Thursday, 23 May 2024

भाव पल्लवन*

 *भाव पल्लवन*



धन हे त धरम हे

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हमर पुरखा मन कहे हें के---"धन हे त धरम हे।" इहाँ धरम के मतलब हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई,बौद्ध,जैन, पारसी आदि ले नइये भलुक धरम के मतलब जिम्मेदारी जेला कर्तब्य कहे जाथे के निभाना ले हावय।

  सोचे जाय त कोनो भी मनखे बिना धन के अपन बहुत कस जिम्मेदारी ला ढंग से नइ निभा सकय ।लइका मन ला पढ़ाना लिखाना हा माता-पिता के कर्तव्य आय। येला निभाये खातिर लइका बर कापी-किताब बिसाये बर लागही--फीस ला पटाये बर लागही तेकर बर पइसा(धन) चाही। मान लेथन कोनो आन हा या फेर सरकार हा ये जिम्मेदारी ला निभा देही त उहू ला तो पइसा खरचा करे बर लागही।अइसनहे नोनी-बाबू के बिहाव करना हे,घर-कुरिया बनाना हे,खेती किसानी करना हे,पूजा-पाठ,यज्ञ-हवन,दान-पुन करना हे,जगराता करवाना हे,भंडारा करवाना हे------ कोनो  जगा पइसा बगैर काम नइ चलय।

   धन ले कर्तव्य के पालन तो होबे करथे,बहुत अकन जरूरत के पूर्ति तको होथे ।रोटी,कपड़ा ,मकान तो सब ला चाही तेकरे सेती गरीब से लेके अमीर,राजा से लेके भिखारी, गृहस्थ से लेके साधु--संन्यासी सब झन ला धन चाही। हाँ धन कतका चाही ? येकर उत्तर अलग-अलग हो सकथे।संत कबीर दास जी तो कहे हें--

 साईं इतना दीजिए,जामे कुटुम समाय।

मैं भी भूँखा न रहूँ,साधु न भूँखा जाय।।

 माने जाथे के धन ले सुख-सुविधा मिलथे।धन ले बहुत कुछ खरीदे जा सकथे फेर एहू बात सही आय के धन ले सब चीज नइ खरीदे जा सकय।धन ले हमेशा सुख मिलही एकरो गारंटी नइये ।देखे मा तो ये आथे के अन्याय ले कमाये  धन हा दुख के कारण बनथे ।अइसन धन हा अधरम के कारण बन जथे।शास्त्र मन के कहना हे के संतोष करके धरम-नीति ले कमाये धन हा फुरथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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