस का पल्टू भईया !''

अहिल्या के दाई किहिस रट्ट ले। पल्टू राम के बक्का नइ फूटिस।

                      अहिल्या तो बेसुध रिहिस। पथरा कस होगे रिहिन न हुंके न भुंके। ... अउ दाई घला इकर मन के गोठ सुनके रो डारिस। तभो ले कछेरी के डेरउठी ला खुंदिस फेर पुलिस वाला घला हड़का दिस अब। 

"मजा लेये बर ये सब करथो।.... अउ मन भरथे तहान रिपोर्ट लिखाए बर आ जाथो माई पिल्ला। इहां पुलिस स्टॉफ के कमती हाबे अउ तुहर मन के मजा के चक्कर मा हम फंस जाथन। भागो इहां ले। रोज के कतका रिपोर्ट लिखबो ?'' 

थानादार धमका दिस। 

का करही बपरी सियनहिन हा। अहिल्या ला धरके लहुटगे अब। जी हतास होगे। न गाँव मा इज्जत बाँचिस न कोनो काम बुता दिस अब। गोसाइया तो पहिलीच बितगे रिहिस।जम्मो नियाव के सभा हा अब कौरव के सभा होगे। धृतराष्ट्र तो अंधरा रिहिस फेर आँखी वाला जम्मो कोई घला अंधरा बनगे। कोन हे अब गाँव मा ? 


शहर चल दिस अहिल्या ला धरके अज्ञातवास मा सियनहिन दाई हा। अब नवा चिन्हारी के संग जिनगी जिए ला लागिस दाई हा अहिल्या के संग। 

                  बेरा पाॅंख लगा के उड़ावत हाबे अउ दाई के संसो बाढ़त हे। अहिल्या के कोख के बेटी हा आज मोटियारी होगे हे।

                        दूरपति के एक आरो मा आगेस किसन ! लाज बचाए बर। मोर देश राज ला बचाले दाऊ ! अब्बड़ झन दुस्शासन किंजरत हाबे छेल्ला। छत्तीसगढ़ के दुलरवा भाँचा राम तहुं हा शबरी दाई के आरो मा आगेस। ....मीठ बोईर ला खाके कहां लुकागेस।  ....आ तोरो अगोरा हाबे बचा ले ये छत्तीसगढ़ ला ! अब्बड़ अनित होवत हाबे ये भुईयां मा। रावण अउ मारीच ले जादा मायावी होगे हाबे इहां के मनखे मन हा। फोक्कट पांव भर परवाते रहिबे कि दरस घला देबे ये छत्तीसगढ़ मामी ला। अब तो आ जाना लबरा भाँचा !

 रोज अइसना गुनथे अब अहिल्या हा।

.......अउ सिरतोन मोहाटी के कपाट बाजिस अउ उदुप ले मोटियारी हा आके नहानी कुरिया मा खुसरगे सोज्झे सबरदिन बरोबर । जी हाय लागिस लइका ला देख के। अब्बड़ बेरा के अगोरा करत रिहिस बेटी माधुरी के। अहिल्या जम्मो ला गुन डारिस शहर के कुरिया मा बइठे अपन बेटी माधुरी के अगोरा करत। भलुक बड़का-बड़का महल अटारी बनगे आज फेर मनखे के सोच तो नइ बदलिस। महाभारत रामायण काल मा घला नारी अपन इज्जत ला बचाए बर छटपटावत रिहिन अउ आज घला। बेटी माधुरी संग कभु कोनो अनित झन होवय अब्बड़ डर लागे रहिथे अहिल्या ला। वोकर अंतस के पीरा तो आज घला हरियर हाबे कोट कछेरी चलत हाबे। कोन जनी कब नियाव होही ते...? वोकरे सेती अउ जादा डर्राथे अहिल्या हा। 


"जनक दुलारी, देवी तुल्य,वीरांगना, राजमाता रानी अहिल्या बाई के चेहरा मा उदासी कइसे दिखत हाबे आज। ....अउ ममतामयी करुणामयी जगत के पालनहार मोर नानी कही नइ दिखत हाबे।''

अहिल्या के बेटी माधुरी मुचकावत आइस अउ दाई अहिल्या ला पोटार के इतरावत किहिस। अहिल्या लजागे।

"टार रे ! तोर आनी बानी के गोठ ला। ....तोर नानी हा परोसी काकी घर कोती बरी अमराये बर अभिनेच गिस हाबे। आ जाही झटकुन।''

गिलास भर पानी देवत किहिस दाई अहिल्या हा। 

"बता तोर आज के दिनचर्या कइसे रिहिस।''

"हमर बुता का हे दाई ! मार-काट,चीर-फाड़। जीभ के अकड़ होवय कि हाड़ा के अकड़। सब्बो ला सोझियाये के बुता करथन महतारी ! हमर तो रोज के बुता आवय दरद पीरा मा कहारत मनखे ला देखे के। दर्द भी हम है और दवाई भी हा...हा....।

माधुरी बताइस हाँसत। अदरक वाली चाय आगे रिहिस अब। 

"के महीना अउ बांचिस तोर इंटर्नशिप हा ?''

"बस दू महीना अउ मोर राजमाता !  तहान ....अपन दुनियां,....... अपन अगास, अपन उड़ान.....। डॉक्टर माधुरी ला सरी दुनिया देखही दाई ! तोर बेटी अब्बड़ नाव कमाही, सब के ईलाज करही, रिसर्च करही वो संसो झन कर। ''

आँखी नचावत हाथ ला मटकावत किहिस माधुरी हा। सिरतोन अहिल्या के सपना पूरा होए बरोबर लागत हाबे। तपस्या के फल मिलइया हाबे अब। अब्बड़ दुख पीरा सहे हाबे अहिल्या हा माधुरी के जीवन ला सिरजाये बर। प्राइवेट स्कूल मा काम वाली बाई के नौकरी करके बेटी ला डॉक्टर बनाए के सपना देखिस अउ लोन लेके जगदलपुर मेडिकल कॉलेज मा भर्ती करिस। अहिल्या के अंतस मा मया के इंद्रावती हिलोर मारे लागिस अउ अरपा पैरी आँखी मा उतरगे। दूनो हाथ उठाके आसीस दिस बेटी ला।

.... अउ बेटी ? वो तो फेर मसखरी करे लागिस।

"डोंट बी  इमोशनल मेरी जान ! आई हेट टियर पुष्पा ! ये जो तुम्हारे आंसू है न ! वो आंसू नही, मोती है रे...! और इन मोतियों को सम्हाल कर रखो पुष्पा मेरी जान....!''

राजेश खन्ना के नकल करत किहिस माधुरी हा। वो तो जानथे दाई ला कइसे हँसाना हाबे तौन ला। अब दाई घला मुचकाये लागिस।

"दाई !  आज अस्पताल के एक गोठ सुनावत हावंव।"

"का...?"

"एक झन सियान भर्ती होए हाबे वो हमर मेडिकल कॉलेज अस्पताल मा। अब्बड़ दुख पीरा मा बुड़े हाबे। शुगर लेवल बढ़गे हाबे। काया कांटा होगे हाबे अउ गोड़ में लागे जुन्ना घांव गैंगरिन बनगे हे। जम्मो गोड़ सरत हाबे। वोकर गोड़ ला कांटे ला लागही।  बुधवार के अपॉइंटमेंट हाबे।''

माधुरी बताए लागिस।

"दाई ! मेंहा वोकर वार्ड मा जाथो तब अब्बड़ रोथे। कभु-कभु तो मोर गोड़ मा गिर जाथे अउ माफी मांगथे। पीरा के संग अहिल्या कहिके जोर से चिचियाथे। मोला माफी दे दे अहिल्या कहिके गिड़गिड़ावत रहिथे। ते मोर बेटी आवस कहिके दुलार करथे। आसीस देथे। अहिल्या बरोबर नैन नक्श हाव भाव चाल ढाल कहिके तारीफ करथे वो सियान हा। फेर....  वोकर घर के कोनो मनखे देखे ला घला नइ आवय। जरहागाँव के दाऊ भानुप्रताप नाव बताथे अपन नाम ला।''

अहिल्या के जी धक्क ले लागथे। छाती मा झूलत मंगलसूत्र मा हाथ जाम जाथे अउ मांग के कुहकु कोती धियान देथे। खनकत चूरी के आरो सुने लागथे।

"मोर बाबूजी आवय न दाई वो सियान हा। तेंहा सबरदिन मोला लबारी मारस न ! तोर बाबूजी हा परदेस गेहे खाए कमाए ला कहिके। बताना दाई ?''

अहिल्या अकचकागे बेटी के गोठ सुनके। सिरतोन कतका  अपमान करे हाबे दाऊ के टूरा भानू प्रताप हा। कछेरी मा अभिन घला केस दर्ज हाबे। भलुक पइसा के दम मा फाइल ला बंद करवा देहे फेर ....? भगवान शिव ला हलाहल पीए हाबे कहिथे फेर अहिल्या हा अपमान के कतका बीख पीये हाबे कोनो नइ जाने....? बिन बिहाये महतारी बने हाबे कहिके जौने जाने तौने हा बुरी नियत राखे। कतको बेरा फभित्ता सुने ला मिले। सोनपुतरी कस सम्हरे के उम्मर मा कोनो मेकअप नइ करे। कोन जन कोन कुकुर हा लार टपकावत आ जाही....? संसो करे।  खाली प्लॉट अउ भरे प्लॉट के ताना घला सुने। का करही बपरी हा ...? बिन बिहाव करे टूरी …....?  मंगलसूत्र चूरी अउ मांग मा कुहकू डार के  गिधवा मन ले बाचे के उदिम करे रिहिन अहिल्या हा।

"दाई !''

समुंदर के लहरा बरोबर जम्मो के सुरता आगे छिन भर मा। नोनी माधुरी के आरो ले चेतना लहुटिस अहिल्या के।

"दाई ! अइसन बेरा मा देवी-देवता के आरो लगाथे अपन दाई-ददा के आरो करथे फेर वो हा तोर आरो करत हाबे। भलुक अब्बड़ दुख - पीरा मा बुड़े हाबे फेर रात-दिन तोर अगोरा करत हाबे दाई। भलुक वोकर मुहूँ नइ देखे के किरिया खाए हावस फेर जीवन भर वोकर नाव के सवांगा तो पहिरे हावस न दाई ! ....पान परसाद खवाए बर चल दे वोतकी मा वोकर जी जुड़ाही।''

"कइसे जावंव बेटी ? आज जब कोनो नइ हे तब सुरता आवत हाबे वोला मोर । लाचार परे हाबे तब सुध लेवत हाबे। तेंहा नान्हे रिहेस तब बस्सावस अउ आज जब तेंहा सबल होगे हस तब अपन बेटी कहिके अधिकार जतावत हाबे। ...... तेंहा मोर बेटी आवस पोगरी । मोर अउ सिरिफ मोर...!

अहिल्या रो डारिस।

"हा...! डॉक्टर आवस तेंहा, सुघ्घर ईलाज कर। कोनो जिनिस के कमती झन करबे। न पईसा के,न दवाई पानी बर। डॉक्टर के धरम ला निभाबे।'' 

गाल मा ढूंलत आँसू ला पोछीस अहिल्या हा।

"......फेर वोकर आगू मा मेंहा कभू नइ जावव। अपन गलती मान के अपना लेवय कहिके जीवन भर अगोरा करेंव फेर जब सुघ्घर रिहिन तब कभु हीरक के नइ देखिस अउ अब......? भलुक मेंहा जीवन भर वोकर अहीत हो कहिके कभु नइ गुनेंव फेर सबरदिन मोर अउ तोर अहीत हो कहिके उदिम करे। भलुक मनखे मन नियाव झन करे फेर  भगवान के घर नियाव होथे सिरतोन।'' 

अहिल्या रोवत कुरिया मा खुसरगे।


अब तोरे अगोरा हाबे राम ! शबरी अउ अहिल्या ला तारे हावस वइसना मोर छत्तीसगढ़ के भाग जगा दे। कब तक माथा के खियावत ले पांव परावत रहिबे भाँचा ! अब मामी छत्तीसगढ़ के उद्धार कर दे। मेंहा तो उबर गेंव ये दुख के बेरा ले फेर कतको झन अभिन घला सुसकत हाबे...

झटकुन आबे भाँचा राम ! दुराचारी रावण मारीच ला मारे बर। अब रद्दा देखत हंव.........तोर अगोरा मा।

अहिल्या गुनत हाबे।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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समीक्षा

 पोखनलाल जायसवाल: ....

'तोर अगोरा मा' शीर्षक पढ़ के कहानी के कथानक अइसे लगिस कि मया म बिछुड़े मनखे के कोनो प्रेम कहानी होही। कभू-कभू कहानी के शीर्षक पाठक ल तुरते कहानी पढ़े बर विवश कर देथे। मया पिरीत के अइसने कोनो कहानी होही, गुन के तुरते पढ़े लगेंव। कहानी के भाषा शैली अउ प्रवाह अइसे हे कि पूरा कहानी पढ़ डारेंव। मन भटकिस नहीं। आखिर ले ऊपर के दूसरइया पैरा ल छोड़ दे जाय त मया के कहानी तो कहे च नी जा सकय। ए कहानी स्त्री विमर्श के कहानी आय। जेन म नारी-परानी के संघर्ष हे। पौराणिक प्रसंग मन के समाव ले कहानी विस्तार पाबे करथे, वर्तमान घटना मन ले नारी के शोषण अउ दुर्दशा के तुलनात्मक आरो घलव मिलथे। कहानीकार समाज म घटत घटना के विवरण संग स्वीकारथें कि 'तब अउ अब' म नारी के हाल अभियो जस के तस हे। जउन सोला आना सच आय। नारी सशक्तिकरण के जुग हे, फेर कागज म। जेकर लाठी तेकर भैंस चरितार्थ होत्तेच हे। नारी के पक्ष म खड़ा होवइया के कमी हे। बाहुबल अउ धनबल आजो व्यवस्था ल ठेंगा देखावत हे। बेरा म सही नियाव गिने-चुने ल मिलत हे, खासकर नारी हिंसा के मामला म। समाज म ए सब देखे सुने जावत हे।

         नारी मन ईश्वर के प्रति अगाध आस्था अउ विश्वास रखथें। वो मन पति ल परमेश्वर मानथें। कभू अनबन होय पाछू डेरउठी म ऑंखी गड़ियाय उॅंकर अगोरा म बइठे रहिथें। ए कहानी म अइसन बात नइ हे। धन बल के मद म बउराय मनचला टूरा के काला करतूत के पीरा ले जिनगी भर दॅंदरत नारी अहिल्या के संघर्ष हे। पौराणिक अउ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ले कथानक के विस्तार म व्यंग्य के सुर मुखर होय हे। व्यंग्य के अइसन धार बिरले कहानी म मिलथे। संस्कार अउ परम्परा के तथाकथित रखवार मन ऊपर जम के ठेसरा मारे गे हे।       

         दबे-कुचले के आवाज बने गंगू नवा जमाना के आरो आय। शोषक ल अब संभल के रहे के बेरा आगे हे। युग बदलगे हे। अनियाव ल अब कोनो नइ सहे। ए चेतवना हे।

        मइलाहा मनखे मन बर अपन घिनहा करतूत ल छुपाय के ठिकाना बने अस्पताल ऊपर घलो कटाक्ष करत सिरतोन गोठ लिखे गे हे -.... 'सादा ओनहा पहिरइया मन सुग्घर करथे गारंटी के साथ।' थाना-कछेरी के बढ़िया खबर ले गे हे।

         कहानी ये संदेश दे म सफल हे कि मनखे पाप कहन चाहे अनियाव या कहन कि अत्याचार कर के लौकिक संसार म धनबल ले बरी तो हो सकत हे, फेर अपन आत्मा ले उबर नी पावय। ऊपर वाले के नियाव ल बदल नइ सकय। ऊपर वाले के लाठी के गुॅंज भले कोनो ल नइ सुनावय। वार दिखथे जरूर। जिनगी के सॅंझाती बेरा धनबल बाहुबल काम नइ आय। यहू बात रखे म कहानी सफल हे।

        कलयुग के अहिल्या ल राम के अगोरा हे। मनखे मया-पिरीत ले विलग कहॉं रहि पाथे। मया च ले तो जिनगी म खुशी हे, सुख हे अउ सरी आनंद। इही आशा म अहिल्या ल अगोरा रहिस कि भानुप्रताप गलती मान अपना लय। फेर... अहिल्या ल ए बात के पीरा जादा रहिस कि बने दिन म भानुप्रताप धनबल के घमंड म उन ल हीरक के नइ देखिस। उॅंकर मरजाद नइ रखिस। जोर जबरदस्ती ले मन ल तार तार कर के सुलिनहा जीयन नइ देइस। अइसन भानुप्रताप के भरोसा छोड़ अहिल्या राम ले नता जोरत ओकर अगोरा म हे। छत्तीसगढ़ के लोक मान्यता के मोती ल गुॅंथ कहानी के समापन शीर्षक ल व्यंजना प्रदान करथे। 

       कहानी के संवाद लोक अंचल के जीवंत दृश्य ल रेखांकित करथे। अइसन संवाद गढ़ लेना कहानीकार के वाकपटुता अउ चतुरई आय। जे कहानी म जान फूॅंकथे। सुघर कहानी बर कहानीकार चंद्रहास साहू जी ल हार्दिक बधाई अउ शुभकामना।

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पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

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