Thursday, 23 May 2024

दिखावा के तीसरा अटैक अउ श्रद्धांजलि ( महेंद्र बघेल )

 दिखावा के तीसरा अटैक अउ श्रद्धांजलि 

                          ( महेंद्र बघेल )


मनखे मन ल जनम ले लेके मरन तक नाना प्रकार के संस्कार नाम के पतली गली ले होके गुजरना पड़थे।जनम के समय खुशी मनाय जाथे त मरन ह दुख के कारण बन जथे।खुशी अउ मातम के बीच के लम्बा रद्दा म हिदिक-हादक करत कई ठन उतार -चढ़ाव ले नहाकना पड़थे। मनखे के समाजिक प्राणी होय के सेती ओकर ले समाजिकता के आशा घलव रहिथे।फेर ओकर अंतस के बारा-बाखा म विराजमान असमाजिक नाम के दुरगुन के सेती मनखे मन ल संस्कार के अंदर अउ कई ठन ब्रांच खोले के मौलिक अधिकार मिल जथे। तइहा के बेरा म चीज-बस के कमी के सेती उधारी-बाढ़ी ले बाचे बर संस्कार ल शार्ट कट म निपटाय के जतन करे जाय। ये शार्ट कट म दीदी-भाटो, फूफा- फूफी ,ममा- मामी अउ कका-काकी जइसे घरोधी सगा के संग अड़ोस-पड़ोस के मन नेवतहार रहॅंय।आजकल संस्कार के सूचकांक म मनमाने उछाल देखे बर मिलत रहिथे।तेकर सेती नवा पीढ़ी वाले संस्कार के उत्सव बाजार के सूचकांक ह उपर डहर चढ़तेच दिखाई देथे फेर निवेशक के चरित्र म हल्कापन के संभावना ले इंकार नइ किये जा सके।ये संस्कार के उत्सव बाजार के लक्षण ह बड़ विशेष होथे,येमा पैसा लगाय ले पैसा आय के नहीं जाय के फूल गारंटी रहिथे।तभो ले आम-आदमी ह येमा निवेश करे बर पुच्च-पुच्च कूदे परथें।कोनो भी संस्कार ल उत्सव म बदले बर बजट के जरवत पड़थे अउ ये बजट ह नेवतहार सगा मन ल बटाॅंय कार्ड के वजन के हिसाब ले तय होथे।ये जीलेवा बजट के चक्कर म घर-द्वार, खेती -खार के बेचाय के चांस बने रहिथे।बिना माल-पानी (खटाखट नोट) के कहाॅं के संस्कार अउ कहाॅं के तीज-तीहार,सब फाऊ हे..।

          हम कोनो ले कम नइ हन वाले बीज मंत्र ह आजकल सबके नस-नाड़ी म विराजमान होगे हवय।तेकर सेती अड़ोसी- पड़ोसी अउ घरोधी सगा मन के कार्यक्रम ले बढ़के भव्य कार्यक्रम करे के इच्छा ह हर नवा पीढ़ी के मन म समाय रहिथे।इही गुरू मंत्र ल अधार मानके भावी प्रोग्राम बर मेगा बजट तैयार करे जाथे।परब, तीज-तीहार म भव्यता के एके मतलब होथे दिखावा..। दिखावा कहे म थोकिन अटपटा लगथे फेर पैसा वाले अउ उनकर फालोवर मन येला भव्यता कहिके अपन कद ल आदमकद बनाय के जुगाड़ म लगे रहिथें। कुलमिलाके नवा पीढ़ी के संस्कारी दुनिया म फिजूलखर्ची ह एक ठन नवा परम्परा "दिखावा" ल जनम देवत हे। इही दिखावा के गर्भ म तारीफ के अंश छुपे रहिथे।अउ कते मनखे ल भला तारीफ ह पसंद नइ आवत होही, अपन तारीफ सुने बर मनखे मन बजट ले जादा खरचा करे बर अइसे भी मरतेच रहिथें।वो मन सब जानथें आवक ले जादा खरचा करे म समस्या आही फेर तारीफ सुने के घोर अभिलाषा ह बजट ल घाटा के मुहाटी म पहुॅंचई देथे।दिखावा म पीएचडी करे संस्कार शास्त्री मन के कहना हे कि आदमी के औकात के मुताबिक दिखावा ल अलग-अलग ग्रुप म सेट करना चाही ।समाजिक जीवन म दिखावा ह आज के महत्वपूर्ण जरवत बनके हमर सामने खड़े हे। जेब म जतका माल-पानी हे ओकर छोड़ खेत-खार ल बेच-भाॅंज के दिखावा बर बजट तैयार करना आज आम आदमी के जइसे मुख्य कर्तव्य बनके रहिगे हे।अइसे भी जमीन बेच के आयोजन करना बड़े दिल वाले मन के काम आय।

          पता नहीं इहाॅं के समाजिक अउ संस्कारिक ताना-बाना ह कौन से साॅंचा म ढलाय हे।जेन ल देखबे उही ह दिखावा ल अपन अंतःकरण म आत्मसात करत इहाॅं-उहाॅं दिख जथे। खासकर निम्न अउ निम्न मध्यम वर्ग म ये गुण ह गोड़ ले मूड़ तक गलगलाके भरे रहिथे। इही सरफूकनिक विशेषता के सेती बड़े-बड़े गौंटिया अउ मालगुजार मन के खेती-खार ह बेचा-बेचा के हाथ ले गुजर गेहे।अब घोंसर-घोंसर के फकत गुजारा ह चलत हे।एक डहर किसान मन अपन खेती -बाड़ी के परब अउ तीज- तिहार ल अलवा-जलवा करके मनई लेथें।त दूसर डहर सगई,बिहाव अउ छट्ठी के प्रोग्राम ह आम आदमी के कनिहा ल ढिल्ला करके रख देथे।घर म लइका मन जब सज्ञान हो जथें तब दाई-ददा के कोरा-माथा म फिकर के लंबा लोर ह दग-दग ले उपक जथे। इहाॅं सज्ञान के मतलब बिहाव करे के योग्य लइका ले हवय।बड़ जतन ले लइका मन के बिहाब के योजना बनावत दाई-ददा मन अपन छानी-खपरा वाले घर ल टोरके पक्का घर बनाय के सपना संजोथे।येमन ये सपना संग प्रधानमंत्री आवास योजना ल जोड़े के उदीम म सरपंच-सचिव के अघावत ले खात-खवई घलव करवाथें।फेर लाख कोशिश करे बाद पंचायत ह हरा के जगा लाल झंडी दिखा देथे।तभो ले दाई-ददा मन पीएम आवास योजना ल अमलीजामा पहिराय बर पंचायत विभाग ले घेरी-बेरी विनम्र निवेदन करथें फेर वाह रे पंचायती विभाग..,येमन जुवाबी कार्यवाही म उनकर सपना के सादर श्रद्धांजलि करके रख देथें।

            लड़का पक्ष होय चाहे लड़की पक्ष ये डिजिटल युग म खपरा-छानी वाले घर ल बड़े हिकारत भरे नजर ले देखे जाथे।तेकरे सेती बिहाव खातिर पक्का मकान के सपना ल साकार करे बर खेत-खार ल बेचना सियान के मजबूरी हो जथे। खेत बेचके मिले सबो पैसा ह बिजली,नल, टाइल्स अउ डिस्टेंपर के आगू म चटनी हो जथे। अर्थात बर-बिहाव के परसादे सबे किसम के परिवार म दिखावा के पहला अटैक इही ह आय।सनद रहय कि प्राथमिकता वाले राशन कार्ड ले पक्का मकान बनवई के इहाॅं कोई लेना-देना नइ हे।कइसनो करके जब पक्का मकान के सपना पूरा हो जथे तब लड़की अउ लड़का दूनो के नाम ल बिहाव योग्य लइका के परिचय सूची म छपवा दिये जाथे।काकर मन कतका उज्जर अउ कतका काला हे,येला भला कोन ह जाने , ये दुनिया के खेल तो निराला हे। पक्का मकान के चमत्कार अइसे कि देखते-देखत दूनो लइका के रिश्ता फटाक ले तय हो जथे ।

         एती कइसनो करके जब पक्का मकान के सपना पूरा हो जथे तब सियान के आगू म सगई अउ शादी के दू ठन बड़े खरचा ह हिमालय पर्वत कस ठाढ़े दिखथे।येती घर के सियान ह कम बजट म सगई अउ बिहाव के खरचा ल निपटाय के योजना बनाथे त ओती बेटा अउ बेटी मन शान-शौकत ले प्रोग्राम करे के प्रस्ताव ल अपन सदन म ध्वनि मत ले पारित करवा लेथें। आखिरकार सियान के योजना ह लइका मन के इच्छा के आगू म घुटना टेक के रहि जथे। तभे नवा पीढ़ी के नवा सोच के संग घरवाले के उपर खट-खटाखट दिखावा के दूसरा अटैक हो जथे। ये दिखावात्मक अटैक के सेती अब सड़क तीर के टेपरी डोली के हैप्पी बर्थडे मनाना जरूरी हो जथे।बेटा-बेटी डहर ले शान-शौकत के लम्बा रूचि ल समान के सूची म एडजस्ट करना अउ दिखावा- परमोधर्म के आधार म ओला आत्मसात करना दाई-ददा के नैतिक अउ भौतिक जुम्मेदारी बन जथे। कुलमिलाके नवा पीढ़ी के अभिरुचि के सूची ल देखे म आधुनिक समाज के आलंबन अउ उद्दीपन ह मां-बाप के स्थायीभाव ल संचारी भाव म बदल के रख देथे।

              बर-बिहाव ह टोटल घरेलू मामला तो आय तेकर सेती येकर भीतरी म झाॅंके के उदीम बिल्कुल नइ होना चाही।फेर दूल्हा-दुल्हन के अभिरुचि के सूची ल देखके वर्तमान समय म समाज के अंदर नवा पीढ़ी के का सोच तैयार होवत हे ओहर सबके नजर म जग-जग ले तो अइ जथे।जब राशन- पानी, कपड़ा-लत्ता, जेवर- गहना, फ्रीज-कूलर, वाशिंग मशीन, टीवी, डबल बेड, ड्रेसिंग, सोफा-सेट , शामियाना अउ डीजे-धूमाल जइसे आइटम मन के महायोग ह टेपरी डोली के वजन ले भारी पड़ जथे तब अपने-आप जेठासी डोली डहर डुड़ी ॲंगरी ह तो उचि जथे न..। आजकल बर-बिहाव म अड़ोसी-पड़ोसी ले बढ़के दिखावा (शान-शौकत) म खरचा करना आम-आदमी के नवा फैशन बनके रहि गेहे। येकर बर भला खेत-खार के सादर श्रद्धांजलि देना पड़ जाय तेकर कोई गम नइ रहय। आजकल कन्हो भी कार्यक्रम म दिखावा के क्वालिटी उपर तारीफ के फूल झरई ह डिपेंड करथे।तेल-हरदी चढ़े के बेर माइलोगन मन बर पींयर रंग के लुगड़ा,उनकर माथा म ओरमाय बर पींयर रंग के बिंदिया अउ बबाजात मन बर पींयर कुर्ता- पायजामा के मेचिंग के बेवस्था ह दिखावा के चरम अवस्था ल रेखांकित करथे। ये दिखावा ह आम आदमी के हॅंसत-खेलत परिवार ल कते डहर लेग के धसाही, कुछ कहे नइ जा सके।आप सुधी समाज ल अवगत कराना घलव जरूरी हे कि इहाॅं चर्चा के विषय आम आदमी के समस्या ल लेके होवत हे। खास आदमी मन के चर्चा करना हमर बस के बात नोहे, उनकर बर तो बोरा म, टेम्पो म भर-भर के बेवस्था हो जथे।

               बर-बिहाव के तीन दिवसीय समाजिक प्रोग्राम के मड़वा मंथन करे म अपन-तुपन करई ,माई-मोसी करई जइसे वीख (जहर) अउ पार-पाॅंघर, सगा- सोदर के सहयोग ह अमृत के रूप म निकल के आथे। बर-बिहाव के नेंग-दस्तूर जइसे सांस्कारिक पक्ष के मुख्य आधार स्तम्भ महिला समाज होथे।इनकर बिना एक ठन पत्ता नइ हिल सके।ये काम ह महिला मन के सकारात्मक विशेषता ल बतलाथे। उहें दूसर डहर उनला माई-मोसी करई के ताना घलव सूनना पड़थे। अपन मइके पक्ष के सगा मन ल छाॅंट-छाॅंट के उॅंचहा लुगरा-फूलपेंट बॅंटई अउ बाकी मन ल चेंदरा म निपटाय के कूटनीतिक चाल ह बिहाव जइसे मांगलिक काम के वाट लगा के रख देथे।ये लेन-देन के भाव-बेवहार म अपन -तुपन के नान्हे सोच ह ननंद -भौजाई, देरानी- जेठानी अउ घर-परिवार के बीचोंबीच विभाजन के एक लंबा लकीर खींच देथे। पुरखा के जमीन-जायदाद ल बेच- भाॅंज के अपने मन ले दूर होय के ये टुच्चई पना ह का दुखदाई नोहे..?

            हरदी के पीयर रंग ह अभी छूटे नइ रहय कि नवा बहू रानी के रात-दिन शापिंग के नवा फैशन ह घर ल गदबदा के रख दे रहिस। सहीं म आजकल नवा बहुरिया मनके रात-दिन शापिंग के आधुनिक संस्कार ह घर ल कते दिन खड़हर बना दीही, कुछ कहे नइ जा सके।ब्रांडेड परिधान संग ब्रांडेड इसनो-पाउडर अउ डियो छितके बाईक म आसन ग्रहण करत येमन जब गली ले गुजरथें तब दिखावा के महक ह नेवरनीन होय के भरपूर बखान करथे।इनकर बेवहार ल देखके अइसे लगथे जनो-मनो हरेक साड़ी दुकान म हप्ता पुट येमन ल शापिंग करे के संविधान ह मौलिक अधिकार दे डरे हे।

            बिहाव म दिखावा के शानदार दू अटैक म मोहाय घरवाले मन के मटमटई ह अभी शांतेच नइ होय रहय कि नाती के छट्ठी अउ नामकरण संस्कार के भावी योजना ह आगू म ठाढ़ हो जथे।बहू रानी के मइके पक्ष वाले मन ल खोज-खोज के नेवता देना अउ उनकर उबुक-चुबुक होवत ले मानगौन करना ये कार्यक्रम के मुख्य कार्य होथे।साथे-साथ नामकरण संस्कार के महत्वपूर्ण कार्यक्रम म शानदार पार्टी देना, रमायण मंडली डहर ले सोहर गवाना अउ डीजे के धुन म कनिहा मटकाना ल घरवाले उपर दिखावा के तीसरा अटैक के रूप म मूल्यांकन करे जाथे। अउ आखिर म खरचा के भरपाई करे बर घर म बचे-खुचे रासियत के अंतिम श्रद्धांजलि के संग खेती-किसानी के चेप्टर ह आटोमेटिक क्लोज हो जथे।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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